Wednesday, December 31, 2008

Happy New year 2009


We will open the book. Its pages are blank. We are going to put words on them ourselves. The book is called Opportunity and its first chapter is New Year's Day.

Thursday, December 25, 2008

It's time you got the Tax Planning Done


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10 biggest Indian wealth creators of 2008

A recent Motilal Oswal wealth creation study stated that only 25 state-owned Indian companies could make it in to the 'top-100 wealth creators' list.
In 2003-08, top 10 wealth creating companies accounted for 49 per cent of wealth created compared to 76 per cent during 1998-2003. The strong bull run in the market has led to wider participation in the wealth creation process.
Commodities led by Oil & Gas had been the front runners in 2003-08. Wealth creation is the process by which a company enhances the market value of the capital entrusted to it by its shareholders.
10 biggest wealth creators of 2008

Reliance Industries; Rank: 1
Reliance was the biggest wealth creator for the second year in a row. The company has steadily climbed its way up the list of Motilal Oswal Biggest Wealth Creators.
It was ranked 4th in 2004, 3rd in 2005, 2nd in 2006 (behind ONGC) and first in 2007.
Chairman: Mukesh Ambani
Wealth created: Rs 307,700 crore (Rs 3,077 billion)
Net wealth created: 12.1% share
Market cap: Rs 180,470.47 crore (Rs 1,804.7 billion)
ONGC (Oil and Natural Gas Corporation); Rank: 2
Chairman: R S Sharma
Wealth created: Rs 159,300 crore (Rs 1,593 billion)
Net wealth created: 6.3% share
Market cap: Rs 143,391.86 crore (Rs 1,433.91 billion)
Bharti Airtel; Rank: 3
Chairman: Sunil Bharti Mittal
Wealth created: Rs 150,500 crore (Rs 1,505 billion)
Net wealth created: 5.9% share
Market cap: Rs 130,831.73 crore (Rs 1,308.31 billion)
NMDC Limited; Rank: 4
Chairman: Rana Som
Wealth created: Rs 135,600 crore (Rs 1,356 billion)
Net wealth created: 5.3% share
Market cap: Rs 21,581.73 crore (Rs 215.81 billion)
MMTC Limited; Rank: 5
Chairman: Sanjiv Batra
Wealth created: Rs 108,400 crore (Rs 1,084 billion)
Net wealth created: 4.3% share
Market cap: Rs 109,255 crore (Rs 1092.55 billion)
Last traded: 21650.45
BHEL (Bharat Heavy Electricals Ltd); Rank: 6
Chairman: K Ravi Kumar
Wealth created: Rs 952,00 crore Rs 952 billion
Net wealth created: 3.7% share
Market cap: Rs 66,197.53 crore (Rs 661.97 billion)
Larsen & Toubro; Rank: 7
Chairman: A M Naik
Wealth created: Rs 813,00 crore (Rs 813 billion)
Net wealth created: 3.2% share
Market cap: Rs 22,362.41 crore (Rs 223.62 billion)
SAIL (Steel Authority of India Limited) ; Rank: 8
Chairman: S K Roongta
Wealth created: Rs 727,00 crore (Rs 727 billion)
Net wealth created: 2.9% share
State Bank of India; Rank: 9
Chairman: O P Bhatt
Wealth created: Rs 701,000 crore (Rs 701 billion)
Net wealth created: 2.8% share
Market cap: Rs 812,49.02 crore (Rs 812.49 billion)
ITC; Rank: 10
Chairman: Y C Deveshwar
Wealth created: Rs 617,00 crore (Rs 617 billion)
Net wealth created: 2.4% share
Market cap: Rs 64,970.66 crore (Rs 649.7 billion)

Monday, December 22, 2008

बिना नुकसान बदल सकेंगे मेडिक्लेम कंपनी

नई दिल्लीः अगर आप अपने मेडिकल बीमा प्रवाइडर की सेवाओं से संतुष्ट नहीं हैं, तो अगले वित्त वर्ष से आपको जमा बोनस के साथ कंपनी बदलने की छूट होगी। गैर-जीवन बीमा कंपनियों की संस्था जनरल इन्शुअरन्स काउंसिल (जीआईसी) इस नतीजे पर पहुंची है और इस आशय की सिफारिश जल्द ही बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के पास भेज दी जाएगी।
काउंसिल के सदस्य और ओरिएंटल इन्शुअरन्स कंपनी के अध्यक्ष एम. रामदास ने बताया कि सभी बीमाकर्ता इस पर सहमत हैं। मुमकिन है कि सिफारिशें इस महीने के अंत तक या अगले महीने के शुरू में बीमा नियामक के पास भेज दी जाएं। उन्होंने उम्मीद जताई कि बीमा कंपनी बदलने की छूट अप्रैल 2009 तक संभव हो जाएगी। प्राधिकरण जैसे ही मंजूरी देगा, कंपनियां इसे लागू करेंगी।
मौजूदा व्यवस्था के तहत पोलसी धारक को एक साल के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा दी जाती है और हर साल इसे रिन्यू कराना होता है। पोलसी धारक को हर उस साल के लिए बोनस मिलता है, जिसमें उसने कोई दावा नहीं किया हो। यह बोनस साल दर साल इकट्ठा होता जाता है। अगर कोई ग्राहक अवधि की समाप्ति पर पोलसी रिन्यू कराने के बजाय कंपनी बदल ले तो जमा हुआ बोनस उसे नहीं मिलता और कस्टमर को नए सिरे से शुरुआत करनी होती है।
उन्होंने बताया कि चूंकि बीमा कंपनियों की बोनस संबंधी नीति अलग-अलग हो सकती है, इसलिए काउंसिल ने मिनिमम कवर बेनिफिट ट्रांसफर को लेकर आम सहमति बनाई है। इस सहमति के आधार पर इंडस्ट्री न्यूनतम लाभ की गारंटी तय करेगी, जिसका फायदा नई पोलसी लेते समय ग्राहक को मिलेगा।

Friday, December 19, 2008

Dual Tax Benefit with Insurance

Insurance has traditionally been one of the preferred investment options for investors seeking to reduce their tax burden but there are many benefits of insurance that people are not aware of.

Health insurance joins the party
Sec 80C has always been the more popular and glamorous tax savings section. People know how much they can save and what kind of investments come under the ambit of Sec 80C. But, this year’s budgetary provisions brought the limelight on a so-far lesser known tax provision which is Sec 80D. Sec 80D covers premium paid towards health insurance plans. This year’s budget increased the cap of investments under Sec 80D by Rs 15,000. This covers premium paid towards medical insurance taken on the health of self, spouse and dependent children (max Rs 15,000) and on the health parents (max Rs 20,000 in the case of parents being senior citizens or Rs15, 000 otherwise).So, now when you combine Sec 80C and 80D, you find that you can invest up to Rs 1.35 Lacs which for someone in the highest tax slab converts to an additional savings of almost Rs.5, 099 .

Tax treatment at the time of maturity
When people are taking a decision related to their tax savings investments, they look for tax savings only at the time of investment. But, in doing so they only see the incomplete picture as they do not look at the tax treatment at the time of the maturity of their investments. So, in the worst case they end up investing in a plan which does give them tax savings at the time of investment but at the time of maturity, the maturity proceeds get taxed. For e.g, if a person invests Rs 100 in a plan in which the maturity amount gets taxed, he saves Rs 33 u/s 80C. Let us assume that after a year, this investment matures and the investment value is Rs 200 (income Rs100). If this were to be taxed on maturity, he will end up paying Rs 33 as tax. So, the net gain for the investor is much lower. Life Insurance is one of the few tax savings investment options which give you the benefit of tax-free maturity. So, not only do you save tax on your regular premium payments but you also enjoy tax free maturity benefits. Now, that’s having the cake and eating it too.

Thursday, December 18, 2008

म्यूचुअल फंड में निवेश पर सवाल जवाब

1 मैंने कहीं पढ़ा है कि 'चतुर निवेशक या तो बाजार में 5 फीसदी या उससे ज्यादा की हर गिरावट पर छोटी राशि का निवेश करते हैं या एसआईपी का माध्यम चुनते
हैं।' यह बात कहां तक सही है?


अगर कोई चतुर निवेशक लगातार गिरावट में खरीदने और बाजार चढ़ने पर बिकवाली करने में कामयाब रहे तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है। लेकिन गिरावट को परिभाषित करना काफी मुश्किल है। जनवरी 2008 से बाजार गिरता ही जा रहा है। ज्यादातर पेशेवर और निवेशक बाजार की चाल का अंदाजा लगाने में नाकाम हैं। इक्विटी से पैसा बनाने का तरीका यह है कि बढि़या शेयरों का पोर्टफोलियो बनाएं और संयम के साथ उसे बरकरार रखें। दूसरा विकल्प है म्यूचुअल फंड के जरिए तैयार पोर्टफोलियो खरीदना और नियमित रूप से उसमें निवेश करना। एसआईपी अनुशासन सुनिश्चित करता है और गिरावट के वक्त घबराहट से निपटने में मदद देता है। यह इक्विटी से मुनाफा बनाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है।

2 मैं एसआईपी निवेशक हूं और संतुलन के लिए पोर्टफोलियो में बदलाव करना चाहता हूं। मदद कीजिए।

अगर आप डेट और इक्विटी में 60 : 40 का अनुपात रखना चाहते हैं तो इक्विटी में गिरावट आने पर डेट से अपनी रकम धीरे-धीरे इक्विटी के खाते में ले जाएं। ऐसा नियमित रूप से करते रहने पर आप इक्विटी से तब फायदा ले सकेंगे जब इसमें आपका निवेश बढ़ता जाएगा और बाजार चढ़ेगा। संतुलन लाने के कई तरीके हो सकते हैं। इक्विटी या डेट से फायदे पर लगने वाला कर संतुलन की प्रक्रिया में अवरोध साबित हो सकता है। इसलिए रिबैलेंसिंग से जुड़ा सिद्धांत यह होना चाहिए कि आवंटित राशि से जुडे़ हालात पूरी तरह उलट जाने तक लगातार ऐसा नहीं करना चाहिए। सालाना रिबैलेंसिंग कर के मामले में किफायती साबित हो सकती है क्योंकि लंबी अवधि में इक्विटी से मिलने वाले मुनाफे पर कर नहीं लगता।

3 क्या नाबालिग म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं?

जी हां। नाबालिग म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं लेकिन केवल अभिभावक के जरिए। वयस्क अभिभावक म्यूचुअल फंड की यूनिट रख सकता है और नाबालिग की ओर से उन्हें निवेश कर सकता है। आपको अपने बेटे या बेटी की उम्र के प्रमाण के साथ एएमसी पेश करना होगा और साथ ही यूनिट रखने और उन्हें इस्तेमाल करने की दक्षता का सबूत भी देना होगा।

4 कोई भी कंपनी आखिर कैसे माकेर्ट कैपिटलाइजेशन के आधार पर लार्ज, मिड या स्मॉल माकेर्ट कैप कैटेगरी में आती है। क्या किसी श्रेणी विशेष के लिए कोई सीमा तय है?


बीएसई पर सूचीबद्ध सभी शेयरों को माकेर्ट कैपिटलाइजेशन के आधार पर घटते क्रम में रखा जाता है। जो शेयर कुल माकेर्ट कैपिटलाइजेशन का शीर्ष 70 फीसदी हिस्सा रखते हैं, उन्हें लार्ज कैप कहा जाता है जो 40 से 90 फीसदी के बीच आते हैं उन्हें मिड-कैप कहा जाता है जबकि अंतिम 10 फीसदी हिस्सा रखने वाले स्मॉल कैप में शुमार किए जाते हैं। 30 नवंबर 2008 को 58 शेयर लार्ज कैप के थे।

Tuesday, December 16, 2008

चुनाव से पहले तक बाजार में रहेगी तेजी

भारतीय रिजर्व बैंक के रेपो और रिवर्स रेपो रेट में हालिया 100 बेसिस अंकों की कटौती के बाद तेजड़ियों की शेयर बाजार में शानदार वापसी हुई है। सरकार ने 307 अरब डॉलर के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की, जिससे निवेशकों का उत्साह कुछ और बढ़ा। सरकार की योजना इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए जरूरी मंजूरी की प्रक्रिया को रफ्तार देने की भी है और इसका मतलब 100 अरब डॉलर का निवेश है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की डरावनी तस्वीर और और वैश्विक स्तर से मिलने वाली नकारात्मक खबरों को धता बताते हुए एनएसई निफ्टी 3000 के स्तर को पार कर चुका है। सबसे ज्यादा फायदा बटोरने वालों में रियल एस्टेट, मेटल, ऑटो और बैंकिंग के शेयर शामिल रहे। उत्पाद शुल्क में 4 फीसदी की कटौती ने सीमेंट, स्टील और ऑटोमोबाइल कंपनियों के स्टॉक में जान डालने का काम किया। हालांकि रुपए के एक महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचने की वजह से आईटी शेयरों में गिरावट दर्ज की गई। भारतीय आईटी कंपनियों के ग्राहक बजट में कटौती कर सकते हैं, इससे यहां की कंपनियों की आमदनी पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इस वजह से भी आईटी शेयरों में कमजोरी आई। एशिया में पिछले हफ्ते हैंगसेंग इंडेक्स कमजोर आर्थिक डेटा को दरकिनार करते हुए 6 फीसदी बढ़ा जबकि जापान की अर्थव्यवस्था तीसरी तिमाही में शुरुआती अनुमानों से कहीं ज्यादा मंदी के दलदल में फंसती दिखाई दी। जापानी अर्थव्यवस्था ने 0.5 फीसदी का नुकसान और झेला। इस आशंका को और बल मिला है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अब तक की सबसे लंबी और भीषण मंदी का सामना कर रही है। अमेरिकी बाजार की स्थिति गंभीर बनी हुई है। हमारा मानना है कि यह ऑटो राहत पैकेज 700 अरब डॉलर के टार्प (टीएआरपी) पैकेज में से ही दिया जाएगा। हालांकि भविष्य में इसके वापसी करने की संभावना पर सवालिया निशान अब भी कायम है क्योंकि बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर निराशाजनक आंकड़े डराने का काम जारी रखे हुए हैं। अमेरिका का व्यापार घाटा 1.1 फीसदी बढ़कर अक्टूबर में 57.2 अरब डॉलर पर पहुंच गया है क्योंकि वैश्विक मांग में कमजोरी की वजह से निर्यात में लगातार तीसरी दफा गिरावट देखने को मिली है। अमेरिका में बेरोजगारी 1982 के बाद सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंच गई है। भारत में महंगाई दर गिरकर 8 फीसदी पर आ गई है। 33 हफ्तों में मुद्रास्फीति का यह सबसे नरम रुख है। भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग अक्टूबर में 3.4 फीसदी बढ़ा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल पर दबाव बना हुआ है जिससे अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे का दबाव कुछ कम होगा। वाणिज्य मंत्री ने संकेत दिए हैं कि सरकार इस सप्ताह अर्थव्यवस्था के लिए राहत पैकेज के दूसरे चरण की घोषणा कर सकती है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने सुझाया है कि आर्थिक मंदी से निपटने के लिए और कदम भी उठाए जा सकते हैं। अगले 5-4 महीनों की बात करें तो भारतीय बाजारों को लेकर हम सकारात्मक रुख रखते हैं। आईआईपी के नकारात्मक आंकड़ों के बावजूद भारतीय बाजारों की रैली ने सकारात्मक रुख दिखाया है। हमारी राय में बाजार में काफी बिकवाली हो चुकी है और सारी नकारात्मक खबरें शामिल हैं। इस बात की काफी संभावना है कि भारतीय बाजार आने वाले कुछ महीने में अमेरिका से अलग राह अख्तियार करेगा क्योंकि हम अगले 3-4 महीने में चुनाव पूर्व तेजी की उम्मीद बांध रहे हैं।
-अमिताभ चक्रवर्ती, प्रेजिडेंट (इक्विटी) रेलिगेयर सिक्योरिटीज

An investor ought to have

The list of qualities (an investor ought to have) include patience, self-reliance, common sense, a tolerance for pain, open-mindedness, detachment, persistence, humility, flexibility, a willingness to do independent research, an equal willingness to admit mistakes, and the ability to ignore general panic." - Peter Lynch


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Monday, December 15, 2008

Calculating Your Income Tax Liability 2008-09


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पोर्टफोलियो को बैलेंस करने का यही है समय

पिछले साल निवेश पर रिटर्न को देखकर आप खुशी से फूले नहीं समाए होंगे। इस साल आपमें से ज्यादातर को शायद ही खुशी मिली हो। निवेशक 2008 को शायद ही याद रखना चाहेंगे। शेयर बाजार अपनी रिकॉर्ड ऊंचाई से काफी नीचे है। कमर्शियल प्रॉपर्टी के दाम में भी जोरदार गिरावट आई है, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टर में मंदी का दौर चल रहा है और देश भर में लगभग सभी सेक्टरों में छंटनी के बादल मंडरा रहे हैं। क्या यह समय निवेशकों के लिए पोर्टफोलियो को दोबारा संतुलित करने का है? वित्तीय जानकारों की मानें तो आपको ऐसा ही करना चाहिए। उनका कहना है कि नए विकल्पों में निवेश कर ज्यादा लाभ कमाने का दौर समाप्त हो गया है और आने वाले समय में आपकी पहली प्राथमिकता धन की सुरक्षा होनी चाहिए। फाइनेंशियल प्लानर पोर्टफोलियो का बड़ा हिस्सा बैंक की सावधि जमा योजना (एफडी), राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी) और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) जैसे ऐसे सुरक्षित विकल्पों में लगाने की सलाह दे रहे हैं जो इक्विटी में कम निवेश करते हैं। जो लोग निवेश के नए विकल्पों की तलाश में हैं, वे विटेंज कारों, दुर्लभ स्टैंप, सोने के बार, दुर्लभ सिक्के, वाइन, फोटोग्राफी, मूर्तियों और प्राइवेट इक्विटी में धन लगा सकते हैं। इन सभी में लाभ कमाने के लिए आपको कम से कम तीन वर्ष के लिए निवेश करना होगा। क्वांटम एएमसी के सीईओ, देवेन्द नेवगी का मानना है कि 2009 में सोने में निवेश सबसे अच्छा रहेगा। उनका कहना है, 'सोना मुदास्फीति के खिलाफ ढाल का काम करता है। आज जैसे मुश्किल दौर में यह पोर्टफोलियो के बीमे की तरह काम करता है।' नेवगी की सलाह है कि निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो का कम से कम 20-25 फीसदी हिस्सा सोने से जुड़े प्रोडक्ट्स में लगाना चाहिए। मनी केयर फाइनेंशियल प्लानर की प्रमुख और सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर जनखाना शाह भी इससे सहमत हैं। साथ ही वह यह भी कहती हैं कि नए वर्ष में निवेशक अधिक जोखिम वाले वर्गोंं में भी धन लगा सकते हैं। उन्होंने कहा, 'यह आपकी जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करेगा। इस वर्ष के मुकाबले नए वर्ष में इक्विटी बाजारों के गिरने की संभावना कम और चढ़ने की अधिक है। जोखिम वाली संपत्तियां इस समय काफी आकर्षक लग रही हैं। निवेश करने से पहले आपको खुद से यह पूछना चाहिए कि आप अपने पोर्टफोलियो से क्या उम्मीद रखते हैं।' उनका मानना है कि नए वर्ष में डेट फंड और सरकारी प्रतिभूतियों की ओर निवेशक ज्यादा आकर्षित होंगे। अच्छा रिटर्न हासिल करने के लिए आपको गलत जगह पर निवेश करने से बचना होगा। अगर आप जोखिम उठाने वाले निवेशक हैं तो आपके लिए बाजार में उतरने का समय आ गया है। दूसरी ओर अगर आप फूंक-फूंक करने कदम बढ़ाना चाहते हैं तो आप शेयरों में तेजी आने तक का इंतजार कर सकते हैं। तब तक आपको पोर्टफोलियो को लेकर सतर्कता बरतनी होगी। अगर आप कम जोखिम चाहते हैं तो पोर्टफोलियो में तेजी से बढ़ने वाली संपत्तियों (इक्विटी, डायवर्सिफाइड लार्ज कैप म्यूचुअल फंड) को 25-30 फीसदी जगह दे सकते हैं। बाकी की रकम आप नियमित आय देने वाली संपत्तियों (छोटी बचत योजनाएं, फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान, लंबी अवधि की बैंक जमा योजनाओं) में लगा सकते हैं।

Thursday, December 11, 2008

सेक्टर आधारित निवेश कर बनाएं मुनाफा

छोटे निवेशक इक्विटी में सेक्टर आधारित निवेश कर सामान्य से अधिक रिटर्न हासिल कर सकते हैं। शेयर बाजार में इस समय बहुत से अच्छे शेयर आकर्षक दाम पर उपलब्ध हैं। बाजार में मंदी के दौर में भी कुछ ऐसे सेक्टर मौजूद हैं जिनमें आने वाले समय में तेजी की उम्मीद है। बाजार के गिरावट के दौर में निवेशकों को सुरक्षित शेयरों में निवेश करना चाहिए। ये शेयर मंदी में बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता रखते हैं। कारोबारी दौर के अलग-अलग चरणों में भी इनकी कीमतों में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं होता। आर्थिक माहौल चाहे जैसा भी हो , लेकिन ये मुनाफा कमाना जारी रखते हैं क्योंकि ये ऐसी वस्तुएं या सेवाओं से जुड़े होते हें जिनकी मांग हमेशा बनी रहती है। इनमें फूड , पावर और एनर्जी से जुड़े शेयर शामिल हैं। आप इन सुरक्षित सेक्टरों में निवेश कर सकते हैं:
टेलीकॉम
बहुत से सेक्टर और शेयर इस समय नकारात्मक विकास दर के दौर से गुजर रहे हैं लेकिन टेलीकॉम इसका अपवाद है। टेलीकॉम सेक्टर लगातार नए ग्राहक जोड़ रहा है। ट्राई के आंकड़ों के अनुसार , अक्टूबर में 1.5 करोड़ नए ग्राहक जुड़े हैं। 2008 में इस सेक्टर की विकास की रफ्तार 33.4 फीसदी की है जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 35 फीसदी था। इसके विकास दर में भले ही कुछ गिरावट है लेकिन दूसरों से काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। जल्द ही 3जी मोबाइल सेवाएं लॉन्च होने वाली हैं और जनवरी में वाई-मैक्स की नीलामी भी होनी है। इसके साथ यह सेक्टर और तेजी से आगे बढ़ेगा। देश में 2012 तक टेलीकॉम सब्सक्राइबरों की कुल संख्या 69-70 करोड़ के बीच पहुंचने का अनुमान है। इनमें 64-65 करोड़ वायरलेस ग्राहक और बाकी के फिक्स्ड लाइन का इस्तेमाल करने वाले होंगे।
इंजीनियरिंग और कैपिटल गुड्स
औद्योगिक सेक्टरों में हाल ही मंदी ने भले ही लघु अवधि में कैपिटल गुड्स सेक्टर की विकास की रफ्तार पर असर डाला है। लेकिन हाल ही में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए घोषित पैकेज ने इंजीनियरिंग कंपनियों के लिए अच्छी संभावनाएं पेश की हैं। इस सेक्टर की बहुत सी कंपनियों के पास काफी ऑर्डर हैं। ऊर्जा की आपूर्ति और मांग में अंतर लगातार बढ़ रहा है।
इसे देखते हुए पावर इक्विपमेंट बनाने वाली कंपनियां आने वाले समय में अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं। ऑयल और गैस देश में ईएंडपी (एक्सप्लोरेशन और प्रोडक्शन) को लेकर सरकार के रवैये में बड़ा बदलाव आया है। देश की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिए के लिए सरकार ने एक्सप्लोरेशन पर ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है। इस सेक्टर में बड़े निवेश भी हो रहे हैं। इनसे राजस्थान में तेल और केजी बेसिन में गैस मिलने के साथ अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं। 2009 के बाद देश में तेल और गैस के उत्पादन में वृद्धि होने की पूरी संभावना है। मांग लगातार बढ़ने की वजह से रिफाइनिंग मार्जिन भी मध्यम अवधि में बढ़ सकता है।
एफएमसीजी
मंदी के बावजूद फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनियां अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। किसानों के कर्ज माफ होने , अच्छा मानसून और रोजगार पैदा करने की योजनाओं की वजह से ग्राहकों के पास खर्च करने के लिए धन मौजूद है। इस सेक्टर की लंबी अवधि की संभावनाएं भी काफी मजबूत नजर आ रही हैं। कमोडिटी के दाम घटना भी एफएमसीजी कंपनियों के लिए खुशखबरी है। इससे कोकोनट ऑयल , ओरल केयर और स्किनकेयर उत्पाद सस्ते होंगे और इनकी मांग भी बढ़ेगी। यह सेक्टर घरेलू उपभोग पर आधारित है और इसी वजह से इन कंपनियों पर वैश्विक मंदी का बड़ा असर पड़ने की उम्मीद नहीं है।

वर्ल्ड बैंक कहता है, अगला साल बेहद बुरा बीतेगा

वाशिंगटन: चीन और भारत समेत विकासशील देश दूसरे वर्ल्ड वार के बाद ग्रोथ रेट में सबसे तेज गिरावट का सामना करना वाले हैं। 2007 में डेवलपिंग
कंट्रीज की ग्रोथ रेट 7.9 परसेंट थी। वर्ल्ड बैंक ने मंगलवार को फोरकास्ट किया है कि 2009 में इन देशों की ग्रोथ रेट घटकर सिर्फ 4.5 परसेंट रह जाएगी।

2009 में भारत की ग्रोथ रेट के बारे में वर्ल्ड बैंक का अनुमान 5.8 परसेंट का है। 2007 में भारत ने नौ परसेंट की रफ्तार से तरक्की की थी। वो बहुत पुरानी बात नहीं है जब भारत में डबल डिजिट ग्रोथ का भारी हल्ला था। लेकिन अब हालात तेजी से बदल रहे हैं। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती इकॉनमी में एक चीन की ग्रोथ रेट के बारे में वर्ल्ड बैंक का अनुमान 7.5 परसेंट का है। अगर इन दो देशों को छोड़ दें, तो डेवलपिंग वर्ल्ड की इकॉनमी की ग्रोथ रेट 2.9 परसेंट रहने का अनुमान है।

हालांकि वर्ल्ड बैंक का कहना है कि डेवलप्ड देशों के उलट नए उभरते और गरीब देशों की इकॉनमी में अगले साल निगेटिव ग्रोथ का खतरा नहीं है। लेकिन उम्मीद से कम प्रोडक्शन की वजह से इन देशों में बिजनेस बंद होंगे, लोगों की नौकरियां जाएंगी और कई तबकों की इनकम कम होगी।

इस खराब पूर्वानुमान से साफ है कि डेवलपिंग वर्ड के अमीर देशों से डिकपलिंग यानी कोई रिश्ता न होने की थ्योरी गलत साबित हुई है। खासकर लीमैन ब्रदर्स के सितंबर में पतन के बाद से क्रेडिट क्रंच का असर सारी दुनिया पर पड़ा है।

वर्ड बैंक का ये भी कहना है कि पूरी दुनिया की ग्रोथ रेट 2009 में घटकर 0.9 परसेंट रह जाएगा। जबकि इस साल की ग्रोथ रेट 2.5 परसेंट है। बैंक की चेतावनी है कि स्लोडाउन की वजह से इंटरनेशनल ट्रेड में तेजी से गिरावट आएगी और इसका असर गरीब और अमीर दोनों तरह के देशों पर होगा।

संयम रखकर इस दौर में भी कमा सकते हैं मुनाफा

इक्विटी लंबे वक्त में आपको बेहतर रिटर्न देता है। इक्विटी ने हमेशा उन लोगों को फायदा दिया है , जिन्होंने मुश्किल समय में संयम बनाए रखा है। ऐसी रणनीति लंबे समय में फायदा तो देती है , लेकिन यहां आपके लिए अच्छे म्यूचुअल फंड का चुनाव जरूरी है। चुनिंदा फंडों के बीच जोखिम को बांटने से निवेशकों को फायदा मिलता है। यहां हम आपको बता रहे हैं कि कैसे एक बेहतर इक्विटी म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो तैयार किया जा सकता है
जोखिम के अनुसार करें डायवर्सिफाई
निवेशकों को जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश की अवधि के अनुसार पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करना चाहिए। उदाहरण के लिए निवेश को पांच डायवर्सिफाइड फंडों में बांटने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि इन सभी की निवेश की रणनीति एक जैसी होगी। डायवर्सिफिकेशन आपकी जरूरतों के अनुसार होना चाहिए। इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प पोर्टफोलियो को लघु और लंबी अवधि में बांटने के बाद अवधि के हिसाब से फंडों का चुनाव करना है। लघु अवधि के फंडों में आप डेट पर अधिक भरोसा कर सकते हैं जबकि लंबी अवधि के लिए इक्विटी फंड बेहतर रहेंगे।
नियमित निगरानी जरूरी
लंबी अवधि के पोर्टफोलियो में इक्विटी के विकल्पों के चुनाव पर लगातार नजर रखना जरूरी होता है क्योंकि इक्विटी का मौजूदा आर्थिक माहौल से सीधा संबंध होता है। लंबी अवधि में इक्विटी से 12-15 फीसदी रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है , लेकिन बीच के समय में यह रिटर्न गिर सकता है इसलिए इस पर आपको नजर रखनी होगी। शेयरों के मामले में निगरानी और भी जरूरी है क्योंकि बहुत कम कंपनियां ही ऐसी होती हैं जिनमें बाधाओं के बिना 10-15 वर्ष तक अच्छा कारोबार करने की क्षमता होती है। म्यूचुअल फंडों के मामले में नियमित निगरानी की जरूरत कम होती है , हालांकि फंडों का प्रदर्शन भी बाजार में तेजी या मंदी के साथ बदलता रहता है। अगर आप डायवर्सिफाइड फंडों में निवेश करते हैं तो भी ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं होती है। इन फंडों की स्टॉक बास्केट काफी बड़ी होती है। इसके साथ ही आप सेक्टर के जोखिमों से भी बचते हैं। लंबी अवधि के निवेश आवंटन में अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले डायवर्सिफाइड फंडों को पोर्टफोलियो में अधिक स्थान दिया जा सकता है। अपने फंडों का चुनाव सावधानी से पिछले प्रदर्शन के आधार पर करें और अपनी निवेश की रणनीति से न भटकें।
थीम का मिश्रण
म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए एक बड़ा फायदा यह रहता है कि वे बहुत सी योजनाओं में से अपनी पसंद और जरूरत को पूरा करने वाली योजना चुन सकते हैं। पोर्टफोलियो को कम और लंबी अवधि में बांटने के साथ ही थीम के आधार पर विभाजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मौजूदा माहौल में आप एक बड़ा भाग लॉर्ज कैप फंडों में डाल सकते हैं। बाकी का आवंटन बैलेंस्ड , गोल्ड , डेट और इनकम फंडों को दिया जा सकता है। इनकम फंडों में निवेश 1-2 वर्ष के लिए रखना चाहिए क्योंकि इनका प्रदर्शन सीधे तौर पर ब्याज दरों से जुड़ा होता है। ब्याज दरें समय के साथ बदलती हैं और इसी वजह से लंबी अवधि में संपत्ति बनाने के लिए इनकम फंडों पर ज्यादा भरोसा ठीक नहीं है। इनमें निवेश ऊंची ब्याज दरों के दौरान ही बेहतर रहता है। शेयरों के मामले में पोर्टफोलियो में विकास और नकद प्रवाह के मिश्रण का ध्यान रखना चाहिए। नकद प्रवाह का उद्देश्य आप अच्छा डिविडेंड देने वाले शेयरों के साथ पूरा कर सकते हैं।

Tuesday, December 9, 2008

जीवन की राह में सुरक्षित चलने के लिए जरूरी है बीमा

बीमा से आपको अप्रत्याशित स्थितियों में अपनी और परिवार की सुरक्षा करने में मदद मिलती है। बीमा बाजार में बहुत सी पॉलिसियां और योजनाएं मौजूद हैं। प्रत्येक के अपने लाभ हैं लेकिन इन सबकी जरूरत नहीं होती। पॉलिसी को चुनते समय उसके फायदे और नुकसान को देखना बहुत जरूरी है। बजाज आलियांज जनरल इंश्योरेंस के सीईओ , स्वराज कृष्णन का कहना है , ' बीमा अनिश्चितताओं के खिलाफ वित्तीय सुरक्षा देने का एक बेहतर जरिया है। प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा या स्वास्थ्य बीमा जैसी मूल बीमा सुरक्षा जरूर लेनी चाहिए। इनका प्रीमियम भी महंगा नहीं होता। इसके साथ ही वाहन और मकान जैसी संपत्तियां भी काफी महंगी होती हैं और इनके लिए भी बीमा की जरूरत होती है। ' बीमा योजनाओं को पांच भागों में बांटा जा सकता है। जो इस तरह हैं :
व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा
इसमें दुर्घटना में होने वाली मृत्यु और स्थायी अपंगता के लिए बीमा सुरक्षा मिलती है। यह सबसे सस्ती बीमा सुरक्षा है और इसका लाभ वे लोग भी उठा सकते हैं जिनकी आमदनी कम है या फिर जो स्वास्थ्य संबंधी कारणों की वजह से जीवन बीमा के योग्य नहीं हैं। ऑप्टिमा इंश्योरेंस ब्रोकर्स के सीईओ , राहुल अग्रवाल के मुताबिक , ' 40 वर्ष से कम की आयु वाले लोगों को किसी अन्य जोखिम के मुकाबले दुर्घटना की वजह से मृत्यु और अपंगता का खतरा अधिक होता है। युवा व्यक्ति के लिए अपंगता मृत्यु से अधिक दर्दनाक होती है। व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा इसके लिए सुरक्षा देने का एक कम खर्च वाला विकल्प है। '
टर्म इंश्योरेंस
व्यक्ति की उम्र 35 वर्ष से अधिक होने के साथ ही बीमारियों का जोखिम भी बढ़ता जाता है। इसके साथ ही जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी रहता है। आज के दौर में 30 या 35 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु की खबरें भी कोई अचंभा नहीं रह गईं। इसलिए दुर्घटना के अलावा अन्य कारणों से मृत्यु के जोखिम के लिए भी सुरक्षा लेना महत्वपूर्ण है। टर्म इंश्योरेंस जीवन बीमा का किफायती विकल्प है और इसके साथ आप अपने परिवार को वित्तीय रूप से सुरक्षित कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के बीमा पोर्टफोलियो में इसका होना जरूरी है। मेटलाइफ इंडिया इंश्योरेंस के प्रबंध निदेशक , राजेश रेलन का कहना है , ' प्रत्येक व्यक्ति अपने आश्रितों के लिए एक बड़ा आर्थिक मूल्य रखता है। अगर व्यक्ति कोई कर्ज लेता है तो वो भी इस मूल्य में जुड़ जाता है। इसके लिए टर्म इंश्योरेंस सबसे सस्ती सुरक्षा है। '

गंभीर बीमारियों के लिए सुरक्षा
इस बीमा पॉलिसी के साथ गंभीर बीमारियों की स्थिति में खुद के लिए सुरक्षा ले सकते हैं। इसके तहत कैंसर , स्ट्रोक या किडनी खराब होने जैसी गंभीर बीमारियों के पता चलने पर एक गारंटीड नकद राशि अदा की जाती है। यह राशि तभी दी जाती है जब बीमाधारक बीमारी के पता चलने के 30 दिनों तक जीवित रहे। अग्रवाल का कहना है , ' हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से अस्पताल के खर्चों की भरपाई होती है। गंभीर बीमारी की स्थिति में जब व्यक्ति अस्पताल में भर्ती नहीं होता तो भी उसे काफी खर्च करना पड़ता है। इन खर्चों में महंगी दवाएं , डायग्नोस्टिक टेस्ट और डॉक्टर की फीस शामिल होते हैं। गंभीर बीमारियों के लिए सुरक्षा देने वाली पॉलिसी में इन खर्चों के लिए एकमुश्त रकम दी जाती है। ' होम इंश्योरेंस आपका घर एक कीमती संपत्ति ही नहीं बल्कि आपके और परिवार के रहने के लिए एक सुरक्षित जगह भी होती है। इसलिए इसकी सुरक्षा आपकी एक बड़ी जिम्मेदारी है।
होम इंश्योरेंस
पॉलिसी को हाउसहोल्डर इंश्योरेंस भी कहा जाता है। रॉयल सुंदरम इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अजय बिमभेत के अनुसार , ' ये पॉलिसी न केवल मकान के ढांचे बल्कि इसमें रखी कीमती वस्तुओं के लिए भी भूकंप , आतंकवाद , बाढ़ और सेंधमारी जैसे खतरों के लिए सुरक्षा देती है। ' अग्रवाल का कहना है , ' हमने यह देखा है कि पिछले एक दशक में मौसम का व्यवहार काफी बदला है। इससे प्राकृतिक आपदाओं के खतरे भी बढ़ गए हैं। इसके साथ ही शहरों में बढ़ते अपराध के मद्देनजर भी यह पॉलिसी लेना अच्छा रहता है। '
पेंशन प्लान
रिटायरमेंट के बाद आपके पास आमदनी का एक नियमित जरिया नहीं होता और आप आय के लिए आप केवल अपने स्रोतों पर ही निर्भर होते हैं। रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए आपको पहले से ही योजना बनाने की जरूरत होती है। एक अच्छा रिटायरमेंट प्लान आपको व्यवस्थित तरीके से धन जमा करने में मदद देता है जिसका उपयोग आप जीवन के सुनहरे दौर में कर सकते हैं। रेलन के मुताबिक , ' आप एकमुश्त प्रीमियम वाला या वार्षिक प्रीमियम के भुगतान वाला विकल्प चुन सकते हैं। इसके अलावा ऐसी यूनिट लिंक्ड एंडॉमेंट पॉलिसी भी ली जा सकती है जिसमें नियमित अंतराल पर धनराशि मिलती हो। ' अगर आपके पास इन सभी बीमा को लेने की क्षमता नहीं है तो भी आप टर्म इंश्योरेंस जैसी मूल पॉलिसी लेकर सुरक्षित हो सकते हैं।

अपनी भाषा में लीजिए पॉलिसी की जानकारी

मुंबई : बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) वह बीमा उत्पादों को क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित करने पर विचार कर रहा है। इरडा के चेयरमैन जे . हरि नारायण ने सीआईआई हेल्थ इंश्योरेंस समिट में संवाददाताओं को बताया, 'यह एक सुझाव है। उत्पादों की भाषा और उससे संबंधित तमाम फैसले नियामक संस्था, काउंसल और कंपनियों के बीच होने वाली बातचीत में तय होते हैं।' फिलहाल बीमा उत्पादों के मामले में केवल अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल होता है। क्लेम सेटलमेंट पर नियामक ने कहा कि 70-75 फीसदी क्लेम उसी साल निपटा दिए जाते हैं। नारायण ने बताया कि इरडा ने थर्ड पार्टी एडमिनिस्टेटर और बीमा कंपनियों को आईटी आधारित सिस्टम बनाने को कहा है ताकि डेटा को जल्द से जल्द और प्रभावशाली तरीके से प्रोसेस किया जा सके। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि कंपनियां शिकायत निवारण के लिए खुद अपना मजबूत सिस्टम बनाएं।' नारायण ने बताया कि अगर किसी पॉलिसीधारक को बीमा कंपनियों से अच्छी सेवा नहीं मिलती तो वह देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद लोकपाल से संपर्क कर समस्या का हल पा सकता है। देश में 12 लोकपाल हैं। चेयरमैन को उम्मीद है कि भविष्य में बीमा उत्पादों से जुड़े 'टेरर पूल' का और विस्तार होगा। उन्होंने कहा, 'अब तक कोई क्लेम फाइल नहीं किए गए हैं। मुझे उम्मीद है कि कुछ इस तरह के क्लेम किए जाएंगे। और हमें यह क्लेम फाइल होने के बाद ही पता चल सकेगा कि मौजूदा पूल पर्याप्त है या नहीं।' नियामक संस्था हेल्थ और मोटर ट्रांसपोर्ट इंश्योरेंस के लिए डेटाबेस पर भी काम कर रही है। नारायण के मुताबिक यह मौजूदा कारोबारी साल के अंत तक शुरू हो सकता है। यह डेटाबेस बीमा कंपनियों की तफ्तीश के लिए भी उपलब्ध होगा। अनुमान के मुताबिक देश में हेल्थ केयर पर 1,70,000 करोड़ रुपए सालाना खर्च होता है।

लंबी अवधि के लिए म्यूचुअल फंड में करे निवेश

म्यूचुअल फंड सभी के लिए है। दुनिया भर के लाखों निवेशक म्यूचुअल फंड में निवेश कर रहे हैं क्योंकि इनसे उन्हें भविष्य की आसान और सुविधाजनक योजना बनाने में मदद मिलती है। म्यूचुअल फंड क्या है और वित्तीय लक्ष्यों तक पहुंचने में ये किस तरह मदद दे सकते हैं , यह हम तफ्सील से जानेंगे लेकिन उससे पहले निवेश के कुछ अहम पहलुओं पर गौर करना भी जरूरी है। सबसे पहले अपनी वित्तीय जरूरतों और लक्ष्यों को जानें। मुझे कब पैसे की जरूरत होगी और किस काम के लिए , इस तरह के सवालों के जवाब खोजने की कोशिश कीजिए। अपने वित्तीय लक्ष्यों की सूची तैयार करें जैसे पुत्र या पुत्री की उच्च शिक्षा , मकान खरीदना आदि। साथ ही इस बात का अंदाजा भी लगाएं कि आपको इन तमाम जरूरी कामों के लिए कितनी रकम की जरूरत होगी। इन सवालों के जवाब आपको निवेश की अवधि तय करने में मदद देंगे। लक्ष्य और वक्त के मुताबिक अपने निवेश का मिलान करें। रिटायरमेंट या बच्चों की शिक्षा जैसे लंबी अवधि के लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए इक्विटी फंड को चुनें जो तेजी से बदलती परिस्थितियों के मद्देनजर शॉर्ट टर्म की अपेक्षा आपको अपेक्षित रिटर्न मुहैया कराएगा। छोटी मियाद के लक्ष्यों के लिए पूंजी बाजार या कैश फंड में निवेश करें। यह आपको ज्यादा स्थिरता दे सकते हैं।

जोखिम
निवेश से संबंधित कोई भी फैसला करने से पहले यह जानना अहम है कि आप कितना जोखिम ले सकते हैं। इस बात पर गौर करें कि आप अपने निवेश के मूल्यांकन में उतार - चढ़ाव को लेकर सहज रह पाएंगे या नहीं। निवेश में यह बात कोई मायने नहीं रखती कि आपका पैसा इक्विटी में लगा हो और लघु अवधि के तेजी से बदलते हालात के चलते आपके रातों की नींद उड़े लेकिन यह सुनिश्चित करना भी जरूरी कि आपका निवेश लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में मददगार साबित हो।
अनुशासन
पद्धति के मुताबिक निवेश करने से निवेशकों को इक्विटी मार्केट में पैठ बनाने का अच्छा आधार मिल जाता है। इसके अलावा अनुशासित निवेश से बाजार में उतार - चढ़ाव के वक्त भी निवेश में स्थिरता मिलती है।

टैक्स लाभ
म्यूचुअल फंड में निवेश करने से कर बचाने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा कुछ विशेष फंड में निवेश कर आप धारा 80 सी के तहत कर लाभ ले सकते हैं। लाभांश यानी डिविडेंड का पैसा सीधा निवेश के हाथ में पहुंचता है जो करमुक्त होता है।
योजना पर डटे रहें
निवेश करने से पहले इस बात की अच्छी तरह जांच - परख कर लें कि वर्तमान संपत्ति और व्यवसाय पर उसका क्या असर पड़ सकता है। जैसे - जैसे वक्त बीतेगा , आपकी जिंदगी में बदलाव आता रहेगा इसलिए आपको नियमित रूप से अपने पोर्टफोलियो की समीक्षा कर उसमें वांछित बदलाव भी करने होंगे लेकिन कम वक्त की उथल - पुथल की वजह से लंबी अवधि की योजना से छेड़छाड़ किया जाना समझदारी नहीं है। आसान शब्दों में कहा जाए तो निवेश पूंजी बढ़ाने और भविष्य में वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है लेकिन अगर फैसले गलत होंगे तो उनका नतीजा भी हमारे खिलाफ ही जाएगा।

Monday, December 8, 2008

बैंक से ट्रांजेक्शन करते समय छिपे शुल्क पर नजर रखें

आज के दौर में सभी लोगों को वित्तीय रूप से जागरूक होना जरूरी है। बैंक से लेन-देन करते समय कई बार कुछ ऐसे शुल्क चुकाने पड़ते हैं जिनके बारे में हमें पहले से पता नहीं होता और बैंक के साथ किसी भी गलत कदम की भरपाई आपको पेनल्टी देकर करनी पड़ती है। ये शुल्क बैंक खाते में तिमाही में औसत न्यूनतम राशि न रखने से लेकर क्रेडिट कार्ड पर नकद भुगतान और चेक बुक के इस्तेमाल के लिए भी हो सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार अप्रैल, 2007 से मार्च, 2008 के बीच बैंकों के ऐसे शुल्क वसूलने से जुड़ी शिकायतों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है। इन छिपे हुए शल्कों के बारे में आपको यहां विस्तार से जानकारी दी जा रही है।
तिमाही में खाते की न्यूनतम राशि
बैंकिंग ट्रांजैक्शन करते समय लापरवाही बरतने पर आपको पेनल्टी चुकानी पड़ सकती है। अगर आप खाते में तिमाही औसत बैलेंस रखने में असफल रहते हैं तो इसके लिए आपको जुर्माने के तौर पर 500 से लेकर 1500 रुपए तक चुकाने पड़ सकते हैं। इसके अलावा बैंक के कस्टमर केयर एग्जिक्यूटिव से बात करने पर भी आपको जेब ढीली करनी पड़ती है। देश के दो सबसे बड़े प्राइवेट बैंक आईसीआईसीआई और एचडीएफसी के उन ग्राहकों को कस्टमर केयर एग्जिक्यूटिव को प्रत्येक बार कॉल करने पर 50 रुपए चुकाने पड़ते हैं जो तिमाही में औसत बैलेंस बरकरार नहीं रखते। इसके साथ ही ऐसे ग्राहकों को तिमाही के दौरान ट्रांजैक्शन की तय संख्या पार करने के बाद प्रत्येक नकद लेन-देन के लिए भी शुल्क देना पड़ता है।
चेक फीस
ज्यादातर बैंक बचत खाते के साथ प्रति तिमाही एक चेक बुक (जिसमें 25-30 चेक होते हैं) मुफ्त देते हैं। मेट्रो और शहरी शाखाओं में इस खाते में आपको तिमाही में 5,000 रुपए की न्यूनतम राशि बरकरार रखनी होती है। ग्रामीण इलाकों की शाखाओं में यह राशि 2500 रुपए होती है। न्यूनतम बैलेंस न रखने की स्थिति में अगर आप अतिरिक्त चेक चाहते हैं तो इसके लिए आपको प्रति चेक 2-5 रुपए की राशि चुकानी पड़ती है।
बैंकिग चैनलों का समझदारी से इस्तेमाल
अगर आप सोचते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजैक्शन के लिए आपको कीमत चुकानी पड़ती है और इसी वजह से आप एटीएम के इस्तेमाल को लेकर सतर्कता बरतते हैं तो आप गलत हो सकते हैं। आईसीआईसी बैंक प्रति तिमाही आपकी मूल शाखा में 12 से अधिक ट्रांजैक्शन के बाद प्रति ट्रांजैक्शन 50 रुपए वसूलता है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में आप किसी भी चैनल (इंटरनेट बैंकिंग, फोन बैंकिंग, एटीएम और शाखा) पर प्रतिमाह केवल चार ट्रांजैक्शन मुफ्त कर सकते हैं। इसके बाद आपको प्रति ट्रांजैक्शन 75 रुपए चुकाने होते हैं। अधिकतर बैंक प्रति तिमाही सीमित संख्या में मुफ्त कैश ट्रांजैक्शन की अनुमति देते हैं।
कैश पेमेंट पेनल्टी
अगर आप उन लोगों में शामिल हैं जो अपने क्रेडिट कार्ड के भुगतान को अंतिम दिन तक टालते हैं तो आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है। अधिकतर बैंक क्रेडिट कार्ड का भुगतान नकद करने पर 100 रुपए का जुर्माना वसूलते हैं। अगर आप ऐसी स्थिति से बचना चाहते हैं तो या तो अंतिम तिथि से कम से कम चार दिन पहले भुगतान करें या फिर ऑनलाइन पेमेंट के विकल्प का इस्तेमाल करें।
स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन फीस
बहुत से बैंक आपको व्यक्तिगत सेवाएं उपलब्ध कराने का दावा करते हैं। हालांकि, इनके लिए भी आपको कीमत चुकानी होती है। स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन सुविधा से आपको देरी से भुगतान की चिंता से मुक्ति मिलती है लेकिन इसके लिए आपको प्रति इंस्ट्रक्शन 50 से लेकर 150 रुपए तक चुकाने पड़ते हैं। अगर आप इंस्ट्रक्शन को बदलना चाहते हैं तो भी आपको 25-75 रुपए का अतिरिक्त भुगतान करना होता है।
बैंक के दस्तावेजों पर भी लगता है शुल्क
प्राइवेट बैंक खाते में बकाया राशि के प्रमाणपत्र, ब्याज के प्रमाणपत्र, पता, हस्ताक्षर या फोटो सत्यापित करने के लिए 50-250 रुपए तक वसूलते हैं।
लापरवाही की कीमत
आज की आधुनिक बैंकिंग में लापरवाह लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। प्राइवेट बैंक उन लोगों से 100 रुपए का जुर्माना लेते हैं जो चेक ड्रॉप बॉक्स में नकदी जमा करते हैं। अगर जमा की गई राशि 500 रुपए से अधिक है तो इसके लिए आपको 300 रुपए जुर्माने के तौर पर देने होंगे। अगर आप एक से अधिक बार यह गलती करते हैं तो इसके लिए आपको 500 का अतिरिक्त शुल्क देना पड़ सकता है। इस लेख का सार यही है कि अगली बार जब आप बैंक से कोई लेन-देन करते समय अपनी आंख और कान खुले रखें। ऐसा न करने पर आपको ऊपर बताए गए शुल्क या जुर्माना चुकाना पड़ सकता है।

अस्थिर बाजार में सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट से फायदा

इस साल अक्टूबर में अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजार में गिरावट का दौर शुरू होने के बाद से घरेलू शेयर बाजारों में भी अनिश्चितता का दौर जारी है। बाजार की मौजूदा स्थिति को देखकर इसकी दिशा का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। बाजार में कारोबार की वॉल्यूम काफी घट गई है, क्योंकि संस्थागत निवेशक और ट्रेडर कोई भी कदम उठाने से पहले बाजार और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से कोई निर्णायक संकेत मिलने का इंतजार कर रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि बाजार किसी भी दिशा में निर्णायक मोड़ लेने से पहले अभी कुछ और महीने तक अस्थिर रहेगा। इसलिए बाजार में निवेश करने की इच्छा रखने वाले लोगों को विभिन्न बातों को ध्यान में रखकर ही निवेश की अपनी रणनीति बनानी चाहिए, जैसे- उनकी जोखिम लेने की क्षमता कितनी है, कितने समय तक निवेश करना चाहते हैं और वे अपने निवेश पर नजर रखने के लिए कितना समय लगा सकते हैं।
कम जोखिम क्षमता वाले निवेशक
बाजार की मौजूदा स्थिति जोखिम लेने से डरने वाले निवेशकों के अनुकूल नहीं है। यह ऐसे निवेशकों के लिए भी ठीक नहीं है, जिनके पास बाजार की घटनाओं पर नजर बनाए रखने के लिए समुचित समय नहीं है। बाजार में हर जगह काफी अनिश्चितता और निराशा दिखाई दे रही है। स्थिति यह है कि एक भी बुरी खबर से बाजार में बिकवाली का दौर शुरू हो सकता है। इस समय डेट-आधारित इंस्ट्रूमेंट काफी आकर्षक नजर आ रहे हैं, क्योंकि अधिकतर बैंकों ने जमा योजनाओं पर ब्याज दरों में अभी कटौती नहीं की है। महंगाई दर में आ रही कमी को देखते हुए कम जोखिम लेने वाले निवेशकों के लिए डेट में धन लगाना एक अच्छा विकल्प होगा। दूसरी ओर ऐसे निवेशक जो अधिक जोखिम तो ले सकते हैं, पर उनके पास नियमित रूप से बाजार पर नजर रखने का समय नहीं है, उनके लिए कुछ खास इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करना अच्छा रहेगा।
अधिक जोखिम क्षमता वाले निवेशक
मध्यम से लेकर लंबी अवधि तक निवेश करने वाले लोगों के लिए बाजार में अभी काफी अवसर मौजूद है। कई बुनियादी रूप से मजबूत शेयर अपनी अधिकतम मूल्य से 60 से 80 फीसदी तक गिर गए हैं। निवेशकों को ऐसे शेयरों की पहचान करनी होगी, जो सेंसेक्स से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और हर गिरावट के साथ ऐसे शेयर खरीदने चाहिएं। एक आदर्श पोर्टफोलियो में अधिकतम 6-8 शेयर होने चाहिए, क्योंकि अधिक शेयर होने पर उनपर नजर बनाए रखना काफी कठिन हो जाता है। निवेशकों को ऐसे शेयरों की लगातार पहचान और उसमें निवेश करते रहना चाहिए, जो बुनियादी रूप से बेहतर हों। लार्ज कैप या चुनिंदा मिड कैप शेयरों में ही निवेश करना चाहिए। निवेशकों को स्मॉल कैप में ट्रेडिंग करने से बचना चाहिए।
बाजार में पहले से मौजूद निवेशक
पिछले एक साल से बाजार में गिरावट जारी है और इस दौरान कई ब्लू चिप शेयरों के दाम में 60-80 फीसदी गिरे हैं। मिड कैप और स्मॉल कैप शेयर में तो और भी गिरावट हुई है। इसके नतीजे में सभी निवेशकों को पोर्टफोलियो में बड़ा नुकसान हुआ है। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार तथा आर्थिक स्थितियों को देखकर यही कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। बाजार में पहले से मौजूद निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में शामिल शेयरों की संभावना को समझने की कोशिश करते रहनी चाहिए और बाजार में तेजी के समय अंडर-परफॉर्मिंग शेयरों को निकालकर गिरावट के दिनों में आउट-परफॉर्मिंग शेयरों को खरीदना चाहिए।

Thursday, December 4, 2008

पस्त बाजार में लंबी रेस के लिए हो जाइए तैयार

बाजार में निराशा का माहौल जारी है और इसी वजह से इक्विटी में निवेशकों की दिलचस्पी लगातार कम हो रही है। एनएसई और बीएसई पर घटे वॉल्यूम इसकी कहानी साफ बता रहे हैं। निवेशकों को लग रहा है कि बाजार में अभी और गिरावट आ सकती है। इसलिए फिलहाल वह इक्विटी से दूर ही रह रहे हैं। जानकारों का भी कहना है कि 2009 में भी गिरावट जारी रह सकती है। कंपनियों का मूल्यांकन 60-80 फीसदी गिरने की वजह से बीएसई और एनएसई में लिस्टेड ज्यादातर कंपनियों के शेयर बेहद सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। इस समय केवल लंबी अवधि के निवेशक ही खुश हैं क्योंकि वे अपने पसंदीदा शेयरों को बेहद कम कीमतों पर खरीद सकते हैं। लंबी अवधि के निवेश का यह सही समय लग रहा है। जिम रॉजर्स और वॉरेन बफेट जैसे निवेश गुरुओं के अनुसार , बाजारों में इस समय भारी गिरावट है और यह समय लंबी अवधि के निवेश के लिए बेहतरीन है। बहुत से शेयर अपने वास्तविक मूल्यों से बहुत नीचे कारोबार कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि चतुर निवेशक वह होता है जो धन लगाने के ऐसा समय चुनता है जब सफलता की संभावनाएं अधिक हों। इस नजरिए से शेयर बाजार में निवेश का यह अच्छा समय है। सही कंपनी की पहचान के लिए आपको CANSLIM नाम की निवेश रणनीति काफी फायदा दे सकती है। इसका विकास विलियम ओ नील ने किया था। इस शब्द में शामिल अंग्रेजी वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर निवेश से जुड़ी किसी मानक की ओर इशारा करता है। यह रणनीति काफी सफल साबित हुई है और इसने पूर्व में अच्छे रिटर्न दिए हैं। चलिए इस रणनीति पर नजर डालते हैं :
C- प्रति शेयर मौजूदा तिमाही आय। तिमाही आधार पर बढ़ोतरी दर्ज करने वाले शेयरों को चुनना बहुत महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए अगर किसी कंपनी की प्रति शेयर आय ( ईपीएस ) के आंकड़े इस वर्ष अप्रैल - जून की अवधि में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में बढ़ने चाहिए। इस रणनीति के अनुसार अगर यह बढ़ोतरी 18-20 फीसदी के बीच है तो शेयर तिमाही - दर - तिमाही आधार पर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
A- प्रति शेयर वार्षिक आय। यह आंकड़ा पिछले पांच वर्षों में अच्छी रफ्तार के साथ बढ़ना चाहिए। इस रणनीति में वार्षिक आय में बढ़ोतरी को काफी महत्व दिया जाता है। अगर कंपनी पिछले पांच वर्षों में लगातार अच्छा वार्षिक विकास कर रही है तो इसमें निवेश पर विचार किया जा सकता है।
N - नई चीजें। एक अच्छी कंपनी का तीसरा मानक यह है कि उसने हाल ही में कोई बदलाव किया हो। सफलता के लिए बदलाव बहुत जरूरी होते हैं। यह नई प्रबंधन टीम , नया उत्पाद , नया बाजार या फिर इसके शेयर के दाम का ऊंचाई का नया स्तर छूना हो सकता है।
S- लंबित शेयर। ऐसे शेयरों की संख्या कम होनी चाहिए। इस रणनीति पर चलने वाले निवेशकों को लंबे समय से कारोबार कर रही ऐसी कंपनियों से बचना चाहिए जिनका पूंजीकरण बहुत अधिक हो।
L- अगुवा कंपनी। ऐसी कंपनियों में निवेश करें जो अपने सेक्टर या उद्योग में शीर्ष पर हों। प्रत्येक उद्योग में ऐसी कंपनियां होती हैं जो सबसे कारोबार के लिहाज से सबसे आगे होती हैं और निवेशकों को बेहतरीन रिटर्न देती हैं। कुछ ऐसी कंपनियां भी होती हैं जो कारोबार की दौड़ में पिछड़ती हैं। निवेशकों को इन कंपनियों से बचना चाहिए। इस रणनीति में बाजार की शीर्ष और पिछड़ी कंपनियों की पहचान पर काफी जोर है।
I- संस्थागत प्रायोजन। ऐसे शेयर खरीदें जिनके संस्थागत प्रायोजकों के औसत से बेहतर प्रदर्शन का रिकॉर्ड हो। कंपनी के संस्थागत मालिकों की गुणवत्ता बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसलिए इससे जुड़े सभी पहलुओं पर ध्यान दें।
M- आम बाजार। बाजार आपका फायदा या नुकसान तय करता है। इसे देखते हुए बाजार की मौजूदा दिशा , सूचकांकों ( मूल्य और मात्रा में बदलाव ) की चाल और बाजार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली बड़ी कंपनियों की गतिविधियों से जुड़ी जानकारी जुटाएं। रणनीति के इस अंतिम कदम में बाजार की दिशा की बात कही गई है। शेयरों को चुनते समय बाजार किस तरह का है इसकी पहचान करना बहुत महत्वपूर्ण है।
CANSLIM रणनीति का पालन करने से निवेशकों को एक अच्छे शेयर की पहचान करने में काफी मदद मिल सकती है। अच्छे शेयर से मतलब ऐसी कंपनी से है जिसने पिछले कुछ समय से लगातार बेहतर प्रदर्शन किया हो और आगे भी इसके अच्छा कारोबार करने की संभावना हो।

क्लोज-एंडेड MF की मेच्युरिटी से पहले पैसा निकालने पर रोक

नई दिल्लीः शेयर बाजार में खरीदारी बढ़ाने और म्यूचुअल फंडों को वित्तीय राहत देने के लिए सेबी ने तय अवधि में निश्चित आय देने वाले 'क्लोज्ड एंडेड फंड' से समय से पहले धन निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया है। सेबी ने फंडों से कहा है कि वह इस प्रकार की सभी योजनाओं को पूंजी बाजार में सूचीबद्ध करा दें।

सेबी अध्यक्ष सी. बी. भावे के मुताबिक सभी तरह की क्लोज्ड एंडेड योजनाओं में निवेशकों को समय से पहले योजना से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा इस तरह की सभी योजना संचालकों से कहा गया है कि वह इन्हें शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कराएं। क्लोज्ड एंडेड फंड में इन्वेस्टर को अभी तक यह छूट मिली हुई थी कि जरूरत को देखते हुए समय से पहले वे अपना धन निकाल सकते हैं।

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि सेबी ने यह फैसला समय को देखते हुए लिया है। दिल्ली शेयर बाजार के पूर्व अध्यक्ष विजय भूषण के अनुसार इससे म्यूचुअल फंडों के पास नकदी बढ़ेगी और वे बाजार में उसको इन्वेस्ट कर सकेंगे। इसके अलावा फंडों को नकदी को लेकर किसी तरह की समस्या नहीं होगी। उन्हें अब यह डर नहीं होगा कि वक्त से पहले इन्वेस्टर अपने धन को निकाल लेंगे।

जहां तक इन्वेस्टरों के इन्वेस्टमंट की सुरक्षा का सवाल है, तो बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कोई आशंका पालने की जरूरत नहीं है उनका धन फंडों में सुरक्षित है। बेशक वे समय से पहले उसको निकाल नहीं सकेंगे।

ICICI प्रूडेंशियल एएमसी को मिली ऊंची रेटिंग

मुंबई : देश की प्रमुख म्युचूअल फंड कंपनियों में से एक आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल एएमसी के 35 फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) को क्रिसिल ने क्रेडिट डिफॉल्ट की वजह से होने वाले नुकसान के खिलाफ मजबूत सुरक्षा देने वाली रेटिंग दी है।

कंपनी ने गुरुवार को एक रिलीज में बताया कि क्रिसिल की एएएएफ रेटिंग इस बात की ओर संकेत करती है कि आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल का एफएमपी पोर्टफोलियो क्रेडिट डिफॉल्ट से होने वाले नुकसान के खिलाफ मजबूत सुरक्षा देता है।

कंपनी के प्रबंध निदेशक और सीईओ, निमेश शाह का कहना है कि क्रिसिल की एएएएफ रेटिंग निवेशकों के लिए एक बड़ा आश्वासन है। यह कंपनी के कर्ज की क्वॉलिटी और कारोबार में पारदर्शिता का सत्यापित करती है। कंपनी अपनी सभी स्कीमों के लिए जरूरी प्रमाणपत्रों को हासिल करने में कोई चूक नहीं करती।

Tuesday, December 2, 2008

बाजार के घटनाक्रम पर निगाह रखें इक्विटी निवेशक!


पिछले कुछ दिनों में शेयर बाजार में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है और एक सप्ताह पहले 20 फीसदी की गिरावट के बाद यह अपना आधार तलाशता नजर आ रहा है। बाजार में निराशा का माहौल है और हाल की घटनाओं के बाद इसके और गिरने की संभावना है। दुनिया भर में सरकार और केन्द्रीय बैंक दरों में कटौती करने की कोशिश करने के साथ ही बाजार की स्थिति में सुधार लाने के लिए राहत पैकेज की घोषणाएं कर रहे हैं। पिछले एक सप्ताह के दौरान बाजार की बड़ी घटनाएं इस प्रकार हैं: अंतरराष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर एक और अमेरिकी बैंक वित्तीय संकट का शिकार हो गया। इसके नकारात्मक असर से बाजार को बचाने के लिए अमेरिकी सरकार ने फौरन कई कदम उठाए। सरकार ने बेल-आउट पैकेज जारी किया और बैंक की जोखिम वाली परिसंपत्तियों में होने वाले नुकसान की भरपाई करने पर सहमति दी। चीन ने बाजार में निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए ब्याज दरों और रिजर्व रेशियो में बड़ी कटौती की घोषणा की। हाल ही में विश्व बैंक ने कहा था कि चीन की विकास दर अगले साल घटकर 7.5 फीसदी तक पहुंच जाएगी। यूरोपीय यूनियन भी कारोबारी माहौल सुधारने के लिए एक बड़े पैकेज पर विचार कर रहा है। बड़ी वित्तीय और औद्योगिक कंपनियों से लगातार बुरी खबरें आने के कारण दुनिया भर के बाजारों में अभी मंदी छाई हुई है। इसलिए जो लोग शेयर बाजार में निवेश करने की सोच रहे हैं, उन्हें काफी सावधानी बरतने के साथ ही बाजार की प्रत्येक गतिविधि पर पूरा ध्यान देना चाहिए। जोखिम से बच कर चलने वाले और बाजार की अच्छी समझ नहीं रखने वाले निवेशकों को इस समय शेयर बाजार में सीधे उतरने से बचने की जरूरत है। कच्चे तेल के दाम में गिरावट अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग कम होने के कारण कच्चे तेल की कीमत पिछले कुछ दिनों से 48 से 55 डॉलर के बीच कोट की जा रही है। तेल की मार्केटिंग करने वाली घरेलू कंपनियों के कुल आयातित कच्चे तेल (इंपोर्ट क्रूड बास्केट) में भी काफी कमी हुई है। पेट्रोलियम मंत्रालय और सरकार पेट्रोलियम उत्पादों (मुख्यत: पेट्रोल और डीजल) की कीमत घटाने पर विचार कर रही है। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत घटने से जहां अन्य कमोडिटी की कीमत घटेगी, वहीं महंगाई की दर भी कम होगी। विश्लेषकों का अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में छाई मंदी, कच्चे तेल की कीमत में कमी और महंगाई से संबंधित प्रभावों के कारण मार्च 2009 तक महंगाई की दर घटकर पांच फीसदी से नीचे चली जाएगी। मुद्रा डॉलर के मुकाबले रुपए का टूटना जारी है। पिछले दिनों रुपए की कीमत इस साल के सबसे निचले स्तर यानी प्रति डॉलर 50 रुपए पर चल रही थी। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से रुपए की कीमत में होने वाली गिरावट अच्छी नहीं है, क्योंकि इससे निर्यात महंगा हो जाता है और वित्तीय घाटे में बढ़ोतरी होती है।

पोर्टफोलियो में संतुलन लाने का यही है सही समय

इक्विटी में निवेश करने वाले ज्यादातर लोग इस बात को लेकर संशय में हैं कि क्या बाजार अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गए हैं। वैश्विक वित्तीय बाजारों में संकट , नकदी की कमी और विदेशी संस्थागत निवेशकों ( एफआईआई ) की लगातार बिकवाली से यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि बाजार का सबसे निचला स्तर कहां होगा। हालांकि यह बात तय है कि बाजार इस स्तर के करीब पहुंच चुके हैं। यह स्थिति कुछ समय तक जारी रह सकती है। बाजार के मौजूदा स्तर निवेश के आकर्षक मौके दे रहे हैं। निवेशकों को इनका फायदा उठाने के लिए चरणबद्ध तरीके से बाजार में धन लगाना चाहिए। बहुत से देशों में नियामकों और सरकारों ने कर्ज की कमी की वजह से विकास पर पड़ने वाले असर को कम करने के लिए अपनी ओर से कदम उठाए हैं। अमेरिकी केन्द्रीय बैंक , फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 29 अक्टूबर को आधा फीसदी की कटौती की थी। इसके बाद ये दरें जून , 2004 के बाद के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। इसके बाद चीन , नॉर्वे और जापान में भी कुछ ऐसे ही तरीके अपनाए गए। बहुत से अन्य देश भी जल्द ही इस दिशा में कदम उठा सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ( आरबीआई ) ने नकद आरक्षी अनुपात ( सीआरआर ) में 350 बेसिस अंकों की कटौती की है। इसके साथ ही वित्तीय व्यवस्था में तरलता बढ़ाने के लिए रेपो रेट में भी पिछले महीने 150 बेसिस अंकों की कटौती की गई है। इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि ब्याज दरों में कटौती का दौर अभी जारी रहेगा। कुछ महीने पहले मुद्रास्फीति की दर लगातार ऊपर की ओर जा रही थी लेकिन अब यह नीचे का रुख कर रही है। आठ नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में यह 8.9 फीसदी थी। अर्थव्यवस्था की विकास दर पहले लगभग आठ फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था लेकिन अब इसके लगभग सात फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। इसके बावजूद भारत विश्व में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा।
सच्चाई यह है कि बाजार के और गिरने की आशंका के चलते बहुत से लोग निवेश की शुरुआत करने का साहस नहीं जुटा पाएंगे। निवेशक अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करने से भी हिचकिचाएंगे और इस वजह से वे निवेश के अच्छे मौकों का फायदा उठाने से चूक सकते हैं। पोर्टफोलियो में जल्दी - जल्दी बदलाव नहीं करना चाहिए लेकिन अर्थव्यवस्था और बाजार की मौजूदा स्थितियों के अनुसार इसमें संतुलन बनाना अच्छा रहता है। बाजार में तेजी के दौर में अधिकतर निवेशक प्रदर्शन के पीछे भागते हैं और वे अपना अधिकतर निवेश ऐसे इक्विटी फंडों में लगा बैठते हैं जो पिछले कुछ समय में सुर्खियों में रहे हैं। इसके नतीजे में वे कुछ सेक्टरों और मझोली या छोटी कंपनियों में अधिक धन लगाते हैं। पोर्टफोलियो में डायवर्सिफाइड फंडों को ज्यादा जगह देनी चाहिए और मिड - कैप और छोटी कंपनियों में निवेश करने वाले फंडों का हिस्सा पोर्टफोलियो में 30-35 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। निवेशक जोखिम उठाने की अपनी क्षमता और निवेश के समय के अनुसार चाहें तो इसमें बदलाव कर सकते हैं। इतिहास बताता है कि अच्छे डायवर्सिफाइड फंडों ने औसत से अधिक रिटर्न दिया है। तेजी के दौर में बढ़िया रिटर्न और मंदी के दौर में नुकसान से निवेशकों को प्रभावित नहीं होना चाहिए। इंडेक्स फंड भी आपको बाजार की चाल के अनुसार रिटर्न देने में मददगार हो सकते हैं। ये फंड सेंसेक्स या निफ्टी के प्रदर्शन को ट्रैक करते हैं। इनके पोर्टफोलियो में उन सभी शेयरों को शामिल किया जाता है जो बेंचमार्क इंडेक्स में मौजूद हैं। बाजार में अभी सुधार की उम्मीद की जा रही है और ऐसे में इंडेक्स फंड में निवेश फायदेमंद हो सकता है। इसमें निवेश का एक दूसरा पहलू यह है कि आप इसमें औसत से अधिक रिटर्न हासिल करने की उम्मीद नहीं कर सकते। एक अच्छा डायवर्सिफाइड फंड लंबी अवधि में आपको यह रिटर्न दे सकता है। इसे देखते हुए पोर्टफोलियो में इंडेक्स फंडों को लगभग 10 फीसदी की जगह देना ठीक रहेगा। इंडेक्स और डायवर्सिफाइड फंडों का मिश्रण लंबी अवधि के निवेशक के लिए एक अच्छी रणनीति साबित हो सकता है। इक्विटी में लंबी अवधि का निवेश बेहतर माना जाता है लेकिन समय और स्थितियों के अनुसार पोर्टफोलियो में बदलाव करना भी जरूरी है। याद रखें कि इस समय अगर आप सही कदम उठाते हैं तो उसका आने वाले समय में आपको अच्छा फायदा मिल सकता है।

Monday, December 1, 2008

शेयर बाजार से मोती चुनने का सही वक्त

वित्तीय बाजारों में इस समय मुश्किल का दौर जारी है। निवेशकों ने तथाकथित विशेषज्ञों की भविष्यवाणियों के आधार पर निवेश के अपने फैसले लिए थे और इसी वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। बाजार में कोई भी सटीक जानकार मौजूद नहीं हैं। मीडिया या भाग्य ही अक्सर इन्हें विशेषज्ञ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चलिए छह महीने पहले की बात करते हैं। तब ज्यादातर ब्रोकरेज हाउस की रिपोर्टों में कीमतों के आशावादी लक्ष्यों के साथ बहुत से शेयर खरीदने की सलाहें दी जा रही थीं। म्यूचुअल फंड मैनेजर भी अर्थव्यवस्था और शेयर बाजारों में अवसरों की सुनहरी तस्वीर पेश कर रहे थे। प्रत्येक निवेशक अपना भविष्य शेयर बाजार में ही देख रहा था। अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है। जिन शेयरों को ब्रोकरेज हाउस कुछ महीने पहले खरीदने की सलाह दे रहे थे , अब उन्हीं को ही बेचने को कहा जा रहा है। एक निवेशक अगर दाम चढ़ने पर खरीदेगा और गिरने पर बेचेगा तो मुनाफा कमाने की उम्मीद कैसे कर सकता है ? उसके लिए बेहतर तब होता , जब ब्रोकिंग कंपनियां छह महीने पहले उसे ये शेयर बेचने और इस समय खरीदने की सलाह देतीं। इस बात से हमारा ध्यान एक और दिशा में जाता है कि क्या विशेषज्ञ भविष्य का अनुमान लगा सकते हैं ? उनका काम समीक्षा करना होता है , भविष्यवाणी करना नहीं। हमारे देश में नौसिखिए निवेशक इन्हीं विशेषज्ञों की भविष्यवाणियों और अनुमानों के आधार पर निवेश करते हैं। यही नहीं जानकार निवेशक भी इन्हीं तथाकथित विशेषज्ञों या एनालिस्टों पर भरोसा करते हैं। छठी सदी के एक लोकप्रिय कवि ने कहा था , ' जिन्हें जानकारी होती है वे भविष्यवाणी नहीं करते। जो भविष्यवाणी करते हैं उन्हें जानकारी नहीं होती। ' अगर हम इस समय निवेशकों की वित्तीय सेहत का जायजा लें तो यह बात बिल्कुल सच दिखती है। इन लोगों ने जिन विशेषज्ञों की सलाह मानकर अपना धन लगाया था , वहीं इनके नुकसान के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार नजर आ रहे हैं।
इन तथाकथित विशेषज्ञों के गलत अनुमानों के पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला अति आशावाद और दूसरा जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास। जब समय अच्छा चल रहा था और शेयर बाजार निवेशकों को अच्छे रिटर्न से नवाज रहे थे तो लोग अर्थव्यवस्था और इक्विटी बाजारों के बहुत को लेकर सुनहरे ख्वाब देख रहे थे। बाजार में तेजी के दौर में मिले शुरुआती लाभ से उन्हें यह लगने लगा था कि शेयर बाजारों और अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल के बारे में उन्हें जानकारी है। इससे उनमें शेयर बाजार की चाल समझने का भरोसा भी पैदा हुआ था। पिछले चार वर्षों से वित्तीय बाजारों में तेजी का दौर चल रहा था और हम अच्छी खबरों के आदी हो चुके थे। आने वाले समय के अनुमान भी पिछले प्रदर्शनों के आधार पर लगाए जा रहे थे। इस बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा था कि अच्छे समय के बाद बुरा दौर भी आ सकता है। सब - प्राइम संकट का पहला झटका नवंबर , 2007 में महसूस किया गया था , लेकिन अति आशावाद और जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास से भरे निवेशकों ने संकट के शुरुआती संकेतों का महत्व नहीं समझा। उन्हें यह लग रहा था कि किसी भी संकट का आसानी से सामना किया जा सकता है। हमने चार वर्ष तक बाजार में तेजी देखी है और अब मंदी का दौर केवल चार महीने में समाप्त होने की उम्मीद करना वास्तविक स्थिति से मुंह फेरने से जैसा होगा। निवेशकों को अब क्या रास्ता पकड़ना चाहिए ? ऊपर बताई गई समस्याओं से निवेशक कैसे बच सकते हैं ? इसका सबसे बेहतर समाधान निवेश के आधारहीन अनुमानों से बचना है। वैल्यू इनवेस्टिंग एक ऐसा तरीका है जिस पर अमल करने का यह अच्छा समय है। मौजूदा स्थिति में 6 से 10 फीसदी की डिविडेंड यील्ड देने वाले मजबूत कंपनियों के शेयर आकर्षक कीमतों पर उपलब्ध हैं। अगर आप जोखिम से बचकर सुरक्षित निवेश चाहते हैं तो इक्विटी में निवेश एक अच्छा विकल्प है। इसके लिए आपको कम से कम दो वर्ष के नजरिए के साथ निवेश करना होगा।

इक्विटी में निवेश को बरकरार रखना फायदेमंद

शेयर बाजार पिछले काफी समय से गिरावट का रुख देख रहे हैं और वैश्विक बैंकों के दबाव में होने की वजह से वित्तीय संकट गहराता जा रहा है। ऐसे में छोटे निवेशकों के पास क्या विकल्प हैं? उन्हें क्या करना चाहिए? क्या उन्हें बाजार से निकल जाना चाहिए या इसमें बने रहना चाहिए? कुछ निवेशक शेयर बाजारों में धन लगाने के बारे में सोच रहे हैं। कुछ अभी इस बात को लेकर संशय में हैं कि यह निवेश का सही स्तर है या नहीं और क्या बाजार इससे भी नीचे जा सकते हैं। अगर कम शब्दों में कहा जाए तो आप निवेश में बने रहें। मौजूदा घटनाएं एक अस्थायी दौर हैं। बाजार अभी कुछ और समय तक इन स्तरों के आसपास रह सकते हैं। निवेशकों को संयम बरतने की जरूरत है और उन्हें बाजार में चल रही अफवाहों से घबराना नहीं चाहिए। लंबी अवधि में इन स्थितियों में जरूर सुधार आएगा। निवेशकों को कारोबारी माहौल और कंपनी के प्रदर्शन के आधार पर स्थिति का आकलन करना चाहिए। इस समय वे चाहें तो खराब प्रदर्शन वाले शेयरों को बेचकर बेहतर प्रदर्शन वाले शेयरों में निवेश कर सकते हैं। बाजार में इस समय हड़बड़ी में बिकवाली हो रही है। इसके पीछे विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली एक बड़ी वजह है। पिछले कुछ महीनों में सेंसेक्स और निफ्टी दोनों में करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है। इस अवधि में लगभग प्रत्येक शेयर में भारी गिरावट देखी गई है और कुछ शेयर तो अपने वार्षिक उच्चतम स्तर से 70 फीसदी से अधिक गिर चुके हैं। भारी बिकवाली और एफआईआई द्वारा बाजार से बड़ी धनराशि निकालने की वजह से नकदी का संकट भी पैदा हो गया है और इससे बाजार में नकारात्मक संकेत फैल रहे हैं। इस समय घरेलू बाजारों की चाल वैश्विक बाजारों के समाचारों और घटनाओं से प्रेरित है। पिछले कुछ वर्षों में तेजी के दौर की अगुवाई करने वाले सेक्टरों और शेयरों को हाल की गिरावट में सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा है। बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज, इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल एस्टेट सेक्टर अपने उच्चतम स्तरों से 80 से 90 फीसदी तक गिर चुके हैं। जल्दबाजी में बिकवाली करने वालों में घरेलू वित्तीय संस्थान और छोटे निवेशक भी शामिल हैं। बाजार के मौजूदा माहौल में छोटे निवेशकों के लिए बाहर निकलना आसान नहीं है। बहुत से निवेशक ऊंचे स्तरों पर खरीदारी करने के बाद फंस गए हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि इन स्तरों पर बिकवाली की जाए या अपनी खरीद का औसत दाम कम करने के लिए और निवेश करें। वैश्विक संकट के इस दौर में घरेलू बाजारों की स्थिति बेहतर है और इनमें मध्यम से लंबी अवधि में जरूर सुधार आएगा। इसे देखते हुए ब्लू चिप या मजबूत आधार वाले मिड-कैप शेयरों में निवेश करने वाले लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है और उन्हें अपना निवेश बरकरार रखना चाहिए। ऊंचे स्तरों पर निवेश करने वाले अब अपनी खरीद की लागत कम करने के लिए और निवेश करने पर विचार कर रहे हैं। इन निवेशकों को बाजार में वही रकम लगानी चाहिए जिस पर वे जोखिम ले सकते हैं। मंदी के दौर में खरीदारी करने वाले निवेशकों को नियमित अंतराल पर छोटे लॉट में शेयर खरीदने चाहिए। मौजूदा स्तरों पर बहुत से ब्लू चिप शेयरों का मूल्यांकन काफी आकर्षक है। लेकिन निवेशकों को शेयर चुनने में सावधानी बरतने की जरूरत है। निवेश के लिए शेयरों का चुनाव करते समय कंपनी के कारोबार और सेक्टर के प्रदर्शन पर जरूर निगाह डालें। यह बिकवाली का सही समय नहीं है। मंदी के दौर में छोटे निवेशकों को बिकवाली से बचना चाहिए। अगर संभव हो तो वे अच्छी संभावनाओं वाली कंपनियों के शेयर खरीदकर अपना पोर्टफोलियो बड़ा कर सकते हैं। बाजार में निवेश के सही समय का अनुमान लगाना संभव नहीं है और मौजूदा दौर में अपने निवेश की औसत लागत कम करने के लिए छोटे लॉट में शेयर खरीदना सबसे बेहतर है।

Sunday, November 30, 2008

आइए जानते हैं बायबैक का फंडा

किसी कंपनी के अपने शेयर दोबारा खरीदने के कदम को बायबैक कहा जाता है। ऐसा कर कंपनी खुले बाजार में उपलब्ध अपने शेयरों की संख्या घटाती है। इस कदम से आय प्रति शेयर (ईपीएस) में इजाफा होने के अलावा कंपनी की संपत्ति पर मिलने वाला रिटर्न भी बढ़ता है। इनके असर से कंपनी की बैलेंस शीट भी बेहतर होती है। निवेशक के लिए बायबैक का मतलब है, कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़ना। शेयर बायबैक करने को कभी-कभार शेयर खरीदना कहा जाता है और आम तौर पर इसे शेयर की कीमत में उछाल का संकेत माना जाता है।
कैसा होता है बायबैक?
कंपनी टेंडर ऑफर या खुले बाजार में बायबैक से अपने शेयर वापस खरीद सकती है। पहले तरीके में कंपनी शेयरों की उन संख्या से जुड़े ब्योरे के साथ टेंडर ऑफर जारी करती है जिन्हें खरीदने की उसकी योजना है और प्राइस रेंज का संकेत देती है। ऑफर को स्वीकार करने में दिलचस्पी रखने वाले निवेशक को एक आवेदन भरकर जमा कराना होता है, जिसमें इसकी जानकारी होती है कि वह कितने शेयर टेंडर करना चाहता है और वांछित कीमत क्या है। इस फॉर्म को कंपनी के पास वापस भेजना होता है। ज्यादातर मामलों में टेंडर ऑफर बायबैक की कीमत ओपन माकेर्ट में शेयर के दाम से ज्यादा होती है। सेबी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक अगर कंपनी आपके शेयरों को स्वीकार करती है तो उसे आपको ऑफर क्लोज होने के 15 दिन के भीतर जानकारी देनी होगी। कंपनी के समक्ष दूसरा रूट यह होगा कि वह सीधे बाजार से धीरे-धीरे शेयरों को खरीदे।
कहां से मिली जानकारी?
बायबैक से जुड़ी तमाम जानकारी स्टॉक एक्सचेंज से मिल सकती है क्योंकि कंपनियों को ऐसे प्रस्तावों के बारे में सूचित करने की जरूरत होती है।
कंपनियां क्यों चुन रही है बायबैक का रास्ता?
इसकी कई वजह हो सकती हैं। कभी-कभी कंपनियां तब बायबैक में शामिल होती हैं जब उन्हें लगता है कि बाजार में शेयरों की कीमत काफी टूट रही है। दूसरे हालात में ज्यादा नकदी का इस्तेमाल कर ऐसा किया जा सकता है। हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिखता कि कंपनी के टेकओवर से बचने के लिए ऐसा किया गया हो।

कर बचाने वाली योजनाओं में अभी निवेश बेहतर

जीवन में दो चीजें निश्चित होती हैं- मृत्यु और कर। लेकिन हम इन दोनों ही विषयों पर बात करने से बचना चाहते हैं। वर्ष के अंत में निवेश करने के वार्षिक कार्यक्रम में अभी चार महीने से ज्यादा का समय बचा है। लेकिन अगर आप कर बचाने के लिए इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) या यूनिट लिंक्ड सेविंग स्कीम (यूलिप) में निवेश करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस समय आपके लिए आकर्षक अवसर उपलब्ध हैं। शेयर बाजारों में गिरावट का दौर चल रहा है और शेयरों के दाम काफी घट गए हैं। पिछले तीन महीनों में म्यूचुअल फंडों के एनएवी में भी काफी गिरावट आई है और कुछ तो 50 फीसदी तक नीचे चले गए हैं। मौजूदा निवेशकों के लिए निश्चित तौर पर यह अच्छी खबर नहीं है लेकिन अगर आप आयकर कानून की धारा 80 सी के तहत निवेश के विकल्पों की तलाश में हैं तो आपके लिए मौजूदा स्तरों पर निवेश का यह बेहतरीन मौका है। शेयर बाजारों में गिरावट का दौर दिसंबर के समाप्त होने की उम्मीद की जा रही है। विश्व के कई देशों में यह महीना वित्त वर्ष की समाप्ति का भी होता है। भारत में भी वित्तीय स्थितियां सुधारने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बहुत से कदम उठाए हैं। नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) और वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में कटौती की गई है। देश में तरलता की स्थिति दो से तीन महीनों में सामान्य हो सकती है। केन्द्रीय बैंक दरों में और कटौती कर सकता है जिससे कॉरपोरेट सेक्टर को कर्ज जुटाने में आसानी होगी। इससे घरेलू मांग को भी बढ़ावा मिलेगा। अगर आप ईएलएसएस में अगले दो महीनों में तीन से चार भाग में निवेश की योजना बना रहे हैं तो बाजार के चढ़ने की स्थिति में आपको नुकसान उठाना पड़ सकता है। अगर आप मौजूदा स्तरों पर निवेश करते हैं तो इस समय आप कम दाम पर इक्विटी में धन लगाने के साथ ही कर भी बचा सकते हैं। मार्च तक इंतजार करने से आपको अगले तीन से चार महीने में बाजार में तेजी आने पर नुकसान हो सकता है। ईएलएसएस फंड विशेष ओपन एंडेड इक्विटी फंड होते हैं जिनमें धारा 80 सी के तहत कर लाभ मिलता है। अन्य इक्विटी फंडों में धारा 80 सी के तहत कर लाभ नहीं मिलता। आप ईएलएसएस में वर्ष के किसी भी समय निवेश कर सकते हैं। इसकी लॉक-इन अवधि निवेश उस दिन से शुरू होती है जब आप निवेश करते हैं। अगर आपके पास अभी नकदी मौजूद है तो इसे आप ईएलएसएस में निवेश कर लाभ ले सकते हैं। इससे आप मार्च में कर बचाने के लिए निवेश की चिंता से भी मुक्त हो जाएंगे।

Wednesday, November 26, 2008

बाजार को मत देखिए, कंपनी के प्रदर्शन पर गौर कीजिए

बेंजामिन ग्राहम ने साल 1930 में चले भयंकर संकट के दौर के वक्त कहा था कि निवेशकों को बाजार को देखने की बजाय वैल्यू इनवेस्टिंग की ओर गौर करना चाहिए। इनवेस्टरों को वास्तव में यह देखना चाहिए कि कंपनी की क्या स्थिति है यह कितनी मजबूत है और बुरे वक्त में कंपनी का प्रदर्शन कैसा रहा है। किसी भी निवेशक को कंपनी में निवेश करने से पहले इसके एसेट्स , कर्जों और नकदी जुटाने की क्षमता के बारे में जानकारी जुटानी चाहिए। अगर किसी कंपनी इतनी सस्ती मिल रही हो कि इसकी वैल्यू में इसके कारोबार से निकलने के बाद बेहद कम गिरावट आए तो ऐसी कंपनी को मार्जिन ऑफ सेफ्टी के दायरे में रखना चाहिए। ऐसे में अगर कोई कंपनी इसके बारे में किए गए दावों के बावजूद सस्ती दिखाई दे तो संकट के दौर में निवेशक इस पर दांव लगा सकता है। साथ ही अगर बाजार कंपनी के शेयरों के आकलन में चूक रहा है तो निवेशक इसमें निवेश से काफी मुनाफा कमा सकता है। न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक हालिया आर्टिकल में वारेन बफेट ने कहा है कि शेयरों में खरीद का यही मौका है और आगे आने वाला वक्त अनिश्चित हो सकता है। साल 1932 की गर्मियां के बारे में उनका कहना है कि शेयरों ने उस दौर में अर्थव्यवस्था में तेजी आने से पहले ही ऊपर चढ़ना शुरू कर दिया था। इस तरह की समानताएं इस वक्त भी दिख रही हैं। हमें इस बात को खंगालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए कि बाजार कब तक तेजी की ओर लौटेगा। या कि कब यह बॉटम पर पहुंच जाएगा। निवेशकों को यह समझ लेना चाहिए कि इस बारे में सोचना बेकार है। निवेशकों को देखना चाहिए कि कंपनी की बैलेंस शीट कैसी है। साथ ही बैलेंस शीट प्रक्रिया से यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि कंपनी के शेयरों की क्या कीमत है और सबसे बुरी स्थिति में भी इसके शेयरों की क्या स्थिति हो सकती है। अगर हमारे आकलन इस बारे में इंगित करते हैं कि कंपनी मार्जिन ऑफ सेफ्टी के लिहाज से ठीक है तो हम इसके शेयरों को खरीद सकते हैं। एक आदमी जिसने साल 1933 में जर्मन इंडेक्स फंड में निवेश किया था (इसी साल हिटलर सत्ता में आया था) उसने उसी वक्त बॉन्ड में निवेश में करने वाले एक निवेशक के मुकाबले साल 1955 में काफी बेहतर रिटर्न हासिल किया।
यह रिटर्न ऐसे वक्त में मिले जबकि साल 1939 से लेकर 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध का दौर चला। इक्विटी में दैनिक आधार पर उतार-चढ़ाव पैदा होता है लेकिन इनमें लंबे वक्त में काफी अच्छे रिटर्न मिलते हैं। भारत की जीडीपी के बारे में सबसे नकारात्मक सोच रखने वाले भी मानते हैं कि अगले दो-तीन साल तक छह से सात फीसदी की वृद्धि दर रह सकती है। ऐसी स्थिति में भी देश की जीडीपी वृद्धि दर 15 फीसदी के करीब होगी। और इस स्थिति में घरेलू कॉरपोरेट जगत की बिक्री दर 15 से 20 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ेगी। यह वृद्धि दर हालांकि हाल के कुछ सालों में रही रफ्तार से कम रहेगी लेकिन इस वक्त जिस तरह के नकारात्मक अनुमान लगाए जा रहे हैं उससे कहीं बेहतर स्थिति हमें देखने को मिलेगी। सबसे बड़ी बात यह है कि निवेशकों को इस वक्त ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। इस वक्त शेयरों में निवेश को लंबे वक्त के लिहाज से किए जाने की जरूरत है। जैसे ही वित्तीय संकट से फोकस हट कर आशंका किए जा रहे आर्थिक मंदी की ओर होगा इंडस्ट्री के बारे में पिछले कुछ सालों में किए गए अनुमानों की वास्तविकता पर सवाल होने शुरू हो जाएंगे। पिछले कुछ सालों में इक्विटी बाजार का फोकस केवल आमदनी पर रहा है। विश्लेषकों का पूरा ध्यान इस दौरान कंपनी के प्रोफाइल और नुकसान पर रहा है। इनका गौर कंपनी के कैश फ्लो और बैलेंस शीट पर कम ही रहा है। इसके अलावा कंपनी के शेयरों पर भी काफी फोकस रहा है और इस बारे में विश्लेषण करते वक्त कंपनी को दूसरे स्रोतों से मिल रहे वित्त और इनके शेयरों पर पड़ने वाले असर पर ज्यादा गौर नहीं किया गया है।
एसेट मैनेजमेंट इंडस्ट्री में हाल ही में उतरे कई खिलाड़ियों को रेवेन्यू लैस कॉस्ट विश्लेषण काफी आसान और बढ़िया लगता है। तमाम हेज फंड भी इसी पर भरोसा कर चल रहे हैं। हाल के दिनों में निवेशकों ने कंपनी के कैपिटल स्ट्रक्चर और फंडिंग फंडामेंटलों पर ज्यादा गौर करना शुरू कर दिया है। यह एक अच्छी बात है।
-सुदीप बंदोपाध्याय
( लेखक रिलायंस मनी के सीईओ हैं )

डायवर्सिफाइड फंड लगाएंगे नैया पार

बाजार में मंदी के दौर का एक फायदा है कि यह बढ़िया प्रदर्शन करने वाले फंडों को दूसरों की भीड़ से अलग खड़ा कर देता है। बाजार में तेजी के वक्त निवेशकों के लिए काम ज्यादा मुश्किल नहीं होता क्योंकि सप्ताह दर सप्ताह आधार पर उनके सामने अगुवा फंड का नया समूह खड़ा होता है। लंबी अवधि के लिए पैसा लगाने वाले निवेशक छोटी मियाद के विजेताओं की ओर नहीं देखते , लेकिन ऐसे कुछ ही लोग होते हैं जो निरंतरता पर रिटर्न को नजरअंदाज करने में कामयाब होते हैं। बाजार मंदी की गिरफ्त में हो तो निवेशकों के हाथ में पर्याप्त वक्त होता है और वह अपने मुताबिक उसका इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता ले सकता है क्योंकि एनएवी ( नेट एसेट वैल्यू ) कुछ ही दिनों में गायब होने वाली चीज नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि आप ऐसे वक्त एक फंड का चुनाव कैसे करें , जब सभी फंड पैसा गंवा रहे हों ? अगर आप खेल के कुछ बुनियादी सिद्धांतों पर कायम रहते हैं तो यह काम बहुत मुश्किल नहीं है। मसलन , पोर्टफोलियो के लिए फंड का चुनाव करने से पहले अपने संपत्ति आवंटन पर गौर कीजिए। हालांकि , फंड का चुनाव और संपत्ति आवंटन हमेशा एक - सा नहीं रहता , क्योंकि आपको निरंतर आधार पर निवेश प्रक्रिया की समीक्षा करने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए मौजूदा स्तरों पर इनकम फंड या लिक्विड फंड में पैसा लगाना बेहतर विकल्प साबित हो सकता है , लेकिन ज्यादा लंबे वक्त के लिए नहीं। ब्याज दरों में गिरावट और शेयर बाजारों में उथल - पुथल के इस समय में डेट के जरिए निवेश करना भी आकर्षक दिख रहा है। लंबी अवधि में हालांकि इक्विटी बाजार बेहतर रिटर्न देने का माद्दा रखता है। पोर्टफोलियो के लिए फंड के मिश्रण पर लौटें तो बढ़िया टैक रिकॉर्ड रखने वाले डायवर्सिफाइड फंड पर भरोसा कीजिए। रिटर्न के ट्रैक रेकॉर्ड के अलावा फंड के निवेश के तरीके पर भी गौर कीजिए। मसलन , वैल्यू पिकिंग एक ऐसा टर्म है जिसे अपनाते सभी फंड हाउस हैं लेकिन इसके सिद्धांत पर चलने वाले फंड हाउस कम ही हैं।
इस साल की शुरुआत में वैल्यू इनवेस्टमेंट रणनीति रखने वाले फंड हाउस 50 से ज्यादा पीई रखने वाले रियल्टी स्टॉक या पावर सेक्टर के शेयरों के पीछे भागते देखे गए थे। एक बढ़िया म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो में निवेश की जोखिम सहन करने की क्षमता का अक्स नजर आना चाहिए इसलिए इसका कोई एक फॉर्मूला नहीं हो सकता। हालांकि बाजार की मौजूदा स्थिति में निवेशक लार्ज कैप आवंटन को लेकर जेब का दरवाजा खोल सकते है। डायवर्सिफाइड फंड लार्ज कैप शेयरों पर स्वाभाविक फोकस रखते हैं , इसलिए इन फंड में ज्यादा पैसा लगाना जरूरी हो जाता है। फंड चुनते वक्त पोर्टफोलियो को मिश्रित रूप से तैयार करने पर विचार कीजिए। एक जैसा स्टॉक पोर्टफोलियो रखने वाले कई सारे फंड भी डायवर्सफिकेशन का उद्देश्य पूरा नहीं करते। यहां , निवेशकों को विश्लेषण संबंधी कौशल का इस्तेमाल करना चाहिए और अगर आवश्यकता पड़े तो प्रोफेशनल की मदद लेने से भी नहीं हिचकिचाना चाहिए। बाजार की कमजोरी ने मिड कैप शेयरों की चमक पर चोट की है लेकिन अपनी रकम का 10-15 फीसदी हिस्सा इन फंड में लगाना लंबी अवधि में बढ़िया रणनीति साबित हो सकता है। हालांकि आपको मिड कैप फंड चुनते वक्त काफी सतर्कता बरतने की जरूरत होती है क्योंकि उनका प्रदर्शन अलग - अलग फंड में अलग - अलग होता है। बीते 12-24 सालों में कई फंड हाउस ने मिड कैप स्टॉक पर फोकस करने वाले फंड लॉन्च किए हैं लेकिन इनमें से कुछ ही कामयाब ही हुए।
-श्रीकला भाष्यम

वैल्यू इनवेस्टिंग है आज के दौर का मंत्र

इक्विटी में पैसा लगाने वाले लोग पहली बार इस तरह के हालात का सामना कर रहे हैं। इस बात पर गौर कीजिए कि अतीत में क्या कहा गया था और किस तरह 2008 की मुश्किल घड़ी ने उस वक्त दी गई सलाह के पीछे के सिद्धांत को एक बार फिर सही ठहराया है। पेश है ऐसे कुछ सिद्धांत जो कभी नहीं बदलते। जिस किसी निवेशक ने इस सलाह पर अमल किया था, वह आज के हालात में भी बढ़िया स्थिति में है। आपके निवेश की मार्केट वैल्यू भले आज नीचे हो, लेकिन अगर आपको इस रकम की जरूरत आने वाले वर्षों में नहीं पड़ने वाली तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिलहाल आपको इस पैसे की जरूरत नहीं है, इसलिए निवेश बढ़ाने का यह एक और मौका हो सकता है। हम जो कह रहे हैं, उस पर ज्यादातर निवेशकों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है कि गिरावट में उन्होंने पैसा खोया है। वे कह रहे हैं, 'भविष्य में रिटर्न मिल सकता है, लेकिन उस नुकसान का क्या जो हम आज उठा रहे हैं।' जो लोग ऐसा कह रहे हैं, वे अंकगणित में सही हो सकते हैं, लेकिन भविष्य को लेकर उनकी आशंका सही नहीं है। निवेश के जिस नजरिए की वकालत हम कर रहे हैं, वह भविष्य की ओर देखने की बात कहता है।
इतिहास ने किया साबित
अगर आपने 1997 की शुरुआत में सेंसेक्स आधारित इंडेक्स फंड में हर महीने 20,000 रुपए निवेश करना शुरू किया था और बाजार में उतार-चढ़ाव के बावजूद इसे जारी रखा तो आज आपको सालाना 14 फीसदी रिटर्न हासिल हुआ होता। 1997 से लेकर अब तक इस हिसाब से आपने 28.6 लाख रुपए निवेश किए और आज आपकी यह रकम 66 लाख रुपए हो गई होती। इक्विटी से यह रिटर्न बाजार की मौजूदा तबाही के बावजूद आपको हासिल हुआ होता। इस दौरान कई म्यूचुअल फंड ने सेंसेक्स को भी पीछे छोड़ा है। इस हिसाब से अगर आपने मीडियम फंड में हर महीने 20,000 रुपए निवेश किया होता तो 10 साल में आपकी कुल रकम 1.04 करोड़ रुपए हो गई होती। यह बात और है कि इस दौरान शेयर बाजार ने दो बड़ी गिरावट देखी है। इसमें मौजूदा गिरावट भी शामिल है। आज बाजार लंबी अवधि के निचले स्तर पर है। बाजार जब वापसी करेगा तो आपको बेहतर रिटर्न मिलेंगे। लंबी मियाद में निवेश के तथाकथित 'सुरक्षित' फिक्स्ड इनकम माध्यमों ने 'असुरक्षित' समझे जाने वाले इक्विटी से भी बदतर प्रदर्शन किया। इसलिए इन दोनों के बीच कहीं कोई मुकाबला नहीं है। 1997 से अब तक अगर आपने फिक्स्ड इनकम विकल्पों में पैसा लगाया होता तो आपको सालाना आठ फीसदी से ज्यादा रिटर्न नहीं मिलता। यानी 10 साल तक हर महीने 20,000 रुपए का इन विकल्पों में निवेश करने पर आज आपकी कुल रकम करीब 44 लाख रुपए होती।
गिरावट आपका दोस्त
आप गिरावट के बावजूद कैसे पैसा बनाने में कामयाब हो सकते हैं? इसका जवाब उन लोगों के लिए आसान है जो इस बात से वाकिफ हैं कि यहां चल रही गतिविधियों का गणित वास्तव में क्या है। बाजार में गिरावट से आपको सस्ते स्तरों पर खरीदारी का मौका मिलता है और आपका कुल रिटर्न बढ़ता है। अगर आप धीमी रफ्तार से लंबी मियाद में पैसा लगा रहे हैं तो बीच में आने वाली गिरावटों से आपको ज्यादा मुनाफा कमाने में मदद मिलती है न कि कम। इसी तरह 2008 की गिरावट से भी आखिरकार मुनाफा ही होगा। शेयर अब सस्ते हैं और संभवत: और सस्ते हो सकते हैं। यह गिरावट जितनी गहरी और लंबी होगी, आप उतना ज्यादा फायदा इससे कमा सकते हैं। अगर आप यह जानते हैं कि आपके लिए सही क्या है तो आपको सेंसेक्स के 6,000 या 7,000 तक लुढ़कने और कुछ महीनों या साल तक मंदी के बने रहने की दुआ करनी चाहिए। इक्विटी इनवेस्टिंग का सीक्रेट भी यही है और कहानी का असल निचोड़ भी।
- धीरेन्द्र कुमार

Saturday, November 22, 2008

क्या निवेश सम्राट वारेन बफे का जादू खत्म हुआ



न्यूयॉर्क: अमेरिका के सबसे रईस और शेयर मार्केट में पैसा कमाने के सबसे बड़े जादूगर माने जाने वाले वारेन बफे को क्या हो गया है? क्या अब शेयर बा
जार की चाल पहचानने में वो चूक करने लगे हैं! दुनिया भर और खासकर अमेरिकी इनवेस्टर और आम लोगों के जहन में ये सवाल अब उठने लगे हैं। Tech बबल के समय भी बफे के कुछ इनवेस्टमेंट फैसले गलत साबित हुए थे। लेकिन अब तक कुल मिलाकर बफे को सही समय पर बाजार में घुसने और निकलने की कला के कारण जाना जाता है। वारेन बफे की कंपनी बर्कशायर हैथवे की हालत अब खराब हो चली है। इस तरह के भी सवाल पूछे जाने लगे हैं कि शेयर बाजार का ये बाजीगर क्या अपनी कंपनी के कर्ज चुका पाएगा। हैथवे के शेयर दिसंबर के ऊंचे लेवल से 50 परसेंट गिर चुके हैं। हैथवे पर सबसे बुरी मार इंश्योरेंस सेक्टर से आ रहे कम रिटर्न की वजह से पड़ी है। इस बीच कंपनी की क्रेडिट रेटिंग AAA से घटकर BBB हो चुकी है। बर्कशायर हैथवे सुनहरे रिटर्न देने वाली कंपनी मानी जाती है। इसके लगभग 80 बिजनेस हैं, जिनमें कार इंश्योरेंस, क्लोदिंग, फूड, किचन के सामान, और कंस्ट्रक्शन शामिल हैं। इसके अलावा बर्कशायर के पास कई कंपनियों के अरबों डॉलर के स्टाक्स हैं। दरअसल, बर्कशायर की पूंजी इतने क्षेत्रों में लगी है कि किसी एक सेक्टर में आई गिरावट से उसे खास फर्क नहीं आएगा। लेकिन इस समय तो लगभग हर सेक्टर में मंदी है और बर्कशायर पर उसका असर दिख रहा है। बफे की कंपनी का स्टॉक मार्केट में 76 अरब डॉलर का इनवेस्टमेंट हैं। जिन कंपनियों में बफे का पैसा लगा है, उनमें अमेरिकन एक्सप्रेस, कोका कोला, प्रॉक्टर एंड गैंबल और वेल्स फार्गे शामिल हैं। बफे ने पिछले कुछ महीनों में जनरल इलेक्ट्रिक और गोल्डमैन सैक्स में 8 अरब डॉलर के प्रेफर्ड शेयर खरीदे थे। निवेशक अब बफे के उस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि दोनों कंपनियों के शेयर अब काफी नीचे चल रहे हैं। बर्कशायर क्लास ए के शेयर इस समय 2003 के बाद के लोएस्ट लेवल पर हैं। इस साल दिसंबर 11 को ये स्टॉक 1,51,650 डॉलर के लेवल पर था। अब ये 74,100 डॉलर पर पहुंच गया है। ये न्यूयॉर्क स्टॉक्स एक्सचेंज का सबसे महंगा शेयर है। बर्कशायर ने 7 नवंबर को कहा था कि तीसरी तिमाही में उसका प्रॉफिट 77 परसेंट कम हो गया है। कंपनी ने लगातार चौथी तिमाही में गिरावट दिखाई है। अगर अमेरिकी शेयर बाजार नहीं सुधरता है तो 2019 से लेकर 2027 के बीच बर्कशायर को 37.4 अरब डॉलर चुकाने पड़ सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बफे ने कुछ डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट ऊंचे रेट पर किए थे। लेकिन बफे को लेकर हर कोई निराश नहीं है। लोगों को उम्मीद है कि बफे सही समय पर सही कारोबारी फैसले कर फिर से चांदी काटेंगे। कई इंश्योरेंस कंपनियां बैंकिंग कंपनी बनने की फिराक में हैं ताकि उन्हें यूएस सरकार के 700 अरब डॉलर के बेलआउट प्लान का फायदा मिल सके। इन कंपनियों में लगा बफे का पैसा फिर जादू कर सकता है।

बाजार में रहेगा आशावादी रुझान - सुदीप बंदोपाध्याय

हाल में बीजिंग में हुई एशिया-यूरोप बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, 'ग्लोबलाइजेशन के इस युग में हमारी अर्थव्यवस्था ग्लोबल है लेकिन इसके प्रभावी गवर्नेंस के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की व्यवस्था नहीं है।' वास्तव में प्रधानमंत्री इस तथ्य की ओर सबका ध्यान आकर्षित कराना चाहते थे कि दुर्भाग्य से पूरी दुनिया के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का वित्तीय नियामक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की नियति को एक-दूसरे से जोड़ दिया है। आर्थिक मसलों पर बहुपक्षीय रवैये का फायदा साफ हो गया है, लेकिन ग्लोबलाइजेशन से परस्पर नुकसान की भी संभावना रहती है। इस बार का संकट अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के लिए एक सही अवसर है कि वह अपनी राह बना सके। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए व्यापक अधिकारों वाले एक मजबूत बहुपक्षीय संस्थान समय की जरूरत है। इस भूमिका में आने के लिए आईएमएफ को अपने स्वरूप में क्रांतिकारी बदलाव लाना होगा। अभी आईएमएफ को दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पहला, अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह के आकार की तुलना में आईएमएम का पूंजी आधार बहुत छोटा है जिससे इसकी प्रभावशीलता घटती जा रही है। ऐसी दुनिया में जहां 700 अरब डॉलर का राहत पैकेज दिया जा रहा हो और विभिन्न देशों में कई लाख करोड़ डॉलर की पूंजी का आवागमन हो रहा हो, आईएमएफ की 250 अरब डॉलर की कर्ज देने की क्षमता कोई खास मायने नहीं रखती। डांवाडोल अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था को आगे संभालने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय केंद्रीय बैंक की जरूरत है। इस बैंक को कई तरह के महत्चपूर्ण काम सौंपे जा सकते हैं। यह सभी ऐसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का शीर्ष रेगुलेटर हो सकता है, जिनकी गतिविधियां कई देशों में होती हैं। यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैदा होने वाली किसी भी तरह की जोखिम पर नजर रख सकता है और तत्काल चेतावनी जारी करने की व्यवस्था कर सकता है जिससे बैंकों और राष्ट्रीय नियामकों को इस बात का आभास हो जाए कि संकट आने वाला है। इससे नियामक सचेत होकर अपनी नीतियों में फेरबदल कर सकेंगे ताकि उनका देश संकट से कम से कम प्रभावित हो। पिछले हफ्ते के शुरुआती दिनों में शेयर बाजारों में तेजी देखी गई, इसकी खास तौर से वजह यह रही कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के संतोषजनक परिणाम देखकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों से सकारात्मक संकेत मिले। इसमें उत्साह बढ़ाने वाली और बात यह रही कि दुनिया के कई केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें घटाई हैं। भारतीय बाजारों में पीएसयू और निजी दोनों तरह के बैंकों ने ब्याज दरों में 50 से 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती करने की घोषणा की है। ब्याज दरें घटाने का कदम स्वागत योग्य है क्योंकि इससे निश्चित रूप से मनोदशा सुधरेगी और विकास को बढ़ावा मिलेगा। देश में महंगाई की दर थोड़ी बढ़कर 10.52 फीसदी तक हो गई है। लेकिन यह कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी और तेल की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही है जिससे अगले हफ्तों में महंगाई के नीचे की ओर जाने की ही उम्मीद है। इस हफ्ते में बाजार में खरीद-फरोख्त बढ़ेगी और कई तरह की गतिविधियां देखी जाएंगी। भारतीय बाजार की मजबूती इस बात से ही प्रकट होती है कि देश का आर्थिक प्रशासन सामने आने वाली समस्याओं का तत्परता से समाधान करता है और स्थिति को सामान्य बनाने के लिए सक्रिय कदम उठा रहा है। वित्तीय प्रणाली में तरलता की बहाली के लिए जो उपाय किये गए हैं उनसे कर्ज लेनदेन की गतिविधियां बढ़ेंगी और बाजार को सकारात्मक संकेत मिलेगा। ( लेखक रिलायंस मनी के सीईओ हैं)

लालच नहीं, संयम और अनुशासन के साथ करें निवेश

निवेशकों की रिटर्न की उम्मीदें और निवेश की अवधि बाजार की मौजूदा स्थिति के अनुरूप होनी चाहिए। फंडामेंटल के आधार पर धन लगाने वाले सफल निवेशक कारोबारी सहयोगियों की तरह निवेश करते हैं और वे आपात या अप्रत्याशित स्थितियां आने पर ही बिकवाली पर विचार करते हैं। व्यावहारिक बात की जाए तो छोटे निवेशक निश्चित समय अवधि के लिए धन लगाना अधिक पसंद करते हैं जो आमतौर पर तीन से पांच वर्ष की होती है। भारत में इक्विटी से लंबी अवधि का रिटर्न लगभग 18-20 फीसदी प्रतिवर्ष रहने का अनुमान है। भारतीय अर्थव्यवस्था मध्यम से लंबी अवधि में वास्तविक स्थितियों में 7-8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ सकती है। ज्यादातर लिस्टेड कंपनियां मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज सेक्टरों की हैं और ये सेक्टर सकल घरेलू उत्पाद ( जीडीपी ) की तुलना में तेज गति से विकास करेंगे जिससे कृषि में धीमे विकास की भरपाई हो जाएगी। ये सेक्टर लगभग 18-20 फीसदी की दर से बढ़ सकते हैं और अगर आप इन सेक्टरों की ब्लू चिप कंपनियों में निवेश करते हैं तो लंबी अवधि में आप अच्छे रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं। कुछ लोग यह दलील दे सकते हैं कि वैश्विक मंदी , नकदी की कमी और निवेश के कम होने से विकास दर में गिरावट आ सकती है। ये लोग भले ही लघु अवधि में सही साबित हों , लेकिन अगर आशावादियों के नजरिए से देखा जाए तो अगली दो तिमाहियों में सुधार आना शुरू हो जाएगा। अगर अगले वर्ष विकास दर में 1-2 फीसदी की कमी होती है तो भी भारत निवेश के लिए एक अच्छा विकल्प होगा। तीस वर्ष पहले जीडीपी में कृषि का सबसे अधिक योगदान होता है लेकिन लंबी अवधि में इस क्षेत्र में कभी भी औसतन 2.5- 3 फीसदी से अधिक का विकास नहीं देखा गया। इस समय जीडीपी में सर्विसेज सेक्टर को 60 फीसदी से अधिक योगदान है और सामान्य स्थितियों में यह 10 फीसदी सालाना की दर से बढ़ सकता है। शेयर बाजार को लेकर इस वर्ष की शुरुआत में जहां आशाओं की कोई सीमा नहीं थी , वहीं अब निराशा के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा। जनवरी , 2008 में इक्विटी में निवेश करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही थी , लेकिन अक्टूबर में ये संख्या लगातार घट रही है। शेयर बाजारों में 50 फीसदी से अधिक की गिरावट आ चुकी है और यह निवेश का एक अच्छा समय है।
लेकिन निवेशकों को अस्थिरता का भी सामना करना सीखना होगा क्योंकि बाजार यहां से 10-20 फीसदी और गिर सकते हैं। निवेशक अभी अपने अतिरिक्त धन का निवेश कर रिटर्न का इंतजार कर सकते हैं। अगर मौजूदा स्तरों से और गिरावट की प्रतीक्षा करेंगे तो आप आकर्षक मूल्यांकन पर निवेश का मौका चूक सकते हैं। वैश्विक आर्थिक स्थितियों और उनके भारत पर असर को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि बाजार अपने निम्नतम स्तर के करीब हैं। इसके लिए कुछ कारण इस प्रकार हैं : कच्चे तेल के दामों में काफी कमी आई है जो कि भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण कारण है। भारत एक इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था है कि अगर आप इसे बाकी दुनिया से पूरी तरह अलग - थलग कर दें तो भी यह अपने दम पर खड़ा रहकर आगे बढ़ सकता है ( आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता को छोड़कर ) । बड़े पेंशन फंड और निवेशकों को आगे जाकर यह पता चलेगा कि विकास के लिहाज से भारत से अधिक आकर्षक कोई भी देश नहीं है। मौद्रिक नीतियों में ढील देने और ब्याज दरों में कटौती से धीरे - धीरे विश्वास और निवेश की गति लौटेगी। बाजार जब 21,000 अंकों के स्तर पर था तो कच्चे तेल के महंगे दामों के अलावा कुछ भी नकारात्मक नजर नहीं आ रहा था। बाजार अब 9,000 अंकों के आसपास है और इस समय कच्चे तेल के दामों में कमी को छोड़कर कुछ भी सकारात्मक नहीं दिख रहा। बाजार के उच्चतम स्तर पर पहुंचने पर कोई भी अपना निवेश बेचना नहीं चाहता था और इस समय कोई भी निवेश करने वाले नजर नहीं आ रहे। उस समय समय प्रत्येक व्यक्ति उधार लेना चाहता , अब हर कोई नकदी अपने पास रखने की फिराक में है। इस बात को लेकर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अगर अगले कुछ महीनों में ब्याज दरें गिरने और इक्विटी के चढ़ने के बावजूद कॉरपोरेट , बड़े निवेशक और म्यूचुअल फंड नकदी अपनी पास रखने में ज्यादा रूचि लें। इस समय हम नकदी को लेकर जुनून के दौर से गुजर रहे हैं जहां प्रत्येक व्यक्ति नकदी रखने की सलाह दे रहा है। अगर आपके पास नकदी मौजूद है तो अभी निवेश करें। अगर आप डेट में निवेश करते हैं और आज की रिटर्न पर अधिक से अधिक धन लगाएं क्योंकि आगामी महीनों में यह गिर सकता है। आप गिल्ट म्यूचुअल फंडों के जरिए सरकारी प्रतिभूतियों में भी निवेश कर सकते हैं। अगर आप जोखिम लेने की क्षमता रखते हैं तो इक्विटी में या अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले म्यूचुअल फंडों में धन लगाना शुरू करें। इक्विटी में निवेश करने वालों को कम से कम तीन से पांच वर्ष के लिए धन लगाना होगा। इस समय इक्विटी बाजार वर्ष 2007 में लालच पर आधारित नहीं हैं , जब कम समय में ही बहुत अधिक रिटर्न मिल जाया करता था। आज बाजार में डर का माहौल है और अच्छी कंपनियों के शेयर आकर्षक दामों पर उपलब्ध हैं लेकिन अच्छा रिटर्न तभी मिलेगा जब सही जोखिम लेने के साथ संयम और अनुशासन से आप शेयर बाजार में निवेश करेंगे।

निवेश सलाहकारों को इनकम फंडों में नजर आ रहा है वेल्थ

मुंबई : म्यूचुअल फंड कंपनियों के इनकम फंडों का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं होने के बावजूद वेल्थ मैनेजर और म्यूचुअल फंडों के डिस्ट्रिब्यूटर्स अपने ग्राहकों को इन फंडों पर दांव लगाने की सलाह दे रहे हैं। इसकी वजह यह है कि शेयर बाजार की मौजूदा स्थितियों को देखते हुए निवेश की अन्य योजनाओं के मुकाबले अब भी इनकम फंड बेहतर विकल्प है। कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और महंगाई दर में कमी के रुख को देखते हुए जानकारों का मानना है कि ब्याज दरों में जल्द कमी आएगी। ब्याज दरों और बॉन्ड की कीमतों में विपरीत संबंध होता है। इसलिए जब ब्याज दरों में गिरावट आती है, बॉन्ड की कीमतों में बढ़ोतरी होती है, जिससे रिटर्न बढ़ जाता है। पिछले महीने बाजार में आई गिरावट से सबक लेते हुए इनवेस्टमेंट एडवाइजर म्यूचुअल फंड कंपनियों के चुनाव में भी सावधानी बरतने लगे हैं। वे बड़े निवेशकों को निवेश के बारे में राय देने से पहले पोर्टफोलियो की जांच कर रहे हैं। इनकम फंड कंपनियों के डिबेंचर और सरकारी सिक्योरिटी में निवेश करते हैं। अगर पोर्टफोलियो की परिपक्वता की औसत अवधि 4-5 साल की होती है तो इसे लंबी अवधि का इनकम फंड कहा जाता है। परिपक्वता की औसत अवधि 2 साल से कम होने पर उसे छोटी अवधि का इनकम फंड कहा जाता है। एएसके वेल्थ मैनेजर्स के सीईओ राजेश सलूजा ने बताया, 'ब्याज दरों के नीचे जाने की संभावना के मद्देनजर हम अपने ग्राहकों को एक साल की अवधि के नजरिए से निवेश करने की सलाह दे रहे हैं।' उन्होंने कहा कि हम पोर्टफोलियो की गुणवत्ता और फंड के आकार को देखते हुए अपने ग्राहकों को निवेश की सलाह दे रहे हैं। एएसके वेल्थ मैनेजर्स का मानना है कि कर के बाद एक साल की अवधि में इनकम फंडों का रिटर्न फिक्स्ड डिपॉजिट के रिटर्न के मुकाबले बेहतर रहेगा। अक्सर लंबी अवधि के इनकम फंडों की परिपक्वता अवधि 4-5 साल होती है। ब्याज दरों में गिरावट की स्थिति में ये अच्छा रिटर्न दे सकते हैं। पिछले एक महीने में आईडीएफसी डायनेमिक बॉन्ड फंड ने जहां 3.59 फीसदी रिटर्न दिया है वही आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल इनकम फंड ने 3.25 फीसदी का रिटर्न दिया है। आईडीएफसी डायनेमिक ने 3 महीने की अवधि में 5.64 फीसदी का और आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल इनकम फंड ने 7.28 फीसदी का रिटर्न दिया है। उधर, सेंट्रम वेल्थ मैनेजर्स ने निवेशकों को छोटी अवधि के इनकम फंडों में निवेश की सलाह दी है।
- प्रशांत महेश

Thursday, November 20, 2008

नियमित निवेश के लिए एसआईपी बेहतर

सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) निवेश का एक ऐसा विकल्प है जिसमें एक निश्चित अवधि में व्यवस्थित निवेश किया जाता है। एसआईपी के तहत निवेशक किसी विशेष म्यूचुअल फंड या जमा योजना में नियमित निवेश करता है। इस रास्ते से म्यूचुअल फंडों में निवेश काफी आसान है और इससे समय बीतने के साथ आपके निवेश में भी अच्छी वृद्धि की संभावनाएं रहती हैं। एसआईपी में निवेश से आप प्रत्येक माह एक निश्चित रकम बचाकर उसका निवेश करते हैं। इसके अलावा आप रुपए की औसत लागत के सिद्धांत का लाभ भी उठा सकते हैं क्योंकि आप बाजार में तेजी और मंदी दोनों दौर में निवेश करते हैं। आपके निवेश की राशि समान रहती है और आप गिरते बाजार में अधिक यूनिट खरीदते हैं और चढ़ते बाजार में कम। नियमित अंतराल पर समान राशि के निवेश से प्रति यूनिट आपकी औसत लागत बाजार के औसत दाम से कम होती है। एसआईपी का विकल्प इक्विटी, इनकम या गिल्ट जैसे सभी फंडों में उपलब्ध होता है। यह लंबी अवधि की एक निवेश योजना है, जिसमें आप प्रत्येक माह डायवर्सिफाइड या बैलेंस्ड फंड जैसे म्यूचुअल फंड में समान राशि का निवेश करते हैं। आपको इसके लिए फंड हाउस के पास पोस्ट डेटेड चेक जमा कराने होते हैं। आप एसआईपी की राशि के गुणकों में इसमें निवेश की राशि में बदलाव भी कर सकते हैं। अगर आप एक ही फंड की दो योजनाओं में धन लगा रहे हैं तो इसके लिए एक ही फॉर्म भरा जा सकता है। एसआईपी में निवेश काफी सुविधाजनक होता है और इसमें आपको ऐसे फंड की पहचान करने में मदद मिलती है जो आपकी जोखिम उठाने की क्षमता पर ठीक बैठें। इसमें निवेशक की जोखिम-रिटर्न की इच्छा के अनुसार ही संपत्ति के आवंटन में भी बदलाव किया जा सकता है। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर आप अपने निवेश को कभी भी भुना सकते हैं। जिन लोगों के पास निवेश के लिए एकमुश्त रकम नहीं है और वे निवेश को लेकर ज्यादा जोखिम नहीं चाहते तो उन्हें एसआईपी को चुनना चाहिए। इससे वे नियमित तौर पर निवेश कर पाएंगे। एसआईपी आपकी कम और लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में मददगार होता है।
- आशीष गुप्ता

इक्विटी में निवेश कर उठाएं गिरावट का फायदा

शेयर बाजार को लेकर इस समय काफी निराशा का माहौल है। निवेशकों का सामना रोज किसी न किसी बुरी खबर से हो रहा है। कंपनियों के पास नकदी की कमी है , म्यूचुअल फंडों में निवेश को भुनाया जा रहा है और नौकरियों में लगातार कटौती हो रही है। बहुत से देशों में बैंकों और बीमा कंपनियों को राहत पैकेज दिए गए हैं। हालांकि , इन पैकेजों का भी ज्यादा असर नजर नहीं आ रहा। बहुत से देशों के केन्द्रीय बैंकों ने आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कदम उठाएं हैं , लेकिन इसके बावजूद शेयर बाजारों में अस्थिरता और मंदी समाप्त नहीं हो रही। प्रत्येक दिशा में निराशा ही नजर आ रही है। आर्थिक तस्वीर पहले से ही काफी खराब है और ऐसे में और नकारात्मक समाचारों का आना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि आने वाला समय और मुश्किल हो सकता है।
बदलाव को समझें
बहुत से लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि इतने कम समय में स्थितियों में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ गया। इस वर्ष की शुरुआत तक सभी कुछ अच्छा चल रहा था। बाजार रिकॉर्ड ऊंचाइयां छू रहे थे। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर में हम केवल चीन से ही पीछे थे। विदेश में भारत की छवि बहुत अच्छी थी और घरेलू कंपनियों का आत्मविश्वास भी काफी मजबूत था। इसके बाद अचानक से बाजारों में गिरावट का दौर शुरू हो गया जिसकी वजह विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की लगातार बिकवाली बताई गई। निवेशकों ने स्थितियां सुधरने का कुछ महीनों तक इंतजार किया और अपने निवेश में बने रहे , लेकिन उन्हें बाजार में सुधार आने के आसार नजर नहीं आए। केवल 10 महीने में ही सूचकांक 21,000 से नीचे गिरता हुआ 8,000 अंक के पास पहुंच गया है। अगर कुछ समय पहले के बाजार पर नजर डाली जाए तो उस समय बाजार बहुत महंगे थे। कुछ सेक्टर की कंपनियों का पी/ई 35 तक पहुंच चुका था। अब यह बात समझ सकते हैं कि बाजार के दौर से ऊपर कुछ नहीं है फिर चाहे अर्थव्यवस्था कितनी भी मजबूत या तेजी से बढ़ रही हो। शेयर बाजारों में भी तेजी और मंदी का दौर आता-जाता रहता है। एक दौर से दूसरे दौर में बदलाव के कारण अलग हो सकते हैं लेकिन तेजी और मंदी का आना-जाना लगा रहता है। इस समय मंदी का एक बड़ा कारण अमेरिका में सब-प्राइम संकट के बाद सामने आया बड़ा आर्थिक संकट और विश्व भर के वित्तीय संस्थानों द्वारा उधारी का बहुत अधिक इस्तेमाल है। इसी से जुड़े कारणों की वजह से बहुत से सेक्टरों में मंदी आई और संपत्ति के सभी वर्गों में दाम गिर गए। इसका सबसे बड़ा असर शेयर बाजारों पर पड़ा और वे लंबे समय तक तेजी के दौर में रहने के बाद मंदी की गिरफ्त में चले गए। गिरावट का यह दौर कब समाप्त होगा। इसके बारे में अभी कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
क्या बाजार निम्नतम स्तर पर पहुंच गए हैं ?
क्या हम मंदी के दौर की समाप्ति पर पहुंच गए हैं। इस बारे में कोई अंदाज लगाना मुश्किल है और इसका पता समय बीतने के साथ ही लगेगा। लेकिन इक्विटी में अभी तक काफी नुकसान हो चुका है। नकारात्मक समाचारों का आना अभी भी जारी है। विश्व बैंक ने विकासशील देशों में आर्थिक विकास दर में हाल ही में कटौती की है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के विकास के अगले वर्ष के अनुमान को घटाकर 4.5 फीसदी कर दिया गया है। पहले यह अनुमान 6.4 फीसदी का था। वित्तीय संकट , निर्यात में कमी और कमोडिटी के दाम गिरने की वजह से विश्व बैंक को अनुमान में संशोधन करना पड़ा है। ऐसा कहा जा रहा है कि वैश्विक आर्थिक विकास में 2009 में केवल एक फीसदी की कमी आने की उम्मीद है। दूसरी ओर तेल के दाम और मुद्रास्फीति में गिरावट देखी जा रही है। अर्थव्यवस्था से मिलने वाले संकेतों से इस समय कोई साफ तस्वीर नजर नहीं आ रही। यह भ्रम बना हुआ है कि विश्व बैंक के विकास के अनुमान पर भरोसा किया जाए या फिर गिरते दामों की वजह से अर्थव्यवस्था में सुधार आने की उम्मीद लगाई जाए।
ऐसे समय में निवेशक क्या करें ?
बाजार इस समय बहुत ज्यादा गिर चुके हैं। इनमें और गिरावट आएगी या नहीं यह कहना मुश्किल है लेकिन बहुत सी मजबूत कंपनियों के ऐसे शेयर काफी कम दाम पर उपलब्ध हैं , जो कुछ समय पहले तक बहुत महंगे थे। वैल्यू इनवेस्टिंग के जनक बेंजामिन ग्राहम लिक्विडेशन वैल्यू पर शेयर खरीदने में विश्वास रखते थे। लिक्विडेशन वैल्यू वह दाम होता है जो आप कारोबार बंद कर चुकी कंपनी के लिए चुकाते हैं। इस दाम पर निवेश करने के बाद निवेशक बाजार में सुधार आने और शेयर के दाम चढ़ने की संयम के साथ प्रतीक्षा करते हैं। बाजार में तेजी का दौर लौटने पर ऐसे निवेशक अच्छा मुनाफा बनाते हैं। ग्राहम को महामंदी के समय निवेश करने के बहुत से ऐसे मौके मिले थे। देश के शेयर बाजारों में भारी गिरावट के बावजूद शेयरों के दाम अभी भी उनकी लिक्विडेशन वैल्यू से काफी अधिक हैं लेकिन अपने वास्तविक दाम से ये कहीं नीचे हैं। इस समय बहुत से अच्छे शेयर इतने आकर्षक दामों पर उपलब्ध हैं जो शायद आपको फिर इन कीमतों पर न मिलें। ऐसा हो सकता है कि बाजार और नीचे गिरें लेकिन बाजार के निम्नतम स्तर छूने का इंतजार कर इस मौके को गंवाना ठीक नहीं होगा। छोटे निवेशकों के पास इस समय धन लगाने के अच्छे मौके मौजूद हैं। संस्थागत निवेशकों के साथ ऐसा नहीं है और वे काफी दबाव में हैं। इसे देखते हुए छोटे निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो के लिए ऐसे शेयरों की खोज करनी चाहिए जो आने वाले वर्षों में उन्होंने अच्छा मुनाफा देने की क्षमता रखते हों।
- शुभा गणेश

Monday, November 17, 2008

Life insurance planning

YOU heard enough about why you should buy insurance. So you wake up one morning and decide to buy yours that day. And then, you realise, you have no clue where to begin. Well, how about here for a start.

Step 1 – Evaluate your life insurance needs
An extremely popular product, life insurance offers a lot more than just tax planning and investment returns. You are afforded the ability to plan for unforeseen events that could adversely affect your family's financial profile.

Factors to consider
Your financial profile and needs are different from your neighbour’s. The same holds true for your insurance needs. Your decision when going for insurance must revolve around the number of dependants and their financial needs.

Factors you should consider
§ Wealth, income and expense levels of your dependants
§ Significant foreseeable expenses
§ Inheritance you would leave them
§ Lifestyle you want to provide for them

How much insurance?
Obviously the above factors don’t mean much unless they are quantified. A time-tested approach used by insurance and financial planners globally is the capital needs analysis method.

When should I re-evaluate?
Whenever any of the factors discussed above change.

Step 2 – Understand the key concepts

Risk cover v/s investment returns
Insurance options range – from low premium policies with that offer almost no returns, to high premium ones that offer returns depending on the fund option you choose.

We recommend you buy policies skewed towards investment returns only if you are in the high-tax bracket, prefer to invest in low-risk, fixed-income options and have exhausted all the other such investment options available.

Whole life v/s limited period
As you grow older, the number of dependants may decrease (since children would be independent). Also, your wealth may reach a level where it can support your dependents’ financial needs in the event of your death.

You should therefore consider whether if you need to insure yourself for whole life or for a limited term. Obviously, the cost of insurance for the latter is lower.

We recommend you go for whole life only if you do not expect your wealth to ever reach a level where it can support the financial needs of your dependents.

ULIP vs traditional
Today ULIPs are more popular than any other option. But your life insurance agent may be the only one recommending you the ULIP. Before you sign the cheque decide which is best for you: ULIP or Traditional endowment .

Tax Planning
The premium paid for an insurance policy also qualifies for tax deduction under Section 80C of the Income Tax Act. But don't buy insurance only to save tax. Read why insurance + investment + tax = a bad combo!

Step 3 - Selecting a policy

Calculate the insurance you need
Consider the current expense profile of your dependents and the current wealth level of your family. Consider also the risk tolerance level of your dependants.

Selecting your Premium Paying Term (PPT)

How long do you want to pay your insurance premium for? This decision depend on the following factors:
§ How many years of regular income you expect
§ Level of your regular savings
§ How much insurance premium you can firmly commit to
§ How long you want to be insured versus how long you expect to pay a premium for

Other important questions
§ Do you want to participate in bonus/ profit share?
§ What is the primary objective - risk cover or investment returns?
§ Do you want accident cover?

Buying insurance can be as easy as buying a cell phone. Find out how and get ready to face those life insurance agents.

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Get rich with SIP

In a rising market, most people get confused when investment advisers ask them to go for a disciplined approach towards investment -- through systematic investments plans. The reason: A lump-sum investment of Rs 60,000 can become Rs 1,20,000 in two or three months. On the other hand, Rs 20,000 invested over three months might just become Rs 90,000 or Rs 1,00,000.

However, the importance of investing through SIPs can only be appreciated when we consider volatility. A comprehensive look at the situation can help investors understand this approach. Under an SIP, a regular sum of money is invested each month. It means that units are purchased in a staggered manner. This ensures that there is no break in the investment process and a corpus is built over time.

Compare this with lump-sum investment and the dynamics are completely different. You invest an X amount of sum at one point in time and, over a period of time, the money can double or treble.

Of course, there is the element of risk. If the market were to fall sharply, like it has since January, the lump-sum investment takes a bigger hit. The reduction, in case of a mutual fund, is equivalent to the fall in the net asset value of the scheme.

On the other hand, if there is an ongoing SIP, investors actually end up gaining as only a part of their investment is eroding -- the part that has been purchased when the NAVs were quite high. In spite of a falling market, investors buy units of the fund when the NAV is falling. So, they gather more units of the same scheme. The best part is that when the market turns around a little, the investor in SIPs stands to make money much more quickly than a lump-sum investor because he has acquired more units over time.

Let's understand with an example. Consider two investors, who want to invest Rs 60,000 each in a particular scheme. Whereas, one does it in a lump-sum fashion, the other does it over a year.

Investor A (lump-sum investment) gets 3,000 units of the scheme for Rs 60,000 (NAV = Rs 20). Investor B (SIP investment) puts in Rs 5,000 each for six months.

Now, if the market rises for the first three months, then corrects for seven months and again recovers, this is a kind of situation both investors could find themselves in.

Investor A's money will rise in the first three months from Rs 60,000 to Rs 88,800. In the following correction, his corpus goes down sharply to Rs 32,100 in the next seven months. That is, when the NAV in the tenth month stands at Rs 10.7.

Investor B, who is investing Rs 5,000 a month, gets only 250 units in the first month. After that, when the NAV starts rising, he gets 168.92 units at Rs 29.6 per unit, resulting in a total of 624.68 units. This will be valued at Rs 18,491 against the invested amount of Rs 15,000. The gain: A mere Rs 3,491. Investor A, on the other hand, is sitting on handsome returns of Rs 28,000 by now.

After this, when the NAVs start falling for the next six months, Investor B starts gaining in terms of units added. By the tenth month, when the NAVs are languishing at Rs 10.7, his investments are worth Rs 30,325 whereas he has only invested Rs 50,000. Investor A's Rs 60,000 has become Rs 32,100.

However, as soon as the NAVs start improving from Rs 10.7 to Rs 17.6 in the last two months, Investor B is in the positive zone. His corpus is now worth Rs 60,908, a good Rs 8,000 more than Investor A's. All this is simply because of more units. That is, Investor B has accumulated 3,460.69 units in one year, whereas Investor A is still stuck with 3,000 units initially purchased.

The lesson: SIPs may look slower in the short term and, especially, in a rising market. But over time, they give better return