Tuesday, December 2, 2008

पोर्टफोलियो में संतुलन लाने का यही है सही समय

इक्विटी में निवेश करने वाले ज्यादातर लोग इस बात को लेकर संशय में हैं कि क्या बाजार अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गए हैं। वैश्विक वित्तीय बाजारों में संकट , नकदी की कमी और विदेशी संस्थागत निवेशकों ( एफआईआई ) की लगातार बिकवाली से यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि बाजार का सबसे निचला स्तर कहां होगा। हालांकि यह बात तय है कि बाजार इस स्तर के करीब पहुंच चुके हैं। यह स्थिति कुछ समय तक जारी रह सकती है। बाजार के मौजूदा स्तर निवेश के आकर्षक मौके दे रहे हैं। निवेशकों को इनका फायदा उठाने के लिए चरणबद्ध तरीके से बाजार में धन लगाना चाहिए। बहुत से देशों में नियामकों और सरकारों ने कर्ज की कमी की वजह से विकास पर पड़ने वाले असर को कम करने के लिए अपनी ओर से कदम उठाए हैं। अमेरिकी केन्द्रीय बैंक , फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 29 अक्टूबर को आधा फीसदी की कटौती की थी। इसके बाद ये दरें जून , 2004 के बाद के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। इसके बाद चीन , नॉर्वे और जापान में भी कुछ ऐसे ही तरीके अपनाए गए। बहुत से अन्य देश भी जल्द ही इस दिशा में कदम उठा सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ( आरबीआई ) ने नकद आरक्षी अनुपात ( सीआरआर ) में 350 बेसिस अंकों की कटौती की है। इसके साथ ही वित्तीय व्यवस्था में तरलता बढ़ाने के लिए रेपो रेट में भी पिछले महीने 150 बेसिस अंकों की कटौती की गई है। इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि ब्याज दरों में कटौती का दौर अभी जारी रहेगा। कुछ महीने पहले मुद्रास्फीति की दर लगातार ऊपर की ओर जा रही थी लेकिन अब यह नीचे का रुख कर रही है। आठ नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में यह 8.9 फीसदी थी। अर्थव्यवस्था की विकास दर पहले लगभग आठ फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था लेकिन अब इसके लगभग सात फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। इसके बावजूद भारत विश्व में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा।
सच्चाई यह है कि बाजार के और गिरने की आशंका के चलते बहुत से लोग निवेश की शुरुआत करने का साहस नहीं जुटा पाएंगे। निवेशक अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करने से भी हिचकिचाएंगे और इस वजह से वे निवेश के अच्छे मौकों का फायदा उठाने से चूक सकते हैं। पोर्टफोलियो में जल्दी - जल्दी बदलाव नहीं करना चाहिए लेकिन अर्थव्यवस्था और बाजार की मौजूदा स्थितियों के अनुसार इसमें संतुलन बनाना अच्छा रहता है। बाजार में तेजी के दौर में अधिकतर निवेशक प्रदर्शन के पीछे भागते हैं और वे अपना अधिकतर निवेश ऐसे इक्विटी फंडों में लगा बैठते हैं जो पिछले कुछ समय में सुर्खियों में रहे हैं। इसके नतीजे में वे कुछ सेक्टरों और मझोली या छोटी कंपनियों में अधिक धन लगाते हैं। पोर्टफोलियो में डायवर्सिफाइड फंडों को ज्यादा जगह देनी चाहिए और मिड - कैप और छोटी कंपनियों में निवेश करने वाले फंडों का हिस्सा पोर्टफोलियो में 30-35 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। निवेशक जोखिम उठाने की अपनी क्षमता और निवेश के समय के अनुसार चाहें तो इसमें बदलाव कर सकते हैं। इतिहास बताता है कि अच्छे डायवर्सिफाइड फंडों ने औसत से अधिक रिटर्न दिया है। तेजी के दौर में बढ़िया रिटर्न और मंदी के दौर में नुकसान से निवेशकों को प्रभावित नहीं होना चाहिए। इंडेक्स फंड भी आपको बाजार की चाल के अनुसार रिटर्न देने में मददगार हो सकते हैं। ये फंड सेंसेक्स या निफ्टी के प्रदर्शन को ट्रैक करते हैं। इनके पोर्टफोलियो में उन सभी शेयरों को शामिल किया जाता है जो बेंचमार्क इंडेक्स में मौजूद हैं। बाजार में अभी सुधार की उम्मीद की जा रही है और ऐसे में इंडेक्स फंड में निवेश फायदेमंद हो सकता है। इसमें निवेश का एक दूसरा पहलू यह है कि आप इसमें औसत से अधिक रिटर्न हासिल करने की उम्मीद नहीं कर सकते। एक अच्छा डायवर्सिफाइड फंड लंबी अवधि में आपको यह रिटर्न दे सकता है। इसे देखते हुए पोर्टफोलियो में इंडेक्स फंडों को लगभग 10 फीसदी की जगह देना ठीक रहेगा। इंडेक्स और डायवर्सिफाइड फंडों का मिश्रण लंबी अवधि के निवेशक के लिए एक अच्छी रणनीति साबित हो सकता है। इक्विटी में लंबी अवधि का निवेश बेहतर माना जाता है लेकिन समय और स्थितियों के अनुसार पोर्टफोलियो में बदलाव करना भी जरूरी है। याद रखें कि इस समय अगर आप सही कदम उठाते हैं तो उसका आने वाले समय में आपको अच्छा फायदा मिल सकता है।

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