मुंबई : बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) वह बीमा उत्पादों को क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित करने पर विचार कर रहा है। इरडा के चेयरमैन जे . हरि नारायण ने सीआईआई हेल्थ इंश्योरेंस समिट में संवाददाताओं को बताया, 'यह एक सुझाव है। उत्पादों की भाषा और उससे संबंधित तमाम फैसले नियामक संस्था, काउंसल और कंपनियों के बीच होने वाली बातचीत में तय होते हैं।' फिलहाल बीमा उत्पादों के मामले में केवल अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल होता है। क्लेम सेटलमेंट पर नियामक ने कहा कि 70-75 फीसदी क्लेम उसी साल निपटा दिए जाते हैं। नारायण ने बताया कि इरडा ने थर्ड पार्टी एडमिनिस्टेटर और बीमा कंपनियों को आईटी आधारित सिस्टम बनाने को कहा है ताकि डेटा को जल्द से जल्द और प्रभावशाली तरीके से प्रोसेस किया जा सके। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि कंपनियां शिकायत निवारण के लिए खुद अपना मजबूत सिस्टम बनाएं।' नारायण ने बताया कि अगर किसी पॉलिसीधारक को बीमा कंपनियों से अच्छी सेवा नहीं मिलती तो वह देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद लोकपाल से संपर्क कर समस्या का हल पा सकता है। देश में 12 लोकपाल हैं। चेयरमैन को उम्मीद है कि भविष्य में बीमा उत्पादों से जुड़े 'टेरर पूल' का और विस्तार होगा। उन्होंने कहा, 'अब तक कोई क्लेम फाइल नहीं किए गए हैं। मुझे उम्मीद है कि कुछ इस तरह के क्लेम किए जाएंगे। और हमें यह क्लेम फाइल होने के बाद ही पता चल सकेगा कि मौजूदा पूल पर्याप्त है या नहीं।' नियामक संस्था हेल्थ और मोटर ट्रांसपोर्ट इंश्योरेंस के लिए डेटाबेस पर भी काम कर रही है। नारायण के मुताबिक यह मौजूदा कारोबारी साल के अंत तक शुरू हो सकता है। यह डेटाबेस बीमा कंपनियों की तफ्तीश के लिए भी उपलब्ध होगा। अनुमान के मुताबिक देश में हेल्थ केयर पर 1,70,000 करोड़ रुपए सालाना खर्च होता है।
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