Monday, December 1, 2008

शेयर बाजार से मोती चुनने का सही वक्त

वित्तीय बाजारों में इस समय मुश्किल का दौर जारी है। निवेशकों ने तथाकथित विशेषज्ञों की भविष्यवाणियों के आधार पर निवेश के अपने फैसले लिए थे और इसी वजह से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। बाजार में कोई भी सटीक जानकार मौजूद नहीं हैं। मीडिया या भाग्य ही अक्सर इन्हें विशेषज्ञ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चलिए छह महीने पहले की बात करते हैं। तब ज्यादातर ब्रोकरेज हाउस की रिपोर्टों में कीमतों के आशावादी लक्ष्यों के साथ बहुत से शेयर खरीदने की सलाहें दी जा रही थीं। म्यूचुअल फंड मैनेजर भी अर्थव्यवस्था और शेयर बाजारों में अवसरों की सुनहरी तस्वीर पेश कर रहे थे। प्रत्येक निवेशक अपना भविष्य शेयर बाजार में ही देख रहा था। अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है। जिन शेयरों को ब्रोकरेज हाउस कुछ महीने पहले खरीदने की सलाह दे रहे थे , अब उन्हीं को ही बेचने को कहा जा रहा है। एक निवेशक अगर दाम चढ़ने पर खरीदेगा और गिरने पर बेचेगा तो मुनाफा कमाने की उम्मीद कैसे कर सकता है ? उसके लिए बेहतर तब होता , जब ब्रोकिंग कंपनियां छह महीने पहले उसे ये शेयर बेचने और इस समय खरीदने की सलाह देतीं। इस बात से हमारा ध्यान एक और दिशा में जाता है कि क्या विशेषज्ञ भविष्य का अनुमान लगा सकते हैं ? उनका काम समीक्षा करना होता है , भविष्यवाणी करना नहीं। हमारे देश में नौसिखिए निवेशक इन्हीं विशेषज्ञों की भविष्यवाणियों और अनुमानों के आधार पर निवेश करते हैं। यही नहीं जानकार निवेशक भी इन्हीं तथाकथित विशेषज्ञों या एनालिस्टों पर भरोसा करते हैं। छठी सदी के एक लोकप्रिय कवि ने कहा था , ' जिन्हें जानकारी होती है वे भविष्यवाणी नहीं करते। जो भविष्यवाणी करते हैं उन्हें जानकारी नहीं होती। ' अगर हम इस समय निवेशकों की वित्तीय सेहत का जायजा लें तो यह बात बिल्कुल सच दिखती है। इन लोगों ने जिन विशेषज्ञों की सलाह मानकर अपना धन लगाया था , वहीं इनके नुकसान के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार नजर आ रहे हैं।
इन तथाकथित विशेषज्ञों के गलत अनुमानों के पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला अति आशावाद और दूसरा जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास। जब समय अच्छा चल रहा था और शेयर बाजार निवेशकों को अच्छे रिटर्न से नवाज रहे थे तो लोग अर्थव्यवस्था और इक्विटी बाजारों के बहुत को लेकर सुनहरे ख्वाब देख रहे थे। बाजार में तेजी के दौर में मिले शुरुआती लाभ से उन्हें यह लगने लगा था कि शेयर बाजारों और अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल के बारे में उन्हें जानकारी है। इससे उनमें शेयर बाजार की चाल समझने का भरोसा भी पैदा हुआ था। पिछले चार वर्षों से वित्तीय बाजारों में तेजी का दौर चल रहा था और हम अच्छी खबरों के आदी हो चुके थे। आने वाले समय के अनुमान भी पिछले प्रदर्शनों के आधार पर लगाए जा रहे थे। इस बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा था कि अच्छे समय के बाद बुरा दौर भी आ सकता है। सब - प्राइम संकट का पहला झटका नवंबर , 2007 में महसूस किया गया था , लेकिन अति आशावाद और जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास से भरे निवेशकों ने संकट के शुरुआती संकेतों का महत्व नहीं समझा। उन्हें यह लग रहा था कि किसी भी संकट का आसानी से सामना किया जा सकता है। हमने चार वर्ष तक बाजार में तेजी देखी है और अब मंदी का दौर केवल चार महीने में समाप्त होने की उम्मीद करना वास्तविक स्थिति से मुंह फेरने से जैसा होगा। निवेशकों को अब क्या रास्ता पकड़ना चाहिए ? ऊपर बताई गई समस्याओं से निवेशक कैसे बच सकते हैं ? इसका सबसे बेहतर समाधान निवेश के आधारहीन अनुमानों से बचना है। वैल्यू इनवेस्टिंग एक ऐसा तरीका है जिस पर अमल करने का यह अच्छा समय है। मौजूदा स्थिति में 6 से 10 फीसदी की डिविडेंड यील्ड देने वाले मजबूत कंपनियों के शेयर आकर्षक कीमतों पर उपलब्ध हैं। अगर आप जोखिम से बचकर सुरक्षित निवेश चाहते हैं तो इक्विटी में निवेश एक अच्छा विकल्प है। इसके लिए आपको कम से कम दो वर्ष के नजरिए के साथ निवेश करना होगा।

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