Tuesday, December 2, 2008

बाजार के घटनाक्रम पर निगाह रखें इक्विटी निवेशक!


पिछले कुछ दिनों में शेयर बाजार में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है और एक सप्ताह पहले 20 फीसदी की गिरावट के बाद यह अपना आधार तलाशता नजर आ रहा है। बाजार में निराशा का माहौल है और हाल की घटनाओं के बाद इसके और गिरने की संभावना है। दुनिया भर में सरकार और केन्द्रीय बैंक दरों में कटौती करने की कोशिश करने के साथ ही बाजार की स्थिति में सुधार लाने के लिए राहत पैकेज की घोषणाएं कर रहे हैं। पिछले एक सप्ताह के दौरान बाजार की बड़ी घटनाएं इस प्रकार हैं: अंतरराष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर एक और अमेरिकी बैंक वित्तीय संकट का शिकार हो गया। इसके नकारात्मक असर से बाजार को बचाने के लिए अमेरिकी सरकार ने फौरन कई कदम उठाए। सरकार ने बेल-आउट पैकेज जारी किया और बैंक की जोखिम वाली परिसंपत्तियों में होने वाले नुकसान की भरपाई करने पर सहमति दी। चीन ने बाजार में निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए ब्याज दरों और रिजर्व रेशियो में बड़ी कटौती की घोषणा की। हाल ही में विश्व बैंक ने कहा था कि चीन की विकास दर अगले साल घटकर 7.5 फीसदी तक पहुंच जाएगी। यूरोपीय यूनियन भी कारोबारी माहौल सुधारने के लिए एक बड़े पैकेज पर विचार कर रहा है। बड़ी वित्तीय और औद्योगिक कंपनियों से लगातार बुरी खबरें आने के कारण दुनिया भर के बाजारों में अभी मंदी छाई हुई है। इसलिए जो लोग शेयर बाजार में निवेश करने की सोच रहे हैं, उन्हें काफी सावधानी बरतने के साथ ही बाजार की प्रत्येक गतिविधि पर पूरा ध्यान देना चाहिए। जोखिम से बच कर चलने वाले और बाजार की अच्छी समझ नहीं रखने वाले निवेशकों को इस समय शेयर बाजार में सीधे उतरने से बचने की जरूरत है। कच्चे तेल के दाम में गिरावट अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग कम होने के कारण कच्चे तेल की कीमत पिछले कुछ दिनों से 48 से 55 डॉलर के बीच कोट की जा रही है। तेल की मार्केटिंग करने वाली घरेलू कंपनियों के कुल आयातित कच्चे तेल (इंपोर्ट क्रूड बास्केट) में भी काफी कमी हुई है। पेट्रोलियम मंत्रालय और सरकार पेट्रोलियम उत्पादों (मुख्यत: पेट्रोल और डीजल) की कीमत घटाने पर विचार कर रही है। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत घटने से जहां अन्य कमोडिटी की कीमत घटेगी, वहीं महंगाई की दर भी कम होगी। विश्लेषकों का अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में छाई मंदी, कच्चे तेल की कीमत में कमी और महंगाई से संबंधित प्रभावों के कारण मार्च 2009 तक महंगाई की दर घटकर पांच फीसदी से नीचे चली जाएगी। मुद्रा डॉलर के मुकाबले रुपए का टूटना जारी है। पिछले दिनों रुपए की कीमत इस साल के सबसे निचले स्तर यानी प्रति डॉलर 50 रुपए पर चल रही थी। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से रुपए की कीमत में होने वाली गिरावट अच्छी नहीं है, क्योंकि इससे निर्यात महंगा हो जाता है और वित्तीय घाटे में बढ़ोतरी होती है।

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