Thursday, November 20, 2008

इक्विटी में निवेश कर उठाएं गिरावट का फायदा

शेयर बाजार को लेकर इस समय काफी निराशा का माहौल है। निवेशकों का सामना रोज किसी न किसी बुरी खबर से हो रहा है। कंपनियों के पास नकदी की कमी है , म्यूचुअल फंडों में निवेश को भुनाया जा रहा है और नौकरियों में लगातार कटौती हो रही है। बहुत से देशों में बैंकों और बीमा कंपनियों को राहत पैकेज दिए गए हैं। हालांकि , इन पैकेजों का भी ज्यादा असर नजर नहीं आ रहा। बहुत से देशों के केन्द्रीय बैंकों ने आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कदम उठाएं हैं , लेकिन इसके बावजूद शेयर बाजारों में अस्थिरता और मंदी समाप्त नहीं हो रही। प्रत्येक दिशा में निराशा ही नजर आ रही है। आर्थिक तस्वीर पहले से ही काफी खराब है और ऐसे में और नकारात्मक समाचारों का आना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि आने वाला समय और मुश्किल हो सकता है।
बदलाव को समझें
बहुत से लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि इतने कम समय में स्थितियों में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ गया। इस वर्ष की शुरुआत तक सभी कुछ अच्छा चल रहा था। बाजार रिकॉर्ड ऊंचाइयां छू रहे थे। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर में हम केवल चीन से ही पीछे थे। विदेश में भारत की छवि बहुत अच्छी थी और घरेलू कंपनियों का आत्मविश्वास भी काफी मजबूत था। इसके बाद अचानक से बाजारों में गिरावट का दौर शुरू हो गया जिसकी वजह विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की लगातार बिकवाली बताई गई। निवेशकों ने स्थितियां सुधरने का कुछ महीनों तक इंतजार किया और अपने निवेश में बने रहे , लेकिन उन्हें बाजार में सुधार आने के आसार नजर नहीं आए। केवल 10 महीने में ही सूचकांक 21,000 से नीचे गिरता हुआ 8,000 अंक के पास पहुंच गया है। अगर कुछ समय पहले के बाजार पर नजर डाली जाए तो उस समय बाजार बहुत महंगे थे। कुछ सेक्टर की कंपनियों का पी/ई 35 तक पहुंच चुका था। अब यह बात समझ सकते हैं कि बाजार के दौर से ऊपर कुछ नहीं है फिर चाहे अर्थव्यवस्था कितनी भी मजबूत या तेजी से बढ़ रही हो। शेयर बाजारों में भी तेजी और मंदी का दौर आता-जाता रहता है। एक दौर से दूसरे दौर में बदलाव के कारण अलग हो सकते हैं लेकिन तेजी और मंदी का आना-जाना लगा रहता है। इस समय मंदी का एक बड़ा कारण अमेरिका में सब-प्राइम संकट के बाद सामने आया बड़ा आर्थिक संकट और विश्व भर के वित्तीय संस्थानों द्वारा उधारी का बहुत अधिक इस्तेमाल है। इसी से जुड़े कारणों की वजह से बहुत से सेक्टरों में मंदी आई और संपत्ति के सभी वर्गों में दाम गिर गए। इसका सबसे बड़ा असर शेयर बाजारों पर पड़ा और वे लंबे समय तक तेजी के दौर में रहने के बाद मंदी की गिरफ्त में चले गए। गिरावट का यह दौर कब समाप्त होगा। इसके बारे में अभी कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
क्या बाजार निम्नतम स्तर पर पहुंच गए हैं ?
क्या हम मंदी के दौर की समाप्ति पर पहुंच गए हैं। इस बारे में कोई अंदाज लगाना मुश्किल है और इसका पता समय बीतने के साथ ही लगेगा। लेकिन इक्विटी में अभी तक काफी नुकसान हो चुका है। नकारात्मक समाचारों का आना अभी भी जारी है। विश्व बैंक ने विकासशील देशों में आर्थिक विकास दर में हाल ही में कटौती की है। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के विकास के अगले वर्ष के अनुमान को घटाकर 4.5 फीसदी कर दिया गया है। पहले यह अनुमान 6.4 फीसदी का था। वित्तीय संकट , निर्यात में कमी और कमोडिटी के दाम गिरने की वजह से विश्व बैंक को अनुमान में संशोधन करना पड़ा है। ऐसा कहा जा रहा है कि वैश्विक आर्थिक विकास में 2009 में केवल एक फीसदी की कमी आने की उम्मीद है। दूसरी ओर तेल के दाम और मुद्रास्फीति में गिरावट देखी जा रही है। अर्थव्यवस्था से मिलने वाले संकेतों से इस समय कोई साफ तस्वीर नजर नहीं आ रही। यह भ्रम बना हुआ है कि विश्व बैंक के विकास के अनुमान पर भरोसा किया जाए या फिर गिरते दामों की वजह से अर्थव्यवस्था में सुधार आने की उम्मीद लगाई जाए।
ऐसे समय में निवेशक क्या करें ?
बाजार इस समय बहुत ज्यादा गिर चुके हैं। इनमें और गिरावट आएगी या नहीं यह कहना मुश्किल है लेकिन बहुत सी मजबूत कंपनियों के ऐसे शेयर काफी कम दाम पर उपलब्ध हैं , जो कुछ समय पहले तक बहुत महंगे थे। वैल्यू इनवेस्टिंग के जनक बेंजामिन ग्राहम लिक्विडेशन वैल्यू पर शेयर खरीदने में विश्वास रखते थे। लिक्विडेशन वैल्यू वह दाम होता है जो आप कारोबार बंद कर चुकी कंपनी के लिए चुकाते हैं। इस दाम पर निवेश करने के बाद निवेशक बाजार में सुधार आने और शेयर के दाम चढ़ने की संयम के साथ प्रतीक्षा करते हैं। बाजार में तेजी का दौर लौटने पर ऐसे निवेशक अच्छा मुनाफा बनाते हैं। ग्राहम को महामंदी के समय निवेश करने के बहुत से ऐसे मौके मिले थे। देश के शेयर बाजारों में भारी गिरावट के बावजूद शेयरों के दाम अभी भी उनकी लिक्विडेशन वैल्यू से काफी अधिक हैं लेकिन अपने वास्तविक दाम से ये कहीं नीचे हैं। इस समय बहुत से अच्छे शेयर इतने आकर्षक दामों पर उपलब्ध हैं जो शायद आपको फिर इन कीमतों पर न मिलें। ऐसा हो सकता है कि बाजार और नीचे गिरें लेकिन बाजार के निम्नतम स्तर छूने का इंतजार कर इस मौके को गंवाना ठीक नहीं होगा। छोटे निवेशकों के पास इस समय धन लगाने के अच्छे मौके मौजूद हैं। संस्थागत निवेशकों के साथ ऐसा नहीं है और वे काफी दबाव में हैं। इसे देखते हुए छोटे निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो के लिए ऐसे शेयरों की खोज करनी चाहिए जो आने वाले वर्षों में उन्होंने अच्छा मुनाफा देने की क्षमता रखते हों।
- शुभा गणेश

No comments: