Saturday, November 22, 2008

बाजार में रहेगा आशावादी रुझान - सुदीप बंदोपाध्याय

हाल में बीजिंग में हुई एशिया-यूरोप बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, 'ग्लोबलाइजेशन के इस युग में हमारी अर्थव्यवस्था ग्लोबल है लेकिन इसके प्रभावी गवर्नेंस के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की व्यवस्था नहीं है।' वास्तव में प्रधानमंत्री इस तथ्य की ओर सबका ध्यान आकर्षित कराना चाहते थे कि दुर्भाग्य से पूरी दुनिया के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर का वित्तीय नियामक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की नियति को एक-दूसरे से जोड़ दिया है। आर्थिक मसलों पर बहुपक्षीय रवैये का फायदा साफ हो गया है, लेकिन ग्लोबलाइजेशन से परस्पर नुकसान की भी संभावना रहती है। इस बार का संकट अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के लिए एक सही अवसर है कि वह अपनी राह बना सके। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए व्यापक अधिकारों वाले एक मजबूत बहुपक्षीय संस्थान समय की जरूरत है। इस भूमिका में आने के लिए आईएमएफ को अपने स्वरूप में क्रांतिकारी बदलाव लाना होगा। अभी आईएमएफ को दो बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पहला, अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह के आकार की तुलना में आईएमएम का पूंजी आधार बहुत छोटा है जिससे इसकी प्रभावशीलता घटती जा रही है। ऐसी दुनिया में जहां 700 अरब डॉलर का राहत पैकेज दिया जा रहा हो और विभिन्न देशों में कई लाख करोड़ डॉलर की पूंजी का आवागमन हो रहा हो, आईएमएफ की 250 अरब डॉलर की कर्ज देने की क्षमता कोई खास मायने नहीं रखती। डांवाडोल अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था को आगे संभालने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय केंद्रीय बैंक की जरूरत है। इस बैंक को कई तरह के महत्चपूर्ण काम सौंपे जा सकते हैं। यह सभी ऐसी बड़ी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का शीर्ष रेगुलेटर हो सकता है, जिनकी गतिविधियां कई देशों में होती हैं। यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैदा होने वाली किसी भी तरह की जोखिम पर नजर रख सकता है और तत्काल चेतावनी जारी करने की व्यवस्था कर सकता है जिससे बैंकों और राष्ट्रीय नियामकों को इस बात का आभास हो जाए कि संकट आने वाला है। इससे नियामक सचेत होकर अपनी नीतियों में फेरबदल कर सकेंगे ताकि उनका देश संकट से कम से कम प्रभावित हो। पिछले हफ्ते के शुरुआती दिनों में शेयर बाजारों में तेजी देखी गई, इसकी खास तौर से वजह यह रही कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के संतोषजनक परिणाम देखकर अंतरराष्ट्रीय बाजारों से सकारात्मक संकेत मिले। इसमें उत्साह बढ़ाने वाली और बात यह रही कि दुनिया के कई केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें घटाई हैं। भारतीय बाजारों में पीएसयू और निजी दोनों तरह के बैंकों ने ब्याज दरों में 50 से 75 बेसिस प्वाइंट की कटौती करने की घोषणा की है। ब्याज दरें घटाने का कदम स्वागत योग्य है क्योंकि इससे निश्चित रूप से मनोदशा सुधरेगी और विकास को बढ़ावा मिलेगा। देश में महंगाई की दर थोड़ी बढ़कर 10.52 फीसदी तक हो गई है। लेकिन यह कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी और तेल की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही है जिससे अगले हफ्तों में महंगाई के नीचे की ओर जाने की ही उम्मीद है। इस हफ्ते में बाजार में खरीद-फरोख्त बढ़ेगी और कई तरह की गतिविधियां देखी जाएंगी। भारतीय बाजार की मजबूती इस बात से ही प्रकट होती है कि देश का आर्थिक प्रशासन सामने आने वाली समस्याओं का तत्परता से समाधान करता है और स्थिति को सामान्य बनाने के लिए सक्रिय कदम उठा रहा है। वित्तीय प्रणाली में तरलता की बहाली के लिए जो उपाय किये गए हैं उनसे कर्ज लेनदेन की गतिविधियां बढ़ेंगी और बाजार को सकारात्मक संकेत मिलेगा। ( लेखक रिलायंस मनी के सीईओ हैं)

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