बीते एक महीने के दौरान शेयर बाजारों में काफी उथल-पुथल देखने को मिली है। अप्रैल के महीने में बाजारों में देखी गई मजबूत रैली में इंट्रा-डे उथल-पुथल की कोई कमी नहीं रही। शेयर बाजारों, मुद्राओं और कमोडिटी बाजारों में दिखे हालिया चलन ने निवेशकों को भ्रमित कर दिया और ज्यादा रिटर्न पर गौर करने के बजाय लोग अब पोर्टफोलियो की सुरक्षा को अहमियत दे रहे हैं। बाजार में पल-पल बदलते हवा के रुख को उठापटक या वौलेटिलिटी कहा जाता है।
हालांकि, इस उथल-पुथल का फायदा उठाने के लिए आपको सबसे पहले यह जानना होगा कि वौलेटिलिटी होती क्या है और इसे कैसे आंका जाता है। सामान्य तौर पर जोखिम के रूप में परिभाषित की जाने वाली वौलेटिलिटी शेयर की कीमत में आने वाले बदलाव की दर होती है। वौलेटिलिटी आंकने के दो लोकप्रिय तरीके हैं। एक को वौलेटिलिटी इंडेक्स (वीआईएक्स) कहा जाता है, जबकि दूसरे को बीटा के नाम से जाना जाता है।
वौलेटिलिटी इंडेक्स
वौलेटिलिटी इंडेक्स के जरिए आंकी जाने वाली वौलेटिलिटी बाजार के संकेत देती है। अगर बाजार तेजी से उतरने या चढ़ते हैं तो वौलेटिलिटी इंडेक्स भी रफ्तार से बढ़ता है जो निवेशकों के बीच चिंता बढ़ने और बाजारों के साथ जुड़े जोखिमों को रेखांकित करने का काम करता है। जब बाजार सीमित दायरे में कारोबार करते हैं या ऊपर चढ़ने के संकेत मिलते हैं तो बाजार में हिस्सा लेने वाले लोगों का सकारात्मक रुख पुट ऑप्शन की तुलना में कॉल ऑप्शन की खरीदारी बढ़ने के रूप में दिखता है। ये वौलेटिलिटी इंडेक्स को निचले स्तरों पर रखने का काम करता है।
दूसरी ओर अगर बाजार नकारात्मक संकेतों के साथ ट्रेडिंग करता है तो पुट ऑप्शन की खरीदारी बढ़ जाती है और वौलेटिलिटी इंडेक्स ऊपरी स्तरों पर पहुंच जाता है। वौलेटिलिटी इंडेक्स के ऊपरी स्तर पर पहुंचने के मायने जोखिम बढ़ने से है। वौलेटिलिटी इंडेक्स इस बात के संकेत देता है कि ऑप्शन के ऑर्डर बुक के आधार पर छोटी अवधि में इंडेक्स कितना बदल सकता है। निफ्टी 50 ऑप्शन कीमतों पर आधारित इंडिया वीआईएक्स घरेलू बाजारों की वौलेटिलिटी आंकने का काम करता है।
बीटा
वीआईएक्स बड़े पैमाने पर बाजार का खौफ पढ़ने की कोशिश करता है, जबकि बीटा किसी शेयर विशेष में वौलेटिलिटी आंकता है। हर शेयर का बीटा इंडेक्स के मुकाबले उसके भाव में उतार-चढ़ाव की संभावना का संकेत देता है। अगर शेयर का बीटा एक से ज्यादा है तो उसे बाजार से ज्यादा जोखिमपूर्ण माना जाता है और एक से कम है तो वह बाजार की तुलना में कम जोखिम रखता है।
एक से ज्यादा बीटा होने का मतलब यह है कि जिस शेयर पर आपकी निगाह टिकी है उसमें सूचकांक के मुकाबले ज्यादा उथल-पुथल हो सकती है। एक से कम बीटा वाला शेयर, इंडेक्स से कम उठापटक की आशंका रखता है। शेयरों की बीच तुलना के लिए बीटा बढि़या जरिया है। अगर आपके पास कोई ऐसा शेयर है जो बीते एक साल के दौरान 20 फीसदी गिरा है जबकि इंडेक्स ने इसी अवधि में 35 फीसदी नुकसान उठाया है तो इसका यह मतलब हुआ कि शेयर का बीटा इंडेक्स से कम है। बीटा लंबी अवधि में नजरिया बनाने में भी मदद देता है।
दोनों तरफ काम करती है वौलेटिलिटी
यह समझना भी जरूरी है कि वौलेटिलिटी दोनों तरफ काम करती है। मसलन, उभरते हुए बाजारों के शेयरों का बीटा विकसित बाजारों की तुलना में ज्यादा होता है। 18 महीने तक उभरते हुए बाजार अमेरिकी बाजारों की तुलना में ज्यादा चढ़े हैं। बीटा का बुरा पक्ष उस वक्त सामने आया जब अमेरिकी बाजारों में गिरावट का दौर शुरू हुआ। 2009 की शुरुआत में उभरते हुए बाजारों का बीटा 1.75 है। जनवरी 2009 से उभरते हुए बाजारों ने 17 फीसदी की मजबूती देखी है जबकि ज्यादातर अमेरिकी बाजार इंडेक्स छह फीसदी चढ़े हैं।
हालांकि, इस उथल-पुथल का फायदा उठाने के लिए आपको सबसे पहले यह जानना होगा कि वौलेटिलिटी होती क्या है और इसे कैसे आंका जाता है। सामान्य तौर पर जोखिम के रूप में परिभाषित की जाने वाली वौलेटिलिटी शेयर की कीमत में आने वाले बदलाव की दर होती है। वौलेटिलिटी आंकने के दो लोकप्रिय तरीके हैं। एक को वौलेटिलिटी इंडेक्स (वीआईएक्स) कहा जाता है, जबकि दूसरे को बीटा के नाम से जाना जाता है।
वौलेटिलिटी इंडेक्स
वौलेटिलिटी इंडेक्स के जरिए आंकी जाने वाली वौलेटिलिटी बाजार के संकेत देती है। अगर बाजार तेजी से उतरने या चढ़ते हैं तो वौलेटिलिटी इंडेक्स भी रफ्तार से बढ़ता है जो निवेशकों के बीच चिंता बढ़ने और बाजारों के साथ जुड़े जोखिमों को रेखांकित करने का काम करता है। जब बाजार सीमित दायरे में कारोबार करते हैं या ऊपर चढ़ने के संकेत मिलते हैं तो बाजार में हिस्सा लेने वाले लोगों का सकारात्मक रुख पुट ऑप्शन की तुलना में कॉल ऑप्शन की खरीदारी बढ़ने के रूप में दिखता है। ये वौलेटिलिटी इंडेक्स को निचले स्तरों पर रखने का काम करता है।
दूसरी ओर अगर बाजार नकारात्मक संकेतों के साथ ट्रेडिंग करता है तो पुट ऑप्शन की खरीदारी बढ़ जाती है और वौलेटिलिटी इंडेक्स ऊपरी स्तरों पर पहुंच जाता है। वौलेटिलिटी इंडेक्स के ऊपरी स्तर पर पहुंचने के मायने जोखिम बढ़ने से है। वौलेटिलिटी इंडेक्स इस बात के संकेत देता है कि ऑप्शन के ऑर्डर बुक के आधार पर छोटी अवधि में इंडेक्स कितना बदल सकता है। निफ्टी 50 ऑप्शन कीमतों पर आधारित इंडिया वीआईएक्स घरेलू बाजारों की वौलेटिलिटी आंकने का काम करता है।
बीटा
वीआईएक्स बड़े पैमाने पर बाजार का खौफ पढ़ने की कोशिश करता है, जबकि बीटा किसी शेयर विशेष में वौलेटिलिटी आंकता है। हर शेयर का बीटा इंडेक्स के मुकाबले उसके भाव में उतार-चढ़ाव की संभावना का संकेत देता है। अगर शेयर का बीटा एक से ज्यादा है तो उसे बाजार से ज्यादा जोखिमपूर्ण माना जाता है और एक से कम है तो वह बाजार की तुलना में कम जोखिम रखता है।
एक से ज्यादा बीटा होने का मतलब यह है कि जिस शेयर पर आपकी निगाह टिकी है उसमें सूचकांक के मुकाबले ज्यादा उथल-पुथल हो सकती है। एक से कम बीटा वाला शेयर, इंडेक्स से कम उठापटक की आशंका रखता है। शेयरों की बीच तुलना के लिए बीटा बढि़या जरिया है। अगर आपके पास कोई ऐसा शेयर है जो बीते एक साल के दौरान 20 फीसदी गिरा है जबकि इंडेक्स ने इसी अवधि में 35 फीसदी नुकसान उठाया है तो इसका यह मतलब हुआ कि शेयर का बीटा इंडेक्स से कम है। बीटा लंबी अवधि में नजरिया बनाने में भी मदद देता है।
दोनों तरफ काम करती है वौलेटिलिटी
यह समझना भी जरूरी है कि वौलेटिलिटी दोनों तरफ काम करती है। मसलन, उभरते हुए बाजारों के शेयरों का बीटा विकसित बाजारों की तुलना में ज्यादा होता है। 18 महीने तक उभरते हुए बाजार अमेरिकी बाजारों की तुलना में ज्यादा चढ़े हैं। बीटा का बुरा पक्ष उस वक्त सामने आया जब अमेरिकी बाजारों में गिरावट का दौर शुरू हुआ। 2009 की शुरुआत में उभरते हुए बाजारों का बीटा 1.75 है। जनवरी 2009 से उभरते हुए बाजारों ने 17 फीसदी की मजबूती देखी है जबकि ज्यादातर अमेरिकी बाजार इंडेक्स छह फीसदी चढ़े हैं।
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