Monday, May 4, 2009

प्राइस अर्निंग रेश्यो क्या है?

मूल्य - आय ( पीई ) अनुपात क्या है ?

मूल्य अनुपात यानी प्राइस अर्निंग ( पीई ) अनुपात। यह दरअसल किसी भी शेयर का वैल्यूएशन जानने के लिए सबसे प्राथमिक स्तर का मानक है। दूसरे शब्दों में इसे इस तरह समझा जा सकता है कि यह अनुपात बताता है कि निवेशक किसी शेयर के लिए उसकी सालाना आय का कितना गुना खर्च करने के लिए तैयार हैं। सीधे शब्दों में किसी शेयर का पीई अनुपात दरअसल वर्षों की संख्या है , जिनमें शेयर का मूल्य लागत का दोगुना हो जाता है।

जैसे अगर किसी शेयर का मूल्य किसी खास समय में 100 रुपए है और उसकी आय प्रति शेयर 5 रुपए है , तो इसका मतलब यह है कि उसका पीई अनुपात 20 होगा। यानी अगर सारी परिस्थितियां समान हों तो 100 रुपए के शेयर का दाम 20 साल में दोगुना हो जाएगा। यानी उस शेयर का पीई अनुपात उस खास समय में 20 है।

किसी कंपनी के वैल्यूएशन में पीई का क्या महत्व है ?

पीई हमें केवल यह बताता है कि बाजार किसी शेयर पर कितना बुलिश या सकारात्मक है। पीई से अपने आप में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए कुछ दूसरे पीई अनुपातों से इसकी तुलना जरूरी होती है। पहला , तो खुद उस कंपनी का पिछले 5-7 साल का ऐतिहासिक पीई। दूसरा , उसी के क्षेत्र में काम करने वाली दूसरी कंपनियों के पीई अनुपात और तीसरा , बेंचमार्क सूचकांक जैसे सेंसेक्स का पीई अनुपात।

किसी कंपनी का पीई बहुत ज्यादा होने से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहला , कंपनी को उसके सही मूल्य से बहुत ज्यादा भाव मिल रहा है और इसलिए शेयर महंगा है। दूसरा , बाजार को यह पता है कि आने वाले दिनों में इस कंपनी की वृद्घि दर काफी अधिक रहने वाली है और इसलिए उसके लिए ऊंचे भाव पर भी बोली लगाई जा रही है।

ट्रेलिंग पीई और अनुमानित पीई क्या हैं ?

ट्रेलिंग पीई किसी शेयर की कीमत और पिछले 12 महीनों की उसकी आय के अनुपात को कहते हैं। इसी तरह अनुमानित पीई अगले 12 महीने की अनुमानित आय प्रति शेयर के आधार पर निकाला जाता है।

पीई से किसी शेयर की सही कीमत कैसे तय करें ?

अक्सर किसी कंपनी के लिए सारी परिस्थितियां समान नहीं होतीं। कंपनी की आय हर साल या तो बढ़ती है या घटती है। इसके अलावा कंपनी अगर एफपीओ के जरिए नए शेयर बाजार में लाती है तो उससे शेयरों की कुल संख्या में भी बढ़ोतरी होती है। इन सभी का उसकी आय प्रति शेयर पर असर पड़ता है।

अगर किसी कंपनी का ऐतिहासिक पीई पिछले पांच साल से 30 रहा हो और एकाएक बाजार की गिरावट के कारण वह 20 के पीई पर मिल रहा हो , तो वह शेयर सस्ता कहा जाएगा। लेकिन अगर वह कंपनी इंफोसिस हो जिसकी आय पर अमेरिका में संभावित मंदी के कारण असमंजस का माहौल बना हो , तो फिर एक नजर में आप 20 के पीई को सस्ता नहीं कह सकते।

बुक वैल्यू क्या है ?

बुक वैल्यू किसी भी कंपनी या वस्तु की वह कीमत होती है , जो एक खास समय पर उसे खुले बाजार में बेचने पर मिलेगी। मोटे तौर पर यह खरीद भाव में से डिप्रेशिएशन कीमत घटाकर प्राप्त हो सकती है। जैसे अगर आपने 5 लाख रुपए में एक कार खरीदी और अगर हर साल इसमें 15 फीसदी का डिप्रेशिएशन होता हो , एक साल बाद इसकी बुक वैल्यू 4.25 लाख रुपए होगी। ब्रिटेन में बुक वैल्यू को ही कंपनी का नेट असेट वैल्यू ( NAV) भी कहा जा सकता है , जिसे कुल परिसंपत्ति में से पेटेंट और साख की कीमत घटाकर प्राप्त किया जाता है।

बुक वैल्यू ऑफ इक्विटी प्रति शेयर क्या है ?

कंपनी के शेयर का जो न्यूनतम मूल्य होता है उसे बुक वैल्यू ऑफ इक्विटी प्रति शेयर कहते हैं। दूसरे शब्दों में किसी कंपनी के सामान्य शेयरों की कीमत में रिजर्व नकदी जमा को जोड़ कर और लाभांश एवं शेयर बायबैक के मद में खर्च की गई रकम को घटाकर जो मूल्य प्राप्त होता है , उसे ही बीवीपीएस कहते हैं। बीवीपीएस किसी भी शेयर के वर्तमान मूल्य का अंदाजा तो देता है , लेकिन इससे उसके भविष्य की संभावनाओं का पता नहीं चलता है। इसलिए बीवीपीएस के आधार पर किसी भी शेयर का पक्का मूल्यांकन करना सही नहीं होता।

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