Friday, May 15, 2009

कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) क्या है?

आजकल बैंक और कॉर्परट जगत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) से आग्रह कर रहे हैं कि वह सीआरआर की दर कम करे। यह मांग इसलिए की जा रही है, ताकि
ब्याज दरों में कमी आ सके और आम आदमी व कंपनियों को कर्ज कम दरों पर मिल सके। जाहिर है कि सीआरआर का सीधा संबंध ब्याज दरों से है। बैंकों का दो प्रमुख काम होता है। लेना और देना। वे लोगों से जमा पूंजी लेते हैं और उन्हें कर्ज देते हैं। लोगों से जो जमा पूंजी ली जाती है, उसका कुछ हिस्सा कर्ज देने में लगाया जाता है।

कुछ हिस्सा इनवेस्टमंट में इस्तेमाल किया जाता है और कुछ हिस्सा नकदी के रूप में आरबीआई के पास रखा जाता है। जो हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखा जाता है उसे ही सीआरआर कहा जाता है। जमा पूंजी का कितना हिस्सा आरबीआई के पास रखा जाए, यह वह स्वयं तय करता है। फिलहाल सीआरआर की दर 9 फीसदी है। अगर बैंकों के पास एक लाख रुपये की पूंजी जमा होती है तो बैंकों को करीब 9 हजार रुपये सीआरआर के रूप में आरबीआई के पास जमा कराना होगा। ऐसा करने के पीछे दो महत्वपूर्ण कारण हैं। पहला, सीआरआर में उतार-चढ़ाव के द्वारा कर्ज वितरण को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। इससे बाजार में मनी फ्लो को नियंत्रित किया जा सकता है।

अर्थशास्त्र का प्रमुख सिद्धांत है कि बाजार में जितना धन मौजूद होगा, वस्तुओं की डिमांड उतनी ही बढ़ेगी। अगर आपको कोई मकान खरीदना है और बैंक आपको लोन देने के लिए तैयार हो जाए। बेशक आपकी हैसियत एक मुश्त पैसा देने की न हो, मगर ईएमआई दे सकते हैं तो आप मकान खरीदेंगे। इससे डिमांड बढ़ेगी तो कीमतें भी बढ़ जाएंगी। दूसरा कारण है, कुछ फीसदी नकदी इसलिए रखी जाती है, ताकि बैंकों को किसी कारोबार में घाटा होने या देश में किसी प्रकार के वित्तीय संकट में सीआरआर के रूप में रखी गई नकद राशि का उपयोग किया जा सके।

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