Monday, May 11, 2009

ये वैल्यू एवरेजिंग क्या है?

ये वैल्यू एवरेजिंग क्या है?
वैल्यू एवरेजिंग, निवेश की एक ऐसी रणनीति हैं जो हर महीने नियमित रूप से डाली जाने वाली रकम के रूप में रुपया कॉस्ट एवरेजिंग का काम करती है। वैल्यू एवरेजिंग में निवेशक हर महीने अपने पोर्टफोलियो के लिए बढ़त दर या रकम का लक्ष्य तय करता है। इसके बाद वास्तविक संपत्ति आधार पर तुलनात्मक फायदे या नुकसान के मुताबिक अगले महीने के योगदान को एडजस्ट किया जाता है।

वैल्यू एवरेजिंग का मुख्य लक्ष्य कीमतें गिरने पर ज्यादा शेयर खरीदना और कीमतें चढ़ने पर कम शेयर बटोरना है। ठीक ऐसा ही रुपया कॉस्ट एवरेजिंग में होता है। इस प्रक्रिया के तहत आप शेयरों की खरीदारी के वक्त आए खर्च को कम से कम स्तर पर लाने के लिए आगे उस वक्त शेयर खरीदते हैं, जब उनके दाम निचले स्तर पर हों। कई वर्षों की समयावधि में वैल्यू एवरेजिंग बढि़या रिटर्न जुटाने में मदद देती है।

नुकसान का जायजा
वैल्यू एवरेजिंग के साथ जो सबसे बड़ा संभावित नुकसान है, वह यह है कि जैसे-जैसे निवेशक का एसेट बेस यानी संपत्ति आधार बढ़ता है, तो लक्ष्य से दूरी को पाटने की क्षमता बनाए रखने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसी सूरत में एक विकल्प संपत्ति का एक अंश फिक्स्ड इनकम फंड में लगाने से जुड़ा है। इस विकल्प के तहत आप रिटर्न के हर महीने से जुड़े लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इक्विटी होल्डिंग में पैसा डाल और निकाल सकते हैं। इस माध्यम से नई फंडिंग के तौर पर नकदी के आवंटन के बजाय इसे फिक्स्ड इनकम के अंश के तौर पर जुटाया जा सकता है और जरूरत के मुताबिक इक्विटी होल्डिंग में ज्यादा रकम में आवंटित भी किया जा सकता है।

बाजार का सबसे ऊपरी और सबसे निचले स्तर का अंदाजा लगाना लगभग नामुमकिन है। हालांकि, रकम के मामले में अलग-अलग स्तर अपनाने से निवेशकों को मदद मिल सकती है।

रुपया कॉस्ट एवरेजिंग
ज्यादातर निवेशक रुपया कॉस्ट एवरेजिंग या म्यूचुअल फंड के सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) की अवधारणा से वाकिफ होते हैं। इसके तहत आप नियमित अंतराल पर एक निश्चित रकम निवेश करते हैं। निवेश के गलियारों में वैल्यू एवरेजिंग ज्यादा परिपक्व धारणा मानी जाती है। यहां, निवेशक से इस बात की उम्मीद की जाती है कि वह फंड की तय की गई वैल्यू तक पहुंचने के लिए बाजार की दिशा (मार्केट चढ़ने या उतरने) के मुताबिक, रकम को एडजस्ट करने का काम करेगा।

निवेशकों को बाजार के निचले स्तरों पर होने के वक्त शेयरों में ज्यादा पैसा डालना चाहिए जबकि हालात उठापटक वाले हों तो सुरक्षित वित्तीय उत्पादों में निवेश करना चाहिए। यह भी दिमाग में रखना चाहिए कि जब इक्विटी बाजारों में गिरावट देखने को मिलेगी तो भी यही पैसा निवेशकों के इस्तेमाल में आएगा। साथ ही इस बात पर भी गौर कीजिए कि जब बाजार में मंदी का दौर जारी हो तो आपके हाथ में पर्याप्त नकदी का इंतजाम हो।

उठापटक के वक्त क्या करें
निवेशकों को बाजार के निचले स्तरों पर होने के वक्त शेयरों में ज्यादा पैसा डालना चाहिए जबकि हालात उठापटक वाले हों तो सुरक्षित वित्तीय उत्पादों में निवेश करना चाहिए। यह भी दिमाग में रखना चाहिए कि जब इक्विटी बाजारों में गिरावट देखने को मिलेगी तो भी यही पैसा निवेशकों के इस्तेमाल में आएगा।

साथ ही इस बात पर भी गौर कीजिए कि जब बाजार में मंदी का दौर जारी हो तो आपके हाथ में पर्याप्त नकदी का इंतजाम हो।

गिरावट देखने को मिले तो...
बाजार में जब गिरावट का सिलसिला देखने को मिले, तो निवेश के खाते में शेयरों की तादाद बढ़ाने का सही मौका माना जाता है। ऐसा कर आप कीमतों के निचले स्तरों पर होने के वक्त ज्यादा से ज्यादा शेयर खरीद सकते हैं जो कल बाजार में तेजी के वक्त आपको बेहतरीन मुनाफा देने का काम करेंगे। जब बाजार आपको ज्यादा रिटर्न दे चुका होगा तो इक्विटी में अंशदान घटाने में समझदारी कही जा सकती है और आप ऊंची कीमतों पर कम शेयर खरीदकर अपने पहले से पुख्ता पोर्टफोलियो में चार चांद लगा सकते हैं। मसलन, फर्ज कीजिए कि आपका एकाउंट 1,000 रुपए की वैल्यू रखता है और पोर्टफोलियो के लिए वित्तीय लक्ष्य हर महीने 100 रुपए का इजाफा रखा गया है। अगर महीने के दौरान एसेट बढ़कर 1,010 रुपए तक पहुंच जाती है तो निवेशक को 90 रुपए की एसेट का फंडिंग का जुगाड़ करना होगा। अगले महीने लक्ष्य बढ़कर 1,200 रुपए की एकाउंट होल्डिंग का हो जाएगा। अगर तीसरे महीने की वैल्यू 1,310 रुपए है तो कुछ भी निवेश नहीं करना होगा। यही चलन आने वाले दूसरे महीनों में भी जारी रहेगा। इस उदाहरण में निवेशक को बाजार के बढ़ने की वजह से बच गए 100 रुपए सुरक्षित निवेश उत्पाद में निवेश करने चाहिए या फिर बैंक के बचत खाते में रखने चाहिए ताकि उसे खर्च करने के बजाय उस पर ब्याज कमाया जा सके। शेयर बाजारों में स्टॉक के दाम गिरने पर आप ज्यादा खरीदते हैं और चढ़ने पर खरीदारी का अभियान सुस्त हो जाता है। दूसरे शब्दों में दाम गिरने पर आप ज्यादा से ज्यादा शेयर खरीदने की स्थिति में होते हैं क्योंकि जेब से निकलने वाली रकम आपके लिए अधिकाधिक शेयर जुटाती है जबकि बाजार के आसमान पर पहुंचने के बाद कम निवेश किया जाता है।

रिटायरमेंट के बाबत रणनीति

वैल्यू एवरेजिंग के साथ आप सबसे पहले यह पता लगाते हैं कि आपको रिटायरमेंट जैसे लक्ष्य के लिए कितनी रकम की जरूरत होगी। इसके बाद निवेश पर मिलने वाले संभावित सालाना रिटर्न के आधार पर इस सवाल के जवाब तक पहुंचते हैं कि उस वित्तीय लक्ष्य को पाने के लिए आपको हर महीने कितना पैसा लगाना होगा। आपको हर महीने यह प्रक्रिया आजमानी चाहिए। जिन महीनों में आप लक्ष्य से कुछ पीछे रह जाएं, उस वक्त उस रकम में जेब से पैसा डालेंगे जो आपको हर माह निवेश करना है। और जिन महीनों में आपको मिलने वाला रिटर्न उम्मीदों से बेहतर रहा है और आपका पोर्टफोलियो लक्ष्य से भी बेहतर रफ्तार से बढ़ रहा है तो आप मासिक निवेश का स्तर नीचे ले आते हैं या संभवत: कुछ शेयर बेचने का कदम उठाते हैं।

इस रणनीति को अमली जामा पहनाने के कई रास्ते हैं। हर महीने निवेश से जुड़ी रकम को एडजस्ट करने के बजाय आप हर छह महीने या हर साल उसे दोबारा आंक सकते हैं। रुपए के आधार पर विशिष्ट लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यह ज्यादा बेहतर चरणबद्ध तरीका मुहैया कराता है। क्योंकि आप अपने पोर्टफोलियो की वैल्यू पर निगाह रखते हैं, इसलिए इस बात की जानकारी मिलती रहती है कि क्या आप सही राह पर बढ़ रहे हैं या नहीं और वास्तव में आपको पटरी पर लौटने के लिए क्या करने की जरूरत है।

अगर बाजार लंबी मंदी के चंगुल में फंस जाता है या आपने रिटर्न आने का जरूरत से ज्यादा अंदाजा लगा दिया था तो अपने एकाउंट को सही रास्ते पर बनाए रखने के लिए आपको अपनी जेब से उसमें काफी पैसा डालने की जरूरत पड़ सकती है। इसके अलावा, कमाए जाने वाले रिटर्न पर यह आपको वास्तविक नियंत्रण नहीं देता जो बाजारों की ओर से तय किया जाता है। लेकिन इस रणनीति से आप अपने पोर्टफोलियो के सामने खड़ी उठापटक को एक हद तक कम कर सकते हैं।

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