Sunday, April 26, 2009

दुर्धटनाओं से न डरें, सतर्क रहें निवेशक

कई जानकार कह गए हैं कि कामयाबी का रास्ता कांटों भरा होता है। हालांकि, कांटों का जिक्र करना कुछ ज्यादा नाटकीय होगा लेकिन असल जिंदगी में भी हर चीज मुश्किलों से गुजरे बगैर नहीं मिलती। निवेश के मामले में भी बात कुछ ऐसी ही है। बाजार में अचानक गिरावट आने या इस खौफ के चलते कई लोग बाजार से दूरी बनाए रखने में ही बेहतरी समझते हैं कि अगर चीजों ने सही तरह से आकार नहीं लिया तो क्या होगा। अगर आप इस मानसिकता की तुलना गाड़ी चलाने से करें तो यह कुछ इस तरह होगा कि आप ड्राइविंग से इसलिए इनकार कर रहे हैं कि आपको डर है कि आपकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो सकती है।

अगर गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त होती है तो भी क्लेम सेटल करने के लिए बीमा कवर पर निर्भर कर सकते हैं। इसी तरह अगर शेयर बाजार में निवेश करने की प्रक्रिया में कुछ अवरोध पैदा होते हैं तो ऐसी खास प्रक्रिया और संस्थाएं हैं जो आपकी समस्याएं सुलझा सकते हैं। अगर आप इस बात को लेकर परेशान हैं कि कठिनाई सामने आने पर कैसे और किससे संपर्क करें तो अब आपको इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं है। इकनॉमिक टाइम्स निवेशकों की कुछ सामान्य समस्याओं पर गौर कर रहा है और इस बात की जानकारी भी दे रहा है कि उनसे निपटने का क्या रास्ते हो सकते हैं...

बेवजह देर

जिन सामान्य दिक्कतों से ज्यादातर निवेशकों को रूबरू होना पड़ता है, उनमें आवंटित शेयरों की रसीद और रिफंड के आदेश मिलने में देर शामिल है। शेयरधारकों को पब्लिक इश्यू बंद होने के 15 दिन के भीतर आवंटित प्रतिभूति या रिफंड के ऑर्डर मिल जाने चाहिए लेकिन कई मामलों में इसमें काफी देर होती है। ऐसी सभी मामलों में शुरुआती कार्रवाई में निवेशक को कंपनी सेक्रेटरी या इश्यू के रजिस्ट्रार से संपर्क साधना चाहिए जिनके पास इन समस्याओं को दूर करने का अधिकार होता है। अगर आप पाते हैं कि कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है या दूसरे पक्ष की ओर से हो रही कोशिशों को आप नाकाफी पाते हैं तो आपके सामने दो विकल्प बचते हैं। आप भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) या बम्बई स्टॉक एक्सचेंज की ओर से गठित निवेशक सेवाएं विभाग (डीआईएस) का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

हालांकि, कंज्यूमर गाइडेंस सोसइटी ऑफ इंडिया के मानद सचिव एम एस कामत का कहना है कि ऐसे मामलों में यह साबित करने की जिम्मेदारी निवेशक पर है कि दूसरा पक्ष देर कर रहा है। उन्होंने कहा, 'आपको इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेज रखने होते हैं। पैसे का भुगतान साबित करने वाली पर्ची, आवेदन पत्र जिसमें आपके आवेदन की तारीख का साफ-साफ उल्लेख हो। इसके अलावा बैंक का ब्योरा और वह तारीख जब आपको रिफंड ऑर्डर मिला है, इसका सबूत भी होना चाहिए।'

बकाया राशि न मिलना

एक और समस्या जिसका आपको सामना करना पड़ सकता है, वह यह है कि कंपनी की ओर से एलान होने के 30 दिनों के भीतर डिविडेंड आसानी से आपके बैंक खाते में नहीं पहुंचता। अगर कंपनी सेक्रेटरी या कंपनी की ओर से इस प्रक्रिया की निगरानी करने के लिए नियुक्त रजिस्ट्रार एंड ट्रांसफर एजेंट (आरटीए) कोई प्रतिक्रिया नहीं देता तो आपको डीआईएस या सेबी के पास जाना चाहिए। हालांकि, इस आवेदन के लिए आपके पास फोलियो नम्बर, सर्टिफिकेट नम्बर, अगर आप शेयरों का कारोबार अब भी कर रहे हैं तो एक खास अंक या ब्योरा या डिपॉजिटरी साझेदार के ब्योरे के साथ डीमैट खाते से जुड़ी जानकारी देनी होगी।

वास्तव में अगर आपकी बात सही साबित होती है तो कंपनी के निदेशक को इस मामले में संलिप्त होने के लिए दंडित किया जा सकता है। मिडास टच इनवेस्टर्स एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य और इनवेस्टर हेल्पलाइन प्रोजेक्ट के निदेशक वीरेंद्र जैन ने कहा, 'कंपनी का कोई भी निदेशक अगर जानते-बूझते डिफॉल्ट में शामिल रहा है तो उसे कारावास की सजा हो सकती है जिसकी मियाद तीन साल तक बढ़ाई जा सकती है और उसे डिफॉल्ट होने के समय से 1,000 रुपए प्रतिदिन जुर्माना चुकाना होगा। साथ ही कंपनी को डिफॉल्ट जारी रहने की अवधि के दौरान सालाना 18 फीसदी की दर से ब्याज चुकाना होगा।'

हस्तांतरण से जुड़ी दिक्कत

जो निवेशक शेयरों का हस्तांतरण करते हैं, उन्हें लंबे वक्त तक सर्टिफिकेट ही नहीं मिलते। अगर कंपनी सेक्रेटरी या आरटीए आपको कोई समाधान उपलब्ध नहीं कराता तो आपको डिपॉजिटरी से संपर्क साधने की जरूरत होती है जो कंपनी को सेवाएं मुहैया कराने का जिम्मा संभालता है। हालांकि, जैन ने याद दिलाया कि आपको शेयर ट्रांसफर से जुड़े समझौते की प्रति, हस्तांतरित किए गए शेयर सर्टिफिकेट की प्रति और इस बात के सबूत पेश करने होते हैं कि आपने कंपनी या आरटीए को सभी संबंधित दस्तावेज सौंपे हैं।

हालांकि, उत्तराधिकारी को सौंपने के मामले में आपको इसका सक्सेशन सर्टिफिकेट और एक इनडेमनिटी कम एफिडेविट फॉर्म की जरूरत पड़ती है। याद रखिए कि आपका मामला केवल तभी सही होगा जब आपको आवेदन के शुरुआती पंजीकरण के दो महीने के भीतर सर्टिफिकेट या ट्रांसमिशन सर्टिफिकेशन न मिले हों।

समस्याएं और भी हैं

अगर आपको लगता है कि सावधि जमा या डिबेंचर में निवेश करने से आप ऐसी मुश्किलों से बच सकते हैं तो यह आपका भ्रम है। कई निवेशकों को फिक्स्ड डिपॉजिट और डिबेंचर परिपक्व होने पर भी भुगतान नहीं मिलता। कंपनी सेकेटरी से मिलने के बाद न्यासी से मुलाकात की जा सकती है जिसे सिक्योर्ड डिबेंचर के मामले में नियुक्त किया गया है। इस मामले में कानूनी जरिया उपलब्ध है और कंपनी लॉ बोर्ड को कंपनी को डिपॉजिट का भुगतान करने के निर्देश देने का अधिकार है। कामत ने कहा, 'कई मामलों में कंपनियां इस बात का आवेदन लेकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने से भागती रही हैं कि वे वित्तीय रूप से कमजोर हैं। इस मामले में शेयरधारकों को केवल संपत्तियां भुनाने के वक्त फायदा हो सकता है और प्राथमिकता की सूची में वे अंतिम पायदान पर होते हैं।'

चालबाजों से बचिए

ऐसे भी कई लोग हैं गैर-पंजीकृत ब्रोकरों या सब-ब्रोकरों के चंगुल में फंसकर अपना पैसा गंवा चुके हैं। ऐसे जालसाज आम जनता का पैसा लेकर फरार हो जाते हैं। फर्जीवाड़ों के ऐसे मामले में आपको सेबी को जानकारी देनी होती है जो अदालत में मामला दायर कराने का अधिकार रखता है। हालांकि, अब तक इस तरह के मामलों में सीमित कार्रवाई ही होती देखी गई है। सीयूटीएस सेंटर फॉर कंज्यूमर एक्शन, रिसर्च एंड ट्रेनिंग के प्रोग्राम ऑफिसर दीपक सक्सेना ने कहा, 'काउंटर पार्टी जोखिम से खुद को बचाने के लिए आपको गैर-पंजीकृत मध्यस्थ संस्थाओं से बचना चाहिए। साथ ही अपने ब्रोकर को स्पष्ट दिशानिर्देश दीजिए और ब्रोकर या सब-ब्रोकर को दिए जाने वाले सभी निर्देशों का रिकॉर्ड भी अपने पास रखिए।'

अन्य कठिनाइयां

निवेशकों और शेयर ब्रोकर या डिपॉजिटरी भागीदारों के बीच विवाद समझाने के लिए सेबी के दिशानिर्देशों के आधार पर आर्बिट्रेशन पैनल का गठन किया गया है। सक्सेना ने कहा, 'अगर आप असूचीबद्ध कंपनी के सामने खुद को मुश्किल में फंसा पा रहे हैं या मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में फिक्स्ड डिपॉजिट से संबंधित समस्या का सामना कर रहे हैं या शेयरों की जब्ती या कंपनी की सालाना रिपोर्ट अब तक न मिलने से परेशान हैं तो आपको कंपनी मामलों के मंत्रालय में कंपनियों के संबंधित रजिस्ट्रार से मिलना होगा।'

आसान समाधान

- शिकायत के साथ कंपनी सेक्रेटरी या रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेंट से संपर्क साधिए

- अगर समस्या न सुलझे तो सेबी या डीआईएस या कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय का दरवाजा खटखटाइए

- मामले से जुड़े सभी दस्तावेजों की प्रतियां साथ रखना न भूलें

- याद रखें कि कंपनी पर उसकी ओर से देर होने पर ही देनदारी बनती है

- जांचिए कि क्या आप कानूनी जरिया अपना सकते हैं
-लीजा मेरी थॉमसन

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