अगर आप बहुत कम समय के लिए निवेश पर अच्छा रिटर्न हासिल करना चाहते हैं तो इसका एक विकल्प लिक्विड फंड हो सकता है। लिक्विड फंड कम अवधि के डेट फंड होते हैं जो सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट्स, कमर्शियल पेपर और ट्रेजरी बिलों में एक रात, 10 दिन या एक महीने के लिए निवेश करते हैं। आमतौर पर लिक्विड फंड में निवेशक को एंट्री या एग्जिट लोड नहीं चुकाना होता। इन फंडों का इस्तेमाल लघु अवधि में नकदी के निवेश, एक वर्ष से कम समय के लिए निश्चित रकम की आमदनी और आने वाले समय में किए जाने वाले भुगतान के लिए किया जा सकता है। आप अगर भविष्य में कोई बड़ा निवेश करना चाहते हैं और उससे पहले अपनी नकदी को ऐसी जगह रखना चाहते हैं, जहां यह बेकार न बैठी रहे, तो उसके लिए भी ये फंड एक विकल्प हो सकते हैं। इनका इस्तेमाल सिस्टेमेटिक ट्रांसफर प्लान में भी किया जा सकता है। इनकम या बॉन्ड फंड की अवधि लिक्विड फंड के मुकाबले कहीं अधिक होती है और इनमें ज्यादा गिरावट के साथ ही अधिक उछाल आने की संभावना भी रहती है। ये फंड मध्यम से लंबी अवधि के निवेश के लिए बेहतर होते हैं। इनकम फंड कॉरपोरेट बॉन्ड और सरकारी सिक्योरिटीज जैसे लंबी अवधि के साधनों में धन लगाते हैं। बचत खातों में जहां ब्याज की दर चार फीसदी सालाना तक होती है, वहीं लिक्विड फंड का रिटर्न आठ फीसदी प्रतिवर्ष तक जा सकता है। इसके अलावा इन्हें भुनाना भी आसान होता है। निवेशक नेट असेट वैल्यू (एनएवी) पर इन्हें भुना सकते हैं। लिक्विड फंड में न्यूनतम 1,000 रुपए का निवेश किया जा सकता है। हालांकि, कुछ फंडों ने न्यूनतम निवेश की राशि 5,000 रुपए भी रखी है। पिछले पांच सालों में लिक्विड फंडों ने पांच से लेकर नौ फीसदी तक का रिटर्न दिया है। लिक्विड फंड के विकल्प लिक्विड फंड दो प्रकार के होते हैं। एक प्योर लिक्विड फंड और दूसरा लिक्विड प्लस। इन दोनों प्रकार के लिक्विड फंड में मुख्य अंतर उन सिक्योरिटीज की अवधि होती हैं जिसमें ये निवेश करते हैं। लिक्विड प्लस फंड जिन इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं उनकी अवधि प्योर लिक्विड फंड के पास मौजूद सिक्योरिटीज से अधिक होती है। कर बाध्यता की बात की जाए तो लिक्विड फंड पर 28.33 फीसदी का डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन कर चुकाना होता जबकि लिक्विड प्लस फंड में 14.16 फीसदी का कर देना होता है। फिक्स्ड डिपॉजिट (सावधि जमा) में लगभग नौ फीसदी का रिटर्न मिलता है और इस पर लगभग 33 फीसदी आयकर (10 फीसदी सरचार्ज अतिरिक्त) चुकाना होता है। एक वर्ष की मैच्योरिटी वाले लिक्विड फंड के डिविडेंड विकल्प में 28.33 फीसदी का डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन कर देना होता है। लिक्विड प्लस फंड का निवेश काफी हद तक लिक्विड फंड के समान होता है लेकिन फंड का लगभग 30 फीसदी हिस्सा लंबी मैच्योरिटी अवधि वाले इंस्ट्रूमेंट्स में लगाया जाता है। इसमें मार्क-टू-मार्केट को लेकर कोई बाध्यता नहीं होती और लिक्विड प्लस फंड में कोई लॉक-इन अवधि भी नहीं रहती। कम कर लगने की वजह से भी लिक्विड प्लस फंड को ज्यादा पसंद किया जाता है। लिक्विड फंड पर 28.33 फीसदी के कर के मुकाबले लिक्विड प्लस फंड पर 14.16 फीसदी का कर चुकाना होता है। ये फंड लघु अवधि के लिक्विड फंड और लंबी अवधि के डेट फंड के बीच विकल्प देते हैं। ये उन लोगों के लिए अच्छे हैं जो कम अवधि के निवेश पर अच्छा रिटर्न चाहते हैं। लेकिन निवेशकों फंड द्वारा किए जा रहे निवेश को लेकर सतर्कता बरतनी चाहिए। पिछले वर्ष कुछ फंडों ने ऐसी कंपनियों के पेपर में धन लगाया था जिन्होंने डिफॉल्ट किए थे। इसका खुलासा होने के बाद निवेशकों ने बड़ी संख्या में फंडों को भुनाया था। अगर आप ऊंचे कर स्लैब में आते हैं तो आपके लिए लिक्विड फंड बेहतर रहेंगे क्योंकि इनमें कर कटौती के बाद ज्यादा रिटर्न मिलता है। ज्यादातर लिक्विड फंड कोई एंट्री या एग्जिट लोड नहीं वसूलते। इसके साथ ही इन्हें भुनाना भी आसान होता है। आप एक दिन के अंदर अपना धन वापिस ले सकते हैं।
-आशीष गुप्ता
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