Monday, April 13, 2009

नए मुद्रास्फीति इंडेक्स बताएगा महंगाई का असल चेहरा

नई दिल्ली- देश में महंगाई के बैरोमीटर यानी थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) का चेहरा जल्द बदलने जा रहा है। जल्द डब्लूपीआई में शामिल चीजों की संख्या में दो-तिहाई की बढ़ोतरी हो जाएगी। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर ईटी को बताया कि नया सूचकांक महंगाई की ज्यादा सही तस्वीर पेश करेगा। नए सूचकांक यानी इंडेक्स के इस साल अगस्त तक आ जाने की संभावना है। नए इंडेक्स के परीक्षण का काम शुरू हो चुका है। नए डब्लूपीआई के लिए 2004-05 को आधार वर्ष बनाया गया है। नए आधार वर्ष वाला प्राथमिक इंफ्लेशन इंडेक्स के इस साल अगस्त तक आ जाने की संभावना है। हालांकि, अंतिम इंडेक्स इस साल दिसंबर तक ही तैयार हो पाएगा। अधिकारी ने बताया कि नया इंडेक्स तैयार करने में सबसे बड़ी बाधा भारी संख्या में आंकड़े संग्रह करना था। लेकिन नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) में आंकड़ों के संग्रह के लिए नए पदों की मंजूरी वाले विधेयक के पारित होने से बड़ी बाधा खत्म हो गई है। मुद्रास्फीति के आंकड़े मासिक आधार पर जारी करने का भी प्रस्ताव आया है। अभी सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा हर हफ्ते मुद्रास्फीति के आंकड़े जारी किए जाते हैं। हालांकि, नए डब्लूपीआई के आ जाने के बाद भी आंकड़ा संग्रह करने का काम साप्ताहिक आधार पर जारी रहेगा। वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस प्रस्ताव के पारित हो जाने की पूरी संभावना है। नई सरकार के बन जाने के बाद इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिल जाने की संभावना है। मासिक आधार पर मुद्रास्फीति दर के आंकड़े जारी करने के प्रस्ताव के पीछे कारण यह है कि नए इंडेक्स में 1,000 से अधिक चीजें शामिल हैं। ऐसे में आंकड़े जुटाने और उनका प्रसंस्करण करने में समय लगेगा। वर्तमान डब्लूपीआई में 435 चीजें शामिल हैं। डब्लूपीआई इंडेक्स को व्यापक बनाने के लिए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय और डब्लपीआई में बदलाव के लिए गठित कार्य समूह ने प्रत्येक कमोडिटी की कम से कम चार से पांच कीमतें हासिल करने का प्रस्ताव दिया है। इस तरह से संशोधित इंडेक्स में साप्ताहिक आधार पर 6,000 से अधिक कीमतें जुटानी होगी और उनका प्रसंस्करण करना होगा। हालांकि, हर हफ्ते कीमतों में ज्यादा बदलाव देखने को नहीं मिलता है। नए इंडेक्स से सरकार को सटीक नीति तैयार करने में मदद मिलेगी। क्रिसिल के वरिष्ठ अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने बताया कि इसकी वजह यह है कि नीति तैयार करने के लिए लंबी अवधि के रुझान को आधार बनाया जाता है।
-शोभना चड्ढा

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