प्रमुख उधारी दर यानी प्राइम लेंडिंग रेट (पीएलआर) होम लोन लेने वालों के लिए काफी अहमियत रखती है। आइए जानते हैं, आपकी होम लोन ब्याज दर के कम होने में इसकी क्या भूमिका है
क्या है पीएलआर?
यह ब्याज की बेंचमार्क दर होती है जिस पर बैंक विश्वसनीय ग्राहकों को कर्ज मुहैया कराते हैं। दूसरे ग्राहकों के लिए ब्याज दरें तय करते वक्त इस दर को पैमाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
कब बदलती है पीएलआर?
बैंक की अपनी नीति के अलावा पीएलआर इस बात पर निर्भर करती है कि रिजर्व बैंक नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और रेपो रेट जैसी अहम दरों में कितना बदलाव करता है। जब कर्ज देने वाली संस्था पीएलआर बढ़ाती या घटाती हैं तो इससे कर्जदारों के लिए नकदी का प्रवाह कम या ज्यादा होता है।
पीएलआर और होम लोन ब्याज दरों का रिश्ता
पीएलआर एक बेंचमार्क दर है जो संस्था के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। बैंकों की ओर से वसूली जाने वाली ब्याज दर बेंचमार्क पीएलआर से 0.50 फीसदी ज्यादा हो सकती है। बैंक की पीएलआर में कमी से कर्जदारों पर ब्याज का बोझ कम हो सकता है।
पीएलआर पर अहम पॉलिसी दरों का प्रभाव
आर्थिक तंत्र में उठापटक की स्थिति से निपटने के लिए रिजर्व बैंक महत्वपूर्ण पॉलिसी दरों में बदलाव करता रहता है। मसलन, रिजर्व बैंक आर्थिक तंत्र से अतिरिक्त रकम बाहर निकालने, मुद्रास्फीति को काबू में करने, मंदी पड़ती अर्थव्यवस्था में जान फूंकने, नकदी की स्थिति बेहतर करने और कीमतों में तेजी को नियंत्रित करने के लिए उपाय करता रहता है। सीआरआर फंड का वह हिस्सा होता है जो बैंकों को रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। रेपो रेट वह दर है जिस पर बैंकों को आरबीआई से कर्ज मिलता है। अगर आरबीआई रेपो रेट घटाता है तो बैंकों के लिए कर्ज लेना सस्ता होता है। सीआरआर और रेपो रेट में कमी से तंत्र में तरलता बढ़ती है।
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