Wednesday, April 29, 2009

ढलती उम्र के लिए नियमित आमदनी का इंतजाम

रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी की वित्तीय योजना तैयार करने वालों के लिए फिक्स्ड इनकम उत्पाद और दूसरे डेट इंस्ट्रूमेंट पसंदीदा माने जाते हैं। कुछ लोग महंगाई दर की रफ्तार को पीछे छोड़ने की उम्मीद के साथ आमदनी का छोटा हिस्सा इक्विटी में लगाते हैं। रिटायरमेंट के बाद जब नौकरी नहीं होती तो लोग कम जोखिम और नियमित आमदनी चाहते हैं। लेकिन ऐसे कितने लोग होते हैं जो रिटायरमेंट के लिए की गई बचत से नियमित आमदनी हासिल करने में कामयाब रहते हैं ?

एक स्थिति का अनुमान लगाइए जिसमें एक व्यक्ति पांच साल के लिए 8 फीसदी की मामूली ब्याज दर पर फिक्स्ड डिपॉजिट में अपना पैसा लॉक इन करता है। पांच साल के बाद अगर दरों में गिरावट आती है तो वह नियमित आमदनी खो देगा। औसत आयु में बढ़ोतरी और मेडिकल तथा दूसरे आवश्यक खर्च बढ़ने से रिटायरमेंट के बाद के सालों की जरूरतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

आप यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि रिटायरमेंट की जिंदगी में नियमित आमदनी आती रहे ?

पेश हैं कुछ रणनीतियां :

व्यवस्थित रूप से पैसा निकालना

आपका पैसा शेयरों , म्यूचुअल फंड , फिक्स्ड डिपॉजिट और बैंक खाते जैसे अलग - अलग वित्तीय उत्पादों में हो सकता है। अपनी सारी बचत को घर लाना समझदारी नहीं है। केवल वही पैसा निकालिए जिसकी जरूरत आपको तुरंत हो और शेष रकम में इजाफा होने के लिए उसे निवेश में ही रहने दीजिए। रणनीति इतनी पुख्ता होनी चाहिए कि अत्यधिक जरूरत न होने पर पैसा ही न निकाला जाए। कुछ लोग निवेश से होने वाली आमदनी इस्तेमाल करते हैं जबकि उनमें लगाई जाने वाली मूल राशि को नहीं छूते। म्यूचुअल फंड सिस्टेमेटिक विड्रॉल प्लान पेश करते हैं जिसमें निवेशक मासिक या तिमाही जैसी नियमित समयावधि में पैसा निकाल सकता है।



डायवर्सिफिकेशन

रिटायरमेंट संबंधी योजना की कामयाबी डायवर्सिफिकेशन पर निर्भर करती है। अपनी सारी रकम एक ही निवेश उत्पाद में मत लगाइए। शेयर बाजारों में जरूरत से ज्यादा निवेश जोखिमपूर्ण हो सकता है लेकिन यह मुद्रास्फीति दर के खिलाफ ढाल का काम करता है। म्यूचुअल फंड लंबी अवधि में काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। लेकिन अगर बाजार ढहते हैं तो आपको उस वक्त कड़ी मेहनत की कमाई तक पहुंच नहीं मिलेगी जब आपको उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी। डेट उत्पाद भी जोखिम से मुक्त नहीं होते। रियल एस्टेट निवेशकों को यह बात बखूबी पता होती है कि संपत्ति बेचकर पैसा जुटाना और उसकी सही कीमत हासिल करना हमेशा आसान नहीं होता। जोखिम सहने की अपनी क्षमता के आधार पर अलग - अलग एसेट श्रेणियों में अपने पोर्टफोलियो का डायवर्सिफिकेशन कीजिए क्योंकि अगर आर्थिक मंदी या किसी बाहरी कारण की वजह से कोई उत्पाद आपकी उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं करता तो दूसरे प्रोडक्ट तूफान से आपकी कश्ती बाहर निकाल ले जाएंगे।

लैडरिंग से पहुंचिए मंजिल तक

फर्ज कीजिए कि फिक्स्ड डिपॉजिट पर रिटर्न में गिरावट आ रही है। आप अपना पैसा दूसरे बैंक में ले जाना चाहते हैं जो ऊंची दर पर ब्याज दे रहा है। हो सकता है कि किसी आपात स्थिति से निपटने के लिए आपको फिक्स्ड डिपॉजिट तुड़वाना पड़े। लेकिन फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़ने का अपना नुकसान होता है। दरों में उठापटक के प्रतिकूल प्रभाव कम करने , तरलता बढ़ाने और अधिकाधिक रिटर्न हासिल के लिए लैडरिंग नामक रणनीति अपनाई जा सकती है। लैडरिंग से मायने निवेश की ऐसी तकनीक से है जिसमें अलग - अलग मैच्योरिटी तारीख वाले कई वित्तीय उत्पाद आप खरीदते हैं। यह रणनीति हालात सही न होने के वक्त रकम का बड़ा हिस्सा लॉक इन में फंसाने से बचाती है।

इसके तहत व्यक्ति विशेष पैसा लॉक इन करते वक्त अपनी जरूरतों को छोटी अवधि या लंबी अवधि के दो वर्गों में विभाजित कर सकता है। फिक्स्ड डिपॉजिट के तहत समूची रकम लॉक इन करने के बजाय उसके छोटे हिस्से कीजिए और अलग - अलग मैच्योरिटी तारीख वाले विभिन्न डिपॉजिट में पहुंचा दीजिए। अगर आपके पास 50,000 रुपए हैं तो आप सारी रकम पांच साल की फिक्स्ड डिपॉजिट में लॉक मत कीजिए। इसमें से 10,000 रुपए एक साल के डिपॉजिट , अगले 10,000 रुपए 2 साल के फिक्स्ड डिपॉजिट और शेष हिस्सा तीन साल के फिक्स्ड डिपॉजिट में डाला जा सकता है। अंतिम 10,000 रुपए पांच साल के डिपॉजिट में डाले जा सकते हैं। यह रकम नियमित अंतराल पर मैच्योर होगी , ऐसे में तय वक्त से पहले रिडेम्पशन कराने पर नुकसान होने की आशंका भी कम होगी।
-कविता श्रीराम

No comments: