क्या है राजकोषीय घाटा?
सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिए कितनी उधारी की जरूरत होगी। कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है। राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है। पूंजीगत व्यय लंबे समय तक इस्तेमाल में आने वाली संपत्तियों जैसे-फैक्टरी, इमारतों के निर्माण और अन्य विकास कायोर्ं पर होता है। राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर केंदीय बैंक (रिजर्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या इसके लिए छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिए पूंजी बाजार से फंड जुटाया जाता है।
राजकोषीय और प्राथमिक घाटे में क्या अंतर है?
प्राथमिक घाटा राजकोषीय घाटे का एक हिस्सा होता है। राजकोषीय घाटा पूरा करने के मकसद से ली गई उधारी पर सरकार को जो ब्याज देना पड़ता है, उसे राजकोषीय घाटे में से घटाने से हासिल आंकड़ा प्राथमिक घाटा होता है।
राजकोषीय घाटे पर क्या है विशेषज्ञों की राय?
इसके बारे में अर्थशास्त्रियों की अलग-अलग राय है। जॉन मेनार्ड कींस के हिसाब से राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था को मंदी में फंसने से बचाता है। दूसरी विचारधारा के अर्थशास्त्रियों की राय में किसी भी देश में राजकोषीय घाटा नहीं होना चाहिए। ज्यादातर अर्थशास्त्री मानते हैं कि केंदीय बैंक से कर्ज लेकर राजकोषीय घाटे की भरपाई करने पर मुदास्फीति दर में इजाफा होने के आसार बनते हैं। भारत में राजकोषीय घाटा ज्यादा होने की वजह से मुदास्फीति दर भी ज्यादा है।
क्या है राजस्व घाटा?
सरकार की अनुमानित राजस्व प्राप्ति और व्यय में अंतर होने से राजस्व घाटा होता है। यह अनुमान से कम वास्तविक शुद्ध राजस्व प्राप्ति की वजह से होता है। वास्तविक राजस्व वसूली उम्मीद से ज्यादा होने पर रेवेन्यू सरप्लस की स्थिति पैदा होती है। राजस्व घाटा होने का मतलब वास्तविक राजस्व वसूली में कमी नहीं होती। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लिया कि किसी देश ने 100 रुपए का राजस्व हासिल होने और उसमें से 75 रुपए व्यय होने अनुमान लगाया है। सचमुच में ऐसा होने पर उसे 25 रुपए का शुद्ध राजस्व हासिल होगा। अगर उसे वास्तव में 90 रुपए का ही राजस्व हासिल होता है और वह 70 रुपए व्यय कर देता है, तो उसका शुद्ध राजस्व 20 रुपए होगा। यह बजटीय शुद्ध राजस्व प्राप्ति से 5 रुपए कम है और यह राजस्व घाटा कहलाता है।
भारत में इस समय क्या स्थिति है?
अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार ने कई राहत और विकास पैकेजों का एलान किया है जिससे देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा है। अंतरिम बजट में 9,53,231 करोड़ रुपए व्यय का प्रस्ताव भी किया गया है। रिजर्व बैंक ने हाल ही में कहा है कि राजकोषीय घाटा 2.5 फीसदी के पूर्वानुमान से लगभग दोगुना 5.9 फीसदी हो सकता है। यह 1,50,310 करोड़ रुपए के घाटे के आरंभिक अनुमान के मुकाबले 3,54,731 करोड़ रुपए होगा। करों में कटौती से सरकार को 36,074 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हो सकता है।
सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिए कितनी उधारी की जरूरत होगी। कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है। राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है। पूंजीगत व्यय लंबे समय तक इस्तेमाल में आने वाली संपत्तियों जैसे-फैक्टरी, इमारतों के निर्माण और अन्य विकास कायोर्ं पर होता है। राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर केंदीय बैंक (रिजर्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या इसके लिए छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिए पूंजी बाजार से फंड जुटाया जाता है।
राजकोषीय और प्राथमिक घाटे में क्या अंतर है?
प्राथमिक घाटा राजकोषीय घाटे का एक हिस्सा होता है। राजकोषीय घाटा पूरा करने के मकसद से ली गई उधारी पर सरकार को जो ब्याज देना पड़ता है, उसे राजकोषीय घाटे में से घटाने से हासिल आंकड़ा प्राथमिक घाटा होता है।
राजकोषीय घाटे पर क्या है विशेषज्ञों की राय?
इसके बारे में अर्थशास्त्रियों की अलग-अलग राय है। जॉन मेनार्ड कींस के हिसाब से राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था को मंदी में फंसने से बचाता है। दूसरी विचारधारा के अर्थशास्त्रियों की राय में किसी भी देश में राजकोषीय घाटा नहीं होना चाहिए। ज्यादातर अर्थशास्त्री मानते हैं कि केंदीय बैंक से कर्ज लेकर राजकोषीय घाटे की भरपाई करने पर मुदास्फीति दर में इजाफा होने के आसार बनते हैं। भारत में राजकोषीय घाटा ज्यादा होने की वजह से मुदास्फीति दर भी ज्यादा है।
क्या है राजस्व घाटा?
सरकार की अनुमानित राजस्व प्राप्ति और व्यय में अंतर होने से राजस्व घाटा होता है। यह अनुमान से कम वास्तविक शुद्ध राजस्व प्राप्ति की वजह से होता है। वास्तविक राजस्व वसूली उम्मीद से ज्यादा होने पर रेवेन्यू सरप्लस की स्थिति पैदा होती है। राजस्व घाटा होने का मतलब वास्तविक राजस्व वसूली में कमी नहीं होती। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लिया कि किसी देश ने 100 रुपए का राजस्व हासिल होने और उसमें से 75 रुपए व्यय होने अनुमान लगाया है। सचमुच में ऐसा होने पर उसे 25 रुपए का शुद्ध राजस्व हासिल होगा। अगर उसे वास्तव में 90 रुपए का ही राजस्व हासिल होता है और वह 70 रुपए व्यय कर देता है, तो उसका शुद्ध राजस्व 20 रुपए होगा। यह बजटीय शुद्ध राजस्व प्राप्ति से 5 रुपए कम है और यह राजस्व घाटा कहलाता है।
भारत में इस समय क्या स्थिति है?
अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार ने कई राहत और विकास पैकेजों का एलान किया है जिससे देश का राजकोषीय घाटा बढ़ा है। अंतरिम बजट में 9,53,231 करोड़ रुपए व्यय का प्रस्ताव भी किया गया है। रिजर्व बैंक ने हाल ही में कहा है कि राजकोषीय घाटा 2.5 फीसदी के पूर्वानुमान से लगभग दोगुना 5.9 फीसदी हो सकता है। यह 1,50,310 करोड़ रुपए के घाटे के आरंभिक अनुमान के मुकाबले 3,54,731 करोड़ रुपए होगा। करों में कटौती से सरकार को 36,074 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हो सकता है।
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