जब कभी आपको या परिवार के किसी सदस्य कोमामूली चोट या खरोंच आती है तो
घर में उपलब्ध फर्स्ट एड किट काफी काम आती है। ठीक इसी तरह जब बाजार में भूचाल आया हो और अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम संकेत भी निराश करें तो हमें हर तरह के हालात से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। दो महीने पहले तक आपके पास आपात स्थिति के लिए तैयारी करने की कोई वजह नहीं थी। लेकिन अब वक्त आ गया है कि आप कमर कस लें और मन को सुकून न देने वाली स्थितियों से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन के कुछ उपाय सीखें : हाथ में कैश कारोबारी दुनिया में रकम का एक हिस्सा हालात में अचानक आने वाले बदलाव से निपटने या विस्तार से जुड़ी संभावनाएं दिखने पर उसे इस्तेमाल करने के लिए अलग रखा जाता है। पार्क फाइनेंशियल एडवाइजर्स के निदेशक स्वप्निल पवार ने कहा , ' यह रकम छह महीने के खर्च के बराबर होनी चाहिए। इसमें घर की किस्त या किराया , खाद्य वस्तुएं , यूटिलिटी बिल , कर्ज का भुगतान और ऐसे नियमित व्यय शामिल हैं जिन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है। इससे आपको अस्थाई संकट से उबरने में मदद मिलेगी। ' इसके अलावा आपात स्थिति से निपटने के लिए आपको कोष तैयार करना होगा। पवार के मुताबिक कम से कम दो महीने के लिए अतिरिक्त नकदी का इंतजाम कर इसकी शुरुआत कर सकते हैं। (आगे पढ़ें : खर्च का रखें ख्याल)
खर्च के पैटर्न की समीक्षा यह बात खास तौर से त्यौहार के मौसम में लागू होती है। परंपरा के मुताबिक धनतेरस पर सोने की खरीददारी कर सकते हैं। लेकिन , अगर आपकी नौकरी पर तलवार लटक रही है तो ऐसे बड़े खर्च को नजरअंदाज करना ही बेहतर है। हालांकि यह काफी सरल मालूम देता है लेकिन सचाई यही है कि हमें खर्चों में कटौती करने की कला सीखनी पड़ती है। हालांकि ये खर्च हमारी जेब में मौजूद पैसे तक सीमित होंगे लेकिन उथल - पुथल के दौर में गैर - जरूरी खर्च को नजरअंदाज करना काफी जरूरी है। (आगे पढ़ें : शॉर्ट टर्म फिक्सड डिपोजिट)
ताकि कैश का इंतजाम हो आसान पैसे के हिसाब से आम तौर पर लिक्विड फंड या लिक्विड प्लस फंड बेहतर रहते हैं। लेकिन मौजूदा हालात में वित्तीय सलाहकार 90 दिन से शुरू होने वाले शॉर्ट टर्म फिक्स्ड डिपॉजिट की सिफारिश कर रहे हैं और उनका यह भी कहना है कि अगर आपको इस बीच पैसे की जरूरत नहीं पड़ती तो इसी डिपॉजिट को रोल ओवर भी किया जा सकता है। आप डिपॉजिट में स्वीप पर भी गौर कर सकते हैं जो एक खास रकम पर पहुंचने के बाद आपके पैसे को सेविंग डिपॉजिट से फिक्स्ड डिपॉजिट में तब्दील करने का काम करता है। एक फाइनांशियल प्लानर ने कहा , ' कुछ लिक्विड फंड ने पूंजी में गिरावट देखी है या फिर उन्हें नकदी के संकट की वजह से रिडेम्पशन का सामना करना पड़ा है। जब आप अपनी चाहत के मुताबिक नतीजे हासिल नहीं कर सकते तो लिक्विड फंड में पैसा लगाने का क्या फायदा है। ' (आगे पढ़ें : इंडिविजुअल मेडिक्लेम क्यों जरूरी)
व्यक्तिगत मेडिक्लेम अगर कंपनी कोई मेडिकल पॉलिसी देती है तो ज्यादातर लोग अक्सर व्यक्तिगत मेडिक्लेम को नजरअंदाज करते हैं। यूं तो यह अतिरिक्त खर्च मालूम देता है लेकिन मौजूदा हालात में व्यक्तिगत बैक - अप मेडिक्लेम होना वित्तीय सुरक्षा की दृष्टि से सही है। नियोक्ता के कवर के तहत कई तरह के खर्च शामिल नहीं किए जाते। मान लीजिए आप बीमार हैं और 2 से 3 महीने के लिए काम पर नहीं जा पाते तो आपको लीव विदआउट पे ( बिना तनख्वाह अवकाश ) पर जाने को कहा जा सकता है। इसलिए , दो कवर के तहत अपने खर्च को बांटना समझदारी है। इसके अलावा व्यक्तिगत कवर जिंदगी भर चलता है और वह प्रीमियम पर डिफॉल्ट करने पर खत्म नहीं होता। लैडर 7 फाइनांशियल एडवाइजरीज के साथ कार्यरत सर्टिफाइड फाइनांशियल प्लानर सुरेश सदगोपन ने कहा , ' मैं अपने क्लाइंट को कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा पर स्टैंडअलोन हेल्थ पॉलिसी रखने को तरजीह देने की सलाह देता हूं जो परिवार को भी कवर करे। नौकरी जाने या बदलने के मामले में ऐसे कवर की जरूरत और ज्यादा महसूस की जाती है। हो सकता है कि नई कंपनी मेडिक्लेम न ऑफर करे या पॉलिसी आधी - अधूरी हो। ' जानकारों का कहना है कि छोटे और मध्यम दर्जे के शहरों में रहने वाले लोगों को 2-3 लाख रुपए जबकि महानगरों के निवासियों को 4-5 लाख रुपए से कम के कवर पर विचार नहीं करना चाहिए। सदगोपन के मुताबिक अगर आप किसी एक ही संस्था के साथ 10 साल से ज्यादा वक्त तक काम कर रहे हैं तो आप कम रकम के कवर पर गौर कर सकते हैं।
- विद्यालक्ष्मी
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