बिना पैसे के जिंदगी बोझ बन जाती है। आपकी जिंदगी आगे चलकर बोझ न बने , इसके लिए बचत जरूरी है। हालांकि , आप कारगर ढंग से तभी बचत कर पाएंगे , जब आपके पास सही फाइनेंशियल प्लानिंग हो। सही प्लानिंग के साथ बचत का अनुशासन भी जरूरी है। अक्सर साल खत्म होने पर आपको यह पता चलता है कि आपके निवेश ने उम्मीद के मुताबिक रिटर्न नहीं दिया है। तब आप गहरी सांस लेते हैं और अगले साल बेहतर रिटर्न की उम्मीद बांधते हैं। हालांकि , अगले साल भी नतीजा वही निकलता है। फाइनेंशियल प्लानिंग में आप शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म के लिए रणनीति बनाते हैं। इस प्लानिंग में यह बात शामिल होती है कि आप तय वक्त में कितनी रकम जमा करना चाहते हैं। फाइनेंशियल प्लानिंग में क्या-क्या होना चाहिए , आइए इस पर एक नजर डालते हैं:
1. संपत्ति जमा करना- नकद प्रवाह की योजना
2. जोखिम से सुरक्षा- बीमा की योजना और जोखिम प्रबंधन
3. संपत्ति का उत्तराधिकार- वसीयत और ट्रस्ट
4. रिटायरमेंट और कर योजना
फाइनेंशियल प्लानिंग लगभग वैसी ही होती है , जैसी आप यात्रा की योजना बनाते हैं। यात्रा के लिए सबसे पहले आपको मंजिल तय करनी होती है। अगर मंजिल न हो तो यह पता नहीं चलेगा कि आप को सफर कहां तक करना है। फाइनेंशियल प्लानिंग में सबसे पहले लक्ष्य तय किए जाते हैं। इनसे आपको योजना के नतीजों के बारे में फैसला करने में मदद मिलती है। व्यक्ति की जरूरतों और इच्छाओं के आधार पर लक्ष्य तय होते हैं। ये योजना और उस पर अमल को दिशा देते हैं। ऐसे लक्ष्य और भी प्रभावी होते हैं जो विशेष , मापे जा सकने वाले , हासिल किए जा सकने वाले , वास्तविक और समय में बंधे होते हैं।
बहुत से लोग यह नहीं समझ पाते कि देरी करने या वित्तीय योजना को वर्ष के अंत तक टालने से उन्हें या तो सीधा वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है या फिर वे अच्छे अवसरों का लाभ उठाने से चूक जाते हैं। भारत में ज्यादातर लोग फाइनेंशियल प्लानिंग को टैक्स बचाने की योजना के तौर पर लेते हैं। इसी वजह से वे केवल फरवरी या मार्च में ही वित्तीय सलाहकार के पास जाते हैं। हालांकि , टैक्स बचाने की योजना फाइनेंशियल प्लानिंग का केवल एक हिस्सा होती है। वित्तीय योजना का उद्देश्य लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करना होता है। वहीं , टैक्स योजना में अधिक से अधिक कर बचाने पर ध्यान दिया जाता है , जिससे बचे हुए धन का निवेश किया जा सके। वित्तीय योजना की प्रक्रिया की शुरुआत अप्रैल में नए वित्त वर्ष के शुरू होने के साथ ही कर देनी चाहिए। फाइनेंशियल प्लानिंग को जल्दबाजी में नहीं बनाना चाहिए। इस प्लानिंग में कुछ ऐसे क्षेत्र हो सकते हैं , जिनकी तैयारी के लिए आपको वक्त की जरूरत होती है। वहीं , प्लानिंग का एक हिस्सा ऐसा भी हो सकता है , जिसके लिए आपको पैसे का इंतजाम करना पड़ सकता है। कुछ क्षेत्र ऐसे भी होते हैं , जिन पर आपका नियंत्रण न के बराबर होता है। जून में निवेशक निवेश के अवसरों की तलाश में रहते हैं। विशेषकर यह डेट में निवेश के लिए सही साबित होता है , जहां अप्रैल-मई के बाद गतिविधियां बढ़ने लगती हैं। जो लोग वेतनभोगी नहीं हैं , उन्हें इस अवधि में अग्रिम कर भुगतान पर ध्यान देने की जरूरत होती है। सितंबर से उन्हें प्रत्येक तिमाही में अपनी कमाई पर अग्रिम कर का भुगतान शुरू करना होता है। इसके लिए अलग से धनराशि रखना बेहतर रहता है। अक्टूबर से दिसंबर के बीच कर के मोर्चे पर अपनी स्थिति की समीक्षा करना जरूरी होता है। त्योहारों का समय या दिसंबर के अंत में कुछ विशेष सेक्टरों में बोनस बांटा जाता है और बोनस की राशि के आधार पर आय के स्तर में भी बदलाव आ सकता है। इसके चलते वित्तीय योजना में भी कुछ बदलाव करने पड़ सकते हैं।
सफल वित्तीय सलाह की चाबी निवेशकों के हाथों में ही होती है। निवेशकों को सही सलाह के लिए फीस देने को तैयार रहना चाहिए , ठीक वैसे ही जैसे वे डॉक्टर की फीस देते हैं। याद रखें कि इस दुनिया में मुफ्त कुछ भी नहीं मिलता और आपको प्रत्येक चीज की कीमत चुकानी पड़ती है और यही बात वित्तीय सलाह के मामले में भी लागू होती है।
बहुत से लोग यह नहीं समझ पाते कि देरी करने या वित्तीय योजना को वर्ष के अंत तक टालने से उन्हें या तो सीधा वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है या फिर वे अच्छे अवसरों का लाभ उठाने से चूक जाते हैं। भारत में ज्यादातर लोग फाइनेंशियल प्लानिंग को टैक्स बचाने की योजना के तौर पर लेते हैं। इसी वजह से वे केवल फरवरी या मार्च में ही वित्तीय सलाहकार के पास जाते हैं। हालांकि , टैक्स बचाने की योजना फाइनेंशियल प्लानिंग का केवल एक हिस्सा होती है। वित्तीय योजना का उद्देश्य लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करना होता है। वहीं , टैक्स योजना में अधिक से अधिक कर बचाने पर ध्यान दिया जाता है , जिससे बचे हुए धन का निवेश किया जा सके। वित्तीय योजना की प्रक्रिया की शुरुआत अप्रैल में नए वित्त वर्ष के शुरू होने के साथ ही कर देनी चाहिए। फाइनेंशियल प्लानिंग को जल्दबाजी में नहीं बनाना चाहिए। इस प्लानिंग में कुछ ऐसे क्षेत्र हो सकते हैं , जिनकी तैयारी के लिए आपको वक्त की जरूरत होती है। वहीं , प्लानिंग का एक हिस्सा ऐसा भी हो सकता है , जिसके लिए आपको पैसे का इंतजाम करना पड़ सकता है। कुछ क्षेत्र ऐसे भी होते हैं , जिन पर आपका नियंत्रण न के बराबर होता है। जून में निवेशक निवेश के अवसरों की तलाश में रहते हैं। विशेषकर यह डेट में निवेश के लिए सही साबित होता है , जहां अप्रैल-मई के बाद गतिविधियां बढ़ने लगती हैं। जो लोग वेतनभोगी नहीं हैं , उन्हें इस अवधि में अग्रिम कर भुगतान पर ध्यान देने की जरूरत होती है। सितंबर से उन्हें प्रत्येक तिमाही में अपनी कमाई पर अग्रिम कर का भुगतान शुरू करना होता है। इसके लिए अलग से धनराशि रखना बेहतर रहता है। अक्टूबर से दिसंबर के बीच कर के मोर्चे पर अपनी स्थिति की समीक्षा करना जरूरी होता है। त्योहारों का समय या दिसंबर के अंत में कुछ विशेष सेक्टरों में बोनस बांटा जाता है और बोनस की राशि के आधार पर आय के स्तर में भी बदलाव आ सकता है। इसके चलते वित्तीय योजना में भी कुछ बदलाव करने पड़ सकते हैं।
सफल वित्तीय सलाह की चाबी निवेशकों के हाथों में ही होती है। निवेशकों को सही सलाह के लिए फीस देने को तैयार रहना चाहिए , ठीक वैसे ही जैसे वे डॉक्टर की फीस देते हैं। याद रखें कि इस दुनिया में मुफ्त कुछ भी नहीं मिलता और आपको प्रत्येक चीज की कीमत चुकानी पड़ती है और यही बात वित्तीय सलाह के मामले में भी लागू होती है।
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