भारतीय शेयर बाजारों अब कोई भी न तकनीकी स्तरों की बात कर रहा है और न ही वैल्यूएशंस की। रिलायंस, एलएंडटी, भेल और इंफोसिस जैसी भारतीय अर्थव्यवस्था की स्तंभ मानी जाने वाली कंपनियों में जिस तरह की बिकवाली दिखी है, उसके बाद फंडामेंट एनालिस्ट भी न मूल्य आय अनुपात (पीई) का गणित लगाने की स्थिति में है और न ही बुक वैल्यू का। दिल्ली की मल्टीपल-एक्स कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ कवि कुमार का कहना है कि बाजार में घनघोर निराशा है और जब सरकारों के ही दिवालिया होने की कहानियां होने लगी हों, तो किसी फंडामेंटल की चर्चा बेकार हो जाती है। उन्होंने कहा, 'वैल्यूएशंस की बात ही बेईमानी है। मैं तब तक निवेश नहीं करूंगा जब तक बाजार से सारा दर्द नहीं निकल जाए और ऐसा होने में अभी कम से कम एक साल लगेंगे।' कुल मिला कर बाजार की नब्ज अब भी विदेशी बाजारों और विदेशी संस्थागत निवेशकों के हाथ में ही है। मुंबई के केआर चोकसी सिक्योरिटीज के एमडी देवेन चोकसी ने दिग्गज शेयरों में आ रहे भारी गिरावट के लिए एफआईआई की ओर से किए जा रहे मंदी के सौदों (शॉर्ट) को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि बाजार नियामक सेबी को इस बारे जल्दी ही कोई कदम उठाना चाहिए। बाजार से जो आंकड़े मिल रहे हैं, उससे साफ है कि दिग्गज शेयरों में मंदी के सौदे हो रहे हैं। इस संबंध में कुछ आंकड़े आंख खोलने वाले हो सकते हैं। 7 अक्टूबर के आंकड़ों के मुताबिक रिलायंस कैपिटल में केवल 7.4 फीसदी सौदे डिलिवरी में हुए, जबकि आरएनआरएल में केवल 9 फीसदी सौदे ही डिलिवरी में हुए। ऐडलैब्स, यूनिटेक, डीएलएफ, आईसीआईसीआई बैंक और एसबीआई में 20 फीसदी से भी कम सौदे डिलिवरी में हुए हैं, जबकि डिलिवरी में सबसे ज्यादा सौदे वाले एलएंडटी और टाटा मोटर्स के आंकड़े भी 40 फीसदी के ही करीब हैं। जब तक इस स्थिति पर नियामक अंकुश नहीं लगाएगा, एफआईआई इसी तरह बाजार को चलाते रहेंगे। कवि कुमार के मुताबिक अगले हफ्ते का बाजार भी पूरी तरह विदेशी बाजारों पर निर्भर है। अमेरिकी बाजार में मॉर्गन स्टेनली 25 फीसदी तक गिरा है। बातें हो रही हैं कि अब मॉर्गन स्टेनली की बारी है। अगर ऐसा हुआ तो अगला हफ्ता फिर भारी गिरावट वाला हो सकता है। उन्होंने कहा, 'मैं भले ही थोड़ा महंगा खरीदना चाहूंगा, लेकिन अभी केवल बिकवाली ही की जा सकती है। इतना जरूर है कि जब रिकवरी आएगी तो सबसे पहले भारत सुधरेगा। कमोडिटी के भाव में काफी नरमी आई है। लोहा, निकल अपने उच्चतम स्तर से एक-तिहाई तक गिर चुके हैं। तो यह कोई नहीं समझ रहा कि जो बिल्डर घर बना रहा है उसकी लागत भी तो ३० फीसदी कम हो गई है।' शुक्रवार को की गई सीआरआर में 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती पर कुमार ने मायूसी जताते हुए कहा कि इसका कोई असर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका के 700 अरब डॉलर और ब्रिटेन के 350 अरब डॉलर से कुछ नहीं हो रहा तो आरबीआई के 12 अरब डॉलर दे देने से क्या हो जाएगा। लेकिन चोकसी ने इसे एक अच्छा मगर देर से उठाया गया कदम बताया, 'सीआरआर का फैसला बहुत अच्छा है। 60,000 करोड़ रुपए बाजार में आएंगे तो इसका असर जरूर होगा, लेकिन यह कदम प्रतिक्रिया में उठाया गया है। दरअसल रेगुलेटरों को चाहिए कि वे पहले ही संकट भांप कर कदम उठाएं। इस तरह की कटौती सितंबर में ही की गई होती तो और ज्यादा अच्छा होता।'
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