Thursday, October 16, 2008

निवेश का फैसला लेने में रिसर्च की मदद लें

फायदेमंद शेयरों को चुनना और नुकसान देने वाले शेयरों से हर कोई बचना चाहता है , लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई भी ऐसा जादुई फॉर्मूला नहीं मिल पाया है , जो निवेश का सटीक निर्णय करने में मदद दे सके। आप रिसर्च का सहारा लेकर इस बारे में उचित फैसला ले सकते हैं।
कैसे शुरुआत करें
फंडामेंटल एनालिसिस में किसी कंपनी के पिछले प्रदर्शन के आंकड़ों के आधार पर भविष्य के प्रदर्शन का अनुमान लगाया जाता है। इसमें कंपनी से जुड़ी जानकारियों जैसे डिविडेंड यील्ड , आमदनी , बुक टू मार्केट रेश्यो , प्राइस अर्निंग रेश्यो , वर्किंग कैपिटल के साथ ही अर्थव्यवस्था के बड़े संकेतों जैसे आयात और निर्यात , मुद्रा सप्लाई , ब्याज दरें , महंगाई दर , विदेशी विनिमय दरें की भी समीक्षा की जाती है। टॉरस असेट मैनेजमेंट के फंड मैनेजर (इक्विटी) नितीश ओझा के अनुसार , फंडामेंटल एनालिसिस अच्छे शेयरों को चुनने और खराब शेयरों से बचने की कला है। उनका कहना है , ' इसमें यह जानने की कोशिश की जाती है कि एक लिस्टेड कंपनी कम और लंबी अवधि में कैसा प्रदर्शन करेगी। यह एक विज्ञान की तरह है। ' शेयर बाजार में निवेश के लिए एक और रिसर्च टूल का इस्तेमाल किया जाता है , जिसे तकनीकी समीक्षा या टेक्निकल एनालिसिस कहा जाता है। इसमें भविष्य में शेयर के दामों का अनुमान लगाने के लिए ऐतिहासिक दामों की मैथमेटिकल टाइम सीरिज और अन्य सांख्यिकीय मॉडलों का इस्तेमाल किया जाता है। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रमुख (रिसर्च) , एलेक्स मैथ्यू ने बताया , ' यह इस तर्क पर आधारित है कि इतिहास अपने को दोहराता है और दाम और मात्रा के बीच संबंध बाजार की चाल को बताता है। दाम की भविष्यवाणी मौजूदा कीमत के चलनों और तरीकों के साथ की जाती है। टेक्निकल एनालिसिस में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला टूल मूविंग एवरेंज कॉम्बिनेशन है। ' टेक्निकल एनालिसिस के अन्य टूल में स्टोकास्टिक , मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस/डायवरजेंस (एमएसीडी) और रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (आरएसआई) शामिल हैं।
कौन सा टूल बेहतर
बहुत से लोग निवेश का फैसला करने के लिए फंडामेंटल एनालिसिस को बेहतर मानते हैं जबकि कुछ का भरोसा टेक्निकल एनालिसिस पर भी कायम है। ओझा का कहना है , ' मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि लंबी अवधि में दाम हमेशा फंडामेंटल वैल्यू पर लौटते हैं। हालांकि छोटी अवधि में इनमें काफी उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। ' मैथ्यू का मानना है कि फंडामेंटल और टेक्निकल का मिश्रण ही एक निवेशक को सही जवाब दे सकता है। उदाहरण के लिए अगर कोई निवेशक इक्विटी में धन लगाना चाहता है तो उसे बाजार की चाल और महंगाई दर , सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर , मुद्रा की चाल के साथ ही ग्लोबल बाजारों के प्रदर्शन को भी समझना चाहिए। इसके अलावा कंपनियों और उनके सेक्टर की अच्छी जानकारी होनी भी जरूरी है। मैथ्यू के अनुसार , ' इसके लिए रेश्यो एनालिसिस की मदद ली जा सकती है। फंडामेंटल एनालिसिस के जरिए शेयर और सेक्टर की जानकारी जुटाने के बाद टेक्निकल एनालिसिस की भी मदद ली जा सकती है। '
डर को दूर करें
जब बाजार में मंदी के दौर के साथ भारी अस्थिरता हो तो जानकारों की सलाह में निवेशकों को निफ्टी के वोलैटिलिटी इंडेक्स और सीबीओई वोलैटिलिटी इंडेक्स पर नजर रखनी चाहिए। इससे आपको बाजार की साफ तस्वीर का पता चल सकेगा। ऐसा कहा जाता है कि अगर वोलैटिलिटी 30 फीसदी से अधिक हो तो बाजार में शीघ्र ही बदलाव आ सकता है , अगर यह 40 फीसदी से पार जाए तो बाजार में अनिश्चितता बहुत अधिक होती है।
वोलैटिलिटी 50 फीसदी से अधिक होने पर बाजार को खतरनाक कहा जाता है। अगर यह २० फीसदी से कम है तो इसका मतलब है कि बाजार खरीदारी के लिए अच्छा है। अगर आप ऊपर बताई गई प्रक्रियाओं का अनुशासन के साथ पालन करेंगे तो आपके लिए कंपनी के भविष्य के प्रदर्शन और उसके अनुसार उसके शेयर के दाम की चाल जानने में आसानी होगी। इसके आधार पर आप निवेश का सही फैसला कर सकते हैं।
निवेश का फंडा
3, 9 और 18 दिन के सिंपल मूविंग एवरेज का मिश्रण लघु अवधि के चलनों की भविष्यवाणी करता है जबकि 200, 100, 50 और 10 दिन का मूविंग एवरेज लंबी अवधि के चलनों का संकेत देता है। जब लघु अवधि के मूविंग एवरेज की रेखा लंबी अवधि के मूविंग एवरेज की रेखा के निचले हिस्से में जाकर टूटती है तो यह खरीदारी का अच्छा समय कहा जाता है। जब लघु अवधि की मूविंग एवरेज रेखा लंबी अवधि की मूविंग एवरेज रेखा के ऊपरी हिस्से मंे जाकर टूटती है तो यह बिकवाली का संकेत होता है। सक्षम बाजार के सिद्धांत के अनुसार एक सक्षम बाजार में नई जानकारी के आने पर इसका आकलन किया जाता है और इस जानकारी या समाचार के अनुसार दामों और स्तरों में बदलाव आता है।

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