Saturday, January 31, 2009

एमआईपी के जरिये कम जोखिम के साथ इक्विटी में निवेश

ज्यादा पुरानी बात नहीं जब इक्विटी बाजार आसमान छू रहे थे और छोटे निवेशक शेयर बाजार से गजब का मुनाफा बटोर रहे थे। लेकिन 2008 में बाजार में जो तबाही का मंजर दिखा , उसने हर उस बचत उत्पाद पर चोट की , जिसमें इक्विटी का जरा सा भी अंश था। इस तूफान का मंथली इनकम प्लान (एमआईपी) पर भी असर पड़ा। एमआईपी ने सांकेतिक और वास्तविक पैमाने , दोनों की दृष्टि से नकारात्मक रिटर्न दिया है लेकिन बाजार के जानकारों का कहना है कि इन पर निवेश विकल्प के तौर पर एक बार फिर विचार किया जा सकता है।
क्या होता है एमआईपी ?
इस फंड को निवेशक को नियमित आमदनी मुहैया कराने के उद्देश्य के साथ पेश किया गया था। अगर डिविडेंड से कमाई होती है तो उसे मासिक , तिमाही या छमाही आधार पर बांट दिया जाता है। नियमित आमदनी से जुड़ा लक्ष्य तब पूरा किया जा सकता है , जब संपत्ति का कम से कम 75 फीसदी हिस्सा बढ़िया गुणवत्ता वाले फिक्स्ड इनकम उत्पादों में लगाया जाए और शेष इक्विटी में। कम जोखिम लेकर पैसा बनाने वाले फंड संपत्ति के 10 फीसदी हिस्से को इक्विटी में लगाते हैं।
किसे करना चाहिए निवेश ?
एमआईपी रिटायर्ड या रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके लोगों के लिए निवेश का बेहतर जरिया है। यह उत्पाद उन लोगों की मुश्किल दूर कर सकता है जो सुरक्षित माध्यमों में निवेश करना चाहते हैं और साथ ही इक्विटी का स्वाद भी चखना चाहते हैं। फंड का जोखिम से जुड़ा प्रोफाइल इसे इनकम और बैलेंस्ड फंड के बीच लाकर खड़ा कर देता है और यह उन निवेशकों को आकर्षित करते हैं , जिनमें जोखिम सहने की क्षमता कम है। जो लोग खतरा लिए बगैर निवेश करना चाहते हैं और बाजार में बढ़त के दौरान उसका कुछ फायदा उठाना बेहतर समझते हैं , वे एमआईपी के जरिए निवेश कर सकते हैं।
क्या उम्मीद की जाए ?
बाजार में उथल-पुथल के इस दौर में ज्यादातर लोग इस बात को लेकर कुछ नहीं कह सकते कि इक्विटी बाजार किस राह पर आगे बढ़ेंगे। हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि इक्विटी आज आकर्षक स्तरों पर उपलब्ध है , लेकिन इसके बावजूद उसकी तरफ कदम बढ़ाना मुश्किल हो गया है। ऐसे हालात में एमआईपी इक्विटी में निवेश करने का बेहतर तरीका जान पड़ रहा है। ब्याज दरों में गिरावट के माहौल में एमआईपी आगे चलने पर बढ़िया रिटर्न दे सकते हैं। संभावित मुश्किलें बाजार में ऐसे कुछ ही उत्पाद हैं , जिन्होंने लगातार डिविडेंड दिया है। लगातार रिटर्न देने से जुड़े दबाव का मतलब है कि फंड मैनेजर लंबी अवधि का दांव नहीं खेल सकते। यही वजह है कि बाजार में तेजी आने के वक्त मुनाफा कमाने की संभावना सीमित हो जाती है। जब रिटर्न पर अनिश्चितता के बादल घिरे हों तो गारंटी से रिटर्न देने वाली डाकघर मासिक आमदनी स्कीम एमआईपी से बेहतर प्रदर्शन करती है। फिक्स्ड इनकम निवेश कर्ज और ब्याज दर से जुड़ा जोखिम रखता है। फंड मैनेजरों पर इक्विटी और फिक्स्ड इनकम , दोनों संपत्ति श्रेणियों में बेहतर प्रदर्शन करने का दबाव होता है जो वास्तव में अलग-अलग दिशा की ओर चलते हैं। सही दिशा में खड़ा होना बहुत जरूरी है। एक फंड को इक्विटी में कितना निवेश करने की इजाजत दी जाती है और इक्विटी में निवेश का सक्रिय प्रबंधन ही फंड की ओर से रिटर्न सुनिश्चित करता है। इक्विटी में निवेश पर 10 फीसदी की तय सीमा निवेशकों को आकर्षित कर सकती है क्योंकि बुरे वक्त में गिरावट भी सीमित रहेगी। लेकिन यही बात उस वक्त काफी दिक्कत देती है जब बाजार वापसी करते हैं। निवेशकों का एक ऐसा समूह है जो डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड और इनकम फंड में खरीदारी कर चीजों को साधारण रखते हैं जिसमें से प्रत्येक में निवेश का अनुपात निवेशक तय करता है और निवेशक ही बढ़िया रिटर्न का लुत्फ लेता है।

Wednesday, January 28, 2009

लंबे समय में फायदा देते हैं इक्विटी और प्रॉपर्टी

बाजार के मौजूदा हाल को देखते हुए भले ही इस समय 'लंबी अवधि' की सलाह निवेशकों को ज्यादा पसंद नहीं आएगी लेकिन ऐसे दौर में लंबे समय का निवेश ही अच्छा रहता है। चाहे शेयर हों या म्यूचुअल फंड, निवेशकों को बाजार की किसी भी स्थिति में अच्छा रिटर्न कमाने के लिए 3-5 वर्ष का नजरिया रखना चाहिए। बाजार में अस्थिरता के मद्देनजर यह अवधि अब और भी महत्वपूर्ण हो गई है। लंबी अवधि के निवेशकों के लिए इक्विटी ही एकमात्र विकल्प नहीं है। प्रॉपर्टी भी संपत्ति का एक ऐसा वर्ग है, जो न केवल लंबी अवधि में अच्छा मुनाफा देता है बल्कि तेजी का दौर आने पर लघु अवधि में भी इससे अच्छा रिटर्न कमाया जा सकता है। लेकिन इक्विटी से अलग इसमें तरलता ज्यादा नहीं होती। खासकर मंदी के समय में इस निवेश से बाहर निकलना काफी मुश्किल हो जाता है। चाहे इक्विटी हो या प्रॉपर्टी दोनों में लंबी अवधि में जोखिम कम हो जाता है और ये अधिक समय के लिए निवेश करने वालों के लिए अच्छे विकल्प हैं।
ऐसे निवेश के लिए सही प्रोडक्ट के चुनाव के साथ ही इन बातों पर भी ध्यान देना चाहिए:
व्यवस्थित निवेश
लंबी अवधि के निवेश की योजना का यह मूल सिद्धांत है। इक्विटी निवेशकों के लिए यह और भी जरूरी है क्योंकि इसमें अस्थिरता काफी अधिक होती है। तेजी के दौरान एकमुश्त निवेश सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) की तुलना में अच्छा रिटर्न दे सकता है लेकिन लंबे समय में जोखिम को कम करने और रिटर्न को बढ़ाने के लिए एसआईपी अच्छा रहता है। लेकिन यह तरीका प्रॉपर्टी में कारगर नहीं है क्योंकि आप प्रॉपर्टी में व्यवस्थित निवेश नहीं कर सकते।
डायवर्सिफिकेशन
कोई भी अकेला प्रोडक्ट आपकी संपत्ति में इजाफे के लिए पर्याप्त नहीं होता क्योंकि समय के साथ ही आपकी जोखिम उठाने की क्षमता और जरूरतें भी बदलती रहती हैं। इसे देखते हुए डायवर्सिफिकेशन बहुत जरूरी है। इससे आप जोखिम का बेहतर प्रबंधन भी कर सकते हैं। कुछ प्रोडक्ट्स का बास्केट चुनने के साथ ही इनमें संपत्ति के आवंटन की भी समय-समय पर समीक्षा करना न भूलें।
पोर्टफोलियो में बदलाव
बहुत से निवेशक अपने चुनिंदा शेयरों या निवेश के प्रोडक्ट्स से भावनात्मक लगाव रखने लगते हैं, जो ठीक नहीं है। अधिकतम रिटर्न हासिल करने के लिए नियमित अंतराल पर खरीदारी और बिकवाली करना जरूरी होता है। किसी प्रोडक्ट को हमेशा के लिए न त्यागें और न ही उससे पूरी जिंदगी अपने साथ बांधे रखें। उदाहरण के तौर पर बाजार की मौजूदा स्थिति में एक वर्ष पहले निवेश की शुरुआत करने वाले लोगों को नुकसान कम करने के लिए बिकवाली करने पर मजबूर होना पड़ सकता है। ऐसे लोगों को इक्विटी से मुंह नहीं फेरना चाहिए। बाजार सुधरने पर अपनी वित्तीय जरूरतों और जोखिम उठाने की क्षमता के अनुसार फिर से निवेश किया जा सकता है।

एचयूएफ खातों पर लें दोहरा लाभ

क्या आप उन लोगों में शुमार हैं, जिन्हें बेहतर एकाउंटिंग और कर बचाने के प्रावधानों के उद्देश्य के लिए अपनी पहचान को अलग कर देखने के तरीकों की तलाश रहती है? अगर ऐसा है तो आप उस वक्त से कुछ अंदाजा ले सकते हैं, जब लोग संयुक्त परिवारों में रहते थे और संयुक्त आमदनी बांटते थे। अगर आपने हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) खाता खोला है तो आय कर बचाने के लिए भी आप इसी अवधारणा से मदद ले सकते हैं। वास्तव में एचयूएफ अधिनियम के प्रावधानों के तहत आने वाले इस खाते से आप अपने भाई या पिता की लग्जरी कार चलाने का लुत्फ भी ले सकते हैं और अपने कारोबार में डेप्रीसिएशन क्लेम कर कुछ कर भी बचा सकते हैं। इसके लिए केवल एक बात की जरूरत होती है, इस अधिनियम के ब्योरे और टैक्स बचाने में उसके संबंध की जानकारी होना।
फ्लैक्सी-ऑप्शन
यूं तो एचयूएफ, हिंदू अविभाजित परिवार को कहा जाता है लेकिन इस टर्म के मायने व्यापक हैं। इसकी परिधि में केवल हिंदू परिवार ही नहीं आते बल्कि जैन, बौद्ध और सिख भी एचयूएफ बना सकते हैं। आम तौर पर एचयूएफ में कम से कम दो सदस्य शामिल होते हैं जिनमें से एक पुरुष होता है और यह एक ही पूर्वज से सीधे तौर पर जुड़े होने चाहिए। लेकिन आप छोटे विभाजित परिवार भी एक पुरुष सदस्य के साथ एचयूएफ बना सकते हैं। उच्चतम न्यायालय के मुताबिक, अंतिम पुरुष सदस्य के निधन के बाद ही एचयूएफ में केवल महिला सदस्य बच सकती है। एचयूएफ में आगे जाकर पत्नियां और परिवार की अविवाहित बेटियां भी शामिल हो सकती हैं। एचयूएफ में परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य को कर्ता (मुखिया) के नाम से जाना जाता है। को-पार्सनर पुरुष होते हैं, जबकि महिलाएं सदस्य होती हैं। आम तौर पर कर्ता एचयूएफ की संपत्ति का प्रबंधन करता है। को-पार्सनर के पास विभाजन का अधिकार होता है, जो आम तौर पर एचयूएफ की संपत्तियां बांटने पर होता है। विभाजन की सूरत में सदस्यों को केवल रखरखाव मिलता है। एचयूएफ की संपत्ति में सदस्यों/कर्ता की ओर से दिए गए तोहफे या वसीयत में मिली जायदाद शामिल होती है।
कर बचाने में मददगार
आय कर अधिनियम के मुताबिक एचयूएफ एक अलग इकाई होती है और उसे व्यक्ति विशेष की तरह वही कर छूट मिलती है। केपीएमजी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर विकास वसल ने कहा, 'यह स्लैब रेट और 80सी के तहत मिलने वाली कर छूट के योग्य होती है।' 1.5 लाख रुपए तक की आमदनी एचयूएफ के लिए कर मुक्त होती है और यह कारोबारी जायदाद, पूंजीगत लाभ या दूसरे स्त्रोतों से आने वाली आय का पैसा हो सकता है लेकिन इसमें तनख्वाह शामिल नहीं होती। एचयूएफ बनाकर कर छूट दो बार क्लेम की जा सकती है, ऐसे में कर बचाने के मोर्चे पर यह काफी फायदेमंद सौदा है। मसलन, अगर किसी व्यक्ति की सालाना आय 3 लाख रुपए है और उसने कर बचाने के लिए कोई निवेश नहीं किया है तो उसे 15,000 रुपए बतौर कर चुकाना होगा। लेकिन अगर यह व्यक्ति एचयूएफ का सदस्य है और कर के दायरे में आने वाली आधी रकम एचयूएफ के हाथों में जा रही है जबकि आधी उसके हाथ में तो उसे कोई टैक्स नहीं चुकाना होगा क्योंकि 1.5 लाख रुपए तक आमदनी पर कोई कर नहीं बनता।
दूसरे फायदे
पूर्वजों की वसीयत या फिर सदस्यों की भागीदारी से मिली कुछ संपत्ति के साथ एक बार एचयूएफ बन जाए, उसके बाद कर्ज लेकर और कारोबार के लिए जायदाद का इस्तेमाल कर उसकी संपत्ति का आधार बढ़ाया जा सकता है। एचयूएफ की कमाई में शामिल आमदनी पर केवल उसी के आधार पर टैक्स लगेगा और उसे किसी व्यक्ति विशेष की आय से जोड़कर नहीं देखा जाएगा। अगर कारोबार नाकाम होता है तो भी देनदारी सदस्यों की नहीं बनेगी। अर्न्स्ट एंड यंग में पार्टनर सोनू अय्यर के अनुसार एचयूएफ की देनदारी उसकी संपत्तियों तक सीमित है। इसलिए व्यक्तिगत क्षमता पर किसी भी सदस्य पर कोई देनदारी नहीं बनेगी।
याद रखिए
एचयूएफ का गठन पूरे परिवार की बेहतरी के लिए किया जाता है और इसलिए किसी भी कारोबारी फैसले पर सभी सदस्यों की राय शामिल होना जरूरी है। हर व्यक्ति को एचयूएफ की लंबी अवधि की संभावनाओं पर गौर करना चाहिए। आईट्रस्ट फाइनेंशियल एडवाइजर्स के को-फाउंडर धुव अग्रवाल ने कहा कि एचयूएफ कर छूट का फायदा देता है लेकिन आपको यह याद रखना चाहिए कि एचयूएफ के पूरी तरह विभाजित होने तक परिवार की आमदनी को एचयूएफ की आय के तौर पर आंका जाएगा। इसके अलावा हर सदस्य एचयूएफ की संपत्ति का मालिक होता है, ऐसे में उन्हें व्यक्तिगत हितों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

Wednesday, January 21, 2009

इक्विटी में निवेश के साइंस को समझें

जॉन मेनार्ड कीन्स ने कहा था, 'बाजार में क्या चल रहा है, उसका पता लगाने के बजाए ऐसे कारोबार की खोज करें जिसकी आपको समझ हो और उस पर ध्यान दें।' शेयरों में निवेश आर्ट से ज्यादा साइंस है। कुछ ऐसे जरूरी नियम हैं, जिनपर अमल करना सफलता के लिए जरूरी है। शेयर बाजार में पैसा लगाने से पहले आपको यह तय करना होगा कि कुल बचत में से कितना हिस्सा आप इसके नाम करना चाहते हैं। अगर आप उन निवेशकों में शामिल हैं, जो निवेश की समय-समय पर जांच नहीं कर सकते तो आपके लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड सही जरिया होगा। पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए आपको ये कदम काफी मदद कर सकते हैं:
निवेश की शैली चुनें
आप रक्षात्मक निवेशक हैं या आक्रामक? निवेश के लिए शेयर चुनने का आधार यही होगा। क्या आप स्थिर कारोबार और नियमित डिविडेंड देने वाली ब्लूचिप कंपनी में निवेश करना चाहते हैं या ऐसी मिड-कैप कंपनी की खोज में हैं, जो आने वाले समय में ब्लूचिप बन सकती है? क्या आप ग्रोथ कंपनी की तलाश में हैं या बेहद सस्ते (यानी वैल्यू) शेयरों में पैसा लगाना चाहते हैं? अपना नजरिया पहचान कर पसंदीदा कंपनियों में निवेश के लिए कदम उठाएं।
वैल्यू देखें
पोर्टफोलियो बनाने के लिए टिप्स या सुनी सुनाई बातों के आधार पर निवेश न करें। जब आप किसी कंपनी में निवेश का फैसला करते हैं तो आपको उसमें वैल्यू नजर आनी चाहिए। शुरुआत के लिए कंपनी का कारोबार, प्रबंधन की क्षमता, आमदनी, मुनाफा और विकास की संभावनाओं को समझें। इसके साथ ही कंपनी जिस उद्योग या सेक्टर में काम कर रही है, उसकी संभावनाओं को देखें और अन्य प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से उसके प्रदर्शन की तुलना करें। कंपनी की जानकारी के लिए रिसर्च रिपोर्टों और बैलेंस शीट को पढ़ें। शेयर की कीमत और उसकी वैल्यू के बीच अंतर को समझना जरूरी है। आप वैल्यू के आधार पर शेयर खरीद रहे हैं और यही आपके लिए महत्वपूर्ण है।
डायवर्सिफाई करें
पुरानी कहावत है कि अपना पूरा धन एक ही जगह पर नहीं रखना चाहिए और यही बात इक्विटी निवेश पर भी लागू होती है। ऐसा हो सकता है कि किसी विशेष सेक्टर को आप काफी पसंद करते हों, लेकिन डायवर्सिफाई करना हमेशा फायदेमंद रहता है। कई सेक्टरों के कारोबारी माहौल और संभावनाओं का अध्ययन करें और जो सेक्टर आपको ठीक लगें, उनकी बेहतर कंपनियों में निवेश करें।
लंबी अवधि का निवेश करें
वॉरेन बफेट का कहना है, 'किसी चीज को अगर आप अपने पास 10 साल तक रखकर खुश नहीं हैं तो उसे 10 मिनट के लिए भी न रखें।' जब आप शेयरों में कम अवधि का निवेश करेंगे तो उनके दाम बाजार की चाल के अनुसार चलेंगे। दाम चाहें ऊपर जाएं या नीचे, कंपनी में तब तक निवेश बरकरार रखें, जब तक उसके फंडामेंटल सही हैं। अगर कारोबार अच्छा चलेगा तो शेयर का दाम भी इसी के अनुसार होगा। अफवाहों या निराशा के आधार पर फैसले लेना ठीक नहीं होता। याद रखें कि निवेश में भावनाओं की कोई अहमियत नहीं होती।
निवेश पर निगाह रखें
शेयरों का पोर्टफोलियो तैयार करने के बाद उस पर निगाह रखना और कंपनियों की आमदनी, मुनाफे और विकास की योजनाओं का अध्ययन करना महत्वपूर्ण होता है। ऐसा हो सकता है कि शेयरों के चुनाव में आप से कोई गलती हुई हो। इसे स्वीकार कर पोर्टफोलियो में बदलाव करना समझदारी होगी। खराब निवेश से बाहर निकलने में कोताही न बरतें। इसमें बने रहने पर आप किसी अच्छे अवसर को गंवा सकते हैं। इक्विटी बड़े जोखिम वाला निवेश हो सकता है लेकिन वास्तव में जोखिम तब होता है, जब आप यह नहीं जानते कि किस दिशा में बढ़ रहे हैं। अगर आप संभावना वाले शेयरों के साथ अपना पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए समय और प्रयास करेंगे तो इसका इनाम आपको जरूर मिलेगा।

Tuesday, January 20, 2009

सीनियर सिटीजंस के लिए नियमित आय वाले प्रोडक्ट बेहतर

निवेश के लिए सही प्रोडक्ट को चुनना बहुत से निवेशकों के लिए काफी मुश्किल होता है। सीमित रकम रखने वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती होती है। पेंशन प्लान से आमदनी के उनके नियमित स्रोत की जरूरत पूरी हो जाती है। लेकिन जिन वरिष्ठ नागरिकों के पास आय का यह स्रोत नहीं होता, उनका जीवन काफी मुश्किल हो जाता है। उन्हें जोखिम और रिटर्न के बीच संतुलन बनाने की जरूरत होती है। ऐसे लोगों के लिए जोखिम जितना कम हो उतना ही अच्छा होता है। वरिष्ठ नागरिकों को तभी जोखिम लेना चाहिए, जब उनके पास नकदी अधिक हो। उन्हें अपनी मासिक आय की जरूरतों को फिक्स्ड रिटर्न वाले प्रोडक्ट के जरिए पूरा करना चाहिए। ऐसे लोगों के लिए नियमित आय और कम जोखिम वाले निवेश के कुछ विकल्प नीचे दिए जा रहे हैं:
वरिष्ठ नागरिकों के लिए बचत योजना:
इसमें नौ फीसदी के निश्चित रिटर्न की पेशकश की जाती है। लेकिन इसमें 15 लाख रुपए से अधिक का निवेश नहीं किया जा सकता। इस तरह निवेशक सालाना 1.35 लाख रुपए से अधिक मुनाफा हासिल नहीं कर सकता। इस योजना में धन लगाने पर अधिकतम मासिक रिटर्न लगभग 11,000 रुपए होगा।
डाकघर मासिक आय योजना:
वरिष्ठ नागरिकों के बीच यह योजना काफी लोकप्रिय है, लेकिन हाल ही में इसमें ब्याज दर घटकर आठ फीसदी हो गई है। बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट में इससे अधिक रिटर्न की पेशकश की जा रही है। इसे देखते हुए आप अगर चाहें तो अपनी रकम इस योजना से निकालकर किसी अन्य बेहतर विकल्प में लगा सकते हैं।
मंथली इनकम प्लान (एमआईपी):
म्यूचुअल फंड भी एमआईपी की पेशकश करते हैं, लेकिन इसमें कुछ जोखिम भी जुड़ा होता है क्योंकि फंड का कुछ हिस्सा इक्विटी में भी निवेश किया जाता है। इक्विटी में आवंटन का अनुपात बदलता रहता है, इसलिए निवेशक अपनी सुविधा के अनुसार इसका चुनाव कर सकते हैं। उदाहरण के लिए रिटायरमेंट के शुरुआती दौर में यह 20 फीसदी हो सकता है, बाद में इसे कम किया जा सकता है। म्यूचुअल फंड की एमआईपी स्कीम में जहां ऊंचे रिटर्न और पूंजी में इजाफे का अवसर मिलता है, वहीं इसमें नुकसान का जोखिम भी रहता है। एमआईपी में वही रकम लगानी चाहिए, जो आपकी मासिक जरूरतों को पूरा करने के बाद बचती हो।
फिक्स्ड और बैंक डिपॉजिट:
वरिष्ठ नागरिक पूंजी की सुरक्षा के मद्देनजर इन विकल्पों में धन लगाना काफी पसंद करते हैं। लेकिन ब्याज पर कर लगने की वजह से इनमें निवेश से पहले सोच विचार कर लें। वरिष्ठ नागरिकों के लिए जहां ब्याज दर अधिक होती है, वहीं उनके लिए आयकर की सीमा भी ज्यादा होती है। निवेशक इसी के अनुसार एफडी में धन लगा सकते हैं।

Monday, January 19, 2009

मेडिकल इंश्योरेंस पर ले सकते हैं टैक्स का लाभ

सालाना आमदनी पर कर बचाने के लिए एक लाख रुपए की बचत की सीमा के बारे में सभी जानते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि कर बचाने के लिए आयकर कानून की धारा 80 डी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। विकास ने अपने पूरे परिवार के लिए मेडिकल इंश्योरेंस ली है। वह प्रतिवर्ष खुद के लिए 9,000 रुपए और अपनी पत्नी के लिए 8,000 रुपए प्रीमियम का भुगतान करते हैं। इसके अलावा वह अपने पिता के लिए 7,000 रुपए और चाचा के स्वास्थ्य बीमा के लिए 6,000 रुपए सालाना का प्रीमियम भरते हैं। क्या वह इस पर कर कटौती का लाभ ले सकते हैं ? मेडिकल इंश्योरेंस आप खुद के साथ - साथ अपने परिवार के लिए भी ले सकते हैं और धारा 80 डी के तहत प्रीमियम की राशि आय में से कटौती के योग्य होती है। यह कटौती प्रीमियम की राशि या 15,000 रुपए ( जो भी कम हो ) के लिए मिलती है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह प्रीमियम की राशि या 20,000 रुपए ( जो भी कम हो ) है। कटौती उसी स्थिति में उपलब्ध होती है जब प्रीमियम का भुगतान चेक या क्रेडिट कार्ड के जरिए किया जाए। नकद भुगतान पर यह लाभ नहीं मिलता। करदाता खुद के लिए , पति या पत्नी के लिए , आश्रित माता - पिता या आश्रित बच्चों के लिए ली जाने वाली मेडिकल इंश्योरेंस पर ही कर लाभ ले सकता है। इसके लिए भी जरूरी है कि उस मेडिकल इंश्योरेंस स्कीम को जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन या बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण ( इरडा ) से मंजूरी प्राप्त हो। अगर आप अपने परिवार के साथ ही 65 वर्ष से अधिक आयु वाले माता - पिता के लिए इंश्योरेंस लेते हैं तो आप इस पर 35,000 रुपए तक की कर कटौती ले सकते हैं। विकास के मामले में कर कटौती इस प्रकार होगी : खुद के बीमा के लिए प्रीमियम का भुगतान : 9 , 000 रुपए पत्नी के लिए प्रीमियम का भुगतान : 8 , 000 रुपए कुल प्रीमियम ( 9 , 000 रुपए जमा 8,000 रुपए ): 17 , 000 रुपए। नियम के अनुसार विकास बीमा के प्रीमियम की राशि या 15,000 रुपए में से जो भी कम राशि हो , उस पर कर कटौती ले सकते हैं। विकास के लिए यह राशि 15,000 रुपए की होगी। विकास अपने पिता की मेडिकल इंश्योरेंस के लिए 7,000 रुपए के प्रीमियम पर भी कर कटौती का लाभ ले सकते हैं। इस तरह उनकी कुल कटौती ( 15 , 000 रुपए जमा 7,000 रुपए ) 22 , 000 रुपए की होगी। विकास ने अपने चाचा के बीमा के लिए जिस प्रीमियम का भुगतान किया है , उस पर उन्हें कोई कर लाभ नहीं मिलेगा। अगर पति और पत्नी दोनों नौकरीपेशा हैं तो वे हेल्थ इंश्योरेंस के वार्षिक प्रीमियम पर अलग - अलग 15,000 रुपए तक की कर कटौती ले सकते हैं। अगर दोनों मिलकर 20,000 रुपए का प्रीमियम भरते हैं तो उनमें से एक 15,000 रुपए और दूसरा 5,000 रुपए की कटौती का दावा कर सकता है। आज के दौर में चिकित्सा और अस्पताल का खर्च काफी महंगा हो गया है , विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए इसका भार सहना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में करदाता मेडिक्लेम के जरिए अपने परिवार के लिए स्वास्थ्य बीमा लेकर सुरक्षा के साथ ही धारा 80 डी के तहत कर लाभ ले सकते हैं।

Thursday, January 15, 2009

The Power of Compounding with Best Growth Choose SIP in Mutual Fund


Note: Just Click the above Image to see in full view visible.

Contact For SIP:
Jinendra Kumar Porwal
1, Gokul Nagar Commercial, Near Bohra Ganesh Ji Temple,
Udaipur (Raj.) -313001 (Rajasthan)
Phone: 0294-2471358,2470476 & 3201157
Mobile: 9351445025,9829353219 & 9460700906

Wednesday, January 14, 2009

इनकम फंड, FD में करें कम समय का निवेश

बाजार के सेंटीमेंट सुधारने के लिए हाल ही में कुछ राहत पैकेज जारी किए गए हैं। बैंकों ने भी इनके हिसाब से कदम उठाना शुरू कर दिया है। लगभग एक महीना पहले बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती की घोषणा करनी शुरू कर दी थी, और कम रकम वाले होम लोन पर ब्याज दर सिंगल डिजिट तक पहुंच गई है। हालांकि, बेचमार्क प्रधान उधारी दर (पीएलआर) अभी भी 13-14 फीसदी के दायरे में है, लेकिन पिछली तिमाही की तुलना में स्थिति काफी बेहतर है, जब कंपनियों के सामने नकदी का संकट हो गया था। नकदी के संकट का असर भी काफी गहरा था और बड़ी कंपनियों के साथ ही छोटी और मझोली कंपनियों पर भी इसकी मार पड़ रही थी। घरेलू शेयर बाजार पर अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम का ज्यादा असर नहीं पड़ा है और सेंसेक्स 9,500-10,000 के दायरे में कारोबार कर रहा है। फिर भी लंबे समय के लिए स्थिति अधिक सुविधाजनक नहीं है। हाल फिलहाल में शेयर बाजार में आई अधिकतर तेजी का कारण शॉर्ट कवरिंग था या फिर सौदा निपटाने के पहले की तेजी थी। सूचकांकों के ऊपर चढ़ने के पीछे शॉर्ट-टर्म प्रॉफिट पर आंख गड़ाए विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) थे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि घरेलू संस्थाएं इस खरीदारी से बाहर थी और सिर्फ तमाशा देख रही थी। इन बातों के मद्देनजर यह जानना रोचक होगा कि सरकारी राहत पैकेजों का क्या असर पड़ रहा है। बैंकिंग सेक्टर में बढ़ते आकर्षण का कारण कोर ऑपरेशन से अधिक ट्रेजरी प्रॉफिट से हुई आमदनी है। प्राइवेट बैंकों की तुलना में सरकारी बैंकों में अधिक निवेश का कारण यह है कि सरकारी बैंकों के पास कारोबारी के लिए नकदी के बड़े भंडार मौजूद हैं। इसके साथ ही सरकारी बैंक पर्सनल लोन और तेजी से बढ़ने वाले सेक्टरों को लोन देने में भी काफी सावधानी बरतते हैं क्योंकि इनसे जिनमें इससे आने वाले समय में उनके डूबे हुए कर्ज (एनपीए) बढ़ सकते हैं। व्यक्तिगत निवेशक भी ऐसी ही रणनीति अपना सकते हैं। उन्हें निवेश करने से पहले काफी सोच विचार कर लेना चाहिए। एक साल के लिए निवेश करने वालों के लिए इनकम फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) बेहतर साबित हो सकते हैं। एफडी के मोर्चे पर अच्छे रिटर्न की संभावनाएं अधिक हैं क्योंकि कई निर्माण कंपनियां अपनी फंड की जरूरत को पूरा करने के लिए इस बाजार का इस्तेमाल कर सकती हैं। इनकम फंड के रिटर्न में कमी आ सकती है क्योंकि दरों में दो बार कटौती हो चुकी है। अच्छी खबर यह है कि शॉर्ट टर्म में बेहतर उम्मीद की जा सकती है और इसे देखते हुए आम निवेशक के पोर्टफोलियो के लिए गिल्ट अभी भी एक बेहतर विकल्प है। म्यूचुअल फंड मैनेजरों के लिए अच्छी खबर यह है कि बैंकों पर लेंडिंग पोर्टफोलियो का आकार बढ़ाने के लिए दबाव बढ़ रहा है। अधिकतर म्यूचुअल फंड की समस्या गिल्ट की आपूर्ति की थी, क्योंकि बहुत से बैंक इस पर नजर गड़ाए हुए हैं। यदि बैंकों पर अपने सीडी (क्रेडिट-डिपॉजिट) अनुपात में सुधार करने का दबाव बढ़ता है, तो इससे आपूर्ति में सुधार होगा, हालांकि यह यील्ड की गति को भी उलट सकता है। बैंकों पर कर्ज देने के लिए पड़ने वाला दबाव निश्चित रूप से कॉरपोरेट सेक्टर के लिए अच्छी खबर होगी और छोटे-मझोले उद्योगों के लिए तो निश्चित ही यह बेहतर होगा। बड़ी कंपनियों की तरह वे जनता से पैसा नहीं जुटा सकते और पूरी तरह आंतरिक स्त्रोतों और बैंक फाइनेंस पर ही निर्भर होते हैं। हालांकि, इन कंपनियों तक फंड पहुंचने के लिए अभी अगली तिमाही का इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन अधिक शिकायत नहीं होगी, क्योंकि लंबे समय के बाद पहली बार साल की शुरुआत में उम्मीदों का स्तर नीचे की ओर है। राहत पैकेजों का सकारात्मक असर इक्विटी बाजार के लिए भी फायदेमंद होगा। कर्ज मिलने से कंपनियां अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ा सकेंगी और उनके कारोबार में भी इजाफा होगा। इससे शेयर बाजार की सेहत सुधरेगी और पिछले काफी समय से मंदी की मार झेल रहे सेंसेक्स में फिर से रौनक लौट सकती है। इससे सबसे बड़ा फायदा रियल एस्टेट सेक्टर को मिलने की उम्मीद है। लगभग एक साल से इस सेक्टर में मांग लगातार गिर रही है और बिक्री न होने से डेवलपर नई परियोजनाओं को शुरु करने के बजाए पुरानी परियोजनाओँ में ही फंसकर रह गए हैं।

सीखें शॉर्ट टर्म इनवेस्टिंग के गुर

इन दिनों शेयर बाजारों में गजब की उथल-पुथल देखी जा रही है। घरेलू और वैश्विक आर्थिक मोर्चे पर कई घटनाक्रम देखने को मिल रहे हैं। मसलन, साल के अंत तक उपभोक्ता बिक्री से जुड़े आंकड़े, सरकार की ओर से घोषित आर्थिक राहत पैकेज और भारतीय रिजर्व बैंक का अहम दरों में कटौती करने का एलान इनमें से प्रमुख हैं। ये घटनाक्रम बाजारों में उठापटक की मुख्य वजह रहे हैं। खबरों का आना और बाजार में उथल-पुथल आने वाले कुछ सप्ताह में भी जारी रहेगी क्योंकि दिसंबर तिमाही के नतीजे शुरू हो चुके हैं। कॉरपोरेट नतीजों के अलावा निवेशकों को बराक ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति पद संभालने के बाद एक और राहत पैकेज के एलान की उम्मीद है। इसके अलावा सरकार पेट्रोल-डीजल की कीमतों में और कमी कर सकती है। ऐसे में शॉर्ट टर्म के लिए पैसा लगाने वालों के पास मुनाफा कमाने के मौके होंगे।
बाजार तक पहुंच
शॉर्ट टर्म ट्रेडरों के लिए मार्केट टर्मिनल तक नियमित और निर्बाध एक्सेस होना काफी अहम है। यह बढि़या ऑनलाइन पोर्टल या मजबूत एक्सेस रखने वाला स्टॉक ब्रोकर हो सकता है। निवेश चक्र की अवधि छोटी होती है, इसलिए शेयरों में पैसा लगाने और उससे बाहर निकलने के लिए सही वक्त का अंदाजा लगाना और ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।
रहिए बाजार की खबरों पर नजर
छोटी मियाद के लिए पैसा लगाने वाले निवेशकों को नियमित आधार पर बाजार की खबरों को लेकर काफी सतर्क रहना चाहिए। बाजार के मौजूदा हालात में एक ही दिन में कई बार खबरों से जुड़े रहने की जरूरत पड़ सकती है। अतीत में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें दिन के दौरान खबरों और घोषणाओं का बाजार पर खासा असर हुआ है। किसी भी बुरी खबर पर बाजार तेज प्रतिक्रिया देता है।
मुनाफा वसूली और सौदा काटना
शॉर्ट टर्म ट्रेडरों को बाजार की चाल पर करीबी निगाह रखनी चाहिए और ओपन पोजीशन के लिए 'सौदा काटने' और 'मुनाफा वसूली' के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। साथ ही बाजार की चाल के मुताबिक 'स्टॉप लॉस' और 'बुक प्रॉफिट' के स्तरों पर दोबारा गौर किया जाना जरूरी है। बाजार में काफी उथल-पुथल है और रात भर भी ओपन पोजीशन रखना खतरे से खाली नहीं है। छोटी अवधि के निवेशकों को हमेशा मुनाफे के साथ निवेश से बाहर निकलने के मौके बढ़ाने पर गौर करना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप गैर-जरूरी निवेश में बने रहें। निवेश में अटके रहने से बेहतर है, गलत पोजीशन पर कुछ नुकसान उठाकर बाहर निकलना और अगले मौके का इंतजार करना। जानकारों का कहना है कि अगर कोई निवेशक 10 में से 7 दफा औसतन मुनाफे के साथ बाहर निकलता है तो बाजार में प्रदर्शन को लेकर उसे संतुष्ट रहना चाहिए।
ब्रोकरेज खर्च
कई बार छोटी अवधि के निवेश पर ब्रोकरेज का खर्च छोटे निवेशकों के मुनाफा बनाने की क्षमता पर चोट करता है। कम पूंजी और क्षमता रखने वाले निवेशकों को शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग नहीं करनी चाहिए। छोटे लॉट की वजह से उन्हें फीसदी में ज्यादा ब्रोकरेज शुल्क चुकाना होगा और ट्रेडिंग में मुनाफा होने के बाद बावजूद समूचा फायदा यही ब्रोकरेज खर्च चट कर जाएगा। दूसरी तरफ अगर नुकसान होता है तो यही शुल्क उसे और बढ़ा देता है।
छोटे निवेशक करें परहेज
शॉर्ट टर्म टेडिंग के लिए अलग मानसिकता की जरूरत होती है। छोटे निवेशकों को शॉर्ट टर्म इनवेस्टिंग से बचने की सलाह दी जाती है, खास तौर से तब जब उसमें स्मॉल कैप या कम जानी जाने वाली कंपनियां शामिल हों। ऐसे निवेशकों को इसे नजरअंदाज कर लंबी अवधि के नजरिए के साथ बढि़या पोर्टफोलियो बनाने पर गौर करना चाहिए। जो निवेशक जोखिम नहीं लेना चाहते, उन्हें इक्विटी म्यूचुअल फंड रूट के जरिए बाजारों में निवेश करना चाहिए।

Saturday, January 10, 2009

Thought Of The Day

Nobody can think straight who does not work. Idleness wraps the mind - Henry Ford

Thursday, January 8, 2009

Are you optimistic and opportunistic?

There are two types of people in this world. The first are the ones who are always pessimistic about each and everything. They hate life and always think the worst is going to happen. No matter what you want to do, they will tell you “That can’t be done.” and “That is impossible.” I’m sure you must have encountered a lot of such people.

Especially in times like now, these people start speaking even more. They keep talking about how bad the world economy is and how millions of people will lose their jobs. They keep talking about how the world is headed for doom and how everything will collapse. Lehman Brothers went bankrupt, Bear Stearns went bust, Real estate is in trouble – so most probably you are going to be in big trouble too according to these ‘pessimists.’

Unfortunately most people are this way, and even if they aren’t they let pessimists tell them what is possible and what is impossible. These are challenging times, but every challenge also brings in an opportunity in disguise.

On the other hand is a very small minority who are optimists and opportunists. These people look at the global economic crash, economic slowdown and recession as one of the greatest opportunities in history. Very few people actually know that 1929 was in fact one of the best years for a small minority. The crash of 2008 and 2009 present such people another great opportunity. This opportunity isn’t only about buying cheap stocks and cheap assets, but also about new ideas.

I see the US dollar crashing as it is the most oversupplied commodity on the planet, and we can certainly see many more problems in America. The old world has collapsed, but this also means that there is a great opportunity for a new world order to be established.

It means that we need new entrepreneurs, investors and businesses to take the place of the old. We, in India have this opportunity in front of us.
People who are ignorant and pessimistic always miss out on opportunities. Simply watching the index isn’t what a smart investor does. For instance a stock like HPCL, was at around Rs 180 when the Sensex was at 14,000 levels. However, after the market fell by over 40% to 9,300 the stock was at Rs 280.

This means even though the Sensex fell by over 40%, the stock went up by over 50%. Just a few years ago there was a time when Bank of India could be bought for barely Rs 11, even now after the correction; it is priced at Rs 280. Most people forget that immense amount of wealth has been created by a small minority, who invested in the previous bear market. What I am saying isn’t just something out of thin air, but something I have personally experienced and benefited from. There are many such instances on how, times like now offer lots of potential and opportunities.

People who create wealth are people who look for solutions every time there is a problem. Sunil Mittal, of Bharti Airtel provided the solution to call from a mobile for Rs 0.50 paise per minute. Before that, it cost Rs 32 a minute. He brought about a revolution which empowered millions of Indians and at the same time created tremendous amount of wealth for him.

Dhirubhai Ambani, Ratan Tata, Bill Gates, have provided a solution or an improved way of doing things.

You can’t be a successful at anything if you aren’t optimistic and opportunistic! This is something I have always believed and experienced throughout my life. In fact, some of my best successes have been a result of crisis, problems and challenges.

It is hard at first, but it is also brings out the best in us. Don’t let temporary losses, hardships, failure and challenges break your spirit, ambition and desire!

Happy wealth creation and have a great 2009!
-Yogesh Chabria

Start Early, Invest Regularly, Wins the Race

Just Click the above image to see in visible format.

Tuesday, January 6, 2009

टैक्स बचाने के तरीके


टैक्स बचाने के तरीके
कर चुकाने से बचा नहीं जा सकता है और इसका भुगतान करना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है। क्यों न नए साल पर हम उपलब्ध कर छूट की जानकारी बटोरने के लिए मेहनत करने और उनका फायदा उठाने का प्रण लें। इस तरह आप मेहनत की गाढ़ी कमाई बचा सकते हैं और अतिरिक्त कर का भुगतान करने से बच सकते हैं। हर व्यक्ति कर छूट क्लेम करना चाहता है और इसमें कोई संदेह नहीं है कि कर चुकाते वक्त पैसा बचाना सभी की वित्तीय प्राथमिकताओं की सूची में शीर्ष पर होता है। लेकिन आय कर कानून की जटिलताओं पर गौर करने के बाद कितने ऐसे लोग होंगे जो इन छूट के बारे में वास्तव में जानकारी रखते हों या उनका पूरा फायदा उठाते हों। निश्चित रूप से आप इनमें से कुछ को नजरअंदाज कर बैठे हों। आइए, कर छूट का फायदा देने वाले ऐसे कुछ बिंदुओं पर गौर करें जिन्हें आम तौर पर नजरअंदाज किया जाता है...


होम स्वीट होम
आपका मकान केवल सिर ढकने के लिए छत ही नहीं देता बल्कि कर से बचने का रास्ता भी मुहैया कराता है। अगर आप किराए के अपार्टमेंट में रहते हैं और वेतनभोगी हैं तो हाउस रेंट एलाउंस क्लेम कर सकते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो आप कुल आमदनी के 10 फीसदी से ज्यादा बतौर किराए चुकाने पर कर छूट क्लेम कर सकते हैं। हालांकि इस मामले में कुछ शर्तें होती हैं। अगर आप अपने मकान में रहते हैं तो किसी भी वित्तीय संस्थान से मिलने वाले लोन पर चुकाए गए ब्याज पर कर छूट ले सकते हैं। कई लोग इस रकम को केवल 150000 रुपए तक सीमित मान लेते हैं। हालांकि यह ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसा प्रॉपटीर् के निजी इस्तेमाल के मामले में होता है और जहां मामला प्रॉपर्टी किराए पर देने की बात होती है, उसमें ऐसा नहीं होता।


परोपकार का टैक्स बचत में फायदा
दान पर भी कर छूट मिलती है। अगर हम उन्हें चेक के माध्यम ये भुगतान करते हैं तो ज्यादा लंबे वक्त तक याद रखते हैं लेकिन अगर नकद दान देते हैं तो कुछ ही वक्त में भुला बैठते हैं। यह जरूरी है कि धर्मार्थ दान देते वक्त अपनी भी मदद की जाए। कहा भी जाता है कि चैरिटी सबसे पहले घर से शुरू होती है। हमें सिर्फ इतना करना है कि कर छूट के तहत आने वाले दान में दिए गए पैसे की रसीद भर चाहिए। और हमें वह जगह नहीं भूलनी चाहिए जहां ऐसी रसीद रखी जाती हैं।


एजुकेशन लोन पर टैक्स छूट
आज कर शिक्षा का खर्च आसमान छू रहा है जिससे वित्तीय बोझ भी बढ़ रहा है। इस सिलसिले में आप अपने पुत्र या पत्नी की उच्च शिक्षा के लिए लोन ले सकते हैं और ऐसे लोन पर दिया जाने वाला ब्याज का भुगतान आपको कर छूट उपलब्ध कराएगा।

सेहत ही धन है
मेडिकल इंश्योरेंस पर भी कर छूट मिलती है। हालांकि यह 15000 रुपए जैसी छोटी रकम पर मिलती है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना सही नहीं है। मां-बाप के लिए मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम पर 15000 रुपए की अतिरिक्त छूट मिलती है। इसके अलावा अगर आपने किसी ऐसे व्यक्ति के मेडिकल खर्च का बोझ उठाया है, जो आप पर निर्भर है तो आपको 40000 से लेकर 75000 रुपए तक की रकम पर छूट मिल सकती है।दूसरे टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्सजीवन बीमा प्रीमियम, डेफर्ड एन्युटी, प्रॉविडेंट फंड में जमा पैसे, ट्यूशन फीस, हाउस लोन कर छूट के एक लाख रुपए के दायरे में आते हैं।

Sunday, January 4, 2009

कैसे करें टैक्स कैलकुलेशन

टैक्स निकालने के लिए सबसे पहले अपनी ग्रॉस टोटल इनकम पता करें। इसमें 1 अप्रैल 2008 से 31 मार्च 2009 तक की कुल सैलरी, हाउस प्रॉपर्टी से हुई आमदनी, बिज़नस या प्रफेशन से हुई आमदनी, कैपिटल गेंस और अन्य स्त्रोतों से आमदनी (इनकम फ्रॉम अदर सोर्सेज) को जोड़ा जाता है। 2. ग्रॉस टोटल इनकम निकालने के बाद शुरू होता है डिडक्शन का काम। चैप्टर 6-ए के अंतर्गत धारा 80 सी से लेकर 80 यू के तहत जो भी रकमें हों, उन्हें ग्रॉस टोटल इनकम में से घटाया जाता है। इस तरह हमें मिलती है नेट टैक्सेबल इनकम। 3. नेट टैक्सेबल इनकम पर ऊपर टेबल में दिए गए स्लैब के आधार पर टैक्स निकाल लिया जाता है और हमें टोटल टैक्स मिल जाता है। डिडक्शन के आइटम्स बच्चों की फीस और पीएफ में जा रही रकम ऐसे आइटम्स हैं, जिनका फायदा टैक्स बचाने में जाने-अनजाने होता ही है। सबसे पहले इन दोनों को मिलाकर जो रकम बन रही है, उसके हिसाब से टैक्स निकालकर देखें। अग भी टैक्स देनदारी बनती है तो आपको इन्वेस्ट करना होगा। इन्वेस्ट करने के लिए आपके सामने जो ऑप्शन हैं, उनके बारे में यहां जानकारी दे रहे हैं। इसके आधार पर अपनी जरूरत के हिसाब से आप बाकी रकम को इन्वेस्ट कर टैक्स बचा सकते हैं। 80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी : इनके तहत नीचे दिए गए आइटम्स में किए गए इनवेस्टमेंट पर डिडक्शन मिलता है, लेकिन इसकी सीमा एक लाख रुपये है यानी अगर एक लाख से ऊपर का इन्वेस्टमेंट हुआ है तो भी डिडक्शन एक लाख का ही मिलेगा। नीचे दिए गए आइटम्स की रकमों को सैलरी में से घटा सकते हैं। ट्यूशन फीस : अपने किन्हीं दो बच्चों की पढ़ाई के खर्च पर आप छूट ले सकते हैं, बच्चों की उम्र कुछ भी हो। अधिकतम सीमा एक लाख रुपये है। हां, उनकी एजुकेशन फुल टाइम होनी चाहिए। स्कूल, कॉलिज, यूनिवर्सिटी लेवल पर। प्राइवेट ट्यूशन या कोचिंग आदि में दी गई फीस इसमें नहीं चलेगी। साथ ही किताबों पर होने वाले खर्च, दाखिले के वक्त दिया गया डोनेशन, कैपिटेशन फीस, एडमिशन फीस, एनुअल चार्जेज (वार्षिक शुल्क) डिवेलपमेंट चार्ज आदि भी इसमें शामिल नहीं कर सकते। ईपीएफ या जीपीएफ : अगर आप नौकरीपेशा हैं तो आपका दफ्तर हर महीने पीएफ आपकी तनख्वाह में से काटता है। पीएफ अगर प्राइवेट कंपनी काटे तो ईपीएफ कहते हैं और सरकारी दफ्तर काटे तो जीपीएफ। सैलरी से साल भर काटे गए पीएफ की रकम को आप अपनी टैक्सेबल इनकम से घटाकर इनकम टैक्स में छूट पा सकते हैं। पीपीएफ : लंबे समय के लिए इन्वेस्ट करने वालों के लिए पीपीएफ बेस्ट है। यह 15 साल की योजना है, जिसमें एक साल में अधिकतम 70 हजार रुपये की रकम जमा कराई जा सकती है। अगर इससे ज्यादा जमा कराते हैं, तो उसे बिना किसी ब्याज के वापस किया जाएगा और टैक्स छूट भी नहीं मिलेगी। एसबीआई, उसके सब्सिडियरी बैंकों, दूसरे सरकारी बैंकों या पोस्ट ऑफिस में पीपीएफ अकाउंट खुलवा सकते हैं। पीपीएफ के फायदे : इससे मिले ब्याज पर टैक्स नहीं लगता। पीपीएफ को अदालत के फैसले के तहत कुर्क नहीं किया जा सकता। यूं तो यह 15 साल के लिए होता है लेकिन जरूरत पड़ने पर छह साल बाद पैसा निकाला जा सकता है। देश की बेहद लोकप्रिय स्कीम है जिसमें करोड़ों लोगों ने पैसा लगाया हुआ है। पीपीएफ के नुकसान : बच्चों की शादी या घरेलू खर्च के लिए पैसे की जल्दी जरूरत हो तो इसकी 15 साल की अवधि अखरती है। छह साल के बाद भी पूरा पैसा नहीं निकाल सकते। स्कीम में लिक्विडिटी नहीं है यानी बैंकों की तरह जब चाहे तब पैसा निकाल पाना संभव नहीं है। जीवन बीमा पॉलिसी : अगर आपने अपने, अपने जीवनसाथी या अपने बच्चों के नाम पहले से ही जीवन बीमा पॉलिसी ली हुई है तो साल भर में आप जो भी प्रीमियम चुकाते हैं, उसे अपनी कुल टैक्सेबल इनकम में से घटा सकते हैं। अगर अब तक ऐसी पॉलिसी नहीं ली है तो जरूर ले लें। हां, टैक्स में छूट के लिए प्रीमियम की रकम बीमा राशि (सम एश्योर्ड) के 20 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। कुछ पॉलिसी ऐसी हैं जिनमें तीन साल में रिटर्न मिलने लगता है। एलआईसी की 'जीवन आस्था' पॉलिसी में दो साल बाद रिटर्न मिलने लगता है। हाउसिंग लोन का रीपेमेंट (प्रिंसिपल) : हाउसिंग लोन के रीपेमेंट में जो पैसा जमा किया जाता है, उसमें कुछ रकम ब्याज की होती है और कुछ रकम प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर। इसमें से प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर साल भर में अदा की जा रही रकम को भी आप अपनी टैक्सेबल इनकम से घटा सकते हैं। एनएससी : पोस्ट ऑफिसों द्वारा जारी एनएससी ले सकते हैं। ये 100 रुपये, 500 रुपये, एक हजार रुपये, पांच हजार रुपये और 10 हजार रुपये के मूल्य वर्ग में जारी किए जाते हैं। साल के दौरान मिला ब्याज दोबारा इन्वेस्ट हुआ माना जाता है और धारा 80 सी के तहत कटौती के योग्य होता है। इस पर 8 फीसदी ब्याज मिलता है। यानी 10 हजार रुपये इन्वेस्ट करने पर छह साल बाद 16 हजार रुपये मिलेंगे। एनएससी के फायदे : सरकारी सिक्यूरिटी है और पूरी तरह सेफ है। छह साल के बाद मैच्योर हो जाते हैं, जबकि पीपीएफ 15 साल में मैच्योर होता है। नुकसान : इसके ब्याज पर टैक्स लगता है। पैसा छह साल तक फंस जाता है। छह साल से पहले पैसा नहीं निकाला जा सकता। पीपीएफ पर एनएससी के मुकाबले ज्यादा ब्याज मिलता है क्योंकि पीपीएफ के ब्याज पर टैक्स नहीं लगता और एनएससी के ब्याज पर लगता है। फिक्स्ड डिपॉजिट : एफडी के नफा-नुकसान दोनों है। अगर पांच साल या ज्यादा अवधि के लिए एफडी कराई है तो 80 सी के तहत छूट मिल जाएगी। लेकिन इस पर जो ब्याज मिलता है, उस पर टैक्स देना पड़ता है। प्राइवेट कंपनी की एफडी पर किसी तरह का टैक्स रिबेट नहीं होता। इन्शुअरन्स कंपनियों के पेंशन प्लान : एलआईसी का जीवन सुरक्षा, आईसीआईसीआई प्रूडेंशल लाइफ इन्शुअरन्स का लाइफटाइम पेंशन, अवीवा लाइफ इन्शुअरन्स का पेंशन प्लस, टाटा एआईजी इन्शुअरन्स का निर्वाण प्लस कुछ पॉप्युलर पेंशन स्कीम हैं जिनमें इन्वेस्ट किया जा सकता है। पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट : इस स्कीम में छूट का फायदा लेने के लिए पांच साल के लिए पैसे इन्वेस्ट करने होंगे। इसमें ब्याज 7.5 फीसदी है। सीनियर सिटिजन्स सेविंग स्कीम : 60 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति यह खाता खोल सकता है। किसी भी पोस्ट ऑफिस या अधिकृत बैंकों में खाता खुलवाया जा सकता है। यह पांच साल में मैच्योर होता है। ब्याज की दर 9 फीसदी है, जो तिमाही जोड़ दी जाती है। इसमें एक हजार रुपये के गुणक में 15 लाख रुपये तक जमा कराए जा सकते हैं। म्यूचुअल फंड : बाजार में कई कंपनियों के म्यूचुअल फंड हैं। ज्यादातर में मुनाफा करीब-करीब बराबर ही है। बस ध्यान रखें कि जिन म्यूचुअल फंड्स में इन्वेस्टमेंट करें, वे इक्विटी लिंक्ड होने चाहिए। गवर्नमेंट सिक्यूरिटी फंड में रकम लगाने पर 80-सी के तहत फायदा नहीं मिलता। शेयर मार्किट से जुड़े होने के कारण म्यूचुअल फंड्स में उतार-चढ़ाव का खतरा बना रहता है। बेहतर रिटर्न के लिए तीन से पांच साल तक लग सकते हैं, लेकिन थोड़े वक्त के इन्वेस्टमेंट के लिए भी म्यूचुअल फंड अच्छा विकल्प है। यूनिट लिंक्ड इन्शुअरन्स प्लान : इसमें इन्वेस्टमेंट के फायदों के साथ-साथ बीमा सुविधाएं भी मिलती हैं। इसमें इन्वेस्टमेंट यूनिट्स (शेयरों) में किया जाता है। यूलिप दो अलग-अलग अवधियों 10 और 15 साल के लिए उपलब्ध है। कुछ एक्सपर्ट यूलिप में इन्वेस्ट करने की सलाह नहीं देते क्योंकि यह इन्शुअरन्स और इन्वेस्टमेंट का मिक्स्चर है। वैसे भी इन्वेस्टमेंट और इन्शुअरन्स अलग-अलग करना ही बेहतर होता है। फिर भी यूलिप में इन्वेस्ट करना ही है तो स्कीम, कंपनी और फंड मैनिजर के ट्रैक रेकॉर्ड का अच्छी तरह एनालिसिस कर लें और किसी प्रफेशनल की मदद लें। इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ईएलएसएस) : अगर आप टैक्स बचाने के साथ-साथ अपना पैसा स्टॉक मार्किट में लगाना चाहते हैं, तो ईएलएसएस एक अच्छा ऑप्शन है। एसबीआई मैग्नम टैक्सगेन ईएलएसएस काफी पॉप्युलर है। ईएलएसएस की खासियत यह है कि इसमें सिर्फ तीन साल के लिए पैसा लॉक होता है, लेकिन पीपीएफ और एनएससी के मुकाबले यह रिस्की है। इसमें 30 से 40 फीसदी तक रिटर्न मिल सकता है, जबकि पीपीएफ और एनएससी में 8 प्रतिशत रिटर्न ही मिलता है। बैंकों और दूसरी संस्थाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर बॉण्ड : आरबीआई, आईडीबीआई, आईसीआईसीआई, आरईसी और पीएफसी जैसी संस्थाएं इस तरह के बॉण्ड जारी करती हैं। इन बॉण्ड्स की वैल्यू महंगाई दर और ब्याज दरों के मुताबिक घटती-बढ़ती रहती है। अगर ब्याज दरें बढ़ेंगी तो इन बॉण्ड्स का रेट कम हो जाएगा और ब्याज दरों के घटने से इनकी वैल्यू बढ़ेगी। नाबार्ड लंबी अवधि के लिए जीरो कूपन बॉण्ड जारी करता है। यह 10 साल के लिए होता है। इंफ्रास्ट्रक्चर बॉण्ड बच्चों के भविष्य की प्लानिंग के हिसाब से अच्छे होते हैं। ऊपर दिए गए आइटमों में 80 सी के तहत एक लाख रुपये की सीमा के अंदर छूट मिलती है। इसके अलावा नीचे दिए गए आइटमों में भी डिडक्शन मिलता है, जो एक लाख की सीमा से अलग होता है। हाउसिंग लोन रीपेमेंट में ब्याज की रकम (24 बी) : हाउसिंग लोन के कुल अमाउंट में से ब्याज की रकम पर भी डिडक्शन मिलता है। इसकी सीमा डेढ़ लाख है। डेढ़ लाख तक अगर ब्याज के तौर पर चुकाया जा रहा है तो उस पर डिडक्शन मिलेगा। मेडिकल इन्शुअरन्स प्रीमियम (80 डी) : अगर आप खुद के लिए, अपने जीवनसाथी के लिए या आश्रित बच्चों के लिए मेडिकल इन्शुअरन्स लेते हैं, तो इसमें 15 हजार का डिडक्शन मिलेगा। इसके अलावा अगर कोई अपने माता-पिता के लिए मेडिकल इन्शुअरन्स लेता है तो उस अमाउंट पर अलग से डिडक्शन मिलेगा। इसकी सीमा 15,000 रुपये है। अगर माता-पिता सीनियर सिटिजन हैं, तो यह सीमा 20 हजार रुपये होगी। हायर एजुकेशन के लिए लिया गया लोन (80 ई) : हायर एजुकेशन लोन को चुकाने में ब्याज के तौर पर जितनी रकम जा रही है, उतना डिडक्शन मिलेगा। यह कटौती सिर्फ 8 साल तक या जब तक ब्याज पूरा वापस न हो, में से जो कम हो, तब तक मिलेगी। हायर एजुकेशन से मतलब है इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, मैनिजमंट और मेडिकल में ग्रैजुएट और पोस्ट-ग्रैजुएट कोर्स या साइंस विषयों में पोस्ट-ग्रैजुएट कोर्स। विकलांग आश्रितों की चिकित्सा (80 डीडी) : एक या ज्यादा विकलांग आश्रितों की चिकित्सा, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए किया गया खर्च और बीमा कंपनियों की योजना में विकलांग आश्रित के लिए जमा रकम। इन दोनों उद्देश्यों के लिए असल खर्च को ध्यान में रखे बिना कुल 50 हजार रुपये की कटौती मिलेगी। अगर कुल खर्च और योजना में जमा रकम 45 हजार रुपये है तो भी 50 हजार की कटौती मिलेगी। गंभीर रूप से विकलांग के मामले में यह रकम 75 हजार हो सकती है। मेडिकल एक्सपैंस (80 डीडीबी) : कुछ खास बीमारियों के इलाज पर साल के दौरान असल भुगतान की रकम पर कटौती मिलेगी। ये खास बीमारियां हैं :- न्यूरॉलजिकल डिजीज, कैंसर, एड्स, हीमोफीलिया, थैलसीमिया आदि। असल भुगतान की रकम या 40 हजार रुपये में से जो भी कम होगा, उतना डिडक्शन मिलेगा। सीनियर सिटिजन के मामले में असल भुगतान की रकम या 60 हजार रुपये में से जो भी कम होगा, उतना डिडक्शन मिलेगा। एडवांस टैक्स अगर किसी को लगता है कि चालू वर्ष में उसकी टैक्स की देनदारी 5,000 रुपये से ज्यादा की होगी तो उसे एडवांस टैक्स जमा कराना पड़ेगा। इसका कायदा यह है कि 15 सितंबर तक टैक्स की कुल अमाउंट का 30 प्रतिशत टैक्स जमा हो जाना चाहिए। उसके बाद 15 दिसंबर तक टैक्स का 60 प्रतिशत जमा हो जाना चाहिए और 15 मार्च तक सारा टैक्स जमा हो जाना चाहिए। जो आमदनी 15 मार्च के बाद हो रही है, उसका टैक्स 31 मार्च तक जमा कर देना चाहिए। अगर डेट निकलने के बाद याद आता है कि एडवांस टैक्स जमा कराना था, तो टैक्स (जितना उस किश्त में जमा होना था) पर 2 फीसदी मासिक की दर से पेनल्टी लगेगी। पेनल्टी के साथ जमा कर सकते हैं। एडवांस टैक्स जमा न करने की स्थिति में इस दर के हिसाब से लगे ब्याज के साथ टैक्स की रकम जमा कराई जा सकती है। प्रमुख डेट्सः- एडवांस टैक्स जमा कराने की तारीखें :- 15 सितंबर, 15 दिसंबर और 15 मार्च इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीखः- 31 जुलाई अगर इनकम में बिज़नस या प्रफेशन की इनकम भी शामिल हो, जिसके लिए टैक्स ऑडिट कराने की जरूरत हो (40 लाख या इससे ज्यादा का टर्नओवर या कारोबार) तो रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीखः- 30 सितंबर

ऐसे निकालें अपना इनकम टैक्स

अखिल मल्होत्रा एक अखबार में काम करते हैं। उनकी सालाना आमदनी 7 लाख 50 हजार रुपये है। हाउसिंग प्रॉपर्टी से उन्हें 50 हजार सालाना आमदनी होती है। वह साल में 40 हजार रुपये पीपीएफ अकाउंट में जमा कराते हैं और 20 हजार रुपये उनका पीएफ कट जाता है। उन्होंने होम लोन भी ले रखा है, जिसके रीपेमेंट में वह साल में 60 हजार रुपये अदा करते हैं। इसमें से 40 हजार रुपये ब्याज के जाते हैं और 20 हजार रुपये प्रिंसिपल रीपेमेंट के। अपने सेविंग बैंक अकाउंट से वह 5000 रुपये सालाना ब्याज के रूप में कमाते हैं। जीवन बीमा पॉलिसी का प्रीमियम देने में उनके 10 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं। इसके अलावा बच्चों की फीस के रूप में साल में वह 12 हजार रुपये अदा करते हैं। मेडिक्लेम पॉलिसी के लिए भी वह साल में 15 हजार रुपये जमा कराते हैं। उन्हें कितना टैक्स देना होगा, यह जानने के लिए हम नीचे दिए गए स्टेप की मदद लेंगे : सालाना सैलरी- 7,50,000 रुपये हाउस प्रॉपर्टी से सालाना आमदनी- 50,000 रुपये अन्य स्त्रोतों से आमदनी (बैंक अकाउंट से ब्याज)- 5,000 रुपये -------------------------------------------------- ग्रॉस टोटल इनकम- 8,55,000 रुपये -------------------------------------------------- 24 (बी) के तहत डिडक्शन हाउसिंग लोन पर ब्याज- 40,000 रुपये 80 सी, 80 सीसीसी के तहत डिडक्शन (अधिकतम एक लाख) पीएफ में जमा रकम- 20,000 रुपये पीपीएफ में जमा रकम- 40,000 रुपये जीवन बीमा पॉलिसी का प्रीमियम- 12,000 रुपये हाउसिंग लोन प्रिंसिपल रीपेमेंट- 20,000 रुपये बच्चों की ट्यूशन फीस- 10,000 रुपये ---------------------------- कुल- 1,02,000 रुपये ---------------------------- 80 सी में डिडक्शन मिलेगा- 1,00,000 रुपये 80 डी में डिडक्शन मेडिक्लेम पॉलिसी- 15,000 रुपये नेट टैक्सेबल इनकम : नेट टैक्सेबल इनकम निकालने के लिए 24 बी के तहत डिडक्शन यानी 40 हजार रुपये, 80 सी के डिडक्शन यानी एक लाख रुपये और 80 डी के डिडक्शन 15 हजार रुपये को जोड़कर ग्रॉस टोटल इनकम यानी 8,55,000 रुपये से घटा देंगे। यानी नेट टैक्सेबल इनकम 7 लाख रुपये होगी। अब स्लैब के आधार पर इस रकम पर टैक्स निकालेंगे। 1,50,000 रुपये तकः- कोई टैक्स नहीं 1,50,001 से 3,00,000 रुपये तक 10% 15,000 रुपये 3,00,001 से 5,00,000 रुपये तक 20% 40,000 रुपये 5,00,001 से 7,00,000 रुपये तक 30% 60,000 रुपये -------------------- कुल इनकम टैक्स- 1,15,000 रुपये एजुकेशन सेस टैक्स का 3% 3,450 रुपये अखिल मल्होत्रा द्वारा दिया जाने वाला कुल इनकम टैक्स- 1,18,450 रुपये

टैक्स को लेकर कुछ सामान्य गड़बडियां

आमतौर पर लोग टैक्स की दर गलत कैलकुलेट कर देते हैं या कई बार खुद को गलत स्लैब में रखकर टैक्स छूट क्लेम कर देते हैं। सरचार्ज या एजुकेशन सेस को लेकर खूब गलतियां होती हैं। इन दोनों को टैक्स पूरा कैलकुलेट होने के बाद लगाया जाता है। कई बार लोग या तो इसे लगाना भूल जाते हैं या पूरा नहीं लगाते। इसके लिए ई-फाइलिंग करें। ई-फाइलिंग करने से टैक्स खुद-ब-खुद सामने आ जाता है। आमतौर पर लोग साल के आखिर में टैक्स सेविंग स्कीमों में इन्वेस्ट करते हैं। हड़बड़ाहट में और दोस्तों की देखादेखी इस तरह इन्वेस्ट न करें। अपनी जरूरतें देखें और इनवेस्टमेंट करने से पहले एक्सपर्ट की सलाह लें। अपने भविष्य और फाइनेंशल जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सही स्कीम का चयन करना चाहिए। साल के आखिर में एकमुश्त बड़ी रकम के इन्वेस्टमेंट से पैसे की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है इसलिए साल भर थोड़ा-थोड़ा इन्वेस्टमेंट करते रहें। कई बार लोग लोन लेकर इन्वेस्टमेंट कर देते हैं। यह गलत है। इन्वेस्टमेंट हमेशा इनकम में से करना चाहिए। लोन अकाउंट से इन्वेस्ट करने पर छूट नहीं मिलेगी। लोगों को गलतफहमी होती है कि अगर पीएफ कट रहा है तो पीपीएफ नहीं कटा सकते। साथ ही दोनों को मिलाकर 70 हजार से ज्यादा जमा नहीं करा सकते। ऐसा नहीं है। पीएफ और पीपीएफ, दोनों को मिलाकर एक लाख रुपये तक जमा कराए जा सकते हैं। एक्सर्पट्स की सलाह 80-सी के तहत एक लाख रुपये का इन्वेस्टमेंट जरूर करना चाहिए। जायज तरीके से टैक्स बचाने में कोई बुराई नहीं है। इन्शुअरन्स और इन्वेस्टमेंट में फर्क समझें। ये दोनों अलग-अलग चीजें हैं, इसलिए दोनों के लिए अलग-अलग रकम रखें। प्रफेशनल की मदद से अपने नॉन-वर्किन्ग जीवनसाथी की इनकम टैक्स फाइल तैयार कराकर भी आप टैक्स में छूट पा सकते हैं। इसमें संबंधियों द्वारा दिए जानेवाले गिफ्ट, ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी, लोन आदि दिखा सकते हैं। ऐसा करके आपकी इनकम पर दो लोगों के बराबर टैक्स में छूट मिल सकती है। पुश्तैनी प्रॉपर्टी या संबंधियों की ओर से गिफ्ट के रूप में मिली रकम से हिंदू अविभाजित परिवार यानी हिंदू अनडिवाडेड फैमिली (एचयूएफ) तैयार कराया जा सकता है। आपकी जो इनकम है, आप उसे अपने और एचयूएफ के बीच बांट सकते हैं। ऐसे में आपको भी टैक्स सेविंग के पूरे फायदे मिलेंगे और एचयूएफ को भी। एचयूएफ के नाम से आपको बैंक अकाउंट खोलना होगा और पैन कार्ड तैयार कराना होगा। इसके बाद आप एचयूएफ के नाम से ही सभी ट्रांजैक्शन कर सकते हैं। एचयूएफ के मामले में किसी प्रफेशनल या टैक्स एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें। रकम को अलग-अलग बास्केट में इन्वेस्ट करना बेहतर होता है। मसलन कुछ रकम रिस्क वाली स्कीमों में लगा सकते हैं तो कुछ फिक्स्ड रिटर्न देने वाली स्कीमों में। इससे सुरक्षा और फायदा दोनों मिलेंगे। आपकी कुछ रकम पूरी तरह सुरक्षित रहेगी, तो कुछ पर बड़ा फायदा होने की संभावना भी बनी रहेगी। कुछ रकम को पांच साल के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट कराया जा सकता है, तो कुछ का निवेश इक्विटी लिंक्ड म्यूचुअल फंड्स में किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर एक लाख रुपये इन्वेस्ट करने हैं तो बेहतर है कि इक्विटी लिंक्ड म्यूचुअल फंड में 30 हजार, पीपीएफ में 30 हजार और इन्शुअरन्स स्कीम में 30 हजार रुपये इन्वेस्ट करें। तीनों के अलग-अलग फायदे हैं। मसलन, म्यूचुअल फंड में ग्रोथ अच्छी मिल सकती है तो पीपीएफ में 8 फीसदी ब्याज मिलने के साथ-साथ रकम सेफ भी रहती है। इन्शुअरन्स कराना इसलिए अच्छा है क्योंकि इसमें रिस्क कवर होता है। इन दिनों होम लोन भी सस्ते हो गए हैं। इससे टैक्स की बचत भी होती है। अगर आप होम लोन ले लें तो डेढ़ लाख रुपये तक साल भर के ब्याज को टैक्सेबल इनकम में से घटा सकते हैं यानी इस तरह आपको कम टैक्स देना पड़ेगा।

किराए की आमदनी पर भी देना होता है टैक्स

रमेश को हर महीने 7,000 रुपए की आमदनी किराए से होती है। वेतन और अन्य स्रोतों से उनकी कर योग्य सालाना आय 10 लाख रुपए है। रमेश को किराए की आमदनी पर कितना टैक्स देना होगा? क्या उन्हें इस पर कोई कर छूट मिलेगी? प्रॉपटी के दाम कुछ साल पहले काफी कम थे। उस समय बहुत से ऐसे लोगों ने निवेश के लिए दूसरा घर खरीदा था। इनके पास रहने के लिए पहले से प्रॉपर्टी थी। दूसरे घर को अक्सर लोग किराए पर दे देते हैं क्योंकि यह आमदनी का जरिया बन जाता है। अगर किसी व्यक्ति के पास एक घर है और उसमें वह खुद रहता है तो उसे इस पर कोई कर नहीं देना होता। लेकिन दूसरी प्रॉपर्टी के बारे में क्या नियम हैं? अगर दूसरी प्रॉपर्टी से किराए के तौर पर कोई आमदनी नहीं हो रही है तो उस पर मामूली/ अनुमानित किराए के अनुसार कर देना होता है। यह अनुमानित किराया बहुत सी बातों पर निर्भर होता है, जिसमें घर की कीमत, लोकेशन, सुविधाएं, उस जगह पर किराए की मौजूदा दरें शामिल होती हैं। वार्षिक मूल्य आय अर्जित करने की प्रॉपर्टी की क्षमता होती है। यह प्रॉपर्टी के मालिक को मिलने वाले वास्तविक किराए से भी ज्यादा हो सकती है। किराए से हासिल आमदनी पर कर बाध्यता इस आय को कर योग्य आमदनी में जोड़ दिया जाता है और कर बाध्यता कर के स्लैब के आधार पर होती है। किराए से मिलने वाली आमदनी का 30 फीसदी तक प्रॉपर्टी के रखरखाव और संपत्ति कर जैसे खर्च के भुगतान के लिए घटाया जा सकता है। अगर किराए पर दी गई प्रॉपर्टी को खरीदने के लिए होम लोन लिया गया है तो मासिक किस्त (ईएमआई) के भुगतान पर पूरा ब्याज आयकर कानून की धारा 24 के तहत आमदनी में से घटा दिया जाता है। इसके लिए 1.5 लाख रुपए सालाना तक की कोई सीमा नहीं है। अगर करदाता की प्रॉपर्टी खाली है और वह किसी अन्य शहर यह जगह पर नौकरी कर रहा है तो इस प्रॉपर्टी का वार्षिक मूल्य शून्य माना जा सकता है। किराए से होने वाली आय पर 'इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी' के मद में कर चुकाना होता है। रमेश को अपनी अन्य आय में इस आमदनी को जोड़ने के बाद कर बाध्यता की गणना करनी चाहिए। वह चाहें तो रखरखाव और अन्य खर्चों के लिए किराए की आमदनी में से 30 फीसदी रकम घटा सकते हैं।

Friday, January 2, 2009

अपनी और परिवार की जरूरतों को देखकर चुनें बीमा पॉलिसी


बीमा पॉलिसी खरीदने की दिशा में पहला कदम बीमा कंपनी को चुनने का होता है। इसके लिए आप कंपनी के प्रमोटरों, कस्टमर सविर्स, ट्रैक रेकॉर्ड और प्रोडक्ट पोर्टफोलियो को देख सकते हैं। इसके बाद दूसरा काम है अपनी वित्तीय जरूरतों को समझना। इसके लिए अपनी उम्र, जोखिम लेने की क्षमता, अपने आश्रितों, खर्च करने योग्य आय और देनदारियों के बारे में सोचना चाहिए। इनसे आपको अपनी सुरक्षा और बचत की जरूरतों को समझने का मौका मिलेगा।
बीमा की राशि कितनी हो यह कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे- भविष्य में आपकी कमाने की क्षमता, संपत्ति और देनदारियां। इसलिए यह हमेशा एक समान नहीं होती। कारकों में निरंतर होने वाले बदलाव के अनुसार जीवन के अलग-अलग चरणों में बीमा की जरूरतों की फिर से समीक्षा करनी पड़ती है। पारिवारिक आय, संपत्ति और देनदारियां, परिवार का आकार, आश्रितों की संख्या और जीवन अवस्था, जैसे- जन्म, शिक्षा, शादी जैसे कारकों में होने वाले बदलावों के अनुसार जरूरी बीमा राशि भी बदलती रहती है।
एक सही विकल्प और जीवन बीमा सुरक्षा का सही आकार तय करने के लिए आपको इन सभी बातों पर गौर करना चाहिए। आपको हर दो सालों पर कम-से-कम एक बार अपनी बीमा जरूरतों की समीक्षा करनी चाहिए और देखना चाहिए कि इस बीच आपकी आय, आपके आश्रितों के प्रोफाइल, जीवन खर्च, देनदारियां जैसे हाउसिंग लोन में कोई बदलाव तो नहीं हुआ है। इसके बाद यह देखना चाहिए कि जो बीमा सुरक्षा आपने ले रखी है, क्या वह काफी है।
जीवन बीमा योजना एक एक लंबी अवधि का कॉन्ट्रैक्ट होता है। इसलिए यह जरूरी है कि अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आप सही योजना लें। यूनिट लिंक्ड पॉलिसी में लचीलापन, पारदर्शिता, सरलता, तरलता और फंड मैनेजमेंट की सुविधा जैसे कई फायदे होते हैं। ये पॉलिसी ग्राहकों की बदलती जरूरतों के अनुकूल होती हैं। वहीं पार्टिसिपेटरी पॉलिसी इसकी तुलना में कम लचीली होती है।
इन पॉलिसियों का चुनाव करने वाले लोगों को अपने जीवन की प्रमुख जरूरतों के अनुसार सही वक्त पर सही पॉलिसी खरीदते रहना चाहिए। सही समय के अलावा उन्हें अलग-अलग जरूरतों के मुताबिक अलग-अलग पॉलिसी खरीदनी चाहिए। पार्टिसिपेटरी पॉलिसी के अंतर्गत जीवन बीमा और बचत के अनुपात में बदलाव करने की सुविधा नहीं होती। यूनिट-लिंक्ड प्लान का चार्ज स्ट्रक्चर अधिक सुविधाजनक है।
बीमा लेने वाले व्यक्ति को सभी देनदारियों और भविष्य में होने वाली आय के लिए सुरक्षा लेनी चाहिए। इससे कम-से-कम यह तय हो जाता है कि बीमाधारक के साथ कोई अनहोनी होने की स्थिति में उसके ऊपर निर्भर लोगों के जीवन स्तर पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
बचत का हिस्सा अपने वित्तीय लक्ष्यों के आधार पर तय किए जाना चाहिए। एक निवेश के रूप में जीवन बीमा के कई खास फायदे हैं। इसमें संपत्ति के डूबने की संभावना न के बराबर होती है। योजना की लंबी अवधि के कारण यह लंबे समय का निवेश है, इसलिए फंड के बेहतर मैनेजमेंट की सुविधा मिल जाती है।
नियमित बचत और कंपाउंडिंग की सुविधा के कारण लंबे समय में काफी बचत हो जाती है। अलग-अलग प्रोडक्ट में लचीलापन, पारदर्शिता और कस्टमाइजेशन की सुविधा के आधार पर थोड़ा-बहुत अंतर होता है। इनके आधार पर ग्राहक अपनी बदलती वित्तीय जरूरतों के अनुसार सही प्रोडक्ट का चुनाव कर सकते हैं। चार्ज स्ट्रक्चर अलग-अलग ग्राहकों के अनुसार अलग-अलग होता है और ऊंचे शुल्क का मतलब अधिक असुविधा नहीं है। बीमा कराते समय हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि इसका सबसे जरूरी उद्देश्य सुरक्षा होता है बचत और निवेश नहीं।