बाजार के सेंटीमेंट सुधारने के लिए हाल ही में कुछ राहत पैकेज जारी किए गए हैं। बैंकों ने भी इनके हिसाब से कदम उठाना शुरू कर दिया है। लगभग एक महीना पहले बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती की घोषणा करनी शुरू कर दी थी, और कम रकम वाले होम लोन पर ब्याज दर सिंगल डिजिट तक पहुंच गई है। हालांकि, बेचमार्क प्रधान उधारी दर (पीएलआर) अभी भी 13-14 फीसदी के दायरे में है, लेकिन पिछली तिमाही की तुलना में स्थिति काफी बेहतर है, जब कंपनियों के सामने नकदी का संकट हो गया था। नकदी के संकट का असर भी काफी गहरा था और बड़ी कंपनियों के साथ ही छोटी और मझोली कंपनियों पर भी इसकी मार पड़ रही थी। घरेलू शेयर बाजार पर अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम का ज्यादा असर नहीं पड़ा है और सेंसेक्स 9,500-10,000 के दायरे में कारोबार कर रहा है। फिर भी लंबे समय के लिए स्थिति अधिक सुविधाजनक नहीं है। हाल फिलहाल में शेयर बाजार में आई अधिकतर तेजी का कारण शॉर्ट कवरिंग था या फिर सौदा निपटाने के पहले की तेजी थी। सूचकांकों के ऊपर चढ़ने के पीछे शॉर्ट-टर्म प्रॉफिट पर आंख गड़ाए विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) थे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि घरेलू संस्थाएं इस खरीदारी से बाहर थी और सिर्फ तमाशा देख रही थी। इन बातों के मद्देनजर यह जानना रोचक होगा कि सरकारी राहत पैकेजों का क्या असर पड़ रहा है। बैंकिंग सेक्टर में बढ़ते आकर्षण का कारण कोर ऑपरेशन से अधिक ट्रेजरी प्रॉफिट से हुई आमदनी है। प्राइवेट बैंकों की तुलना में सरकारी बैंकों में अधिक निवेश का कारण यह है कि सरकारी बैंकों के पास कारोबारी के लिए नकदी के बड़े भंडार मौजूद हैं। इसके साथ ही सरकारी बैंक पर्सनल लोन और तेजी से बढ़ने वाले सेक्टरों को लोन देने में भी काफी सावधानी बरतते हैं क्योंकि इनसे जिनमें इससे आने वाले समय में उनके डूबे हुए कर्ज (एनपीए) बढ़ सकते हैं। व्यक्तिगत निवेशक भी ऐसी ही रणनीति अपना सकते हैं। उन्हें निवेश करने से पहले काफी सोच विचार कर लेना चाहिए। एक साल के लिए निवेश करने वालों के लिए इनकम फंड और फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) बेहतर साबित हो सकते हैं। एफडी के मोर्चे पर अच्छे रिटर्न की संभावनाएं अधिक हैं क्योंकि कई निर्माण कंपनियां अपनी फंड की जरूरत को पूरा करने के लिए इस बाजार का इस्तेमाल कर सकती हैं। इनकम फंड के रिटर्न में कमी आ सकती है क्योंकि दरों में दो बार कटौती हो चुकी है। अच्छी खबर यह है कि शॉर्ट टर्म में बेहतर उम्मीद की जा सकती है और इसे देखते हुए आम निवेशक के पोर्टफोलियो के लिए गिल्ट अभी भी एक बेहतर विकल्प है। म्यूचुअल फंड मैनेजरों के लिए अच्छी खबर यह है कि बैंकों पर लेंडिंग पोर्टफोलियो का आकार बढ़ाने के लिए दबाव बढ़ रहा है। अधिकतर म्यूचुअल फंड की समस्या गिल्ट की आपूर्ति की थी, क्योंकि बहुत से बैंक इस पर नजर गड़ाए हुए हैं। यदि बैंकों पर अपने सीडी (क्रेडिट-डिपॉजिट) अनुपात में सुधार करने का दबाव बढ़ता है, तो इससे आपूर्ति में सुधार होगा, हालांकि यह यील्ड की गति को भी उलट सकता है। बैंकों पर कर्ज देने के लिए पड़ने वाला दबाव निश्चित रूप से कॉरपोरेट सेक्टर के लिए अच्छी खबर होगी और छोटे-मझोले उद्योगों के लिए तो निश्चित ही यह बेहतर होगा। बड़ी कंपनियों की तरह वे जनता से पैसा नहीं जुटा सकते और पूरी तरह आंतरिक स्त्रोतों और बैंक फाइनेंस पर ही निर्भर होते हैं। हालांकि, इन कंपनियों तक फंड पहुंचने के लिए अभी अगली तिमाही का इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन अधिक शिकायत नहीं होगी, क्योंकि लंबे समय के बाद पहली बार साल की शुरुआत में उम्मीदों का स्तर नीचे की ओर है। राहत पैकेजों का सकारात्मक असर इक्विटी बाजार के लिए भी फायदेमंद होगा। कर्ज मिलने से कंपनियां अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ा सकेंगी और उनके कारोबार में भी इजाफा होगा। इससे शेयर बाजार की सेहत सुधरेगी और पिछले काफी समय से मंदी की मार झेल रहे सेंसेक्स में फिर से रौनक लौट सकती है। इससे सबसे बड़ा फायदा रियल एस्टेट सेक्टर को मिलने की उम्मीद है। लगभग एक साल से इस सेक्टर में मांग लगातार गिर रही है और बिक्री न होने से डेवलपर नई परियोजनाओं को शुरु करने के बजाए पुरानी परियोजनाओँ में ही फंसकर रह गए हैं।
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