Monday, March 30, 2009

शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव पता करने का फॉर्मूला

बैंकों और वित्तीय संस्थानों के दिवालिया होने और उन्हें राहत पैकेज मुहैया कराने के इन दिनों में जिस अर्थशास्त्री कींस की सबसे ज्यादा बात हो रही है उन्होंने एक बार कहा था, 'आपके वित्तीय रूप से सक्षम रहने के मुकाबले कहीं ज्यादा दिन तक बाजार असंतुलित रह सकते हैं।' यह सिद्धांत यूं तो मंदडि़यों और तेजडि़यों, दोनों पर लागू होता है, लेकिन इसके तहत जो संदेशा छिपा है, वह स्पष्ट है जिसके बारे में किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता। इसके मुताबिक बुद्धिमान निवेशक अगर बाजार के उतार-चढ़ाव से दूर रहने में सफल होता है तो उसका कामयाब होना तय है। क्या एसेट श्रेणी के तौर पर इक्विटी में निवेश करना चाहिए, इस बात का फैसला शेयर बाजार में उस वक्त जारी गतिविधियों पर निर्भर करना चाहिए। छोटे निवेशक को किसी शेयर विशेष में निवेश करने या उससे बाहर निकलने के लिए सही वक्त का अंदाजा लगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन यह भी कहा जा सकता है कि हर निवेशक इक्विटी बाजारों में दाखिल होने या फिर बाहर निकलने का अंदाजा लगा सकता है। ऐतिहासिक रूप से शेयर बाजार उस वक्त चरम पर पहुंचते हैं जब ब्याज दरें काफी ऊंचाई पर हों या फिर जरूरत से ज्यादा विश्वास के बूते बाजार संबंधी क्रेडिट के लिए ज्यादा मांग की वजह से उस स्तर पर पहुंचने की संभावनाएं रखती हो। इक्विटी बाजारों के बारे में ज्यादा जानकारी न रखने वाला मेरा एक मित्र है, जो ब्याज दरों के चढ़ने पर इक्विटी में अपना सारा निवेश बेचकर सावधि जमा और इनकम फंड जैसे पारंपरिक निवेश उत्पादों की राह पकड़ता है। इस निवेशक ने इस दशक की शुरुआत में फिक्स्ड इनकम निवेश से इक्विटी का रास्ता पकड़ना शुरू किया था, जब ब्याज दरें काफी निचले स्तरों पर थीं। इसी निवेशक ने 2008 मध्य में इक्विटी से एफडी की ओर मुड़ना शुरू किया हालांकि वह जनवरी 2008 के दौरान बाजार की ऊंचाइयों का फायदा उठाने में नाकाम रहा। आज फिर यह रक्षात्मक अनुशासित निवेशक मुस्करा रहा है और दलील दे रहा है कि उसे अर्थव्यवस्था की कोई खास जानकारी नहीं है। जिन चीजों ने उसे सही वक्त पर सही फैसले करने के लिए प्रोत्साहित किया है, वह है सामान्य ज्ञान और भावनाओं पर सख्त नियंत्रण। बाजार में गुजारे 25 साल में मैंने कई बार ब्याज दरों और बाजार के चढ़ने या उतरने के बीच इस रिश्ते पर गौर किया है। मुझे इस निवेशक के पक्ष में खड़ा होने में कोई हिचकिचाहट नहीं है जिसने मार्केट की चाल समझने के लिए बाजार से जुड़ी जानकारी कम और सामान्य ज्ञान का ज्यादा इस्तेमाल किया। और वह भी ऐसे वक्त जब हर निवेशक पर बाजार 'जानकारी' की अभूतपूर्व आपूर्ति की बमबारी हो रही थी। अगर ब्याज से होने वाली आमदनी उत्पाद के साथ जुड़े कम जोखिम से ज्यादा है तो निवेशक की जोखिम सहने की क्षमता के आधार इक्विटी से उसकी ओर जाने के अवसर होते हैं। इसके उलट, मेरा एक खूब पढ़ा-लिखा मित्र भी है जो 10 साल पहले 150 रुपए के स्तर पर होने के वक्त एक बेहतरीन शेयर को पहचानने में कामयाब रहा। 2007 में जब वह 1,500 रुपए तक चढ़ा तो उसने बिकवाली कर मुनाफा वसूली करने की सलाह मिलने के बावजूद भी इंतजार करने का फैसला किया। 2008 में मंदी ने बाजार को घेरा तो यह शेयर नीचे आने लगा और मंदी के बाजार में एक साल से ज्यादा वक्त तक इंतजार करने के बाद इस दोस्त ने थक-हारकर यह शेयर 200 रुपए में बेचा और दावा किया कि वह कम से कम अपनी पूंजी बचाने में कामयाब रहा। यह गलती कई लोग करते हैं। ऐसे निवेशक ज्यादातर बार बढि़या मुनाफे पर बाहर निकलने में नाकाम रहते हैं और शेयर विशेष से भावनात्मक रूप से बंध जाते हैं। अनुशासित रवैया अपनाकर बाजार चक्र की जानकारी बटोरना काफी आसान है लेकिन अविश्वसनीय जानकारी की जरूरत से ज्यादा सप्लाई की वजह से एक शेयर विशेष चुनना निवेशक के लिए काफी मुश्किल हो जाता है। कई शातिर सट्टेबाज बाजार में गैरकानूनी रूप से फायदा उठाने के लिए जानकारी का गलत फायदा उठाते हैं जिनके जाल में निवेशक आसानी से फंस जाते हैं। छोटी या मझोली कंपनियों में निवेश को लेकर काफी सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसी कंपनियों की बाजार में उपलब्ध जानकारी आमतौर पर गलत या भ्रामक होती हैं। छोटे निवेशकों को इस ग्रुप की केवल उन्हीं कंपनियों में निवेश करना चाहिए जिनके बारे में उन्हें पुख्ता जानकारी है। बहुत से निवेशक लक्ष्यों और अनुशासन के साथ इक्विटी बाजार में प्रवेश तो करते हैं लेकिन बाद में अक्सर वे सट्टेबाजों की तरह ट्रेडिंग करने लगते हैं। एक बात याद रखें कि इक्विटी बाजार में तभी सफलता मिलती है जब आप लालच को छोड़कर सही जानकारी और समय पर निवेश करते हैं।
-सी. जे. जॉर्ज, मैनेजिंग डायेरक्टर, जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज

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