निवेश परंपरागत तौर पर पुरुषों का ही अधिकार क्षेत्र रहा है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं को इसकी अनुमति नहीं है लेकिन परंपरागत रूप से वे इससे दूर ही रहती आई हैं। बाजार और निवेश की पूरी प्रक्रिया पुरुषों ने ही विकसित की है और महिलाएं अब भी इन प्रणालियों के हाशिए पर ही हैं। कुछ महिलाएं जरूर इसमें हिस्सा लेती हैं लेकिन उनकी संख्या और निवेश की राशि पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है। भारत की जनसंख्या का लगभग आधा हिस्सा महिलाओं का है लेकिन निवेश करने वाली सक्रिय जनसंख्या में उनकी मौजूदगी न के बराबर है। आधुनिक दौर की महिलाएं आज पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। नौकरियों और कॅरियर के मामले में भी वे अब काफी संजीदा हैं, ऐसे में उनके लिए वित्तीय योजना बनाना भी जरूरी हो गया है। उन्हें शिक्षा, नौकरी, विवाह, मातृत्व और रिटायरमेंट जैसे जीवन के महत्वपूर्ण चरणों के लिए पहले से योजना बनाने की जरूरत होती है। महिलाओं को सशक्त बनने के लिए वित्तीय तौर पर सुरक्षित और स्वतंत्र होना होगा। वे निवेश के फैसलों पर नियंत्रण कर ऐसा कर सकती हैं। वित्तीय जगत भी अब इस बात को समझने लगा है कि महिलाओं के पास धन मौजूद है और उसका निवेश करने के लिए भी वे तैयार हैं। कुछ समय पहले जब बाजार में तेजी का दौर चल रहा तो महिलाओं ने इसमें काफी रुचि दिखाई थी। कामकाजी महिलाओं के अलावा कॉलेज जाने वाली लड़कियों और गृहणियों ने भी शेयर बाजार में निवेश का श्रीणेश किया था। इनमें से ज्यादातर ने छोटे निवेश तक ही खुद को सीमित रखा था लेकिन कुछ अपने निवेश को लेकर काफी गंभीर थीं और उन्होंने बाजार से अच्छा मुनाफा भी कमाया था। अब महिलाओं के लिए विशेष फाइनेंशियल प्रोडक्ट भी बड़ी संख्या में लॉन्च किए जा रहे हैं। इनमें बीमा पॉलिसियों से लेकर बचत खाते तक शामिल हैं। उदाहरण के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने पहली बार 2003 में महिलाओं के लिए जीवन भारती नाम से पॉलिसी पेश की थी। पिछले वर्ष एलआईसी ने जीवन भारती-1 नाम से इसका नया वर्जन भी लॉन्च किया था। कई बैंक भी महिला ग्राहकों को खींचने के लिए अब विशेष खातों और बचत योजनाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। बाजार में अभी वरिष्ठ नागरिकों और बच्चों के लिए म्यूचुअल फंड मौजूद हैं। हो सकता है कि आने वाले समय में महिलाओं के लिए भी विशेष तौर पर डिजाइन किए गए फंड पेश किए जाएं। महिला निवेशक आमतौर पर सोने या फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे सुरक्षित विकल्पों में धन लगाना अधिक पसंद करती हैं। म्यूचुअल फंड या इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) में निवेश का मुख्य उद्देश्य कर बचाना होता है। बहुत कम ऐसी महिलाएं हैं जो डेरिवेटिव या आर्बिट्राज जैसे जोखिम वाले प्रोडक्ट में हाथ आजमाती हैं। महिलाओं और पुरुषों की निवेश शैली भी काफी अलग रहती है। पुरुषों के मुकाबले महिलाएं जोखिम लेना कम पसंद करती हैं। परिवार के रोजमर्रा के खर्च की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है और इसी वजह से वे बजट बनाने में काफी माहिर होती हैं, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि निवेश के विकल्पों की जानकारी महिलाओं को कम होती है और वे अपने निवेश से जुड़े फैसले लेने में हिचकती हैं। अगर आप एक महिला हैं तो निवेश के फैसले लेने की प्रक्रिया में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए तैयार हो जाएं। वित्तीय फैसले अब केवल पुरुषों की जिम्मेदारी नहीं हैं। फाइनांसियल प्रोडक्ट के बारे में जानकारी आज आसानी से उपलब्ध हैं। इसके लिए आप इंटरनेट, अखबार या टीवी चैनल का इस्तेमाल कर सकती हैं। बहुत सी वित्तीय कंपनियों के रिलेशनशिप मैनेजर के तौर पर महिलाएं काम कर रही हैं और वे महिला ग्राहकों को सर्विस देकर ज्यादा खुशी महसूस करती हैं। बाजार के मौजूदा हालात में भी पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने अनुशासन की वजह से निवेश के सही फैसले लेने में ज्यादा सफल हो सकती हैं। वित्तीय प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने वाले लोग भी नई पीढ़ी की महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नई रणनीतियां बना रहे हैं। बहुत से छोटे वित्तीय संस्थान महिलाओं की वित्तीय जरूरतें पूरी कर रहे हैं और उन्हें विशेष आर्थिक सहायता की पेशकश भी करते हैं। महिला ग्राहकों के लिए विशेष प्रोडक्ट, कर छूट और काउंसलिंग जैसी पेशकश भी की जा रही हैं। वित्तीय अनिश्चितता के मौजूदा समय में महिलाओं को नौकरी जाने या वेतन में कटौती जैसी आपात स्थितियों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। महिलाएं कॅरियर और घर-परिवार के बीच संतुलन बनाने का काम करती हैं। उन्हें इसे और बेहतर करने के लिए निवेश की कमान भी संभालनी होगी। इससे वह खुद के साथ ही परिवार को भी सशक्त बना सकेंगी।
-किरण काब्ता सोमवंशी
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