विकसित देशों से उलट भारत में पेंशन और रिटारयरमेंट निवेश योजनाएं सबके लिए उपलब्ध नहीं हैं। आजीवन पेंशन और रिटायरमेंट के बाद की सुविधाएं केवल सरकारी कर्मचारियों और सरकारी स्वामित्व वाले कुछ उद्यमों के चुनिंदा कर्मचारियों को ही उपलब्ध हैं। सरकारी कंपनियों सहित उद्योग जगत के एक बड़े हिस्से में कर्मचारियों को आम तौर पर रिटायरमेंट के बाद एक बड़ी राशि मिलती है। इसमें ग्रैच्युटी और सालों तक जमा होते रहे प्रॉविडेंट फंड शामिल होते हैं। सामान्यत: लोग रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली इस भारी रकम का हिसाब-किताब कर ही निश्चिंत हो जाते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी होती है कि रकम पाने से ज्यादा बड़ी चुनौती इसकी योजना करना है। यह संबंधित कर्मचारी के ऊपर है कि वह किस तरह इसका वित्तीय प्रबंधन करे ताकि न केवल उसकी जिंदगी का ढर्रा पहले सा बना रहे, बल्कि वह आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर भी हो। यह उद्देश्य पा सकना, सोचने में जितना आसान लगता है करने में उतना ही कठिन है। इसीलिए ईटीआईजी की टीम ने अपने उन पाठकों को इस बारे में कुछ सार्थक सलाह देने की सोची जिनके लिए रिटायरमेंट के दिन बहुत दूर नहीं हैं। रिटायरमेंट प्लानिंग का मूलभूत सिद्धांत ऐसे वित्तीय साधन की तलाश करना है, जिससे नियमित अंतराल पर नकदी मिलती रहे (ठीक उसी तरह, जैसे वेतन से होती है), जो मुद्रास्फीति से सुरक्षा दे सके और जो आपकी मूल पूंजी को भी बचा सके। साथ ही बेहतर होगा अगर रिटायरमेंट के बाद आप पर किसी तरह के कर्ज की देनदारी न हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी पर कार या पर्सनल लोन की देनदारी है तो आदर्श स्थिति यह है कि रिटायरमेंट से पहले वह उससे मुक्त हो जाए। और अगर नया घर खरीदने की योजना है, तो यह रिटायरमेंट के कुछ साल पहले ही हो जाना चाहिए या फिर रिटायरमेंट के ठीक बाद मिली मोटी रकम में छोटा-मोटा कर्ज मिलाकर इसे अंजाम दे देना चाहिए। अच्छी चिकित्सा काफी महंगी है और बड़ी उम्र में इसकी जरूरत सबसे ज्यादा होती है। कुछ सरकारी संस्थाओं को छोड़कर सामान्यत: रिटायर हो चुके कर्मचारियों को कोई संस्थान मेडिकल कवर उपलब्ध नहीं करवाता। इसलिए रिटायर होने वाले शख्स के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह मेडिकल बीमा पर कुछ रकम खर्च करे। सबसे बेहतरीन रणनीति रिटायरमेंट से कुछ सालों पूर्व एक मेडिकल बीमा पॉलिसी ले लेना है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सेवानिवृत्ति के बाद किसी के लिए भी जीवन बीमा लेने का कोई खास मतलब नहीं है क्योंकि रिटायरमेंट के बाद किसी व्यक्ति की आय लगभग नगण्य होती है (यह मानते हुए कि सेवानिवृत्ति के बाद वह फिर कोई नई नौकरी न कर ले), इसलिए उसकी मौत के बाद किसी तरह का पूंजीगत नुकसान नहीं होता है। योजना बनाते हुए दैनिक आजीविका के लिए जिन तीन बातों का ख्याल रखा जाना चाहिए, वे हैं लिक्विडिटी, नियमित आय और ग्रोथ। लिक्विडिटी के मोर्चे पर यहां मोटे तौर पर नियम यह है कि किसी के भी पास करीब 6 महीने का खर्च नकदी के तौर पर उपलब्ध होना चाहिए। इसके बाद एक ऐसे साधन की तलाश करनी चाहिए जहां से नियमित मासिक खर्चों का इंतजाम होता रहे। यहां निश्चित आय वाली योजनाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसी तीन सबसे लोकप्रिय योजनाएं हैं डाकघर मासिक आय योजना, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना और म्यूचुअल फंड मासिक आय योजना। इनमें पहली योजना डाकघरों से ली जा सकती है और दूसरी योजना राष्ट्रीयकृत बैंक प्रदान करते हैं। तीसरी योजना विभिन्न म्यूचुअल फंड देते हैं। पहली दो योजनाएं कर के दायरे में आती हैं। इनमें रिटर्न तो निश्चित होता है लेकिन ग्रोथ का स्कोप बहुत ही कम होता है। आखिर वाली योजना पर कर नहीं लगता, इनमें रिटर्न भी सुनिश्चित नहीं होता, लेकिन ग्रोथ का आंशिक अवसर होता है क्योंकि इनका 10-20 फीसदी हिस्सा शेयरों में निवेश किया जाता है। इन तीन योजनाओं में से किसी खास की पसंद व्यक्ति विशेष की आय, जोखिम सहन कर सकने की क्षमता और प्रभावी कर दरों पर निर्भर करती है। या दूसरा उपाय यह है कि सीधे तौर पर रकम को पहली दो योजनाओं में से किसी एक और तीसरी योजना के बीच आधा-आधा बांट दिया जाए। कुछ अन्य योजनाएं हैं मासिक आय तो उपलब्ध कराती हैं, लेकिन बहुत लोकप्रिय नहीं हैं। ये एन्युटी योजनाएं हैं, जो बीमा कंपनियों और मकानों के रिवर्स मॉर्टगेज से जुड़ी हैं। अंत में, इन सभी निवेश योजनाओं का प्रीमियम चुकाने के बाद अगर किसी के पास कुछ रकम और बच जाती है, तो उसे शेयरों या सोना जैसे एसेट में लगाया जा सकता है। हमने इन सारे समीकरणों को सांकेतिक तौर पर दिखाने की कोशिश की है। ये तीनों परिदृश्य अलग-अलग क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी आय और खर्च के स्तर अलग-अलग हैं। किसी भी व्यक्ति को भविष्य के लिए जरूरी खर्च और मेडिकल खर्चों को पूरा करने के लिए जरूरी रकम के लिहाज से मासिक आय योजनाओं में आवश्यक निवेश की गणना कर लेनी चाहिए। मकान या कार जैसी दूसरी सभी जरूरतों की योजना उसके बाद बनानी चाहिए। हम अपने पाठकों को यह याद दिलाना चाहते हैं कि यह केवल एक दिशानिदेर्श है और वास्तविक योजना अलग-अलग व्यक्तियों की निजी परिस्थितियों के आधार पर ही बनाई जा सकती है।
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