Monday, March 2, 2009

पैसे इनवेस्ट करें ऐसे

पैसे इनवेस्ट करें ऐसे
इनवेस्टमेंट को टैक्स बचाने के तरीके के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस नजरिये से इन दिनों तमाम लोग इनवेस्टमेंट के बारे में सोच रहे हैं, लेकिन टैक्स की बचत इनवेस्टमेंट का केवल फौरी फायदा है। इसके अलावा भी इनवेस्टमेंट के तमाम फायदे हैं। सुरक्षित भविष्य और जिंदगी में समय-समय पर पेश आने वाली जरूरतों को पूरा करने की गारंटी होने के अलावा इनवेस्टमेंट रेगुलर इनकम का भी साधन बन जाता है। सवाल है कि इनवेस्टमेंट किया कैसे जाए? बाजार में कौन-कौन सी स्कीम मौजूद हैं? इनमें कौन-सी टैक्स सेविंग हैं और कौन सी नहीं? किसे चुना जाए और किसे नहीं?

पर, इनवेस्टमेंट के बारे में कोई भी अंतिम फैसला लेने से पहले अपनी जरूरतों और लक्ष्यों को तय करें। इनवेस्टमेंट को अवधि के आधार पर तीन भागों में बांट सकते हैं : शॉर्ट टर्म इनवेस्टमेंट (एक साल से कम अवधि के लिए), मीडियम टर्म (एक साल से ज्यादा अवधि के लिए) और लॉन्ग टर्म (पांच साल से ज्यादा वक्त के लिए)। अपनी जरूरतों और लक्ष्यों को देखते हुए इन कैटिगरी के आधार पर कोई फैसला लें। आगे जानिए इन्वेस्टमेंट च्वाइसेस के बारे में...

इनवेस्टमेंट- फाइव डिवीजन
इनवेस्टमेंट को मोटे तौर पर पांच हिस्सों में बांट सकते हैं। ये हैं : डेट, कैश, इक्विटी, गोल्ड और रीयल एस्टेट।

कितना और कहां करें इनवेस्ट

इनवेस्टमेंट करने से पहले देखें कि आप उम्र के किस पड़ाव पर हैं। इस आधार पर तमाम जरूरतों को देखते हुए तीन तरह के पोर्टफोलियो बना सकते हैं और उसके आधार पर इनवेस्ट कर सकते हैं।

एग्रेसिव पोर्टफोलियो :
कैश 10 फीसदी
डेट 60 फीसदी
इक्विटी 30 फीसदी
किसके लिए : अगर आपकी उम्र 35 साल से कम है, तो यह पोर्टफोलियो आपके लिए सही है। इस उम्र में आपके अंदर रिस्क लेने की क्षमता होती है। इसमें इक्विटी वाला भाग आपकी लॉन्ग टर्म प्लानिंग को पूरा करेगा और डेट वाला भाग मीडियम टर्म जरूरतों के लिए है।

मॉडरेट पोर्टफोलियो :
कैश : 10 फीसदी
डेट : 70 फीसदी
इक्विटी : 20 फीसदी
किसके लिए : 35 से 50 साल के लोगों के लिए है। यह वह वक्त है, जब आप बच्चों की शिक्षा और अन्य तमाम जिम्मेदारियों को निभा रहे होते हैं। बढ़ती मीडियम टर्म जरूरतों को देखते हुए इसमें डेट का हिस्सा बढ़ाया गया है, जबकि 20 फीसदी इक्विटी इनवेस्टमेंट लॉन्ग टर्म जरूरतों को पूरा करेगा।

कंजर्वेटिव पोर्टफोलियो :

डेट : 80 फीसदी
इक्विटी : 10 फीसदी
किसके लिए : 50 साल से ऊपर वालों के लिए है। रिटायरमेंट जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।


इनवेस्टमेंट चॉइस क्या हो- डेट यानी नो रिस्क


डेट (नो रिस्क) : इसमें डिबेंचर या बॉन्ड्स खरीदकर किसी फर्म या प्रॉजेक्ट में इनवेस्ट किया जाता है। डेट इनवेस्टमेंट में वे स्कीम्स आती हैं, जिनमें फिक्स्ड रिटर्न मिलता है।

एनएससी

क्या है : पूरा नाम नैशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट। इन्हें पोस्ट ऑफिस जारी करते हैं। लंबी अवधि वाली सेविंग स्कीम है।

रिटर्न : इस पर 8 फीसदी ब्याज मिलता है, जो छह महीने में जोड़ा जाता है। साल के दौरान मिला ब्याज दोबारा इनवेस्ट हुआ माना जाता है। एक हजार रुपये की एनएससी छह साल बाद 1601 रुपये की हो जाएगी।

न्यूनतम रकम : कम से कम पांच सौ रुपये।

अधिकतम सीमा : कुछ नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : छह साल।

फायदे : पूरी तरह सेफ है। छह साल के बाद मैच्योर हो जाते हैं, जबकि पीपीएफ 15 साल में मैच्योर होता है। बैंकों से लोन लेते वक्त इसे सिक्युरिटी के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। नॉमिनेशन उपलब्ध है। इसे एक व्यक्ति के नाम से दूसरे के नाम और एक पोस्ट ऑफिस से दूसरे में ट्रांसफर कर सकते हैं। अगर सर्टिफिकेट खो जाए या चोरी हो जाए तो डुप्लिकेट सर्टिफिकेट मिल जाता है।

नुकसान : पैसा छह साल तक फंस जाता है। छह साल से पहले पैसा नहीं निकाला जा सकता।

टैक्स छूट : इनकम टैक्स की धारा 80-सी के तहत एनएससी में इनवेस्ट की गई रकम पर टैक्स में छूट मिलती है यानी एक लाख की लिमिट के भीतर इसे शामिल किया जाता है। इससे कमाया गया ब्याज टैक्सेबल है, लेकिन कोई टीडीएस नहीं कटता। इसी सीरिज में अगला है किसान विकास पत्र ...

डेट - किसान विकास पत्र
क्या हैं : पोस्ट ऑफिसों की फिक्स्ड रिटर्न वाली इनवेस्टमेंट स्कीम।

रिटर्न : ब्याज की दर 8.40 फीसदी है यानी आठ साल और सात महीने में अमाउंट डबल हो जाती है।

न्यूनतम रकम : कम से कम 500 रुपये।

अधिकतम सीमा : कोई नहीं।

फायदे : ब्याज की दर बहुत अच्छी है। ढाई साल के बाद रकम निकाली जा सकती है। बैंक या दूसरे संस्थानों से लोन लेते वक्त इन पत्रों को सिक्युरिटी के तौर पर रखा जा सकता है। किसी भी पोस्ट ऑफिस में ट्रांसफर किया जा सकता है। खो जाने या चोरी होने पर डुप्लिकेट केवीपी इश्यू हो सकते हैं।

नुकसान : टैक्स के मामले में कोई फायदा नहीं होता।

टैक्स छूट : इससे मिलने वाले ब्याज को टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाता है। 80-सी के तहत इसमें जमा की गई रकम पर रिबेट नहीं मिलती। वेल्थ टैक्स नहीं लगता।

डेट - पोस्ट ऑफिस मंथली इनकम स्कीम

क्या है : एक बार इनवेस्टमेंट करने के बाद हर महीने आमदनी चाहने वालों के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। रिटायर्ड लोगों को इस स्कीम को लेने की सलाह दी जाती है।

रिटर्न : 8 फीसदी का मासिक ब्याज दिया जाता है।

न्यूनतम रकम : कम से कम 1000 रुपये।

अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 3 लाख रुपये सिंगल अकाउंट में और छह लाख जॉइंट अकाउंट में।

फायदे : पोस्ट ऑफिस की एकमात्र स्कीम है जिस पर मासिक आधार पर ब्याज मिलता है। रेगुलर इनकम होती रहती है। ब्याज की यह रकम अपने आप ही उसी पोस्ट ऑफिस में खोले गए आपके सेविंग अकाउंट में हर महीने ट्रांसफर होती रहती है।

नुकसान : आपके द्वारा किए गए इनवेस्टमेंट को बढ़ाने में यह स्कीम कोई फायदा नहीं पहुंचाती। टैक्स का कोई फायदा नहीं मिलता।

टैक्स छूट : 80-सी में कोई छूट नहीं मिलती। ब्याज की रकम पर टैक्स लगेगा।

क्या है : एक बार इनवेस्टमेंट करने के बाद हर महीने आमदनी चाहने वालों के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। रिटायर्ड लोगों को इस स्कीम को लेने की सलाह दी जाती है। रिटर्न : 8 फीसदी का मासिक ब्याज दिया जाता है। न्यूनतम रकम : कम से कम 1000 रुपये। अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 3 लाख रुपये सिंगल अकाउंट में और छह लाख जॉइंट अकाउंट में। फायदे : पोस्ट ऑफिस की एकमात्र स्कीम है जिस पर मासिक आधार पर ब्याज मिलता है। रेगुलर इनकम होती रहती है। ब्याज की यह रकम अपने आप ही उसी पोस्ट ऑफिस में खोले गए आपके सेविंग अकाउंट में हर महीने ट्रांसफर होती रहती है। नुकसान : आपके द्वारा किए गए इनवेस्टमेंट को बढ़ाने में यह स्कीम कोई फायदा नहीं पहुंचाती। टैक्स का कोई फायदा नहीं मिलता। टैक्स छूट : 80-सी में कोई छूट नहीं मिलती। ब्याज की रकम पर टैक्स लगेगा।
डेट -सीनियर सिटिजंस सेविंग स्कीम

क्या है : यह बुजुर्गों (60 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति) के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। इनवेस्ट की गई रकम पांच साल में मैच्योर होती है।

रिटर्न : ब्याज की दर 9 फीसदी है।

न्यूनतम रकम : कम से कम एक हजार रुपये।

अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये की रकम इसमें डाली जा सकती है।

अवधि/लॉक इन पीरियड : एक साल के बाद प्रीमैच्योर विड्रॉल की सुविधा उपलब्ध है।

टैक्स छूट : इस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगता है, लेकिन जमा की गई रकम पर 80-सी के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।

क्या है : यह बुजुर्गों (60 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति) के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। इनवेस्ट की गई रकम पांच साल में मैच्योर होती है। रिटर्न : ब्याज की दर 9 फीसदी है। न्यूनतम रकम : कम से कम एक हजार रुपये। अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये की रकम इसमें डाली जा सकती है। अवधि/लॉक इन पीरियड : एक साल के बाद प्रीमैच्योर विड्रॉल की सुविधा उपलब्ध है। टैक्स छूट : इस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगता है, लेकिन जमा की गई रकम पर 80-सी के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।
डेट -पोस्ट ऑफिस टर्म डिपॉजिट
क्या है : जिस तरह बैंकों में एफडी की सुविधा दी जाती है, उसी तरह पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट की सुविधा देते हैं। इनवेस्टमेंट का यह ऑप्शन उन लोगों के लिए है जो एक बार में एक निश्चित समय के लिए कुछ रकम जमा कराते हैं और मैच्योरिटी पर कुछ निश्चित अमाउंट हासिल करना चाहते हैं।

रिटर्न : ब्याज की दर 7.5 फीसदी।

न्यूनतम रकम : कम से कम 200 रुपये।

अधिकतम रकम : कोई सीमा नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : पोस्ट ऑफिस में टाइम डिपॉजिट एक, दो, तीन और पांच साल के लिए कराए जा सकते हैं।

टैक्स छूट : जमा की गई रकम पर टैक्स में छूट नहीं मिलती, लेकिन इससे मिलने वाला ब्याज पूरी तरह टैक्स फ्री होता है।

डेट –पीपीएफ
क्या है : पूरा नाम : पब्लिक प्रॉविडेंट फंड। एसबीआई, उसके सब्सिडियरी बैंकों, दूसरे सरकारी बैंकों या पोस्ट ऑफिस की लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट स्कीम है।

रिटर्न : इसमें 8 फीसदी सालाना का ब्याज मिलता है।

न्यूनतम रकम : एक साल में कम से कम 500 रुपये जमा करना जरूरी है। साल भर में अलग-अलग किस्तों में भी रकम जमा कराई जा सकती है, लेकिन किस्तों की संख्या 12 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

अधिकतम रकम : एक साल में अधिकतम 70 हजार रुपये की रकम जमा कराई जा सकती है।

अवधि/लॉक इन पीरियड : यह 15 साल की योजना है, लेकिन जरूरत पड़ने पर छह साल के बाद कुछ पैसा निकाल सकते हैं।

फायदे : लंबे समय के लिए इनवेस्ट करनेवालों के लिए पीपीएफ बेस्ट है। पीपीएफ को अदालत के फैसले के तहत कुर्क नहीं किया जा सकता। यह 15 साल के लिए होता है लेकिन जरूरत पड़ने पर छह साल बाद पैसा निकाला जा सकता है। मैच्योर होने पर बिना कुछ डिपॉजिट किए पीपीएफ अकाउंट को जारी रखा जा सकता है। ऐसी हालत में इस पर नॉर्मल रेट पर ब्याज मिलता रहता है। इसकी अवधि को पांच साल के ब्लॉक में बढ़ाया जा सकता है। नॉमिनेशन होता है। बच्चे भी खोल सकते हैं।

नुकसान : पैसे की जल्दी जरूरत हो तो इसकी 15 साल की अवधि अखरती है। छह साल से पहले पैसा नहीं निकाल सकते। छह साल बाद भी पूरा पैसा नहीं निकाल सकते। पीपीएफ में जॉइंट अकाउंट की सुविधा नहीं होती।

टैक्स छूट : पीपीएफ से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स नहीं लगता। इनकम टैक्स में 80-सी के तहत दी जाने वाली एक लाख रुपये की टैक्स छूट में इसमें जमा रकम को शामिल किया जाता है। डिपॉजिट्स पर वेल्थ टैक्स नहीं लगता।
बैंक एफडी
क्या है : पूरा नाम : फिक्स्ड डिपॉजिट। बैंकों द्वारा दिया जाने वाला लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट का एक अच्छा ऑप्शन है। एफडी कराने वालों को चाहिए कि एक बड़ी एफडी कराने के बजाय 5 या 10 छोटी एफडी कराएं। इससे फायदा यह होगा कि अगर आपको कभी एफडी तोड़नी पड़ी तो एक ही एफडी की रकम पर आपको ब्याज का नुकसान होगा।

रिटर्न : ब्याज की दर हर बैंक के हिसाब से बदलती रहती है और इस बात पर निर्भर करती है कि कितना पैसा कितने वक्त के लिए जमा किया जा रहा है। फिर भी मोटे तौर पर यह 4 से 11 फीसदी तक हो सकती है।

न्यूनतम रकम : कम से कम कितनी रकम की एफडी कराई जाए यह बैंक पर निर्भर करता है।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : 15 दिन से लेकर पांच साल या उससे भी ज्यादा अवधि के लिए एफडी कराई जा सकती है।

फायदे : सेविंग बैंक अकाउंट से ज्यादा ब्याज इसमें मिल जाता है। एफडी में जमा रकम का 90 फीसदी तक लोन भी लिया जा सकता है। कुछ बैंकों की एफडी को मैच्योरिटी से पहले तोड़ा भी जा सकता है लेकिन इसमें ब्याज का नुकसान होता है।

नुकसान : अचानक पैसे की जरूरत पड़ जाए तो एफडी से आप फौरन रकम नहीं निकाल सकते।

टैक्स बेनिफिट : अगर पांच साल या ज्यादा अवधि के लिए एफडी कराई है, तो 80 सी के तहत छूट मिल जाएगी। लेकिन इस पर जो ब्याज मिलता है, उस पर टैक्स देना पड़ता है।
जीओआई बॉन्ड
क्या है : पूरा नाम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया बॉन्ड। इनवेस्टमेंट का एक और अच्छा ऑप्शन। एसबीआई, असोसिएट बैंकों और दूसरे नैशनलाइज्ड बैंकों द्वारा जारी किए जाते हैं। जैसे : आरबीआई के आठ फीसदी सेविंग बॉन्ड।

रिटर्न : ब्याज 8 फीसदी सालाना मिलता है, जो छह महीने में जोड़ा जाता है।

न्यूनतम रकम : कम-से-कम 1,000 रुपये।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : मैच्योरिटी पीरियड छह साल का है।

फायदे : नॉमिनेशन की सुविधा उपलब्ध है। निवेश 100 फीसदी सेफ है।

नुकसान : टैक्स में बचत नहीं होती।

टैक्स छूट : इस पर मिले ब्याज पर टैक्स लगता है। वेल्थ टैक्स से भी एग्जेम्प्शन है
कैश इनवेस्टमेंट (नो रिस्क): बैंक सेविंग्स अकाउंट्स

कैश इनवेस्टमेंट (नो रिस्क) : ये कम अवधि की इनवेस्टमेंट स्कीम होती हैं। ये आपकी जेब में पड़े कैश की तरह हैं। इनमें लॉक-इन पीरियड नहीं होता। इन पर ब्याज की निश्चित रकम मिलती है। इसमें जब चाहे पैसा निकाला जा सकता है।

बैंक सेविंग्स अकाउंट

क्या है : छोटी-छोटी बचतों के लिए बैंकों द्वारा दी जाने वाली सुविधा।

रिटर्न : इस पर 2.5 से 4 फीसदी तक का ब्याज दिया जाता है, जो बैंक पर निर्भर करता है।

न्यूनतम रकम : किसी नैशनलाइज्ड बैंक में कम-से-कम 100 रुपये से अकाउंट खोला जा सकता है।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : कोई नहीं। जब चाहे पैसा निकाल सकते हैं, जब चाहे डाल सकते हैं।

फायदे : सेविंग बैंक अकाउंट में न तो कोई फिक्स्ड पीरियड होता है और न कोई फिक्स्ड रकम। पैसा पूरी तरह सेफ होता है।

नुकसान : बहुत कम रिटर्न मिलता है।

टैक्स छूट : सेविंग बैंक अकाउंट में जमा की गई रकम पर कोई टैक्स छूट नहीं मिलती। इससे होने वाली ब्याज की इनकम को भी टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाता है। इसी सीरिज में आगे पढ़िए पोस्ट ऑफिस आरडी के बारे में...
कैश इनवेस्टमेंट (नो रिस्क) : पोस्ट ऑफिस आरडी
क्या है : आरडी यानी रेकरिंग डिपॉजिट। पोस्ट ऑफिस आरडी उन इनवेस्टर्स के लिए है जो हर महीने कुछ फिक्स्ड अमाउंट जमा कराना चाहते हैं। कम आमदनी वालों के लिए यह स्कीम इनवेस्टमेंट का एक अच्छा ऑप्शन है।

रिटर्न : मैच्योरिटी पर 10 रु. की आरडी 729 रु. देगी।

न्यूनतम रकम : 10 रुपये।

अधिकतम रकम : कोई मैक्सिमम लिमिट नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : यह पांच साल के लिए होती है, लेकिन एक साल बाद पैसा निकालने की छूट है।

फायदे : ब्याज की दर स्थिर होती है यानी उतना रिटर्न मिलना ही है।

नुकसान : एक साल के बाद कुछ शर्तों के साथ एक विड्रॉल की छूट है, लेकिन इसमें पोस्ट ऑफिस कस्टमर से कुछ रकम चार्ज करता है। तीन साल के बाद आरडी को बंद किया जा सकता है लेकिन इस स्थिति में ब्याज सेविंग अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज के बराबर होगा।

टैक्स छूट : जमा रकम पर टैक्स में कोई छूट नहीं मिलती। इससे मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल इनकम में नहीं जोड़ा जाता।
इक्विटी (हाई रिस्क):इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड
इक्विटी (हाई रिस्क) : इक्विटी इनवेस्टमेंट में पैसा शेयर बाजार में लगाया जाता है। जैसे-जैसे कंपनी की तरक्की होती है, वैसे-वैसे इनवेस्टर को फायदा होता है। इसमें रिटर्न फिक्स्ड नहीं होता।

इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड

क्या है : एक से लक्ष्यों वाले कई इनवेस्टर्स पैसे का एक पूल बनाते हैं। जिस अनुपात में वे पैसा लगाते हैं, उस हिसाब से ही उन्हें म्यूचुअल फंड यूनिट्स मिल जाते हैं। इनवेस्टर्स से इकट्ठा हुआ यह पैसा फंड मैनेजर की मदद से शेयर्स, डिबेंचर्स और सिक्योरिटीज में लगा दिया जाता है। फंड मैनेजर सारे फायदे-नुकसान का लेखा-जोखा रखता है और उसे इनवेस्टर्स द्वारा लगाई गई रकम के अनुपात में उन्हें रिटर्न देता रहता है।

रिटर्न : शेयर बाजार पर निर्भर।

न्यूनतम रकम : निर्भर करता है। वैसे आमतौर पर पांच हजार रुपये।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : कुछ नहीं। कभी भी पैसा निकाल सकते हैं।

फायदे : सभी फंड्स सेबी में रजिस्टर्ड होते हैं, इसलिए सेफ होते हैं।

नुकसान : बहुत सारे ऑप्शन में से किसमें इनवेस्ट करें, यह तय करना आम निवेशक के लिए मुश्किल होता है।

टैक्स छूट : जमा रकम पर मिलती है

एक्सर्पट्स व्यू : इस वक्त इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड में इनवेस्ट न करना ही बेहतर है। अभी डेट बेस्ड म्यूचुअल फंड में पैसा लगाएं। तीन से छह महीने बाद वहां से पैसा निकालकर इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड में लगा सकते हैं। वैसे, इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड्स में पैसा कम से कम तीन साल के लिए लगाना चाहिए। इसके अलावा जिन इनवेस्टर्स के पास लगाने के लिए एकमुश्त रकम नहीं है और जो रिस्क भी कम लेना चाहते हैं, उन्हें सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान यानी सिप चुनना चाहिए। सिप आमतौर पर आरडी की तरह होता है, जिसमें एक तय रकम हर महीने म्यूचुअल फंड्स में इनवेस्ट की जाती है। कितनी अमाउंट डालनी है और कौन सी म्यूचुअल फंड स्कीम में लगानी है, यह इनवेस्टर तय करता है।
इक्विटी (हाई रिस्क) :यूलिप
क्या है : इसका पूरा नाम है : यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान। इसमें रिस्क कवर और इनवेस्टमेंट, दोनों होते हैं। प्रीमियम अमाउंट को स्टॉक मार्केट फंड्स में इनवेस्ट किया जाता है, जिससे रेगुलर रिटर्न मिलता है। वैसे, यूलिप ऑफर करने वाली कंपनी इनवेस्टर को यह ऑप्शन देती है कि वह डेट, बैलेंस्ड और इक्विटी फंड्स में से कुछ भी चुन सकते हैं। कुछ एक्सपर्ट यूलिप में इनवेस्ट करने की सलाह नहीं देते। वैसे अगर यूलिप में इनवेस्ट करना ही है तो स्कीम, कंपनी और फंड मैनेजर के ट्रैक रेकॉर्ड का अच्छी तरह एनालिसिस कर लें और किसी प्रफेशनल की मदद लें।

रिटर्न : तय नहीं।

न्यूनतम रकम : 1,000 रुपये।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : 10 और 15 साल के लिए उपलब्ध।

फायदे : यूलिप इंश्योरेंस कवर मुहैया कराता है, लेकिन याद रखें यह इंश्योरेंस कवर फ्री नहीं होता। इसके लिए आपकी इनवेस्टमेंट से ही रकम काटी जाती रहती है।

नुकसान : यूलिप में एक बार इनवेस्ट करने के बाद पहले तीन प्रीमियम आपको देने ही होते हैं, जबकि म्यूचुअल फंड में ऐसा नहीं है।

टैक्स छूट : जमा की गई रकम पर 80 सी के तहत टैक्स में छूट मिलती है। साथ ही इससे मिलने वाला रिटर्न भी टैक्स फ्री होता है।

एक्सर्पट्स व्यू : यूलिप की पांच अलग-अलग स्कीम्स में पैसा इनवेस्ट करें। इससे अगर एक में नुकसान होगा, तो दूसरी से उसकी भरपाई की गुंजाइश रहेगी।
इक्विटी (हाई रिस्क):ईएलएसएस
क्या है : पूरा नाम है : इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम। यह एक तरह का म्यूचुअल फंड ही है। यह उन लोगों के लिए है जो रिस्क झेलने की क्षमता रखते हैं।

रिटर्न कितना : निर्भर करता है। 30 से 40 फीसदी का रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है।

न्यूनतम रकम : 500 रुपये।

अधिकतम रकम : कोई नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : तीन साल।

फायदे : सबसे बड़ा फायदा है इसका कम लॉक-इन पीरियड। एनएससी में पैसा छह साल के लिए फंसता है जबकि पीपीएफ में 15 साल के लिए, लेकिन इसमें तीन साल के लिए ही फंसता है। ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना होती है। डिविडेंड ऑप्शन चुनकर आप लॉक-इन पीरियड के दौरान भी कुछ रिटर्न पा सकते हैं। कुछ ईएलएसस स्कीम पसर्नल डेथ कवर भी देती हैं।

नुकसान : रिस्क फैक्टर बहुत ज्यादा है। मैच्योरिटी से पहले पैसा नहीं निकाल सकते।

टैक्स छूट : 80-सी के तहत मिलने वाली टैक्स छूट में इसमें जमा की गई रकम को शामिल किया जाता है।

एक्सर्पट्स व्यू : इस वक्त बाजार की हालत को देखते हुए पुरानी स्कीमों में इनवेस्ट न करें। कोई नई स्कीम आए तो सोच सकते हैं।
इक्विटी (हाई रिस्क)- अन्य इंवेस्टमेंट्स
गोल्ड


गोल्ड इनवेस्टमेंट का एक अच्छा ऑप्शन है, लेकिन आज के हालात में जबकि इसकी कीमत आसमान छू रही है, एक्सर्पट्स यह सलाह नहीं देते कि गोल्ड में पैसा इनवेस्ट किया जाए।

रीयल एस्टेट

आज के दौर में रीयल एस्टेट में इनवेस्ट करना एक बढि़या ऑप्शन है। एक तरफ होम लोन की ब्याज दरें कम हो रही हैं और दूसरी तरफ रीयल एस्टेट में कीमतों में भी ठहराव है। ऐसे में बेहतर रिटर्न के लिए रीयल एस्टेट के ऑप्शन के बारे में सोच सकते हैं।

एक्सर्पट्स पैनल -सीए अनिल चोपड़ा ,सीए सुभाष लखोटिया,सीए सत्येंद्र जैन

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