Saturday, February 14, 2009

एलआईसी ने ये बात तो छिपा ही ली






एलआईसी ने ये बात तो छिपा ही ली

जीवन बीमा निगम की जीवन आस्था योजना को मिली भारी प्रतिक्रिया को किस तरह लिया जाए ? क्या यह एक बेहतरीन उत्पाद तैयार करने के लिए एलआईसी को ग्राहकों द्वारा दिया गया 8000 करोड़ रुपए से ज्यादा का उपहार है ? या फिर कुछ चालाकी से और कम पारदर्शिता से बेची गई एक स्कीम का नतीजा ? हमारा जवाब दोनों में ही है। एलआईसी ने निश्चित तौर पर एक ऐसा उत्पाद बनाया जो अनिश्चित दौर के लिए सबसे उपयुक्त है और बाजार की नब्ज पकड़ता है- एक ऐसा उत्पाद जो निश्चित रिटर्न का वादा करता है। इसके बावजूद एलआईसी की भारी कामयाबी इस वजह से भी रही कि उसने इस योजना के लाभ के बारे में उतनी पारदर्शिता नहीं बरती है, जितनी उससे उम्मीद की जाती है।

इंश्योरेंस रेगुलेटर की नहीं गई नज़र

दुर्भाग्य ही कहेंगे कि बीमा रेगुलेटर इरडा ने भी ठीक अपनी नाक के नीचे हुई इस योजना की भारी-भरकम खरीद के प्रति अपनी आंखें बंद रखीं। सतह पर देखें तो जीवन आस्था एक सिंगल प्रीमियम अश्योरेंस योजना है जिसमें परिपक्वता या मौत पर लाभ की गारंटी दी गई है। एक ऐसे माहौल में जहां बैंकों ने फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरें घटा दी हों , ऐसा लगता है कि यह योजना दोनों ही जरूरतों को पूरी करती थी- एफडी के मुकाबले बेहतर करमुक्त रिटर्न और साथ में बीमा कवर। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इसे इतनी भारी प्रतिक्रिया क्यों मिली , हालांकि सतर्क तरीके से गणना की जाए तो सालाना रिटर्न अधिकतर मामलों में 6.75 फीसदी से 7.25 फीसदी के बीच बैठता है!

चूहा बिल्ली की दौडॉ खेल कर पैसे बनाना छोड़े
हमने हमेशा निवेशकों के तईं ज्यादा फाइनांशियल लिटरेसी और कंपनियों के स्तर पर अधिक ट्रांसपेरेंसी की वकालत की है। इसके बावजूद इसमें शक पैदा होता है कि ठीक-ठाक जानकारी रखने वाले निवेशक भी आखिर क्यों नहीं उस परदे के पीछे झांक सके, जिस पर एलआईसी ने लाभ की मुहर लगा रखी थी। मसलन , यदि किसी बीमा योजना पर देय प्रीमियम तय राशि के 20 परसेंट से ज्यादा होता है , तो बीमा की प्रक्रिया करारोपण के योग्य हो जाती है। जीवन आस्था के मामले में एकल प्रीमियम मेच्योरिटी राशि से कई मामलों में 20 परसेंट से ज्यादा बैठता है और इस तरह मेच्योरिटी राशि पर टैक्स लगना लाजिमी हो जाता है। एलआईसी ने यही बात छुपाए रखी। यह समय की दरकार है कि बाजार के खिलाड़ी निवेशकों के साथ चूहा-बिल्ली की दौड़ खेल कर पैसे बनाना छोड़ें। यदि ऐसा नहीं होता है , तो नियामक संस्थाओं को तत्काल दखल देना चाहिए और उन्हें ऐसा करने को बाध्य करना चाहिए।

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

आपने बहुत अच्छी जानकारी दी। साधुवाद !

किन्तु अन्त में थोड़ा 'शार्टकट' मार दिया। टैक्स की
बात को थोड़ा और स्पष्ट करते तो बेहतर होता। उदाहरण देते और अच्छा था।

विष्णु बैरागी said...

मैं एल आई सी का एजेण्‍ट हूं और लगातार कुछ जानने की कोशिश करता रहता हूं। किन्‍तु यह गुजाइश रखता हूं कि मेरी बात अन्तिम नहीं है।
आपने जो कुंछ भी कहा है, उसका एक ही अर्थ है कि आई आर डी ए, आर बी आई, वित्‍त मन्‍त्रालय, आय कर विभाग, सेबी और एल आई सी की समस्‍त प्रतियोगी बीमा कम्‍पनियां (इतनी सारी संस्‍थाएं, इतने सारे विभाग और इन सबमें बैठे, अपने-अपने विषय के शिखर पुरुष) सबके सब मूर्ख बना दिए गए। तय करना मुश्किल है कि इनमें से किसी की भी नजर न तो आप पर पडी और न ही आपके समान उनमे से एक भी सोच सका।
आश्‍चर्य यहरं समाप्‍त नहीं हो रहा। आश्‍चर्य यह भी है कि 'किसी' की नजर अब तक भी इस 'तथ्‍य' पर नहीं पडी और न ही अब तक 'कोई' हरकत में आया।
आपकी यह पोस्‍ट किन्‍हीं सुनिश्चित और निहित उद्देश्‍यों को लेकर लिखी अनुभव हो रही है क्‍यों कि आपने तो एल आई सी द्वारा बरती गई पारदर्शिता की शतांश पारदर्शिता बरतना तो दूर की बात रही, आप तो बात को जान बूझ कर अबूझ बनाते नजर आ रहे हैं-जैसा कि अनुनादसिंहजी की टिप्‍पणी से भी अनुभव हों रहा है।
जहां तक मेरी समझ काम करती है, प्रीमीयम की रकम यदि बीमाधन के बीस प्रतिशत से अधिक होती है तो, 'उस' अधिक वाली राशि पर कर छूट उपलब्‍ध नहीं होती। 'जीवन आस्‍था' में यह छूट पहले ही वर्ष से उपलब्‍ध है। यदि यह छूट अनुमतेय है तो इसका एक मात्र सन्‍देश यही है कि इसकी प्राप्तियां, आय कर अधिनियम की धारा 10 (10)(डी) के अन्‍तर्गत 'कर देयता से मुक्‍त' रहेंगी।
सलाहकार को पक्ष नहीं बनना चाहिए। मुमकिन है कि मेरी धारणा अन्‍यथा हो किन्‍तु इस समय तो आप 'पक्ष' बनते ही हुए नजर आ रहे हैं।
यह गुंजाइश रखते हुए कि मेरी जानकारी अधूरी है, कृपया मेरा ज्ञानवर्ध्‍दन कीजिएगा।

एक कृपा और कीजिएगा। यदि सम्‍भव हो तो अपने ब्‍लजाग से 'वड्र वेरीफिकेशन' की व्‍यवस्‍था अविलम्‍ब हटा लें।

विष्णु बैरागी said...

टिप्‍पणी करने के बाद मैं ने देखा तो पाया कि आपका ब्‍लाग ई-मेल से प्राप्‍त करने की सुविधा नहीं है।

व्‍यक्तिगत कारणों से मैं नियमित रूप से अधिकांश ब्‍लाग नहीं पढ पाता हूं। किन्‍तु जो ब्‍लाग मुझे ई-मेल से मिल जाते हैं वे तो पढता ही पढता हूं।

इसीलिए आपके ब्‍लाग को ई-मेल से प्राप्‍त करने की सम्‍भावनाएं तलाशीं और असफल रहा।

आपसे करबध्‍द अनुरोध्‍ा है कि आप यदि मेरी टिप्‍पणी को आधार बना कर कोई टिप्‍पणी करें या कोई जानकारी दें तो कृपया ऐसा कुछ करने का उपकार कीजिएगा कि वह मेरे मेल बाक्‍स तक पहुंच जाए। मेरा ई-मेल पता है : bairagivishnu@gmail.com

मेरा स्‍वार्थ यह है कि यदि मेरी जानकारी गलत है तो भविष्‍य में ऐसा अपराध करने से बच सकूंगा। और यदि मेरी जानकारी सही है तो मेरा आत्‍म-विश्‍वास बढेगा।

अग्रिम धन्‍यवाद और आभार।