Friday, February 6, 2009

दो महीनों में बाजार में आएगी तेजी

भारतीय इक्विटी में पैसा लगाने वाले निवेशकों को अगले छह से नौ महीने के दौरान कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव को लेकर खुद को तैयार करना चाहिए। क्रेडिट सुइस में हेड ऑफ ग्लोबल रिसर्च फॉर प्राइवेट बैंकिंग एंड एसेट मैनेजमेंट जाइल्स कीटिंग का ऐसा मानना है। इसके बावजूद जोखिम-मुनाफा अनुपात उन लोगों के पक्ष में दिख रहा है, जो उठापटक के बीच छोटी अवधि में दांव खेलने का साहस रखते हैं।

दीप्ता राजकुमार से साथ एक साक्षात्कार में जाइल्स ने कहा कि रक्षात्मक सेक्टर से अपना ध्यान हटाकर साइक्लिकल कारोबार पर लगाने का वक्त आ पहुंचा है, जो बीते कुछ वक्त से हल्का प्रदर्शन कर रहे थे। भारत सहित ज्यादातर उभरते हुए बाजारों के वैल्यूएशन में बीते एक साल में भारी कमी आई है लेकिन पोर्टफोलियो निवेशकों पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है।

आपको क्या लगता है, यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा?

फिलहाल हम दुनिया भर में वैल्यूएशन के बूते चलने वाले बाजारों में नहीं खड़े हैं। इसके उलट हम खुद को उन बाजारों में खड़ा पा रहे हैं जो जोखिम सहने की क्षमता के आधार पर आगे बढ़ते हैं। दुनिया भर में ऐसी कई संपत्तियां हैं, जो भारत और दूसरे उभरते हुए बाजारों को काफी मूल्य मुहैया कराती है। लेकिन फिलहाल, निवेशकों के पास न तो जोखिम सहने की क्षमता है और न ही इस मौके का फायदा उठाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन हैं।

वे हर चीज को लेकर सतर्क रुख दिखा रहे हैं। केवल वे उत्पाद अपवाद हैं, जिनमें कम जोखिम है। एक वक्त आएगा जब यह सिलसिला उलट जाएगा। मुझे लगता है कि भारत समेत वैश्विक बाजार अगले छह से नौ महीने के दौरान भारी उथल-पुथल दर्ज करेंगे। इस तरह के बाजारों से निपटना काफी मुश्किल होता है। कुछ वक्त बीतने पर आर्थिक स्थिति साफ होगी और कर्ज से जुड़े हालात में सुधार होगा। तब तक अत्यधिक जोखिम से बचने के रुख में कमी आएगी और फायदा हकीकत बन जाएगा।

भारत को लेकर आपका क्या मानना है और आप कहां अवसर देखते हैं?

मुझे लगता है कि भारतीय बाजारों में रोटेशन की रणनीति अपनाने की जरूरत है। फिलहाल हम दायरे के अंतिम छोर की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि कोई भी आगे गिरावट आने से इनकार नहीं कर सकता। कुल मिलाकर अगले दो महीने में अब गिरावट से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज करेंगे। हालांकि निवेशकों को जल्द से जल्द बाजार चढ़ने का फायदा उठाना होगा क्योंकि बढ़िया मुनाफा स्थिति बदलने से जुड़ा होगा।

सेक्टरों के मामले में कई रक्षात्मक सेक्टरों को हमने मजबूती से बेहतरीन प्रदर्शन करते देखा है। अब जोखिम सहने की क्षमता कम होने के वक्त बचाव का रुख दिखाने के बजाए ज्यादा बीटा वाले शेयरों पर ध्यान लगाना चाहिए जैसे कि अंडरवैल्यू ऑटोमोबाइल और मेटल स्टॉक। लेकिन ऐसा कुशल निवेश हम छोटी अवधि की रैली के लिए अस्थायी होल्डिंग्स के तौर पर सुझा रहे हैं और हमें उम्मीद है कि ज्यादा वक्त तक जारी नहीं रहेगी। कंज्यूमर श्रेणी के शेयर सुस्ती में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, लेकिन ऐसी रैली में उनका प्रदर्शन कोई खास नहीं रहेगा।

इस वक्त बड़े निवेशकों (एचएनआई) का पैसा किस तरफ जा रहा है?

अब इसके काफी सबूत हमारे सामने हैं कि एचएनआई और रईस निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो की वैल्यू में भारी गिरावट झेली है। इनमें से कुछ कम जोखिम वाले प्रोडक्ट में पैसा लगा रहे हैं। वैश्विक कारोबार के मामले में यह देखा जा सकता है कि जनवरी की शुरुआत में ज्यादा जोखिम लेने का सिलसिला शुरू तो हुआ लेकिन तमाम उत्पादों के दायरे में यह सबसे कम जोखिम वाले थे।

मसलन, बड़े निवेशकों ने सरकारी बॉन्ड से निकलकर बढि़या गुणवत्ता रखने वाले और थोड़े से ज्यादा जोखिमपूर्ण कॉरपोरेट डेट का रुख करना शुरू कर दिया था। यह जोखिम का दायरा बढ़ाने की प्रक्रिया है। ऐसे कम ही निवेशक हैं जो जल्द बिकवाली करने में कामयाब रहे। जोखिम उठाने की उनकी क्षमता औसत से कुछ ज्यादा है और उन्होंने दुनिया भर में सुनहरे अवसरों की तलाश शुरू कर दी है। ऐसे अवसरों का उदाहरण चुनिंदा रियल एस्टेट प्रॉपर्टी है, जिनकी कीमतों में भारी गिरावट देखी गई है।

आप बड़े निवेशकों को क्या सुझाव देना चाहेंगे?

मैं उन्हें भारत को अपनी नजर में रखने का सुझाव दूंगा। लंबी अवधि में बढ़त की कहानी बरकरार है और हमें 2010 के लिए पांच से छह फीसदी शुद्ध बढ़ोतरी की उम्मीद है। वैल्यू कहीं नहीं गई है और जब तक भारतीय बाजार निचले स्तरों पर कारोबार कर रहे हैं, उन्हें निवेश बढ़ाने के लिए मौकों का फायदा उठाना चाहिए। हालांकि अगर वे जोखिम से बचना चाहते हैं तो कुछ और इंतजार कर सकते हैं।

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