शेयर बाजार के इतिहास में साल 2008 शायद सबसे बुरा रहा। पश्चिम बाजार जहां अपनी ही गलतियों की वजह से घुटनों पर आ गए, वहीं उनकी वजह से एशियाई बाजारों में तबाही का मंजर देखने को मिला। यहां इक्विटी बाजारों में भारी गिरावट, ऊंची मुद्रास्फीति दर, आसमान छूती ब्याज दरों और कमोडिटी की कीमतें लुढ़कने की वजह से निवेशकों के पास सिर छिपाने के लिए कोई जगह नहीं बची। एक वक्त आ गया था जब हाथ में नकदी रखना सबसे सुरक्षित विकल्प जान पड़ रहा था। इक्विटी बाजारों की तस्वीर अब भी साफ नहीं हुई है लेकिन महंगाई दर और ब्याज दर के मोचेर् पर राहत मिलती दिख रही है। वित्तीय पैकेज और मौद्रिक उपाय से जुड़े कदम सही दिशा में हैं। हालांकि ज्यादातर निवेशकों का इक्विटी बाजार से भरोसा उठ गया है और एसेट श्रेणियों में निवेश लौटने में अभी और वक्त लगने के आसार दिख रहे हैं। इसलिए अब सवाल यह उठता है कि औसत निवेशक होने के नाते आप बचत खाते में रखी अतिरिक्त रकम को कहां लगा सकते हैं? बचत और अतिरिक्त राशि को कहां लगाना है, इसका फैसला करने से पहले आपको निवेश के पीछे संतुलन कायम करने के बारे में विचार जरूर करना चाहिए। इस बात पर भी विचार करना जरूरी है कि क्या पैसे को मध्यम अवधि की जरूरत के लिए लगाना है या फिर लंबी मियाद के लिए। इसके अलावा छोटी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पैसा कहां लगाना चाहिए, इस सवाल का जवाब तलाशना भी जरूरी है। आप जोखिम सहने की क्षमता, एसेट आवंटन और रिटर्न के आधार पर पैसा इक्विटी, डेट या फिर सोने में लगा सकते हैं। अगर आपको पैसा छोटी अवधि की जरूरत को पूरा करने के लिए लगाना है तो फिक्स्ड डिपॉजिट सबसे बेहतर है। हालांकि, अगर कोई निवेशक थोड़ा ज्यादा जोखिम उठाने की हालत में है तो मौजूदा स्थिति में वह इनकम फंड पर गौर कर सकता है। ब्याज दरें फिलहाल निचले स्तरों पर हैं, ऐसे में मध्यम से लंबी अवधि की डेट प्रतिभूतियां भी निवेश का बढ़िया विकल्प मुहैया कराती हैं। ऐसा इनकम फंड या म्यूचुअल फंड के गिल्ट फंड में निवेश कर किया जा सकता है। एक तरफ जहां इनकम फंड सामान्य तौर पर मध्यम से लंबी अवधि के सरकारी पेपर (गिल्ट) और कॉरपोरेट डेट प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं, वहीं दूसरी ओर गिल्ट फंड केवल सरकारी पेपर में पैसा लगाते हैं। ब्याज दरों में गिरावट से ऊंची ब्याज दरों के साथ आने वाली मौजूदा प्रतिभूतियां आकर्षण का केंद्र बन गई हैं, जिनसे उनके दाम बढ़ गए हैं। 6-12 महीने की अवधि के लिए यह निवेश का बढ़िया जरिया हो सकता है।ब्याज दरें पहले से नीचे आ रही हैं और कोई भी इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि क्या उनमें और नरमी आएगी, इसलिए इनकम फंड गिल्ट फंड से बेहतर साबित हो सकते हैं क्योंकि उनमें कॉरपोरेट बॉन्ड और गिल्ट के बीच स्विच करने का विकल्प मिलता है। छोटी अवधि के लिए लिक्विड फंड में अतिरिक्त पैसा लगाना बढ़िया रणनीति है क्योंकि वे आपको तरलता और बाजार की ब्याज दरें मुहैया कराते हैं। मध्यम अवधि से लंबी मियाद के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कुछ हिस्सा एसआईपी के जरिए लगाना बढ़िया विचार है। एसआईपी निवेश का वह तरीका है, जिसमें नियमित अंतराल पर तय रकम म्यूचुअल फंड में डाला जाता है। इससे बाजार की चाल का अंदाजा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि बाजार में तेजी हो या मंदी, आपका निवेश जारी रहता है। छोटी रकम का निवेश एक वक्त बाद बड़ी राशि में बदल जाता है। म्यूचुअल फंड आपको हर तरह की योजना में एसआईपी की सुविधा देते हैं। इसके जरिए आप डायवर्सिफाइड इक्विटी, इंडेक्स, बैलेंस्ड या डेट फंड में पैसा लगा सकते हैं। निवेश की योजना बनाते वक्त आपको इस बात का निर्णय लेना होता है कि उस रकम को छोटी अवधि, मध्यम अवधि या फिर लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करना है। साथ ही तरलता, जोखिम सहने की क्षमता और संपत्ति आवंटन पर भी उतना ही गौर करना जरूरी है।
-ऋषि त्रिवेदी
-ऋषि त्रिवेदी
1 comment:
अच्छी जानकारी दी है बन्धु.
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