Thursday, September 18, 2008

क्या है सबप्राइम लोन?

क्या है सबप्राइम लोन?
अमेरिका में लोन लेने वालों की रेटिंग दो तरीके से की जाती है। पहला प्राइम और दूसरा सबप्राइम। प्राइम के तहत वैसे लोग आते हैं, जिनका लोन चुकाने का रेकॉर्ड अच्छा रहा है।सबप्राइम में वे ग्राहक आते हैं जिनका लोन चुकाने का रेकॉर्ड अच्छा नहीं है। सबप्राइम के तहत आने वालों को दिया जाने वाला लोन सबप्राइम लोन कहलाता है। साधारण तौर पर बैंक ऐसा लोन नहीं देना चाहते।
क्यों दिया गया लोन?
2002 से 2007 के बीच बैंकों ने अपने सब्सिडियरी कंपनियों के जरिये सबप्राइम लोन जमकर बांटें। ऐसा करने के पीछे तर्क यह था कि 1997 के बाद अमेरिकी रीयल एस्टेट सेक्टर में जबर्दस्त बूम आया। ऐसे में माना गया कि लोग अपना लोन चुकाएंगे ही क्योंकि वे घर बनाने या खरीदने के लिए लोन ले रहे हैं। सरकार ने भी बैंकों को सबप्राइम लोन बांटने के लिए प्रोत्साहित किया।
क्यों दिया गया लोन?
बड़े फंड़ निवेशकों जैसे हेड फंड और म्यूचुअल फंडों ने सबप्राइम लोन पोर्टफोलियो को इनवेस्टमेंट के लिए अच्छा माना। ऐसे में उन्होंने लोन देने वालों से भी इस पोर्टफोलियो की खरीदारी की। इसका असर यह हुआ कि बैंकों के पास फिर से लोन देने के लिए पैसा आ गया और सबप्राइम लोन बाजार तेजी से बढ़ने लगा।
कितना देना होता था ब्याज
चूंकि इसमें पैसे डूबने का रिस्क ज्यादा था, इसलिए प्राइम लोन के मुकाबले इस पर दो परसेंट ज्यादा ब्याज रखा गया था। ऐसे में ईएमआई भी ज्यादा होता था। इससे निपटने के लिए बैंकों ने एक नया फॉर्म्युला अपनाया, जिसके तहत पहले दो साल में सिर्फ ब्याज अदा करने को कहा जाता था और मूलधन का भुगतान दो साल बाद करने को कहा जाता था।
कैसे आया संकट?
2007 के बाद रीयल एस्टेट कारोबार में बूम खत्म हो गया। ऐसे में मकानों की कीमतें गिरने लगीं और सबप्राइम लोन न चुकाने वालों की संख्या भी बढ़ती गई। चूंकि यह लोन ज्यादातर मकानों के बदले दिए गए थे इसलिए ऐसे मकानों को जब्त किया जाने लगा और बाजार में इनकी संख्या भी बढ़ती गई।
इस सबका नतीजा यह हुआ कि मांग में और कमी आने लगी। कीमतें और गिरने लगीं। ऐसे में मकान बेचकर लोन के पैसे की पूरी तरह से उगाही नहीं हो पाई और बैंको को घाटा उठाना पड़ा।
क्या हुआ असर
ग्लोबल बैंकों और ब्रोकरों ने अब तक 512 अरब डॉलर घाटे का आकलन किया है। सिटीग्रुप 55.1 अरब डॉलर के नुकसान के साथ पहले और मेरिल लिंच 52.2 अरब डॉलर के साथ दूसरे स्थान पर रहा। कुल नुकसान का आधा करीब 260 अरब डॉलर का नुकसान अमेरिकी फर्मों को झेलना पड़ा, जबकि यूरोपीय फर्मों को करीब 227 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। एशियाई फर्मों को 24 अरब का नुकसान उठाना पड़ा।
ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े इनवेस्टमेंट बैंक और सिक्योरिटीज ट्रेडिंग फर्म बेयर र्स्टन्स को जबर्दस्त झटका लगा और बाद में उसे जेपी मॉर्गन चेज के हाथों बिकना पड़ा। अब लीमैन ब्रदर्स को भी दिवालियेपन की अर्जी दाखिल करनी पड़ी है, जबकि मेरिल लिंच को बैंक ऑफ अमेरिका के हाथों बिकना पड़ा।
बाकी दुनिया पर क्यों हुआ असर
अमेरिका दुनिया का सबसे ज्यादा उधार देने वाला देश है। इसके अलावा सभी देश अपने फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व को डॉलर के रूप में रखते हैं और उसे अमेरिकी सिक्योरिटीज में इनवेस्ट करते हैं। ऐसे में अमेरिका के किसी भी संकट का इन पर प्रभाव पड़ना लाजमी है।

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