Sunday, June 7, 2009

एमआईएस क्यों है फायदे का सौदा

निवेश के लिहाज से जब मुश्किल वक्त आता है तो निवेशक तय आमदनी वाले उपायों की तलाश करते हैं। अब जहां तक तय आमदनी वाले उपायों की बात है तो बैंकों की जमा दरें 5 सालों के निचले स्तर पर आ चुकी हैं। कुछ महीने पहले तक बैंकों की सावधि जमा योजनाएं निवेशकों को भा रही थीं क्योंकि सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक 3 साल या इससे अधिक की परिपक्वता अवधि पर 9 फीसदी तक ब्याज दे रहे थे।

बहरहाल अब यह दर भी 7 फीसदी के आसपास आ चुकी है। इतना ही नहीं , जमा दरों में 50-100 बेसिस प्वाइंट्स की और कमी की आशंका दिख रही है। ऐसे में तय आमदनी के निवेश उपाय तलाश रहे लोग क्या करें ? क्या बैंकों की सावधि जमा योजनाओं का कोई विकल्प है ? इसका जवाब है डाकघर मासिक आय योजना ( एमआईएस ) । कुछ साल पहले तक एमआईएस काफी लोकप्रिय थी लेकिन एफडी पर बढ़ी ब्याज दरों और नए उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए बैंकों की आक्रामक प्रचार रणनीति के कारण एमआईएस पीछे छूट गई। अब गिरती ब्याज दरों के दौर में एमआईएस फिर निवेशकों की पसंदीदा योजना बन सकती है।

डाकघर की जमा के साथ कुछ खास पहलू भी जुड़े होते हैं। मसलन , जमा रकम पर सरकारी गारंटी और ब्याज की तय दर। डाकघर की एमआईएस में जमा रकम पर सालाना 8 फीसदी ब्याज मिलता है लेकिन बैंक एफडी के उलट इसमें ब्याज का भुगतान हर महीने किया जाता है। इसकी अवधि 6 वर्ष की होती है। मासिक ब्याज भुगतान के अलावा एमआईएस परिपक्वता पर 5 फीसदी बोनस भी देती है। इस तरह प्रभावी वार्षिक यील्ड 8.9 फीसदी हो जाता है जो किसी भी बैंक डिपॉजिट से ज्यादा है। सोने पर सुहागा यह कि एमआईएस से होने वाली मासिक आय को डाकघर आवर्ती जमा ( आरडी ) में सीधे निवेश किया जा सकता है जिससे करीब 10.5 फीसदी सालाना रिटर्न मिलता है।

कैसे काम करती है एमआईएस ?

इसे समझने के लिए मान लेते हैं कि ए ने बैंक एफडी में 6 सालों के लिए 90,000 रुपए जमा किए। जमा दरों के करीब 7 फीसदी होने के साथ ए को परिपक्वता पर ब्याज के रूप में लगभग 46,500 रुपए और चक्रवृद्धि ब्याज का ऑप्शन मिलेगा। दूसरी ओर बी ने एमआईएस में 90,000 निवेश किए। उन्हें 72 महीनों तक हर महीने 600 रुपए मिलते रहेंगे। परिपक्वता तक वह मासिक ब्याज के रूप में 43,200 रुपए और परिपक्वता के समय बतौर बोनस 4,500 रुपए पाने के हकदार हैं। छह सालों में बी को कुल 47,700 रुपए का रिटर्न मिल जाएगा जो इसी अवधि की बैंक एफडी के रिटर्न से ज्यादा है। मान लेते हैं कि बी को मासिक आय की जरूरत नहीं है और उन्होंने एमआईएस के ब्याज को आवर्ती जमा ( आरडी ) में सीधे भेजने का विकल्प चुना। तो हर महीने उनके आरडी खाते में 600 रुपए जमा होंगे जिस पर तिमाही चक्रवृद्धि आधार पर 7.5 फीसदी सालाना ब्याज मिलेगा। छठें वर्ष के अंत में बी के आरडी खाते में करीब 51,400 रुपए होंगे। आरडी से मिली रकम और एमआईएस का बोनस मिलाकर छह सालों में रिटर्न हो गया 56,000 रुपए। नतीजा यह रहेगा कि एमआईएस में निवेश के साथ मासिक आय को आरडी में डालने का विकल्प चुनने वाले बी ने समान अवधि के लिए बैंक एफडी में निवेश करने वाले ए की तुलना में 9,500 रुपए ज्यादा हासिल किए।


अब बात थोड़े अनाकर्षक पहलुओं पर

बैंक एफडी की तरह एमआईएस से मिलने वाली ब्याज आमदनी पर कर देना होता है। एमआईएस को बैंक एफडी पर यह बढ़त हासिल है कि इसमें स्त्रोत पर कर कटौती नहीं है। बहरहाल 5 साल से अधिक अवधि वाली बैंक एफडी पर आयकर की धारा 80 सी के तहत कर छूट मिलती है। अगर इस योजना के कर से जुड़े पहलुओं को नजरंदाज कर दें तो यह यकीनी तौर पर बेहतर दांव है। रिटर्न की दर पर ब्याज दर का कोई असर नहीं पड़ता है। आम ब्याज दर घट सकती है लेकिन यह योजना 8 फीसदी की तय ब्याज दर से रिटर्न देगी। आरडी के साथ इसे मिला दिया जाए तो 10.5 फीसदी यील्ड हासिल हो सकता है जो अनिश्चितता और गिरती ब्याज दरों के इस दौर में निश्चित तौर पर आकर्षक है।
-पल्लवी मुले

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