गौरतलब है कि अधिकतर निवेशक लक्ष्य आधारित फाइनेंशियल प्लानिंग को अपनाते हैं। इसका सीधा सा मतलब होता है, भविष्य की जरूरतों की पहचान करना। इस तरह की जरूरतों में घर खरीदना, हॉलीडे पर जाना, बच्चों की शिक्षा और सेवानिवृत्ति शामिल है। इन सब जरूरतों को पूरा करने के लिए कितनी अवधि की जरूरत होगी, इसका आकलन करना चाहिए। इसमें छह महीने, 1 साल, 3 साल, 5 साल या 20 साल का समय लग सकता है।
जोखिम प्रोफाइल
इसके तहत इस बात का आकलन करना चाहिए कि लक्ष्य को हासिल करने के लिए कितना जोखिम उठाना चाहिए। इसे दूसरे शब्दों में समझें तो कोई व्यक्ति अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए किए जाने वाले निवेश पर कितने हद तक का नुकसान झेल सकता है। एक बार लक्ष्य और जरूरत की पहचान हो जाने के बाद अवधि और जोखिम प्रोफाइल को समझना चाहिए। सही निवेश पोर्टफोलियो को लक्ष्य के हिसाब से तैयार करना चाहिए। किसी भी निवेशक को अपने व्यक्तिगत लक्ष्य हासिल करने के लिए कदम उठाने से पहले कुछ आधारभूत बातों का ध्यान रखना चाहिए।
डायवर्सिफिकेशन
हर जरूरत के मुताबिक पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाइ करना चाहिए। यह निवेश करने के दौरान सबसे अहम पहलू होता है और उम्र के लिहाज से सही दिशा में निवेश साबित होना जरूरी है। डायवर्सिफिकेशन को कई असेट वर्गों में निवेश कर हासिल किया जा सका है। निवेशक अपने निवेश को इक्विटी, फिक्स्ड आय, रियल एस्टेट, गोल्ड/कमोडिटीज, प्रॉपर्टी में डायवर्सिफाइ कर सकता है। किसी भी निवेशक को एक ही असेट वर्ग में निवेश करने से बचना चाहिए।
लिक्विडिटी
निवेश करने के दौरान इस पहलू पर विशेष तौर पर ध्यान दें। इस ओर ध्यान नहीं देने से कई बार अनावश्यक नुकसान का सामना करना पड़ता है। जैसे साल 2008 में बाजार में तेज गिरावट आने के दौरान बाजार से नहीं निकलने वालों को तगड़ा झटका लगा होगा। निवेश पोर्टफोलियो का लिक्विड होना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए निवेश पेपर को बेचा नहीं जा सकता है।
खर्च
निवेशक को इस तरफ भी विशेष ध्यान देना चाहिए। खर्च करने से पहले हर प्रोडक्ट बहुत आकर्षक लग सकता है। लेकिन अगर आपने इसमें एंट्री, एग्जिट लोड, मैनेजमेंट शुल्क और बैक ऑफिस खर्च को जोड़ दें, तब संभव है आपको वह प्रोडक्ट अच्छा नहीं लगे।
टैक्स
अधिकतर निवेशक यह कभी नहीं सोचते हैं कि छोटी अवधि के लिए टैक्स छूट हासिल करने से उनके निवेश को कितना नुकसान पहुंचता है।
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