कोई नया-नवेला निवेशक हो या पुराना, उसे एक अहम बात जेहन में हमेशा रखनी चाहिए। यह जरूरी बात है इनवेस्टमेंट प्लान तैयार करने की। ऐसा प्लान किसी तय अवधि की जरूरतों के आधार पर तैयार किया जाता है। अमूमन यह पूरे जीवन के लिए होता है।
इनवेस्टमेंट प्लान की मदद से निवेशक यह समझ सकता है कि निवेश से जुड़े उसके वाजिब लक्ष्य क्या हो सकते हैं और उन्हें हासिल करने में कितना वक्त लग सकता है। इससे निवेशक के लिए रिटर्न से जुड़े जोखिम की तस्वीर भी साफ हो जाती है। निवेशकों को यह पता होना चाहिए कि शॉर्ट-टर्म में शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में इससे तगड़ा रिटर्न हासिल किया जा सकता है। ऐसे निवेशक, जो लॉन्ग टर्म में बड़ा फंड बनाना चाहते हैं, उन्हें इक्विटी एसेट क्लास को इसका जरिया बनाना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक इक्विटी निवेशक, जिसने जनवरी 1980 के दौरान बीएसई सेंसेक्स में 10,000 रुपए का निवेश किया होगा, उसे इस साल मार्च के अंत तक 16.45 लाख रुपए की रकम मिली होगी। यानी सालाना 17.73 फीसदी की सीएजीआर की बढ़त।
अब दूसरे विकल्प के तौर पर अगर किसी निवेशक ने हर महीने 1,000 रुपए (मसलन एसआईपी के जरिए) जनवरी 1980 से मार्च 2011 तक बीएसई सेंसेक्स में लगाए। उसके पास करीब 95 लाख रुपए का फंड हो गया होगा। बारीक बात यह है कि इक्विटी लंबी अवधि में पूंजी बनाने का जरिया है। इसके लिए निवेश के किसी अन्य साधन के मुकाबले ज्यादा सूझबूझ और सब्र की जरूरत होती है। इसके साथ जुड़ा एक अहम सिद्धांत यह भी है कि ज्यादा से ज्यादा रिटर्न हासिल करने के लिए इक्विटी में निवेश जल्द से जल्द शुरू किया जाना चाहिए।
निवेशकों को दिमाग में यह भी रखना चाहिए कि इक्विटी निवेश में उनके भरोसे या सिस्टैमेटिक ढांचे का अहम रोल होता है। अगर पहली वजह के कारण निवेश किया जा रहा है तो निवेशकों को यह समझने की जरूरत होती है कि उनकी भावनाओं की वजह से भरोसा पैदा हो रहा है। अमूमन मनचाहा रिटर्न पाने के लिए निवेशकों के शेयर खरीदने या बेचने के पीछे डर या लालच जैसे भावनात्मक पहलू होते हैं। दूसरी तरफ, सिस्टैमेटिक इनवेस्टमेंट में सही कदम नहीं उठाए गए तो बाजार में उतार-चढ़ाव के मुताबिक इनवेस्टमेंट पैटर्न, साइज और एलोकेशन रेशियो में बदलाव का प्रलोभन सामने आ सकता है। इससे आपका रिटर्न कम हो सकता है। ऐसी मुश्किल से बचने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड में लॉन्ग-टर्म एसआईपी का सुझाव दिया जाता है।
निवेशकों को यह भी समझ होनी चाहिए कि अब कई फैक्टर हो गए हैं, जिनका शेयरों पर असर होता है। यानी इक्विटी में निवेश से जुड़ा जोखिम भी बढ़ गया है। मसलन, निवेशक किसी कंपनी में निवेश करने से पहले जरूरी रिसर्च या उसके कारोबार के बारे में जानने की भरसक कोशिश नहीं करता है। वहीं, लागत में बढ़त या गिरावट, पूंजी लागत, श्रम और कर नियम जैसे बिजनेस फैक्टर्स जानने के लिए गहन रिसर्च और स्पेशलाइज़ेशन की जरूरत होती है।
जिन निवेशकों के पास वक्त, अनुभव और सूझबूझ की कमी है, उनके लिए म्यूचुअल फंड के जरिए इक्विटी में निवेश करने का सुझाव दिया जाता है। इक्विटी से जुड़े हुए म्युचूअल फंड सबसे किफायती इनवेस्टमेंट प्रॉडक्ट में से एक हैं। इससे निवेशकों को इक्विटी में निवेश करने का आसान जरिया मिलता है। इक्विटी म्यूचुअल फंड से निवेशकों को प्रफेशनल पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस, रिसर्च और मार्केट की समझ रखने वाली मैनेजमेंट टीम जैसे फायदे मिलते हैं।
इक्विटी निवेशक को निवेश पर लगने वाले टैक्स पर भी नजर रखनी चाहिए। एक साल से ज्यादा के निवेश पर मिलने वाले रिटर्न टैक्स के दायरे में नहीं आते, लेकिन एक साल के अंदर शेयरों से होने वाले फायदे पर स्लैब रेट के अनुसार टैक्स लगता है। निवेशकों को इक्विटी निवेश से जुड़ी हुई लागत और आसानी को भी देखना चाहिए। शेयरों में सीधे निवेश में डीमैट खुलवाने से लेकर उसके मेंटेनेंस के खर्च समेत एसटीटी और ब्रोकर के ट्रेडिंग चार्ज आपको होने वाले फायदे को हजम कर जाते हैं। म्यूचुअल फंड में किसी तरह का एंट्री चार्ज नहीं है (और कोई एग्जिट चार्ज नहीं है, अगर आप एक साल बाद निवेश से निकलें)। निवेशक को सालाना रिकरिंग चार्ज देना होता है, जो 2.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होता है।
इनवेस्टमेंट प्लान की मदद से निवेशक यह समझ सकता है कि निवेश से जुड़े उसके वाजिब लक्ष्य क्या हो सकते हैं और उन्हें हासिल करने में कितना वक्त लग सकता है। इससे निवेशक के लिए रिटर्न से जुड़े जोखिम की तस्वीर भी साफ हो जाती है। निवेशकों को यह पता होना चाहिए कि शॉर्ट-टर्म में शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में इससे तगड़ा रिटर्न हासिल किया जा सकता है। ऐसे निवेशक, जो लॉन्ग टर्म में बड़ा फंड बनाना चाहते हैं, उन्हें इक्विटी एसेट क्लास को इसका जरिया बनाना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक इक्विटी निवेशक, जिसने जनवरी 1980 के दौरान बीएसई सेंसेक्स में 10,000 रुपए का निवेश किया होगा, उसे इस साल मार्च के अंत तक 16.45 लाख रुपए की रकम मिली होगी। यानी सालाना 17.73 फीसदी की सीएजीआर की बढ़त।
अब दूसरे विकल्प के तौर पर अगर किसी निवेशक ने हर महीने 1,000 रुपए (मसलन एसआईपी के जरिए) जनवरी 1980 से मार्च 2011 तक बीएसई सेंसेक्स में लगाए। उसके पास करीब 95 लाख रुपए का फंड हो गया होगा। बारीक बात यह है कि इक्विटी लंबी अवधि में पूंजी बनाने का जरिया है। इसके लिए निवेश के किसी अन्य साधन के मुकाबले ज्यादा सूझबूझ और सब्र की जरूरत होती है। इसके साथ जुड़ा एक अहम सिद्धांत यह भी है कि ज्यादा से ज्यादा रिटर्न हासिल करने के लिए इक्विटी में निवेश जल्द से जल्द शुरू किया जाना चाहिए।
निवेशकों को दिमाग में यह भी रखना चाहिए कि इक्विटी निवेश में उनके भरोसे या सिस्टैमेटिक ढांचे का अहम रोल होता है। अगर पहली वजह के कारण निवेश किया जा रहा है तो निवेशकों को यह समझने की जरूरत होती है कि उनकी भावनाओं की वजह से भरोसा पैदा हो रहा है। अमूमन मनचाहा रिटर्न पाने के लिए निवेशकों के शेयर खरीदने या बेचने के पीछे डर या लालच जैसे भावनात्मक पहलू होते हैं। दूसरी तरफ, सिस्टैमेटिक इनवेस्टमेंट में सही कदम नहीं उठाए गए तो बाजार में उतार-चढ़ाव के मुताबिक इनवेस्टमेंट पैटर्न, साइज और एलोकेशन रेशियो में बदलाव का प्रलोभन सामने आ सकता है। इससे आपका रिटर्न कम हो सकता है। ऐसी मुश्किल से बचने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड में लॉन्ग-टर्म एसआईपी का सुझाव दिया जाता है।
निवेशकों को यह भी समझ होनी चाहिए कि अब कई फैक्टर हो गए हैं, जिनका शेयरों पर असर होता है। यानी इक्विटी में निवेश से जुड़ा जोखिम भी बढ़ गया है। मसलन, निवेशक किसी कंपनी में निवेश करने से पहले जरूरी रिसर्च या उसके कारोबार के बारे में जानने की भरसक कोशिश नहीं करता है। वहीं, लागत में बढ़त या गिरावट, पूंजी लागत, श्रम और कर नियम जैसे बिजनेस फैक्टर्स जानने के लिए गहन रिसर्च और स्पेशलाइज़ेशन की जरूरत होती है।
जिन निवेशकों के पास वक्त, अनुभव और सूझबूझ की कमी है, उनके लिए म्यूचुअल फंड के जरिए इक्विटी में निवेश करने का सुझाव दिया जाता है। इक्विटी से जुड़े हुए म्युचूअल फंड सबसे किफायती इनवेस्टमेंट प्रॉडक्ट में से एक हैं। इससे निवेशकों को इक्विटी में निवेश करने का आसान जरिया मिलता है। इक्विटी म्यूचुअल फंड से निवेशकों को प्रफेशनल पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस, रिसर्च और मार्केट की समझ रखने वाली मैनेजमेंट टीम जैसे फायदे मिलते हैं।
इक्विटी निवेशक को निवेश पर लगने वाले टैक्स पर भी नजर रखनी चाहिए। एक साल से ज्यादा के निवेश पर मिलने वाले रिटर्न टैक्स के दायरे में नहीं आते, लेकिन एक साल के अंदर शेयरों से होने वाले फायदे पर स्लैब रेट के अनुसार टैक्स लगता है। निवेशकों को इक्विटी निवेश से जुड़ी हुई लागत और आसानी को भी देखना चाहिए। शेयरों में सीधे निवेश में डीमैट खुलवाने से लेकर उसके मेंटेनेंस के खर्च समेत एसटीटी और ब्रोकर के ट्रेडिंग चार्ज आपको होने वाले फायदे को हजम कर जाते हैं। म्यूचुअल फंड में किसी तरह का एंट्री चार्ज नहीं है (और कोई एग्जिट चार्ज नहीं है, अगर आप एक साल बाद निवेश से निकलें)। निवेशक को सालाना रिकरिंग चार्ज देना होता है, जो 2.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होता है।
(लेखक : संदेश किरकिरे, सीईओ, कोटक म्यूचुअल फंड) |
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