Sunday, November 21, 2010

शुभ-लाभ की रणनीति

निवेशक चाहे शेयर बाजार का हो, कमोडिटी बाजार का, रियल एस्टेट का हो या फिर म्यूचुअल फंड के जरिए पैसा लगाने वाला, उसकी परेशानी यह होती है कि रकम जेब में आते ही तुरंत बाजार ढूंढने लगता है। ऐसे में जब उसे शेयर बाजार अपने शिखर के करीब दिख रहा हो, सोना अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच चुका हो और रियल एस्टेट के दिन बहुरने की कोई गुंजाइश न दिख रही हो, तो उसका बेचैन होना स्वाभाविक है। निवेशकों की इसी बेचैनी को दूर करने के लिए ईटी ने दिवाली के मौके पर बाजार के विशेषज्ञों से जो चर्चा की, उसमें यह बात निकल कर सामने आई कि रियल एस्टेट लंबे समय में शानदार रिटर्न देता है, लेकिन शेयर बाजार भी किसी से पीछे नहीं है।

एस्कॉर्ट्स सिक्योरिटीज के अशोक अग्रवाल ने कहा कि रिटर्न के मामले में दूसरे एसेट क्लास में इक्विटी इनवेस्टमेंट अब भी बेहतर है। अगर निवेशक इसमें लंबे समय तक बने रहे तो शानदार रिटर्न दे सकता है। अग्रवाल के मुताबिक, इक्विटी निवेश में 1 से 3 साल की अवधि को लंबी अवधि मानने का चलन ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि लंबी अवधि का मतलब कभी-कभी एक दशक या उससे ज्यादा भी हो सकता है। म्यूचुअल फंड एक्सपर्ट और वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार से जब यह पूछा गया पिछले कुछ समय में इक्विटी म्यूचुअल फंड्स की तुलना में बैलेंस्ड और डेट म्यूचुअल फंड का रिटर्न बेहतर रहने का क्या कारण है, तो उन्होंने कहा, 'बैंलेस्ड या डेट फंड के 1-3 महीने के रिटर्न के आंकड़ों की तुलना इक्विटी म्यूचुअल फंड्स से करना ठीक नहीं है। अगर लंबी अवधि के रिटर्न को देखा जाए तो इक्विटी म्यूचुअल फंड का रिटर्न सबसे बेहतर रहा है।' उन्होंने कहा जिस इक्विटी म्यूचुअल फंड में जितना ज्यादा जोखिम होगा, उससे उतना ज्यादा रिटर्न मिलेगा।

कमोडिटी एक्सचेंज एनएमसीई बिजनेस डेवलपमेंट के वाइस प्रेसिडेंट एम के खट्टर ने कमोडिटी में निवेश की रणनीति समझाते हुए कहा, 'पोर्टफोलियो का डायवर्सिफाइड होना बेहद जरूरी है। ऐसे में, अपने पोर्टफोलियो का एक हिस्सा कमोडिटी के लिए जरूर रखना चाहिए।' वहीं, रियल एस्टेट में निवेश की संभावनाओं के बारे में जोंस लैंग लसाले मेघराज के मैनेजिंग डायरेक्टर (नॉर्थ इंडिया) पंकज रंजन ने बताया कि अगर अर्थव्यस्था 6 से 8 फीसदी की वृद्धि दर से बढ़ती है तो रियल एस्टेट में भी सामान्य तेजी जारी रहेगी। रियल एस्टेट के ग्रोथ में अब भी यही देखने को मिल रहा है कि मेट्रो शहर और चुनिंदा टियर टू सिटीज में ही कीमतें ज्यादा तेजी से बढ़तीं हैं और रियल एस्टेट परियोजनाओं में बड़ा निवेश आता है। इन शहरों में पैसे की सप्लाई ज्यादा है जो रियल एस्टेट को मजबूती प्रदान करती है।

खट्टर ने कमोडिटीज में निवेश से पहले की सावधानियों के बारे में कहा, 'कमोडिटी में निवेश से पहले मांग और सप्लाई की स्थिति और कीमतों को देखना चाहिए।' उन्होंने कहा कि कमोडिटीज की खासियत यह होती है कि हर कमोडिटी का एक निश्चित गुण धर्म होता है और कमोडिटीज इन्हीं के हिसाब से चलती हैं। ऐसे में, कमोडिटीज में निवेश के बारे में अंदाजा लगाना ज्यादा आसान होता है। खट्टर ने कहा, 'जहां तक रिटर्न की बात है तो एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले लंबे वक्त में कमोडिटी से औसत यील्ड 11 फीसदी की रही है, जो कि करेंसी और बॉन्ड के मुकाबले ज्यादा है।' बाजार की मौजूदा तेजी के बारे में धीरेंद्र कुमार ने कहा कि 2008 और 2010 के बीच काफी फर्क आ गया है। उस समय के उलट आज म्यूचुअल फंडों के पास पैसा नहीं है और आम निवेशक भी उस समय के मुकाबले आज ज्यादा सतर्क है। ऐसे में अगर गिरावट शुरू हुई तो वह कहां थमेगी, कहना मुश्किल है।

अशोक अग्रवाल ने कहा कि बाजार इस समय उच्चतम स्तर के करीब है, लेकिन छोटी अवधि में करेक्शन के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। अगर निवेशकों को चिंता हो रही है तो उन्हें 15-20 फीसदी रिटर्न मिलने पर बाजार से निकल जाना चाहिए। अभी रीटेल इनवेस्टर ऊंचे स्तरों पर मुनाफावसूली कर रहे हैं, जबकि एफएफआई बहुत ज्यादा निवेश कर रहे हैं। अगर किसी वजह से ये बिकवाली करते हैं तो इसके असर से बाजार बच नहीं पाएगा, लेकिन तब रीटेल निवेशकों को निचले स्तरों पर बाजार में घुसने का मौका मिलेगा।

सोना में निवेश को लेकर विशेषज्ञों में खासा मतभेद दिखा। इक्विटी मार्केट के जानकार अग्रवाल ने कहा कि सोने में आई तेजी का फायदा उठाने के लिए दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा बिकवाली की आशंका न के बराबर है, क्योंकि करेंसी पर बैंकों का पहले जितना भरोसा नहीं रह गया है। लेकिन धीरेंद्र ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा कि पिछले एक-डेढ़ साल से सोना और महंगाई दर के बीच का तालमेल खत्म हुआ है, जिससे सोने की कीमतें बुलबुले के दायरे में पहुंच गई हैं।

रियल एस्टेट में भारतीयों के रुझान को यूनिक बताते हुए पंकज रंजन ने कहा कि लोग यह जानते हुए भी कि मकान के किराए की तुलना में लोन की किस्त महंगी पड़ेगी, मकान खरीदते हैं, क्योंकि अपने देश में अपना घर होना बड़ी बात मानी जाती है। दूसरी चीज यह है कि पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में काला धन का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है। इस पैसे को रियल एस्टेट में छिपाना अभी सबसे आसान है। जहां तक कीमतों के बढ़ने का सवाल है तो डिमांड और सप्लाई के सामान्य सिद्धांत से भी अलग बहुत से कारक यहां काम कर रहे हैं। भारत एक विकासशील देश है लिहाजा बुनियादी ढांचा और विकास परियोजनाएं यहां एक झटके में किसी भी इलाके के प्रॉपर्टी रेट बदल सकती हैं। जैसे किसी इलाके में सड़क बनने भर से वहां कीमतें चढ़ जाती हैं, पश्चिम के विकसित देशों में इस तरह की स्थितियां देखने को नहीं मिलतीं।

अग्रवाल ने कहा कि जहां तक मौजूदा स्तरों पर निवेश के मौकों का सवाल है तो अभी भी कई कंपनियां हैं, जिनके शेयरों में निवेश कर अच्छा प्रॉफिट कमाया जा सकता है। जल्दबाजी में खरीदारी नहीं करनी चाहिए। कंपनियों के बारे में बुनियादी जानकारी हासिल करने के बाद ही उनमें निवेश करना चाहिए। कंपनी क्या कारोबार करती है, उसकी बिक्री में बढ़ोतरी की क्या रफ्तार है और उसके मुनाफे में कितना इजाफा हो रहा है। इस तरह की जानकारी हासिल करना बहुत मुश्किल नहीं है। जो निवेशक इस तरह के झंझटों में नहीं पड़ना चाहते, उनके लिए म्यूचुअल फंड का रास्ता खुला है। अब मिडकैप और स्मॉलकैप कंपनियों के प्रदर्शन में सुधार हो रहा है। मौजूदा हालात में एफएमसीजी, बैंक और मेटल शेयरों में पैसा लगाया जा सकता है।

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