औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) किसी अर्थव्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र में किसी खास अवधि में उत्पादन के हालात के बारे में बताता है। भारत में हर महीने आईआईपी के आंकड़े जारी किए जाते हैं। ये आंकड़े आधार वर्ष के मुकाबले उत्पादन में बढ़ोतरी या कमी संकेत देते हैं। भारत में आईआईपी की तुलना के लिए वर्ष 1993-94 को आधार वर्ष माना गया है।
आईआईपी की गणना किस तरह से की जाती है?
किसी महीने की आईआईपी उस महीने के छह हफ्ते के अंदर जारी किया जाता है। आईआईपी के अनुमान के लिए 15 एजेंसियों से आंकड़े जुटाए जाते हैं। इनमें डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईआईपी), इंडियन ब्यूरो ऑफ माइंस, सेंट्रल स्टैटिस्टिकल आगेर्नाइजेशन और सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी शामिल हैं। चूंकि यह जरूरी नहीं है कि किसी खास महीने का इंडेक्स तैयार करते समय उत्पादन से संबंधित सभी आंकड़े मौजूद हों, इसलिए पहले प्रोविजनल (अस्थाई) इंडेक्स तैयार करने के बाद जारी कर दिया जाता है। बाद के महीनों में इसमें दो बार संशोधन किया जाता है।
आईआईपी की शुरुआत कब हुई थी?
सबसे पहले 1937 को आधार वर्ष मानते हुई आईआईपी तैयार किया गया था। इसमें 15 उद्योगों को शामिल किया गया था। तब से अब तक इसमें कम से कम सात बार संशोधन किया जा चुका है। इंडेक्स को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए आधार वर्ष और इसमें शामिल उत्पादों में बदलाव किया गया है। सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी किए गए ताजा मानकों के मुताबिक किसी उत्पाद के इसमें शामिल किए जाने के लिए प्रमुख शर्त यह है कि वस्तु के उत्पादन के स्तर पर उसके उत्पादन का कुल मूल्य कम से कम 80 करोड़ रुपए होना चाहिए। इसके अलावा यह भी शर्त है कि वस्तु के उत्पादन के मासिक आंकड़े लगातार उपलब्ध होने चाहिए। इंडेक्स में शामिल वस्तुओं को तीन समूहों-माइनिंग, मैन्युफैक्चरिंग और इलेक्ट्रिसिटी में बांटा जाता है। फिर इन्हें उप-श्रेणियों मसल-बेसिक गुड्स, कैपिटल गुड्स, इंटरमीडिएट गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और कंज्यूमर नॉन-ड्यूरेबल्स में बांटा जाता है।
आईआईपी के आंकड़े अभी चर्चा में क्यों हैं?
इस साल अगस्त महीने के लिए जारी किए आईआईपी के आंकड़े चर्चा में हैं। इसकी वजह यह है कि इस साल अगस्त में औद्योगिक उत्पादन में 10.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जुलाई में औद्योगिक उत्पादन में 7.2 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। असल में पिछले दो साल में अगस्त में औद्योगिक उत्पादन में सबसे अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस बढ़ोतरी में कंज्यूमर ड्यूरेबल और कैपिटल गुड्स क्षेत्रों का बड़ा हाथ रहा है। कई जानकार इसका कारण सरकार के आथिर्क राहत पैकेज को बताते हैं। इससे चालू वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर अनुमानित 6 फीसदी से ज्यादा रह सकती है।
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