Thursday, June 30, 2011

बेहतर फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए टिप्स

फाइनेंशियल प्लानिंग का आसान सा अर्थ होता है, आप अपने भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय

योजना बनाएं। इस विषय पर काफी सामग्री उपलब्ध है। यह इस विषय पर किए गए अकादमिक शोध और पिछले कुछ दशकों में हुए विकास पर आधारित है।

गौरतलब है कि अधिकतर निवेशक लक्ष्य आधारित फाइनेंशियल प्लानिंग को अपनाते हैं। इसका सीधा सा मतलब होता है, भविष्य की जरूरतों की पहचान करना। इस तरह की जरूरतों में घर खरीदना, हॉलीडे पर जाना, बच्चों की शिक्षा और सेवानिवृत्ति शामिल है। इन सब जरूरतों को पूरा करने के लिए कितनी अवधि की जरूरत होगी, इसका आकलन करना चाहिए। इसमें छह महीने, 1 साल, 3 साल, 5 साल या 20 साल का समय लग सकता है।

जोखिम प्रोफाइल
इसके तहत इस बात का आकलन करना चाहिए कि लक्ष्य को हासिल करने के लिए कितना जोखिम उठाना चाहिए। इसे दूसरे शब्दों में समझें तो कोई व्यक्ति अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए किए जाने वाले निवेश पर कितने हद तक का नुकसान झेल सकता है। एक बार लक्ष्य और जरूरत की पहचान हो जाने के बाद अवधि और जोखिम प्रोफाइल को समझना चाहिए। सही निवेश पोर्टफोलियो को लक्ष्य के हिसाब से तैयार करना चाहिए। किसी भी निवेशक को अपने व्यक्तिगत लक्ष्य हासिल करने के लिए कदम उठाने से पहले कुछ आधारभूत बातों का ध्यान रखना चाहिए।

डायवर्सिफिकेशन
हर जरूरत के मुताबिक पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाइ करना चाहिए। यह निवेश करने के दौरान सबसे अहम पहलू होता है और उम्र के लिहाज से सही दिशा में निवेश साबित होना जरूरी है। डायवर्सिफिकेशन को कई असेट वर्गों में निवेश कर हासिल किया जा सका है। निवेशक अपने निवेश को इक्विटी, फिक्स्ड आय, रियल एस्टेट, गोल्ड/कमोडिटीज, प्रॉपर्टी में डायवर्सिफाइ कर सकता है। किसी भी निवेशक को एक ही असेट वर्ग में निवेश करने से बचना चाहिए।

लिक्विडिटी
निवेश करने के दौरान इस पहलू पर विशेष तौर पर ध्यान दें। इस ओर ध्यान नहीं देने से कई बार अनावश्यक नुकसान का सामना करना पड़ता है। जैसे साल 2008 में बाजार में तेज गिरावट आने के दौरान बाजार से नहीं निकलने वालों को तगड़ा झटका लगा होगा। निवेश पोर्टफोलियो का लिक्विड होना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए निवेश पेपर को बेचा नहीं जा सकता है।

खर्च
निवेशक को इस तरफ भी विशेष ध्यान देना चाहिए। खर्च करने से पहले हर प्रोडक्ट बहुत आकर्षक लग सकता है। लेकिन अगर आपने इसमें एंट्री, एग्जिट लोड, मैनेजमेंट शुल्क और बैक ऑफिस खर्च को जोड़ दें, तब संभव है आपको वह प्रोडक्ट अच्छा नहीं लगे।

टैक्स
अधिकतर निवेशक यह कभी नहीं सोचते हैं कि छोटी अवधि के लिए टैक्स छूट हासिल करने से उनके निवेश को कितना नुकसान पहुंचता है।

ऑनलाइन रिटर्न से महज 30 दिनों में टैक्स रिफंड


नई दिल्ली : अगर आप आय कर रिटर्न ऑनलाइन दाखिल करने वालों में शामिल हैं तो आपके लिए एक

खुशखबरी है। आपको रिफंड एक महीने के भीतर मिल जाएगा। रिफंड की प्रक्रिया तेज बनाने और टैक्स रिटर्न की इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग को बढ़ावा देने के लिए केंदीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने यह फैसला किया है। इससे करदाताओं को जल्द रिफंड मिलेगा। साथ ही, आय कर रिटर्न की समीक्षा में भी पहले से कम वक्त लगेगा।

अगर आप सेंटर पर जाकर आय कर रिटर्न फॉर्म जमा कराते हैं तो आम तौर पर रिफंड पांच से दस महीने में मिलता है। सीबीडीटी के चेयरमैन सुधीर चंद्रा ने संवाददाताओं से कहा, 'हम चाहते हैं कि करदाता इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से रिटर्न जमा कराएं, क्योंकि इससे हमें रिफंड की तेज प्रोसेसिंग में मदद मिलती है।' 31 दिसंबर 2010 को कर विभाग के पास करीब 40 लाख रिफंड के मामले लंबित थे। इसके अलावा भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े की खबरों की वजह से भी रिफंड प्रणाली को दुरुस्त बनाने की कोशिश हो रही है।

हालांकि, हर साल टैक्स रिटर्न की ई-फाइलिंग करने वालों की संख्या बढ़ रही है लेकिन यह कुल रिटर्न के एक-चौथाई पर आकर रुक गया है। फिजिकल टैक्स रिटर्न की जांच-पड़ताल में काफी वक्त लगता है। इससे रिफंड में देरी होती है। लगातार बढ़ता रिफंड का स्तर इसे और बड़ा मुद्दा बना रहा है। 2010-11 में सरकार ने 78,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त टैक्स रिफंड किया था।

केपीएमजी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर विकास वसल ने कहा, 'ई-फाइलिंग से यह सुनिश्चित होता है कि आमदनी, टैक्स और रिफंड से जुड़ी करदाताओं की जानकारी टैक्स सिस्टम में तुरंत दर्ज हो जाए और साथ ही साथ टैक्स का आकलन भी किया जा सकता है।' आय कर विभाग टेकनेलॉजी इंटरफेस के जरिए रिफंड प्रक्रिया को तेज और असरदार बनाने की कोशिश कर रहा है। विभाग के एक अधिकारी ने कहा, 'पूरे देश में रिफंड बैंकर स्कीम पहले से वजूद में है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि करदाताओं को जल्द से जल्द रिफंड मिले।'

आय कर विभाग भारतीय स्टेट बैंक को डाटा भेजता है, जो आगे चलकर रिफंड बैंकर स्कीम के तहत सीधे तौर पर करदाताओं को रिफंड करता है। चंद्रा ने कहा, 'हमने 2010-11 में अब तक का सबसे ज्यादा रिफंड किया था।' उन्होंने अपने अधिकारियों को सभी लंबित रिफंड 31 मार्च से पहले निपटाने के निर्देश दिए हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए इन दिशा-निर्देशों पर गंभीरता से अमल किया जाए, किसी भी मामले का लटकना उनके एसीआर में नजर आएगा। इससे विभाग को अपना खाता साफ रखने में भी मदद होगी, क्योंकि अगले कारोबारी साल से डायरेक्ट टैक्स कोड प्रभाव में आ रहा है। चंद्रा ने कहा कि सीबीडीटी जून तक उन दिशा-निर्देशों के मामले में अधिसूचना जारी कर देगा, जिनके मुताबिक पांच लाख रुपए से कम सालाना आमदनी वाले छोटे वेतनभोगियों को रिफंड क्लेम न होने की सूरत में आय कर रिटर्न जमा कराने की जरूरत नहीं होगी। अगर ऐसे करदाताओं को ब्याज से छोटी आमदनी हो रही है तो भी रिटर्न जमा कराने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी।

Saturday, June 25, 2011

डाकघर बचत खाते भी कर दायरे में शामिल

नई दिल्ली : वित्त मंत्रालय ने आम लोगों पर कर का बोझ थोड़ा और बढ़ा दिया है। दरअसल
मंत्रालय ने डाकघर बचत योजनाओं से होने वाली कमाई पर दी जाने वाली कर छूट खत्म कर दी है। ऐसे में अगर आप डाकघर बचत योजनाओं में जमा की गई रकम पर 3,500 रुपये से ज्यादा ब्याज हासिल करते हैं, तो उस पर अब आपको कर चुकाना होगा।

करों के सर्वोच्च संगठन केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने मौजूदा प्रावधान में संशोधन किया है, जिसके तहत ग्राहकों को अभी तक डाकघर बचत योजना में कर छूट का लाभ मिल रहा था। प्रावधान में ताजा संशोधन के मुताबिक व्यक्तिगत खातों में जमा रकम के ब्याज पर मिल रही कर छूट सिर्फ 3,500 रुपए तक ही सीमित रहेगी। वहीं, संयुक्त खाते में 7,000 रुपए तक के ब्याज पर ग्राहकों को कर चुकाने से राहत मिलती रहेगी।

विश्लेषकों का कहना है कि पहले दी गई कर छूट योजनाओं की समीक्षा जरूरी थी, ताकि ये मौजूदा आर्थिक हालात के अनुकूल हो सकें। केपीएमजी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर विकास वासल ने कहा, 'यह कदम सरकार द्वारा कर दायरा बढ़ाने की पहल का यह एक हिस्सा है।' उन्होंने कहा सरकार द्वारा दी गई सहूलियतों का औचित्य बनाए रखने के लिए उनका मूल्यांकन जरूरी है।

डाकघर बचत योजनाएं अब कर दायरे में शामिल हो गई है। ऐसे में छूट की सीमा से ज्यादा ब्याज को करदाता की कुल आमदनी में शामिल कर लिया जाएगा और उसके मुताबिक उसे कर भुगतान करना पड़ेगा। डाकघर बचत खातों में फिलहाल सालाना 3.5 फीसदी की दर से ब्याज मिलता है। निवेशक डाकघरों में महज 50 रुपए के न्यूनतम निवेश से भी अपना खाता खोल सकते हैं।

इन खातों में एक व्यक्ति अधिकतम 1 लाख रुपए जमा कर सकता है, जबकि जॉइंट एकाउंट के लिए यह सीमा 2 लाख रुपए की है। एक सरकारी समिति ने हाल ही में यह सिफारिश की थी कि सभी डाकघर बचत योजनाओं को कर दायरे में शामिल किया जाए।

इनकम टैक्स रिटर्न भरने से छूट

नई दिल्ली : अगर आप नौकरी करते हैं और टैक्सेबल इनकम पांच लाख रुपये
से कम है तो असेसमेंट ईयर 2011-12 यानी इस साल
रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है। सीबीडीटी की ओर से गुरुवार को जारी नोटिफिकेशन के अनुसार,ऐसे व्यक्ति जिनकी वित्त वर्ष 2010-11 में हर तरह के डिडक्शन के बाद वेतन के जरिए कुल टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपये से कम है, उन्हें इस साल टैक्स रिटर्न फाइल करने की जरूरत नहीं है। हालांकि, यह छूट उन लोगों को नहीं मिलेगी जिनकी सेविंग डिपॉजिट के ब्याज से होने वाली आय 10,000 रुपये से ज्यादा है।

कैसे है फायदे का सौदा
इस स्कीम के तहत 6.5 से 8 लाख रुपये सालाम इनकम वालों को फायदा मिलेगा। मसलन, आपकी आमदनी 6.5 लाख रुपये है। इसके बाद आप धारा 80 सी के तहत पीएफ, पीपीएफ, इंश्योरेंस आदि के जरिये एक लाख रुपये का निवेश दिखाते हैं, धारा 80 सीसीएफ के तहत इन्फ्रा बॉन्ड में 20,000 रुपये लगाते हैं और धारा 80 डी के तहत 35,000 रुपये मेडिकल इंश्योंरेस का प्रीमियम देते हैं। ऐसे में डिडेक्शन के बाद आपकी टैक्सेबल इनकम 4.95 लाख रुपये ही रह जाएगी। इसके अलावा होम लोन पर 1.5 लाख रुपये सालाना ब्याज भी देते हैं, तो 8 लाख रुपये सालाना आमदनी पर भी आप इस स्कीम में शामिल हो जाएंगे।

किन्हें नहीं मिलेगी छूट
1.अगर आप दो जगह काम करते हैं तो आपकी इनकम कितनी भी क्यों न हो, आपको रिटर्न भरना होगा।

2. भले ही किसी व्यक्ति की वेतन से टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपये से कम हो, लेकिन अगर उसने साल 2010-11 में ही किसी समय अपनी नौकरी बदली हो तो उसे टैक्स रिटर्न भरना होगा

3. सेविंग अकाउंट से मिलने वाली ब्याज की राशि 10 हजार रुपये से ज्यादा है तो आपको रिटर्न भरना होगा।

4. ऐसे लोग, जो वेतन के अलावा किसी अन्य सोर्स से कमाई करते हैं या जिन्होंने रिफंड क्लेम किया है, वे भी इस स्कीम के दायरे से बाहर रहेंगे। यानी फिक्स्ड डिपॉजिट, शेयर या म्युचुअल फंड में निवेश के जरिये आमदनी होने पर रिटर्न दाखिल करना ही होगा।

5.अगर आपको इनकम टैक्स विभाग सेक्शन 142 (1) या 148 के तहत रिटर्न भरने के लिए नोटिस भेजता है या फिर सेक्शन 153 ए और 153 सी के तहत रिव्यू के लिए आपसे रिटर्न भरने को कहा जाता है तो ऐसा करना होगा। विभाग ऐसा तब करने को कहता है, जब उसे पुराने भरे गए रिटर्न में आमदनी, इनवेस्टमेंट और अन्य आंकड़ों को लेकर संदेह पैदा हो।

कंपनी को बताना होगा
रिटर्न न भरने के लिए भी आपको कुछ कदम उठाने होंगे। अपनी स्थायी खाता संख्या (पैन) और बैंक ब्याज से होने वाली पूरी कमाई की जानकारी अपने नियोक्ता को देनी होगी। टैक्स रिटर्न दाखिल करने से राहत पाने के लिए सेविंग अकाउंट के ब्याज से होने वाली आय (10,000 रुपये से ज्यादा न हो) पर कंपनी के जरि टैक्स अदा करना होगा। इसके बाद फॉर्म 16 में टैक्स डिडक्शन का सर्टिफिकेट लेना होगा, जो आपके लिए रिटर्न का काम करेगा।

Friday, June 10, 2011

जोखिम मंजूर हो, तो इक्विटी पर दांव से पाएं मोटा मुनाफा

कोई नया-नवेला निवेशक हो या पुराना, उसे एक अहम बात जेहन में हमेशा रखनी चाहिए। यह जरूरी बात है इनवेस्टमेंट प्लान तैयार करने की। ऐसा प्लान किसी तय अवधि की जरूरतों के आधार पर तैयार किया जाता है। अमूमन यह पूरे जीवन के लिए होता है।

इनवेस्टमेंट प्लान की मदद से निवेशक यह समझ सकता है कि निवेश से जुड़े उसके वाजिब लक्ष्य क्या हो सकते हैं और उन्हें हासिल करने में कितना वक्त लग सकता है। इससे निवेशक के लिए रिटर्न से जुड़े जोखिम की तस्वीर भी साफ हो जाती है। निवेशकों को यह पता होना चाहिए कि शॉर्ट-टर्म में शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म में इससे तगड़ा रिटर्न हासिल किया जा सकता है। ऐसे निवेशक, जो लॉन्ग टर्म में बड़ा फंड बनाना चाहते हैं, उन्हें इक्विटी एसेट क्लास को इसका जरिया बनाना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक इक्विटी निवेशक, जिसने जनवरी 1980 के दौरान बीएसई सेंसेक्स में 10,000 रुपए का निवेश किया होगा, उसे इस साल मार्च के अंत तक 16.45 लाख रुपए की रकम मिली होगी। यानी सालाना 17.73 फीसदी की सीएजीआर की बढ़त।

अब दूसरे विकल्प के तौर पर अगर किसी निवेशक ने हर महीने 1,000 रुपए (मसलन एसआईपी के जरिए) जनवरी 1980 से मार्च 2011 तक बीएसई सेंसेक्स में लगाए। उसके पास करीब 95 लाख रुपए का फंड हो गया होगा। बारीक बात यह है कि इक्विटी लंबी अवधि में पूंजी बनाने का जरिया है। इसके लिए निवेश के किसी अन्य साधन के मुकाबले ज्यादा सूझबूझ और सब्र की जरूरत होती है। इसके साथ जुड़ा एक अहम सिद्धांत यह भी है कि ज्यादा से ज्यादा रिटर्न हासिल करने के लिए इक्विटी में निवेश जल्द से जल्द शुरू किया जाना चाहिए।

निवेशकों को दिमाग में यह भी रखना चाहिए कि इक्विटी निवेश में उनके भरोसे या सिस्टैमेटिक ढांचे का अहम रोल होता है। अगर पहली वजह के कारण निवेश किया जा रहा है तो निवेशकों को यह समझने की जरूरत होती है कि उनकी भावनाओं की वजह से भरोसा पैदा हो रहा है। अमूमन मनचाहा रिटर्न पाने के लिए निवेशकों के शेयर खरीदने या बेचने के पीछे डर या लालच जैसे भावनात्मक पहलू होते हैं। दूसरी तरफ, सिस्टैमेटिक इनवेस्टमेंट में सही कदम नहीं उठाए गए तो बाजार में उतार-चढ़ाव के मुताबिक इनवेस्टमेंट पैटर्न, साइज और एलोकेशन रेशियो में बदलाव का प्रलोभन सामने आ सकता है। इससे आपका रिटर्न कम हो सकता है। ऐसी मुश्किल से बचने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड में लॉन्ग-टर्म एसआईपी का सुझाव दिया जाता है।

निवेशकों को यह भी समझ होनी चाहिए कि अब कई फैक्टर हो गए हैं, जिनका शेयरों पर असर होता है। यानी इक्विटी में निवेश से जुड़ा जोखिम भी बढ़ गया है। मसलन, निवेशक किसी कंपनी में निवेश करने से पहले जरूरी रिसर्च या उसके कारोबार के बारे में जानने की भरसक कोशिश नहीं करता है। वहीं, लागत में बढ़त या गिरावट, पूंजी लागत, श्रम और कर नियम जैसे बिजनेस फैक्टर्स जानने के लिए गहन रिसर्च और स्पेशलाइज़ेशन की जरूरत होती है।

जिन निवेशकों के पास वक्त, अनुभव और सूझबूझ की कमी है, उनके लिए म्यूचुअल फंड के जरिए इक्विटी में निवेश करने का सुझाव दिया जाता है। इक्विटी से जुड़े हुए म्युचूअल फंड सबसे किफायती इनवेस्टमेंट प्रॉडक्ट में से एक हैं। इससे निवेशकों को इक्विटी में निवेश करने का आसान जरिया मिलता है। इक्विटी म्यूचुअल फंड से निवेशकों को प्रफेशनल पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस, रिसर्च और मार्केट की समझ रखने वाली मैनेजमेंट टीम जैसे फायदे मिलते हैं।

इक्विटी निवेशक को निवेश पर लगने वाले टैक्स पर भी नजर रखनी चाहिए। एक साल से ज्यादा के निवेश पर मिलने वाले रिटर्न टैक्स के दायरे में नहीं आते, लेकिन एक साल के अंदर शेयरों से होने वाले फायदे पर स्लैब रेट के अनुसार टैक्स लगता है। निवेशकों को इक्विटी निवेश से जुड़ी हुई लागत और आसानी को भी देखना चाहिए। शेयरों में सीधे निवेश में डीमैट खुलवाने से लेकर उसके मेंटेनेंस के खर्च समेत एसटीटी और ब्रोकर के ट्रेडिंग चार्ज आपको होने वाले फायदे को हजम कर जाते हैं। म्यूचुअल फंड में किसी तरह का एंट्री चार्ज नहीं है (और कोई एग्जिट चार्ज नहीं है, अगर आप एक साल बाद निवेश से निकलें)। निवेशक को सालाना रिकरिंग चार्ज देना होता है, जो 2.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होता है।
(लेखक : संदेश किरकिरे, सीईओ, कोटक म्यूचुअल फंड)