Sunday, May 23, 2010

What is the Difference Between Saving and Investing Money?

It is important to understand the similarities and differences between saving and investing your money. It is also important to be sure that you are doing both within your budget and wealth building plan. Basically saving money is putting money aside on a regular basis. You spend less money than you earn and put the rest into the bank. You should have this be an automatic part of your monthly budget.
Investing is taking this a step further. Once you have a good amount saved, you can begin investing money. Investing is the way that you will begin to really grow your money and begin to build wealth. If you keep your savings in a savings account, the amount of interest you will earn will be very small. However if you invest in mutual funds or stocks, your interest rate will be much higher. You will eventually come to the point where your investments make more than you are contributing each month. Your wealth really begins to grow at that point.
When you begin to build wealth, it is important to spread your risk. You should have money in your emergency fund, that is not invested. It needs to be easily available without taking a big penalty for accessing it. A money market account at your bank is a safe place to put this. Mutual funds are an easy way to spread your risk as well. These funds are spread out over many different stocks, so that if one company fails, you do not lose everything. Additionally you should have your money invested in more than one mutual fund. You don?t need to have twenty mutual funds, but three or four is a good start.
Additionally you may consider investing in other things. One example is real estate. This can bring you a good passive source of income. Real estate also tends to rise in value over time. However, do not do this until you are ready to purchase in cash, and can cashflow any repairs or other expenses involved with the real estate.
This plan is fairly straightforward, but it will not begin to work, until you spend less than you earn and you focus on getting out of debt. Your net worth is determined by subtracting your debt from your assets, if you accumulate debt as fast as you save and invest, then you are not going to come out ahead. Begin budgeting, and then you can begin saving and investing effectively.


Wednesday, May 5, 2010

पीपीएफ और बीमा में ज्यादा निवेश तो नहीं कर रहे आप

पब्लिक प्राविडेंट फंड (पीपीएफ) और बीमा में धन लगाना ठीक है लेकिन आप दौलतमंद बनना चाहते हैं तो अपना नजरिया बदल लीजिए। सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर कार्तिक झवेरी ने एक पाठक धीरज को बताया कि कहां, कैसे और कितना निवेश करना चाहिए। मैं 40 साल का हूं और मेरी दस साल की बेटी है। मैं जयपुर की एक निजी कंपनी में काम कर रहा हूं और सालाना 4 लाख का वेतन पाता हूं। मेरे ऊपर 6 लाख रुपए का फ्लोटिंग ब्याज दर वाला कर्ज है। मेरे खर्च इस प्रकार हैं-परिवार के खर्च 1.2 लाख रुपए सालानाईएमआई हाउसिंग लोन 90,000 रुपए सालानामेरे निवेश इस प्रकार हैंएलआईसी, पीपीएफ एक लाख रुपए सालानामेरी आशंकाएं-शेयरों में धन लगाने को लेकर मुझे डर रहता हैमेरे पास आय का दूसरा कोई स्रोत नहीं है मेरे संदेह-अगले 10-15 साल में कहां निवेश करूं ताकि सेवानिवृत्ति के बाद मेरे पास पर्याप्त धन हो जाए। -धीरज चौहान, जयपुरआप अपने हाउसिंग लोन या घरेलू खर्च को लेकर समझौता नहीं कर सकते। अब हमारे पास जीवन बीमा (एलआईसी) और पीपीएफ ऐसे निवेश विकल्प हैं, जिसकी पुनररचना की जा सकती है। मेरी राय में तो आप एलआईसी और पीपीएफ में आप अपनी आय के हिसाब से ज्यादा निवेश कर रहे हैं।हमें यह पता नहीं है कि आप एक लाख रुपए सालाना की निर्धारित रकम में से कितना पीपीएफ में निवेश कर रहे हैं और एलआईसी में कितना धन लगा रहे हैं। आइए इन प्रकरणों का अध्ययन करें-केस 1 अगर आप पीपीएफ में ज्यादा निवेश कर रहे हैं।आपकी स्थिति संभल सकती है। पीपीएफ एक अच्छा निवेश है लेकिन इस पर केवल आठ फीसदी प्रतिफल मिलता है। जबकि दौलत कमाना है तो आपकी रणनीति बदलनी होगी। आप और भी ज्यादा प्रतिफल कमा सकते हैं अगर आप सेवानिवृत्ति का विकल्प ध्यान में रखें। मेरे सुझाव इस प्रकार हैं1. एलआईसी को छोड़कर बाकी सभी 80 सी के योगदान बंद कर दीजिए2. पीपीएफ खाते को जीवित रखने के लिए हर साल 1,000 रुपए जमा कीजिए3. म्यूचुअल फंडों की इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) में निवेश के लिए बाकी धन (एलआईसी प्रीमियम और 1,000 रुपए पीपीएफ हटाने के बाद एक लाख रुपए में से बची शेष राशि) का इस्तेमाल कीजिए। आपके पास 3 साल का लॉक इन होगा। आप 5-7 साल में अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे। केस 2 अगर आप बीमे में बहुत ज्यादा निवेश कर रहे हैंमान लें कि आपकी पालिसी का चुकारा हो चुका है (यानी आप अपनी पालिसी के तीन साल पहले ही पूरे कर चुके हैं।) अगर तीन साल से कम अवधि है तो मानलें कि तीन साल पूरे होने तक आपको भुगतान करना है। आपको एक विशेषज्ञ की राय इसमें लेनी चाहिए क्योंकि बीमा की राशि और प्रीमियम आदि मसले इसमें प्रभावी होते हैं। आपकी उम्र में 10 लाख रुपए की जीवन बीमा पालिसी में 5,000 से 6,000 रुपए सालाना से ज्यादा की लागत नहीं आनी चाहिए। मैं इस मामले में सावधि पालिसी का सुझाव दूंगा। बीमा के लिहाज से आदर्श स्तर 30 लाख रुपए है। मेरे सुझाव इस प्रकार हैं-सोना, रीयल एस्टेट जैसे विकल्पों को जीवन के उत्तरार्ध में अपनाना चाहिए। कार्तिक झवेरी का जवाबः आपको कहां निवेश करना चाहिए? आपका आयकर 25,000 रुपए सालाना की रेंज में रहेगा। आपकी देनदारियों को देखते हुए लगता है कि आपके खर्च निकालने और सेक्शन 80सी में निवेश के बाद 7,000-8,000 रुपए हर महीने बचा सकते हैं। आपको सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लानिंग (एसआईपी) का इस्तेमाल इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए करना चाहिए। अगर आप 8,000 रुपए प्रति माह निवेश करते हैं तो आपके पास 15 साल में 54 लाख रुपए (इक्विटी निवेश में 15 फीसदी प्रतिफल की दर से हिसाब लगाएं) होंगे। अगर आपको बोनस या वेतनवृद्धि मिलती है तो आप कुछ ब्लूचिप कंपिनयों में निवेश कर सकते हैं। इस बुनियादी नियम का पालन करिए। पंद्रह साल में आपके पास बड़ी रकम होगी। मेरा ख्याल है कि सेक्शन 80सी में निवेश करके आप टैक्स बचाना चाहते हैं लेकिन इससे आपको शिक्षा और विवाह जैसी जिम्मेदारियों को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।

उलटे चलो और दौलत कमाओ

अक्सर हम निवेश करते समय इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं देते कि हमें निवेश का कौन-सा ढंग रास आता है। निवेश का तरीका अपने विचारों के अनुरूप होना चाहिए। दुनिया में निवेश के कई फलसफे हैं। सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रगति, मूल्य और उलटा निवेश हैं। यहां हम उलटा निवेश की शैली की चर्चा करते हैं। प्रगति निवेश शैलीः
इसमें उन कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाता है, जिनमें औसत से बेहतर प्रगति के संकेत मिलते हैं। भले ही शेयर का मूल्य आमदनी के अनुपात या बुक वैल्यू के अनुपात में ज्यादा हो। खरीदकर होल्ड करने की रणनीति इसमें अपनाई जाती है। प्रगति वाली शैली में लंबी अवधि का नजरिया लेकर चला जाता है। मूल्य निवेश शैलीः
मूल्य में निवेश का आधार निवेश और अनुमान हैं। बेन ग्राहम और डेविड डाड ने इस शैली को बढ़ावा दिया। यह प्रगति शैली के एकदम विपरीत है। इसमें कंपिनयों के बुनियादी घटकों का विश्लेषण किया जाता है। जो शेयर संभावित मूल्य से कम (अंडरप्राइस्ड) रहते हैं, उन्हें खरीद लिया जाता है।
इसे उलटे निवेश की तरह समझ लिया जाता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। यह शेयर के बुनियादी घटकों के आसपास चलने वाली निवेश शैली है। इसमें बाजार का सेंटीमेंट ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होता, जबकि उलटे निवेश शैली में सेंटीमेंट बहुत महत्वपूर्ण होता है। उलटा निवेश शैलीः
जो आमफहम धारणा होती है, उसके विपरीत निवेश की शैली को उलटा निवेश (कंट्रारियन) कहा जाता है। निवेश तब किया जाता है, जब जनसाधारण की मान्यता गलत लगती है। उलटा निवेश करने वाले प्रमुख निवेशकों में वारेन बफे, डेविड ड्रेमन, जॉन नेफ हैं। उलटा निवेश शैली में धन लगाने वाला व्यक्ति मूल्यार्जन अनुपात (पीई) व मूल्य बुक वैल्यू (पीबीवी) अनुपात पर भी गौर करता है।
वह बाजार की नब्ज जानने के लिए सेंटीमेंट पर गौर करता है। जब ट्रेंड उलटा होता है तब यह व्यक्ति निवेश करता है। हालांकि यह हमेशा ही बाजार से उलटी दिशा में नहीं चलता। उलटा निवेश शैली को अक्सर मूल्य आधारित निवेश (वैल्यू इनवेस्टिंग) में बदला जा सकता है। वैल्यू इनवेस्टर बुनियादी घटकों पर ध्यान देकर खरीद-फरोख्त करता है। वह उस शेयर के आंतरिक मूल्य (इंट्रीन्जिक वैल्यू) पर ज्यादा गौर करता है। यह उन्हीं शेयरों पर किया जाता है जिनकी कीमतों की भविष्यवाणी की जा सकती है।
उलटा निवेश करने वाले इस उम्मीद में निवेश करते हैं कि बाजार जब चरम ऊंचाई पर होगा तब वे बेचकर बाहर निकल आएंगे। क्या कहते हैं निवेशकः
निफ्टी-फिफ्टी के दौर में कंट्रारियन निवेशक माने जाने वाले डेविड ड्रेमन ने उलटा (कंट्रारियन) निवेश के बारे में कहा है कि जो शेयर अच्छे बुनियादी घटकों वाले होते हैं और जिनका मूल्य आमदनी के अनुपात में कम होता है, या बुक वैल्यू के अनुपात में मूल्य कम होता है या डिवीडेंट यील्ड ज्यादा होता है, ऐसे चलन से बाहर के शेयरों को खरीदा जाता है। जेम्स फ्रेजर ने द फ्रेजर ओपिनियन लेटर में विश्लेषण के प्रमुख आधार बताए हैं-
- तात्कालिक राजनीतिक- आर्थिक स्थितियां - भीड़ का फसलफा - लोकप्रिय धारणाएं और भविष्यवाणियां वारेन बफे इसे और भी सरल शब्दों में बयान करते हैं-"मैं बताऊंगा कि आप कैसे अमीर बन सकते हैं। दरवाजे बंद कीजिए। जब दूसरे लालची हों तब भयभीत रहिए। जब दूसरे डर रहे हों तब लालची बन जाइए। जब 2003-2007 के दौरान तेजी का दौर था, सेंसेक्स चार ट्रेडिंग सेशन में 1000 अंक गिरा। 2008 में चारों तरफ मंदी थी। बाजार गिरता हुआ 7,000 के स्तर पर आ गया। विशेषज्ञ भी भारी मंदी का इंतजार कर रहे थे। दूसरी तरफ उलटा निवेश करने वालों ने इससे फायदा उठाया। वारेन बफे ने खुलकर कहा कि उन्होंने अपना ज्यादातर निवेश शेयरों में किया। उसके बाद दुनिया के बाजार सुधरते गए। सफल उलटे निवेश के सूत्रः- गिरते बाजार में उलटा निवेश करने वाला ज्यादा जोखिम लेता है। जब बाजार ऊंचा होता है तब कम जोखिम लेता है। - कम मूल्य वाले शेयर जरूरी नहीं कि अच्छा मुनाफा दें। - सफल निवेश का मंत्र है अनुशासित ढंग से निवेश करना। - जोखिम का प्रबंधन करें। - जमकर अनुसंधान करें। - उलटा निवेश करने वाले को विशेषज्ञता और विश्वास की जरूरत होती है।

सस्ता खरीदो, महंगा बेचोः बफे का उसूल

सस्ता खरीदो, महंगा बेचो
शेयर बाजार में निवेश का सबसे लोकप्रिय सिद्धांत है। लेकिन आप कैसे जानेंगे कि कोई शेयर कब सस्ता होता है?सूत्र : किसी शेयर भाव की तुलना उसके वास्तविक मूल्य से करो।शेयर भाव और उसके वास्तविक मूल्य में क्या अंतर है?
-- किसी समय शेयर के बदले बाजार जो कीमत चुकाने को तैयार होता है वह शेयर भाव होता है। यह बार-बार बदलता है। -- किसी शेयर के मूल्य का अर्थ है उसमे निहित व्यवसाय। यह स्थिर होता है और कंपनी के कामकाज व भाग्य से जुड़ा होता है। जब मूल्य से भाव कम हो तब खरीदो
किसी शेयर का वास्तविक मूल्य मानाकि 150 रुपए है और बाजार भाव 125 रुपए है तो यह शेयर आपको 25 रुपए कम में मिल रहा है। यह कोई गारंटी नहीं है कि शेयर भाव 125 से नीचे नहीं जाएगा। शेयर का मूल्य कैसे पता लगाएं?सबसे पहले वित्तीय स्टेटमेंट पढ़ें और शेयर की बारीकियां समझ लें। वारेन बफे की आजमाई पद्धति का इस्तेमाल भी कर सकते हैं: पद्धति 1:प्रति शेयर नेट लिक्विड असेट पर गौर करें . नेट लिक्विड असेट प्रति शेयर = करेंट असेट (नकदी, डेटर्स, लिक्विड निवेश) –देनदारियां शेयरों की संख्या नियम: ऐसे किसी भी शेयर के लिए वारेन बफे दो तिहाई से ज्यादा कीमत नहीं चुकाते
पद्धति 2: अब पीई (मूल्यार्जन) ग्रोथ रेशियो देखते हैंपीई व ग्रोथ रेशियो = बाजार मूल्य/ ईपीएस सालाना ईपीएस ग्रोथ सालाना ईपीएस ग्रोथ = चालू वर्ष की ईपीएस-पिछले साल की ईपीएस x 100 पिछले साल का ईपीएसनियम: पीई ग्रोथ रेशियो एक है तो बताता है कि शेयर का सही मूल्य है। अगर यह एक से कम है तो शेयर अंडरवैल्यू है। एक से ज्यादा है तो ओवरवैल्यू है। पीई: मार्जिन आफ सेफ्टी का संकेत मान लेते हैं कि आप एक शेयर 550 रुपए में खरीदते हैं, जिसका ईपीएस 50 रुपए है। एक साल में आप 550 रुपए के निवेश पर 50 रुपए कमाते हैं। यह करीब 9 फीसदी का रिटर्न होता है।
अब आप बैंक डिपाजिट पर भी 8-9 फीसदी का जोखिम मुक्त प्रतिफल कमा सकते हैं। इस मामले में मार्जिन आफ सेफ्टी शून्य है। अगर हमें जोखिम कम रखना है तो अंतर ज्यादा रखना चाहिए।
नियम: वारेन बफे की सिफारिश है कि यह अंतर 1.25-1.5 फीसदी होना चाहिए। अंतिम शब्द: तेजी में निवेशक हर शेयर के लिए ज्यादा कीमत चुकाते हैं। उस समय मार्जिन आफ सेफ्टी पूरा नहीं मिलता। मंदी में यह अच्छा मिलता है।

जोखिम बनाम मुनाफा


हर निवेश से जुड़ा है एक जोखिम
यह बात आप अक्सर सुनते होंगे कि इस ब्लूचिप शेयर को खरीद लीजिए इसमें कोई जोखिम नहीं है। बांड और डिपाजिट में जो लोग धन लगाते हैं, उनका विचार यही रहता है कि मैं कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। मुझे मेरा धन सुरक्षित चाहिए।
क्या यह सही बात है? नहीं।
जब भी आप कोई निवेश करेंगे उसके साथ कोई न कोई जोखिम जरूर है। जोखिम का स्तर कम ज्यादा हो सकता है। जोखिम बनाम संभावित लाभ
जब निवेश करें तो जोखिम के जरिए ही आप संभावित लाभ का आकलन कर सकते हैं। सिद्धांत यह है कि जितना ज्यादा जोखिम होगा, उतना ज्यादा मुनाफा हो सकता है। विभिन्न संपत्तियों में निवेश के विश्लेषण से पता चलता है कि इक्विटी शेयरों में लंबी अवधि में ज्यादा रिटर्न मिलता है। उसके बाद बैंक डिपाजिट और सरकारी बांड में ज्यादा रिटर्न मिलता है।
आप कहेंगे कि ऋणपत्र (या डेट) कैसे जोखिम वाला हो सकता है? जिन कंपनियों की वित्तीय स्थिति लड़खड़ा जाती है वे आपके ब्याज भुगतान रोक सकती है और आपका धन लौटाने से पीछे हट सकती हैं। सरकारी बांड में भी कुछ जोखिम है। कंपनियों की तरह ही सरकार के साथ भी कुछ जोखिम हैं। कंपनी के पास पर्याप्त धन नहीं होने पर वह भुगतान में डिफाल्टर हो सकती है, लेकिन सरकार ज्यादा मुद्रा छापकर भुगतान कर सकती है। इसमें जोखिम छुपा है। ज्यादा मुद्रा छापने का अर्थ है कि मुद्रास्फीति बढ़ना। इससे आपके निवेश पर आपको कम प्रतिफल मिलेगा।
वैसे सरकार या अच्छे प्रबंधन वाली कंपनियों में वित्तीय संकट की आशंका कम रहती है। जोखिम का अध्ययन जरूरी
आप सवाल कर सकते हैं कि जोखिम बनाम प्रतिफल के समीकरण का विश्लेषण करना इतना जरूरी क्यों है? हो सकता है कि आप ज्यादा जोखिम ले रहे हों और प्रतिफल कम मिल रहा हो। अगर कोई अवसर छूट गया तो आपकी संपत्ति में बड़ा अंतर आ जाएगा।

जल्दी निवेश के फायदे

इस आलेख में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि निवेश कम उम्र और बड़ी उम्र में शुरू करने से बचत में कितना बड़ा अंतर आ जाता है। यह मूलधन और मिश्र ब्याज के गुणक का कमाल है। हम इसे उदाहरण से समझाते हैं।दो मित्रों की तुलना करते हैं। सोनिया और पीटर। सोनिया हर साल 750 रुपए से शुरू करती है। वह अपनी 15 साल की उम्र से निवेश शुरू करती है और 15 साल बाद बंद कर देती है।
दूसरी तरफ पीटर 5,000 रुपए हर साल का निवेश शुरू करता है। उस समय उसकी उम्र 30 साल है। वह अपनी 60 साल की उम्र तक निवेश जारी रखता है। सोनिया ने 15 साल तक निवेश किया। पीटर ने तीस साल तक निवेश किया। अगर दोनों मिलकर टैक्स के बाद 15 फीसदी सालाना प्रतिफल कमा लेते हैं तो 60 साल की उम्र में किसके पास ज्यादा दौलत होगी?सोनिया की 750 रुपए हर माह की बचत जो उसकी 15 से 30 साल की उम्र तक की जाती है, उसकी 60 साल की उम्र में 27.7 लाख रुपए जमा कर देगी। दूसरी तरफ पीटर की 5,000 रुपए सालाना की बचत उसकी 30 से 60 साल की उम्र के दौरान 25 लाख रुपए कर देगी। दोनों के पास उनके निवेश के मुकाबले काफी अच्छी बचत जमा हो जाएगी। सोनिया ज्यादा रकम बचाने में सफल हो जाती है, वह भी कम वर्षों में। इसलिए निवेश कम उम्र में शुरू करना चाहिए। इस उदाहरण से पता चलता है कि कम उम्र में निवेश शुरू करने का क्या फायदा होता है। संक्षेप में कहें तो गुणज यानी मूलधन पर मिश्र ब्याज का ही कमाल है कि जल्दी निवेश करने से रकम तेजी से बढ़ती है। जब भी हर साल आप निवेश करते हैं आपका धन आपके लिए काम कर रहा है।

शेयरों में निवेश के 4 सुनहरे नियम


अगर आप शेयरों में निवेश करना चाहते हैं तो ये मुख्य चार बातें अवश्य याद रखें।
1. सही कंपनी चुनिये- मुनाफे में बढोत्तरी करने वाली तथा बेहतर कंपनी चुनें जिसने अपने शेयरधारकों की पूंजी पर कम से कम 20% लाभ अर्जित किया हो।आदर्श रूप से एक दीर्घकालिक निवेश (5वर्ष से अधिक) आपको कंपनी के विकास में भाग लेने की अनुमति देता है।कम अवधि( 3 से 6 महीने) में शेयर का प्रदर्शन कंपनी के मूल सिध्दांत से कम तथा बाजार भाव से अधिक प्रेरित होता है। जबकि लंबे काल में सही कीमत की प्रासंगिकता कम हो जाती है।

2.अनुशासित रहें- शेयर में निवेश एक लंबी सीखने की प्रक्रिया है,जिसमें आप अपनी गलतियों से सीखते हैं। ये कुछ तथ्य हैं जिनसे ये प्रक्रिया सरल हो सकती है।निवेश में विविधता- किसी एक शेयर में अपने कोष का 10% से ज्यादा न डालें भले ही वो एक रत्न हो,दूसरी ओर बहुत अधिक शेयरों में भी निवेश न करें क्योंकि उनकी निगरानी करना मुश्किल होता है। एक कम सक्रिय लंबी अवधि के निवेशक के लिये 15-20 विभिन्न शेयर अच्छी संख्य़ा है।इस asset allocation tool का प्रयोग करें जिससे ये पता लगाया जा सके कि आपको शेयरों से अतिरिक्त निवेश करने की जरूरत है क्या।.अपनी कंपनी के प्रदर्शन का विश्लेषण उसके तिमाही परिणाम, वार्षिक रिपोर्ट और समाचार लेखों से करते रहें।.एक अच्छा ब्रोकर ढूंढे तथा निपटान प्रणाली समझें।.हॉट टिप्स पर ध्यान न दें क्योंकि अगर ये सच में काम करती तो हम सब करोङपति होते।.और अधिक खरीदने के प्रलोभन से बचें क्योंकि प्रत्येक खरीद एक नये निवेश का निर्णय है। एक कंपनी के उतने ही शेयर खरीदें जितने आपके कुल आवंटन योजना के अनुसार हैं।

3.निगरानी और समीक्षा—अपने निवेश की नियमित निगरानी व समीक्षा करें। लिये गये शेयर के तिमाही परिणामों की घोषणा पर नजर रखें और सप्ताह में कम से कम एक बार अपने पोर्टफोलियो वर्कशीट पर शेयर की कीमतों में आये सुधार लिखते रहें। ये कार्य अस्थिर समय के लिये ज्यादा महत्वपूर्ण है जब आप मूल्य चुनने के लिये बेहतर अवसर पा सकते हैं।जैसे कि पता लगायें कि आप 50 पैसे के सिक्के में 1 रूपये के सिक्के कैसे खरीद सकते हैं buy 1 rupee coins at 50 paise इसके अलावा ये भी जांचे कि जिन कारणों से आपने पहले शेयर खरीदा था वे अभी भी वैध हैं य़ा आपके पहले के अनुमानों और उम्मीदों में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। साथ ही एक वार्षिक समीक्षा प्रक्रिया अपनायें जिससे आप अपने कुल परिसंपत्ति आवंटन के भीतर इक्विटी शेयरों के प्रदर्शन की जांच कर सकें।अगर जरूरी हो तो आप RiskAnalyser पर समीक्षा कर सकते हैं क्योंकि आपके जोखिम प्रोफाइल और जोखिम क्षमता में 12 महीने की अवधि में परिवर्तन हो सकता है।

4. गलतियों से सीखें- समीक्षा के दौरान अपनी गलतियों को पहचानें और उनसे सीखें,क्योंकि आपके खुद के अनुभव को कोई नही हरा सकता। यही अनुभव आपके ‘ ज्ञान के मोती ’ बनेंगे जो निश्चित ही आपको एक सफल शेयर निवेशक बनाने में सहायक होंगे।