Monday, March 30, 2009

शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव पता करने का फॉर्मूला

बैंकों और वित्तीय संस्थानों के दिवालिया होने और उन्हें राहत पैकेज मुहैया कराने के इन दिनों में जिस अर्थशास्त्री कींस की सबसे ज्यादा बात हो रही है उन्होंने एक बार कहा था, 'आपके वित्तीय रूप से सक्षम रहने के मुकाबले कहीं ज्यादा दिन तक बाजार असंतुलित रह सकते हैं।' यह सिद्धांत यूं तो मंदडि़यों और तेजडि़यों, दोनों पर लागू होता है, लेकिन इसके तहत जो संदेशा छिपा है, वह स्पष्ट है जिसके बारे में किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता। इसके मुताबिक बुद्धिमान निवेशक अगर बाजार के उतार-चढ़ाव से दूर रहने में सफल होता है तो उसका कामयाब होना तय है। क्या एसेट श्रेणी के तौर पर इक्विटी में निवेश करना चाहिए, इस बात का फैसला शेयर बाजार में उस वक्त जारी गतिविधियों पर निर्भर करना चाहिए। छोटे निवेशक को किसी शेयर विशेष में निवेश करने या उससे बाहर निकलने के लिए सही वक्त का अंदाजा लगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, लेकिन यह भी कहा जा सकता है कि हर निवेशक इक्विटी बाजारों में दाखिल होने या फिर बाहर निकलने का अंदाजा लगा सकता है। ऐतिहासिक रूप से शेयर बाजार उस वक्त चरम पर पहुंचते हैं जब ब्याज दरें काफी ऊंचाई पर हों या फिर जरूरत से ज्यादा विश्वास के बूते बाजार संबंधी क्रेडिट के लिए ज्यादा मांग की वजह से उस स्तर पर पहुंचने की संभावनाएं रखती हो। इक्विटी बाजारों के बारे में ज्यादा जानकारी न रखने वाला मेरा एक मित्र है, जो ब्याज दरों के चढ़ने पर इक्विटी में अपना सारा निवेश बेचकर सावधि जमा और इनकम फंड जैसे पारंपरिक निवेश उत्पादों की राह पकड़ता है। इस निवेशक ने इस दशक की शुरुआत में फिक्स्ड इनकम निवेश से इक्विटी का रास्ता पकड़ना शुरू किया था, जब ब्याज दरें काफी निचले स्तरों पर थीं। इसी निवेशक ने 2008 मध्य में इक्विटी से एफडी की ओर मुड़ना शुरू किया हालांकि वह जनवरी 2008 के दौरान बाजार की ऊंचाइयों का फायदा उठाने में नाकाम रहा। आज फिर यह रक्षात्मक अनुशासित निवेशक मुस्करा रहा है और दलील दे रहा है कि उसे अर्थव्यवस्था की कोई खास जानकारी नहीं है। जिन चीजों ने उसे सही वक्त पर सही फैसले करने के लिए प्रोत्साहित किया है, वह है सामान्य ज्ञान और भावनाओं पर सख्त नियंत्रण। बाजार में गुजारे 25 साल में मैंने कई बार ब्याज दरों और बाजार के चढ़ने या उतरने के बीच इस रिश्ते पर गौर किया है। मुझे इस निवेशक के पक्ष में खड़ा होने में कोई हिचकिचाहट नहीं है जिसने मार्केट की चाल समझने के लिए बाजार से जुड़ी जानकारी कम और सामान्य ज्ञान का ज्यादा इस्तेमाल किया। और वह भी ऐसे वक्त जब हर निवेशक पर बाजार 'जानकारी' की अभूतपूर्व आपूर्ति की बमबारी हो रही थी। अगर ब्याज से होने वाली आमदनी उत्पाद के साथ जुड़े कम जोखिम से ज्यादा है तो निवेशक की जोखिम सहने की क्षमता के आधार इक्विटी से उसकी ओर जाने के अवसर होते हैं। इसके उलट, मेरा एक खूब पढ़ा-लिखा मित्र भी है जो 10 साल पहले 150 रुपए के स्तर पर होने के वक्त एक बेहतरीन शेयर को पहचानने में कामयाब रहा। 2007 में जब वह 1,500 रुपए तक चढ़ा तो उसने बिकवाली कर मुनाफा वसूली करने की सलाह मिलने के बावजूद भी इंतजार करने का फैसला किया। 2008 में मंदी ने बाजार को घेरा तो यह शेयर नीचे आने लगा और मंदी के बाजार में एक साल से ज्यादा वक्त तक इंतजार करने के बाद इस दोस्त ने थक-हारकर यह शेयर 200 रुपए में बेचा और दावा किया कि वह कम से कम अपनी पूंजी बचाने में कामयाब रहा। यह गलती कई लोग करते हैं। ऐसे निवेशक ज्यादातर बार बढि़या मुनाफे पर बाहर निकलने में नाकाम रहते हैं और शेयर विशेष से भावनात्मक रूप से बंध जाते हैं। अनुशासित रवैया अपनाकर बाजार चक्र की जानकारी बटोरना काफी आसान है लेकिन अविश्वसनीय जानकारी की जरूरत से ज्यादा सप्लाई की वजह से एक शेयर विशेष चुनना निवेशक के लिए काफी मुश्किल हो जाता है। कई शातिर सट्टेबाज बाजार में गैरकानूनी रूप से फायदा उठाने के लिए जानकारी का गलत फायदा उठाते हैं जिनके जाल में निवेशक आसानी से फंस जाते हैं। छोटी या मझोली कंपनियों में निवेश को लेकर काफी सावधानी बरतनी चाहिए। ऐसी कंपनियों की बाजार में उपलब्ध जानकारी आमतौर पर गलत या भ्रामक होती हैं। छोटे निवेशकों को इस ग्रुप की केवल उन्हीं कंपनियों में निवेश करना चाहिए जिनके बारे में उन्हें पुख्ता जानकारी है। बहुत से निवेशक लक्ष्यों और अनुशासन के साथ इक्विटी बाजार में प्रवेश तो करते हैं लेकिन बाद में अक्सर वे सट्टेबाजों की तरह ट्रेडिंग करने लगते हैं। एक बात याद रखें कि इक्विटी बाजार में तभी सफलता मिलती है जब आप लालच को छोड़कर सही जानकारी और समय पर निवेश करते हैं।
-सी. जे. जॉर्ज, मैनेजिंग डायेरक्टर, जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज

Monday, March 23, 2009

डेट में निवेश बढ़ाने का यही है समय

मुद्रास्फीति की दर उम्मीद के अनुसार नीचे की ओर जा रही है। पिछले सप्ताह ही इसने कई सालों की न्यूनतम दर का नया आंकड़ा छुआ है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में हम नकारात्मक मुद्रास्फीति या अपस्फीति का दौर देख सकते हैं। ऐसे में दरों में कटौती की अटकलें और मजबूत हुई हैं। उम्मीद है कि भारत में ब्याज दर 150 बेसिस अंकों तक घट सकती है। इसका मतलब है कि बेंचमार्क उधारी दर एकल अंक में और होम लोन पर ब्याज दरें 7-8 फीसदी के स्तरों पर पहुंच सकती हैं। बैंकों ने भी भविष्य के अनुमानों को देखते हुए कर्ज की दरों में बदलाव करने शुरू कर दिए हैं। कुछ सरकारी बैंकों ने वेरिएबल आधार पर कार लोन दरें तय करने की शुरुआत की है। कुछ मामलों में एक साल के लोन पर कम ब्याज दरों की पेशकश की जा रही है। उदाहरण के तौर पर एक सरकारी बैंक एक वर्ष के लिए आठ फीसदी की ब्याज दर की पेशकश कर रहा है। यह रणनीति इस बात का भी संकेत है कि अगले 12 महीनों में दरें तेजी से गिर सकती हैं। निवेशक यह जानते हैं कि ब्याज दर गिरने से गिल्ट फंडों और इनकम फंडों की यील्ड में सुधार होता है क्योंकि इनकी यील्ड का ब्याज दरों के मौजूदा चलन से उलटा रिश्ता होता है। इसी वजह से जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो इन प्रोडक्ट्स की यील्ड बढ़ती है और जब दरों में गिरावट का दौर आता है तो यील्ड ऊपर जाती है। निवेशकों की दृष्टि से अगले 12 महीनों के लिए डेट में आवंटन पर फिर से विचार करने की जरूरत है और लघु अवधि में डेट में निवेश बढ़ाया जा सकता है। पिछले कुछ दिनों में शॉट कवरिंग से शेयर बाजार में कुछ उछाल देखा गया है लेकिन मध्यम अवधि के निवेशकों को इससे राहत मिलने की संभावना नहीं है। मध्यम अवधि 12-18 महीने की हो सकती है। बाजार की मौजूदा चाल लघु और लंबी अवधि के निवेशकों को अच्छे मौकों की पेशकश कर रही है। इक्विटी निवेशक भी अगले 6-12 महीनों में गिल्ट फंडों में निवेश पर विचार कर सकते हैं। नियमित नकद प्रवाह पर निर्भर लंबी अवधि के निवेशक 3-5 वर्ष के डिपॉजिट या फिक्स्ड मंथली प्रोडक्ट्स में धन लगा सकते हैं क्योंकि 9-9.5 फीसदी की ब्याज दरें ज्यादा समय तक बरकरार रहने की उम्मीद नहीं है। कुछ महीने पहले तक फिक्स्ड मंथली प्रोडक्ट्स को लेकर निवेशक ज्यादा रुचि नहीं ले रहे थे लेकिन अब तस्वीर बदल गई है और कुछ फंडों ने ऐसे प्रोडक्ट लॉन्च किए हैं। लेकिन यील्ड एकल अंक में पहुंच गई है और फंड हाउस भी तीन वर्ष की बजाए एक वर्ष की अवधि की पेशकश कर रहे हैं। डबल इंडेक्सेशन का फायदा मिलने से फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में इनमें निवेश बेहतर हो सकता है। मुद्रास्फीति के निचले स्तर पर पहुंचने की वजह से भी इस तरह का निवेश फायदेमंद नजर आ रहा है। लघु अवधि (कम से कम छह महीने) में टेजरी प्लान और गिल्ट फंड डेट में अच्छे विकल्प हैं। ये उन निवेशकों के लिए मुफीद हैं जो 3-6 महीनों के लिए निवेश की योजना बना रहे हैं।
-श्रीकला भाष्यम

Saturday, March 21, 2009

मंदी में कैसे तैयार करें बेहतर पोर्टफोलियो

ज्यादातर निवेश उत्पाद अनुमानित रिटर्न देने के मामले में नाकाम साबित हो रहे हैं। ऐसे में निवेशक पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए निवेश की सही रणनीति को लेकर उलझन में हैं। उत्पादों का चुनाव निवेशक की जोखिम सहने की क्षमता और निवेश की अवधि पर निर्भर करता है। मौजूदा हालात में एक बढ़िया पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए अलग-अलग तरह के कई फाइनेंशियल प्रोडक्ट की जरूरत होगी। नई शुरुआत करने वाले शख्स के लिए यह काम ज्यादा आसान है। छोटी अवधि के लिए रणनीति लेकर चलने वाले निवेशक के लिए यह काफी बड़ी चुनौती है। मसलन, अगर कोई निवेशक अपने आप को 2010 तक रकम जोड़ने के लिए तैयार कर रहा है तो उसके पास काफी कम मौके बचते हैं क्योंकि मुनाफा बटोरने के लिए उसके पास आगे अनिश्चितता से भरा एक साल खड़ा है और उसकी संपत्ति 25-30 फीसदी का झटका सहने की जद में खड़ी है। बॉटम आउट होने से पहले साल 2009 निवेशकों को कुछ और दर्द दे सकता है, ऐसे में मौजूदा स्थिति आने वाले वर्षों में रकम जोड़ने के लिए कुछ सबक सिखाती है। अतीत में बाजार की तेजी में हिस्सा न लेने की वजह से अपनी किस्मत को कोसने वाले निवेशक भविष्य के लिए बेहतर रणनीति तैयार कर सकते हैं।
गिरावट में खरीदें, तेजी पर बेचें
बीते पांच साल की अवधि में निवेश का बुनियादी सिद्धांत लगभग पूरी तरह भुला दिया गया है। इसकी मुख्य वजह यह है कि ज्यादातर निवेश उत्पादों में बढ़िया तेजी देखी गई है। दूसरा अहम कारण घरेलू और विदेशी निवेशकों की ओर से बढ़िया नकद प्रवाह रहा है। लेकिन अब तरलता का तालाब सूख रहा है और आर्थिक वृद्धि के आंकड़े भी चुनौती भरे भविष्य की ओर से इशारा कर रहे हैं, ऐसे में ज्यादातर निवेश उत्पादों के दाम अब निरंतर रूप से घट रहे हैं। हालात भले निराशाजनक स्थिति की ओर इशारा करें या फिर निवेश को लेकर कम उत्साह दिखाने की सलाह दें लेकिन लंबी अवधि के लिए पैसा लगाने वाले निवेशकों को मौजूदा हालात को खरीदारी के अवसर के तौर पर देखना चाहिए। आखिरकार, जो लोग निम्न स्तरों पर खरीदारी कर ऊंचे स्तर पर बिकवाली करने का काम करते हैं, लंबी मियाद में उन्हें ही चतुर निवेशकों के रूप में जाना जाता है। निचले स्तरों पर शेयर खरीदना जितना आवश्यक है, पैसा बनाने के लिए उन्हें बढ़िया स्तरों पर बेचना भी उतना ही जरूरी है। निवेश से बाहर निकलने की रणनीति आपके उत्पादों के बाजार भाव, हाथ में नकदी की जरूरत या किसी उत्पाद विशेष के लिए आपके आवंटन पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए अगर पोर्टफोलियो का 20 फीसदी अंश इक्विटी से ताल्लुक रखता है तो बाजार में तेजी के वक्त आपकी चांदी हो सकती है जो इसे कुल संपत्ति की 40 फीसदी हिस्सेदारी तक ले जा सकती है। मौजूदा हालात में एक विकल्प पोर्टफोलियो में दोबारा संतुलन कायम करने से जुड़ा है जिसमें आप इक्विटी से मुनाफा वसूली कर उससे मिलने वाला पैसा डेट में डाल सकते हैं या अतिरिक्त फंड के साथ डेट आवंटन का स्तर बढ़ा सकते हैं। ऐसी रणनीति ने आपको वित्तीय लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद देगी बल्कि मुनाफा वसूली भी सुनिश्चित करेगी जो निवेश की योजना से जुड़ा अहम अंश है। दूसरी ओर अगर आपके पास निवेश के लिए लंबी अवधि है तो भी आप संपत्ति बना सकते हैं। ऐसे हालात में निवेश की प्रक्रिया में जोखिम प्रबंधन को शामिल किया जा सकता है, क्योंकि आपका निवेश नियमित रूप से होगा और एकमुश्त रकम नहीं लगाई जाएगी। इस तरह आप अपने निवेश खर्च को एवरेज आउट कर सकते हैं।
निवेश अनुशासन
शेयर खरीदकर एकत्र करने की रणनीति का एक और अहम अंश है नियमित फोकस और अनुशासन का पालन। यह अनिवार्य पक्ष है हालांकि आपको हर वक्त एक ही तरह के उत्पादों से चिपके रहने की जरूरत नहीं है। मसलन, अगर आपने पांच साल की अवधि के लिए स्मॉल कैप फंड का सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान लिया है तो मौजूदा स्थिति में आप उस फंड में आवंटन कम कर सकते हैं और लार्ज कैप फंड का दामन थाम सकते हैं। वास्तव में, लार्ज कैप शेयर या फंड लंबी अवधि के पोर्टफोलियो के लिए सुरक्षित दांव हैं, क्योंकि उनमें बेहतर तरीके से बाजार की उथल-पुथल में बने रहने की क्षमता होती है। दूसरी ओर, मध्यम और छोटी कंपनियां कुछ जोखिम रखने के बावजूद बेंचमार्क इंडेक्स को पीछे छोड़ने का माद्दा रखती हैं। शेयर या म्यूचुअल फंड की पसंद के बावजूद पैसे जोड़ने की कोई भी रणनीति तब तक अधूरी है जब तक कि आप नियमित अंतराल पर निवेश की निगरानी रखने की आदत नहीं रखते। इन दिनों प्रोफेशनल से मदद मिल सकती है, जिससे यह काम काफी हद तक आसान हो जाता है।
-श्रीकला भाष्यम

Wednesday, March 18, 2009

Mukesh Ambani


Mukesh Ambani is the Chairman, Managing Director and the largest shareholder of Reliance Industries, India`s largest private sector enterprise and a Fortune 500 company. His personal stake in Reliance Industries is 48%. His wealth is valued at US$20.8 billion (according to Forbes), making him the richest man in Asia.Mukesh and younger brother Anil are sons of the late founder of Reliance Industries, Dhirubhai Ambani. Mukesh also owns the Indian Premier League team Mumbai Indians.Mukesh Ambani was educated at Abaay Morischa School in Mumbai and completed his graduation with a bachelor`s degree in chemical engineering from the UDCT. Mukesh later enrolled for an MBA from Stanford University but completed only one year of the two year program. Mukesh Ambani joined Reliance in 1981 and initiated Reliance`s backward integration from textiles into polyester fibres and further into petrochemicals. In this process, he directed the creation of 60 new, world-class manufacturing facilities involving diverse technologies that have raised Reliance`s manufacturing capacities from less than a million tonnes to twelve million tonnes per year.He directed and led the creation of the world`s largest grassroots petroleum refinery at Jamnagar, Gujarat, India, with a present capacity of 660,000 barrels per day (105,000 m?/d) (33 million tonnes per year) integrated with petrochemicals, power generation, port and related infrastructure, at an investment of Rs 100000 crore (nearly $26 billion USD).Mukesh Ambani set up one of the largest telecommunications companies in India in the form of Reliance Communications (formerly Reliance Infocom) Limited. However, Reliance Infocom now is under Anil Dhirubhai Ambani Group post the brothers` split. Under him Reliance Retail has also launched a new chain called Delight stores and also signed a letter of intent with NOVA Chemicals to make energy-efficient structures for Reliance Retail. Ambani owns the Indian Premier League team Mumbai Indians.AchievementsChosen the businessman of the year 2007 by a public poll in India conducted by NDTV Conferred the United States-India Business Council (USIBC) leadership award for Global Vision 2007 in Washington.Ranked 42nd among the World`s Most Respected Business Leaders and second among the four Indian CEOs featured in a survey conducted by Pricewaterhouse Coopers and published in Financial Times, London, November 2004.Conferred the World Communication Award for the Most Influential Person in Telecommunications in 2004 by Total Telecom, October, 2004.Chosen Telecom Man of the Year 2004 by Voice and Data magazine, September 2004.Ranked 13th in Asia`s Power 25 list of The Most Powerful People in Business published by Fortune magazine, August 2004.Conferred the Asia Society Leadership Award by the Asia Society, Washington D.C., USA, May 2004.Ranked No.1 for the second consecutive year, in The Power List 2004 published by India Today, March 2004.Recorded as the first Trillionaire in India, June 2007.Awarded the Chitralekha Person of the Year Award -- 2007 by Gujarat Chief Minister Narendra Modi

Lakshmi Mittal


Lakshmi Mittal is an Indian industrialist based in the United Kingdom. He was born in Sadulpur village, in the Churu district of Rajasthan, India, and he resides in Kensington, London. He is the Chairman and CEO of ArcelorMittal (founder of Mittal before merger with Arcelor) and also serves as a non-executive director of Goldman Sachs, EADS and ICICI Bank.Mittal was born in a Rajasthan Agrawal family and spent his initial years in India, living with his extended family on bare floors and rope beds in a house built by his grandfather. The family eventually moved to Calcutta where his father, Mohan, became a partner in a steel company and made a fortune. Mittal graduated from St. Xavier\'s College in Calcutta with a Bachelor of Commerce degree in Business and Accounting in 1969.Mr. Mittal began his career working in the family\'s steelmaking business in India, and in 1976, when the family founded its own steel business, he set out to establish its international division, beginning with the buying of a run-down plant in Indonesia. Shortly afterwards he married Usha, the daughter of a well-to-do moneylender. In 1994, due to differences with his father, mother and brothers, he branched out on his own, taking over the international operations of the Mittal steel business, which was already owned by the family. Mittal\'s family never spoke publicly about the reasons for the split.In March 2008, Mittal was reported to be the 4th wealthiest person in the world, and the wealthiest in Asia, by Forbes Magazine (up from 61st. richest in 2004) up one place since a year ago. The Mittal family owns a controlling majority stake in ArcelorMittal, the world\'s largest steel company. His residence at Kensington Palace Gardens was purchased from Formula One boss Bernie Ecclestone in 2004 for ?57 million (US$128 million), making it the world\'s most expensive house, at that date.In 2008 Mittal awarded Abhinav Bindra with Rs. 1.5 Crore, for getting India its first individual Olympic gold medal in shooting.Awards2008: Padma Vibhushan 2007: Bessemer Gold Medal 2006: Person of the Year - Financial Times 2004: European Businessman of the Year - Fortune magazine1998: Willy Korf Steel Vision Award - American Metal Market and PaineWeber?s World Steel Dynamics 1996: Steelmaker of the Year - New Steel

Sunil Bharti Mittal


Sunil Bharti Mittal, born October 23, 1957 is the Chairman and Managing Director of the Bharti group. The USD 5 billion turnover company runs India\'s largest GSM-based mobile phone service.The son of a politician, Sunil Mittal is from the town of Ludhiana in Punjab. He has built the Bharti group, along with two siblings, into India\'s largest mobile phone operator in just ten years. He has been Chairman & Managing Director of Bharti Group since October 2001.Residing in Delhi, he is married, with three children. A first generation entrepreneur, he started his first business in 1976 at the age of 18, with a capital investment of Rs 20,000 borrowed from his father. His first business was to make crankshafts for local bicycle manufacturers. In 1980 he sold his bicycle parts and yarn factories and moved to Mumbai.The importing of telecom equipment was banned by the Indian Government as ITI (Indian Telecom Industry) monopoly practices & sole OEM for Department of Telecommunication. He established the first company to manufacture push button telephones in India. He was one of the first Indian entrepreneurs to identify the mobile telecom business as a major growth area and launched services in the city of Delhi and the National Capital Region in the year 1995.AwardsSunil has received several awards including:Transforming India Leader, NDTV Business Leader Awards 2008.GSMA Chairman\'s Award 2008 Padma Bhushan in 2007, from the President of IndiaAsia Businessman of the Year, Fortune Magazine 2006Telecom Person of the Year, Voice & Data, 2006CEO of the year 2005, at the Frost and Sullivan Asia Pacific ICT awards 2006Best Asian Telecom CEO, Telecom Asia Awards 2005Best CEO, India, Institutional Investor, 2005 Business Leader Of The Year, Economic Times, 2005Ernst & Young Entrepreneur Of The Year 2004, Ernst & Young

Ratan Naval Tata


Ratan Naval Tata was born on December 28, 1937, in Surat. He is the present Chairman of the Tata Group, India`s largest conglomerate founded by Jamshedji Tata and consolidated and expanded by later generations of his family.Tata was born into the wealthy and famous Tata family of Mumbai. He was born to Soonoo and Naval Hormusji Tata. Ratan is the great grandson of Tata group founder Jamshedji Tata. Ratan`s childhood was troubled, his parents separating in the mid-1940s, when he was about seven and his younger brother Jimmy was five. He was schooled at the Campion School, Mumbai and graduated from Cornell University in 1962 with a degree in Architecture and Structural Engineering.Ratan Tata holds a B.Sc. (Architecture) degree with structural engineering from Cornell University, USA and has completed the Advanced Management Program at Harvard Business School, USA. He joined the Tata Group in December 1962, after turning down a job with IBM on the advice of JRD Tata. He was first sent to Jamshedpur to work at Tata Steel. Ratan Tata, a shy man, rarely features in the society glossies, has lived for years in a book-crammed, dog-filled bachelor flat in Mumbai`s Colaba district.Ratan Tata has his own capital in Tata Sons., the holding company of the group. Though his share is just about 1%, his personal holding is valued at US$ 1 Billion. If all the value of this is added his Net Worth is estimated at around US$ 50 Billion, making Ratan N. Tata one of the richest people in the world.JRD Tata with his successor Ratan Tata in 1971, Ratan was appointed the Director-in-Charge of the National Radio & Electronics Company Limited (Nelco), a company that was in dire financial difficulty. Ratan suggested that the company invest in developing high-technology products, rather than in consumer electronics.In 1991, he took over as group chairman from J.R.D. Tata, pushing out the old guard and ushering in younger managers. Since then, he has been instrumental in reshaping the fortunes of the Tata Group, which today has the largest market capitalization of any business house on the Indian Stock Market.On March 26, 2008, Tata Motors, under Ratan Tata, bought Jaguar & Land Rover from Ford Motor Company. The two iconic British brands, Jaguar and Land Rover, were acquired for $2.3 billion.Ratan Tata`s dream was to manufacture a car costing Rs 100,000. He realized his dream by launching Nano in New Delhi Auto Expo on January 10, 2008.

Kumar Mangalam Birla


Kumar Mangalam Birla (born June 14, 1967), is among the richest persons in India and the eighth youngest billionaire outside India according to the Fortune magazine.Kumar Mangalam Birla is the Chairman of the Aditya Birla Group, which is among India`s largest business houses. Among its major companies in India are Grasim, Hindalco, UltraTech Cement, Aditya Birla Nuvo and Idea Cellular. Its Joint Ventures include Birla Sun Life (Financial Services) and Hindalco-Almex (Aerospace Alloys). While Birla is the Chairman of all of the Group`s blue-chip companies in India, he serves as a Director on the Board of the Group`s International Companies spanning Thailand, Indonesia, Malaysia, Philippines and Egypt.The Group`s operations extend to Canada, China, Laos, USA, U.K. and Australia as well. Kumar Mangalam Birla has held and continues to hold several key and responsible positions on various regulatory and professional Boards, such as: Director of the Central Board of Directors of the Reserve Bank of India from 27 June 2006 Chairman of the Advisory Committee constituted by the Ministry of Company Affairs for 2006 and 2007 Member of The Prime Minister of India`s Advisory Council on Trade and Industry Chairman of the Board of Trade reconstituted by the Union Minister of Commerce and Industry Chairman of the National Safety Council Member of The Government of Uttar Pradesh`s High Powered Investment Task Force Member of The National Council of the Confederation of Indian Industry (CII) Member of the Apex Advisory Council of The Associated Chambers of Commerce and Industry of India On The Advisory Council for the Centre for Corporate Governance Member of the Organising Committee for Commonwealth Games, Delhi 2010 Chancellor of the Birla Institute of Technology and Science, Pilani.

Monday, March 16, 2009

औरतों को आजाद करती है फाइनैंशियल प्लानिंग

घर में जश्न की तैयारी चल रही है, लेकिन मुखिया बाहर हैं। वह इस जश्न में शामिल होने के लिए घर आने की जल्दी में हैं, तभी बीच रास्ते में कुछ बदमाश उनकी हत्या कर देते हैं। जब यह खबर घर पहुंचती है तो उनकी पत्नी कहती है- अब मेरा क्या होगा? मैं आपके बगैर कैसे जी पाऊंगी? आपने यह दृश्य किसी फिल्म या सीरियल में जरूर देखा होगा।फिल्म या सीरियल का यह दृश्य पूरी तरह जिंदगी से कटा हुआ भी नहीं है। परिवार के मुखिया की मौत के बाद पत्नी पर जिम्मेदारियों का बोझ टूट पड़ता है। लेकिन यह भी सही है कि पत्नी की जिंदगी यहीं खत्म नहीं होती। हमारे देश में करीब 90 फीसदी महिलाएं आर्थिक तौर पर पुरुषों पर निर्भर हैं। आपको बहुत कम ऐसी औरतें मिलेंगी, जो आर्थिक तौर पर अपने पैरों पर खुद खड़ी हैं।ऐसे में बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है औरतों की फाइनेंशियल प्लानिंग...
क्यों जरूरी है फाइनैंशियल प्लानिंग:
अब सवाल यह है कि फाइनेंशियल प्लानिंग क्यों की जाए? दरअसल, यह आगे की जिंदगी के लिए एहतियात है। फाइनेंशियल प्लानिंग से आप अपने घर खरीदने का ख्वाब पूरा कर सकती हैं। अगर आप बचत करते हैं तो करियर के दौरान कभी ब्रेक भी ले सकती हैं। इसका इस्तेमाल आप प्रोफेशनल स्किल्स को बेहतर करने के लिए कर सकती हैं। यही नहीं, इस बचत के जरिए माता-पिता की भी आर्थिक मदद की जा सकती है। जानकारों का कहना है कि अगर महिला आर्थिक तौर पर आजादी है तो वह जिंदगी की चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से कर सकती है। चाहे वह पति की मृत्यु हो या तलाक।
कैसे करें फाइनेंशियल प्लानिंग?
टैक्स के मामले में महिलाओं को ज्यादा रियायत मिलती है। उनके लिए साल में 1 लाख 80 हजार की आमदनी तक को इनकम टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है। फाइनेंशियल मार्केट में आज महिलाओं के लिए कई प्रोडक्ट हैं, जिनका फायदा उठाया जा सकता है। यहां हम आपके इनके बारे में जानकारी दे रहे हैं:
बैंक एकाउंट और कार्ड: महिलाओं के लिए सुविधा:
आईसीआईसीआई और एक्सिस बैंक महिलाओं को स्पेशल एकाउंट की सुविधा देते हैं। आईट्रस्ट फाइनेंशियल एडवाइजर के ध्रुव अग्रवाल का कहना है, 'इस एकाउंट में महिलाओं को स्पेशल लोन और डिपॉजिट रेट की सुविधा मिलती है। बगैर टीडीएस इनमें आवर्ती जमा की सुविधा भी दी जाती है। साथ ही, स्पेशल एकाउंट में मिनिमम बैलेंस भी काफी कम तय किया जाता है।' कुछ बैंक महिलाओं को जारी किए गए क्रेडिट और डेबिट कार्ड पर खास रियायत देते हैं। यह बात शायद ही किसी से छिपी है कि महिलाएं ज्वैलरी के बगैर रह नहीं सकतीं। एक्सिस बैंक के डेबिट कार्ड में महिलाओं को 50 हजार रुपए की ज्वैलरी तक पर इंश्योरेंस कवर दिया जाता है। महिलाओं के स्पेशल एकाउंट पर लॉकर फीस में छूट, कैश बैक फैसिलिटी, एक्सीडेंटल इंश्योरेंस कवर, फ्री बिल पे जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं।क्रेडिट कार्ड पर भी कई तरह की रियायतें मिलती हैं। मिसाल के तौर पर अगर आपके पास एचडीएफसी का गोल्ड क्रेडिट कार्ड है और अगर 20 हजार रुपए से ज्यादा का बिल होता है कुछ सामानों की खरीद पर 5 फीसदी का कैश बैक मिल सकता है। सरदेसाई फाइनेंस के वीर सरदेसाई ने बताया कि महिलाओं के क्रेडिट कार्ड से अगर किसी खास स्टोर में खास कीमत तक की खरीदारी की जाती है तो डिस्काउंट मिलता है।
महिलाओं के लिए जरूरी है इंश्योरेंस:
ऑप्टिमा रिस्क इंश्योरेंस के सीईओ राहुल अग्रवाल के मुताबिक, महिलाओं की औसत उम्र पुरुषों से ज्यादा होती है। इसलिए बीमा कंपनियां उन्हें उम्र के मामले में दो से तीन साल तक की छूट देती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, एलआईसी और बजाज आलियांज ने गृहिणी और कामकाजी महिलाओं के लिए खास इंश्योरेंस प्रोडक्ट उतारे हैं। हालांकि, दूसरी बीमा कंपनियां राइडर के तौर पर महिलाओं को ज्यादा सुविधाएं देती हैं। जानकारों का कहना है कि इस तरह की पॉलिसी लेते वक्त महिलाओं को बीमा दस्तावेज अच्छी तरह पढ़ना चाहिए। आर्थिक आजादी की खातिर-1 लाख 80 हजार रुपए तक की आय को इनकम टैक्स से छूट-बैंक एकाउंट पर स्पेशल लोन और डिपॉडिट रेट। मिनिमम बैलेंस काफी कम।-डेबिट कार्ड पर लॉकर फीस में डिस्काउंट, कैश बैक फैसिलिटी, एक्सीडेंटल इंश्योरेंस कवर-क्रेडिट कार्ड से कुछ खास खरीदारी पर कैश बैक की सुविधा, चुनिंदा स्टोरों में डिस्काउंट, बगैर ब्याज के ग्रेस पीरियड-लोन की कम दरें, बगैर सिक्योरिटी के लोन-इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ कुछ मुफ्त राइडर।
लोन: महिलाओं को मिलती है रियायत:
कई सरकारी बैंक महिलाओं को रियायती दरों पर लोन देते हैं। महिलाओं के होम लोन लेने पर पंजाब नेशनल बैंक और यूको बैंक आम दरों से 0.25 फीसदी कम ब्याज वसूलते हैं। उसी तरह से महिला उद्यमी को जो लोन दिया जाता है, उसकी ब्याज दर भी सामान्य से कम होती है। साथ ही, महिला उद्यमियों को बहुत ज्यादा औपचारिकताएं भी पूरी नहीं करनी पड़तीं। एसबीआई के पास महिला उद्यमियों के लिए स्त्री शक्ति पैकेज है। इसमें पांच लाख तक के लोन के लिए उन्हें सिक्योरिटी नहीं रखनी पड़ती। माइक्रो केडिट के मामले में भी कुछ बैंक महिलाओं को रियायत देते हैं। डेवलपमेंट क्रेडिट बैंक ने गुजरात के कुछ इलाकों में स्वयंसेवी समूहों को लोन देने शुरू किया है। बैंक के अधिकारी के मुताबिक, इन समूहों को रोजाना, साप्ताहिक या पाक्षिक आधार पर लोन चुकाने की सहूलियत मिलती है।
-लीजा मैरी थॉमसन/आनंद रवानी

निवेश की दुनिया में महिलाओं की बढ़े हिस्सेदारी

निवेश परंपरागत तौर पर पुरुषों का ही अधिकार क्षेत्र रहा है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं को इसकी अनुमति नहीं है लेकिन परंपरागत रूप से वे इससे दूर ही रहती आई हैं। बाजार और निवेश की पूरी प्रक्रिया पुरुषों ने ही विकसित की है और महिलाएं अब भी इन प्रणालियों के हाशिए पर ही हैं। कुछ महिलाएं जरूर इसमें हिस्सा लेती हैं लेकिन उनकी संख्या और निवेश की राशि पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है। भारत की जनसंख्या का लगभग आधा हिस्सा महिलाओं का है लेकिन निवेश करने वाली सक्रिय जनसंख्या में उनकी मौजूदगी न के बराबर है। आधुनिक दौर की महिलाएं आज पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। नौकरियों और कॅरियर के मामले में भी वे अब काफी संजीदा हैं, ऐसे में उनके लिए वित्तीय योजना बनाना भी जरूरी हो गया है। उन्हें शिक्षा, नौकरी, विवाह, मातृत्व और रिटायरमेंट जैसे जीवन के महत्वपूर्ण चरणों के लिए पहले से योजना बनाने की जरूरत होती है। महिलाओं को सशक्त बनने के लिए वित्तीय तौर पर सुरक्षित और स्वतंत्र होना होगा। वे निवेश के फैसलों पर नियंत्रण कर ऐसा कर सकती हैं। वित्तीय जगत भी अब इस बात को समझने लगा है कि महिलाओं के पास धन मौजूद है और उसका निवेश करने के लिए भी वे तैयार हैं। कुछ समय पहले जब बाजार में तेजी का दौर चल रहा तो महिलाओं ने इसमें काफी रुचि दिखाई थी। कामकाजी महिलाओं के अलावा कॉलेज जाने वाली लड़कियों और गृहणियों ने भी शेयर बाजार में निवेश का श्रीणेश किया था। इनमें से ज्यादातर ने छोटे निवेश तक ही खुद को सीमित रखा था लेकिन कुछ अपने निवेश को लेकर काफी गंभीर थीं और उन्होंने बाजार से अच्छा मुनाफा भी कमाया था। अब महिलाओं के लिए विशेष फाइनेंशियल प्रोडक्ट भी बड़ी संख्या में लॉन्च किए जा रहे हैं। इनमें बीमा पॉलिसियों से लेकर बचत खाते तक शामिल हैं। उदाहरण के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने पहली बार 2003 में महिलाओं के लिए जीवन भारती नाम से पॉलिसी पेश की थी। पिछले वर्ष एलआईसी ने जीवन भारती-1 नाम से इसका नया वर्जन भी लॉन्च किया था। कई बैंक भी महिला ग्राहकों को खींचने के लिए अब विशेष खातों और बचत योजनाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। बाजार में अभी वरिष्ठ नागरिकों और बच्चों के लिए म्यूचुअल फंड मौजूद हैं। हो सकता है कि आने वाले समय में महिलाओं के लिए भी विशेष तौर पर डिजाइन किए गए फंड पेश किए जाएं। महिला निवेशक आमतौर पर सोने या फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे सुरक्षित विकल्पों में धन लगाना अधिक पसंद करती हैं। म्यूचुअल फंड या इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) में निवेश का मुख्य उद्देश्य कर बचाना होता है। बहुत कम ऐसी महिलाएं हैं जो डेरिवेटिव या आर्बिट्राज जैसे जोखिम वाले प्रोडक्ट में हाथ आजमाती हैं। महिलाओं और पुरुषों की निवेश शैली भी काफी अलग रहती है। पुरुषों के मुकाबले महिलाएं जोखिम लेना कम पसंद करती हैं। परिवार के रोजमर्रा के खर्च की जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है और इसी वजह से वे बजट बनाने में काफी माहिर होती हैं, लेकिन कई बार ऐसा होता है कि निवेश के विकल्पों की जानकारी महिलाओं को कम होती है और वे अपने निवेश से जुड़े फैसले लेने में हिचकती हैं। अगर आप एक महिला हैं तो निवेश के फैसले लेने की प्रक्रिया में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए तैयार हो जाएं। वित्तीय फैसले अब केवल पुरुषों की जिम्मेदारी नहीं हैं। फाइनांसियल प्रोडक्ट के बारे में जानकारी आज आसानी से उपलब्ध हैं। इसके लिए आप इंटरनेट, अखबार या टीवी चैनल का इस्तेमाल कर सकती हैं। बहुत सी वित्तीय कंपनियों के रिलेशनशिप मैनेजर के तौर पर महिलाएं काम कर रही हैं और वे महिला ग्राहकों को सर्विस देकर ज्यादा खुशी महसूस करती हैं। बाजार के मौजूदा हालात में भी पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने अनुशासन की वजह से निवेश के सही फैसले लेने में ज्यादा सफल हो सकती हैं। वित्तीय प्रोडक्ट की मार्केटिंग करने वाले लोग भी नई पीढ़ी की महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए नई रणनीतियां बना रहे हैं। बहुत से छोटे वित्तीय संस्थान महिलाओं की वित्तीय जरूरतें पूरी कर रहे हैं और उन्हें विशेष आर्थिक सहायता की पेशकश भी करते हैं। महिला ग्राहकों के लिए विशेष प्रोडक्ट, कर छूट और काउंसलिंग जैसी पेशकश भी की जा रही हैं। वित्तीय अनिश्चितता के मौजूदा समय में महिलाओं को नौकरी जाने या वेतन में कटौती जैसी आपात स्थितियों से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। महिलाएं कॅरियर और घर-परिवार के बीच संतुलन बनाने का काम करती हैं। उन्हें इसे और बेहतर करने के लिए निवेश की कमान भी संभालनी होगी। इससे वह खुद के साथ ही परिवार को भी सशक्त बना सकेंगी।
-किरण काब्ता सोमवंशी

Thursday, March 12, 2009

Are you blowing up your Future today?


One of the founder fathers of United Sates of America, Benjamin Franklin had to say this for debt (borrowing) “Rather go to bed without dinner than to rise in debt.” Alas, had Americans listened to him they would not have faced current crisis.

Let us dig deeper into his statement. Statement is very strong. He is saying it is better to remain hungry than to borrow.

What is borrowing? Borrowing is nothing but spending our future, unearned, uncertain income today.

When we borrow money, we receive funds. These funds are spent today. However its repayment has to be made from our future earnings. This means we are currently spending our future income - Income which is not yet earned by us. Future is always uncertain.

To analyze it further, when we borrow we are committing ourselves to certain payout. This certain payout gets committed from future uncertain income. In short we are getting into a trap of committing certain payout against uncertain pay-in. Lots can happen between borrowing of funds and repayment. After we have borrowed, there could be slow down in economy, pay-cuts, lay-offs, health problems of near and dear ones, occurrence of natural or manmade calamites etc. Usually home loan borrowers have long repayment tenure like 15, 20 years. This is very long time and lots can become unfavorable.

In recent past, number of clients needing assistance to help manage their debt has increased manifolds. In fact many of them also needed debt counseling. These are couples who borrowed while economy was going strong. With slow-down in economy, pay cuts, and retrenchments, they are struggling to service debt.

Some of them had unknowingly leveraged themselves. After taking loan, they were paying EMI on time. However they had excess surplus deployed in equity market. Currently they are losing in equity market and also paying EMI. Had they used surplus to pay off debt, they would have been out of loan and not lost to equity.

There are some who continued (home) loans because there was tax benefit. Continuing loan purely for the sake of tax benefit is one of the biggest mistakes many make. Look at the above two calculations

While borrowing helps save tax, it also increases outflow burden due to EMI.

Usually accountants and borrowers only make calculations upto tax saved. Actually we need to go a step ahead and calculate how much funds are left in hand after servicing loan and paying tax. From the above calculations it is clear that upto the stage of tax calculations, couple with loan is better off. However moment we make one more calculation on funds available after tax, couple which did not have loan, will have more surplus.

There is no way I am suggesting do not borrow funds for basic needs like housing, health care and education. These are necessities in life, but once you have borrowed get out of it as soon as possible.

One of the prudent borrowing rule of thumb suggests that your liability should not be more than 50% of your assets. Assume total value of your house, all investments etc. is Rs 100. Your total liability should not be more than Rs 50. While borrowing, people hardly consider this. They only focus on their income and ability to pay EMI. They only focus on inflow and outflow. However as discussed earlier, if inflow was to get affected in future due to some reason, they do not have enough assets which can be liquidated to clear off debt.

More worst are those who have borrowed not to create assets but to splurge. Funds were borrowed for going on vacation, purchasing life style goods and services, there would be outstanding on credit card created because of extravagant life style etc. Even those who are servicing their loan properly but also are splurging come in this category. On balance sheet they have outstanding loan and instead of paying it back at the earliest, funds are used to splurge. It is important that we develop a habit of looking at our complete balance sheet.

Lastly when we service loan we are earning for someone else. When we pay interest from our hard earned income, it becomes income for the lender. This means we are working hard to generate income for the lender.

- Gaurav Mashruwala

Global Financial Crisis - How to profit from it

Global Financial Crisis - How to profit from it

The global financial situation continues to deteriorate and several institutions such as AIG and Citibank have been asking for more government aid. AIG, the troubled insurance company is getting an additional US$ 30 billion as aid from the government. Infact Ben Bernanke (Federal Reserve Chairman) went to the extent of saying “AIG operated like a hedge fund and having to rescue this irresponsible company has made him angrier than any other episode during the financial crisis”.

Late last year, AIG had announced severe pay cuts for it CEO, restricting it to a nominal $1 for 2008 and 2009, while there would be no pay hikes for its senior executives in 2009. The stock of AIG is down 99% from its peak to around 35 cents (US $ 0.35) as of yesterday.

The legendary Peter Lynch had said in September 2008, “I can be just as dumb as anyone else”. Incidentally Peter Lynch had both AIG and Fannie Mae in his portfolio, the stocks which dropped by more than 80% in just one month. Similarly Warren Buffet, the world’s revered and best investor also acknowledged the fact of making several mistakes in 2008. The point that I am trying to make is that even the best could not foresee the gravity of the current financial crisis. The scenario today is far different than what has been in the past and looking at history to provide answers might not help at all. Nobody has any clue where we will land up 6-8 months down the line.

Our own markets have been plagued with several problems right from corporate governance issues to currency woes. To compound the problem further there is a lack of institutional buying that is happening and in fact we have seen a huge outflow by FIIs since February 16, 2009.

Opportunities in the Current Market

The Dow closed at 12 year low on March 5, 2009 and Indian markets might breach the 8000 levels and could witness 7800 levels in the next couple of days or weeks. There now seems to be strong indicators in place that we are headed downwards and there could be more pain down the line. This will bring us to valuation levels (not index levels) witnessed in 2003 and for people who have missed the bus then, this could once again prove to be a great opportunity. There is no rush to jump in today but one should certainly look to invest at 8100 or lower Sensex levels as these are mouth watering levels for the long term investor. March 2009 could look a little bit like October 2008. Surely individual stocks can go down 50% or more, but the broader indices namely the Nifty and Sensex will not go down 50%. If this happens then one should take a significant higher exposure to equity, bypassing other asset classes.

Just as an example, some of the Indian Banks are available at excellent valuations with some of them available at less than their book value. At the same time these are also banks that have been clocking growth of 30% p.a with negligible NPA levels. They are attractive at current levels but a further 10-15% correction in these stocks would mean a great opportunity for long term investors only (not trading buys). This is also the time to weed out stocks with poor fundamentals and move into solid companies that are available at extremely low valuations.

Gold: It has been the star performer as expected in the last several weeks and months. Everyone is talking about gold reaching Rs 20000 levels. Though I am very bullish on gold, I believe you must book profits if you have sizeable exposure to gold. Surely gold can go up from here, but the immediate upside looks capped. In equity market jargon, we might be somewhere near 18500-19000 Sensex levels. Gold being a volatile asset class can correct by as high as 10% in a day and don’t be surprised to see days of Rs 1000 fall in gold prices. Over the next 2-3 years gold could shine but book profit regularly and this is certainly a time to do so.

Real Estate: Not just home prices, but interest rates are on their way down as well. Banks and institutions today are offering a 9.25% floating rate of interest. Some banks have come with innovative schemes as well and low ticket loans also attract a lower interest rate. With inflation going to 3% levels and lower GDP numbers, RBI could come up with yet another interest rate cut. We are moving towards a low interest regime where I will not be surprised to see a 7-7.5% interest rate. On the other hand prices have corrected sharply with some builders dropping prices by as high as 35-40%. Prices will drop further as there is no genuine demand even at these prices. Looking at the current scenario, don’t jump into Real Estate till October 2009. You could probably get some gems at that point of time. Even if you must buy a home now, think about your job or income stability and whether you will be able to pay EMIs comfortably in the next few years. On the whole I believe that patience will deliver stupendous benefits on the real estate front too as you might just be able to afford a bigger house six months down the line.

Keep short term money in fixed deposits (people in the lower tax brackets), liquid and floating rate funds and also look at Income Plans (Long Term Bond Funds) from a 6-12 months perspective. The impact of the current interest rate cut will take some time to take effect as government borrowing is also keeping bond yields higher. With a strong possibility of reduction in interest rates going forward, long term bond funds could deliver good returns.

Finally the world is not coming to an end. In fact it is changing in many profound and positive ways. The key is to understand the changes happening around you and be ready to profit from it.

- Amar Pandit

Monday, March 9, 2009

HAPPY, PROSPEROUS AND COLORFUL HOLI TO ALL

May God gift you all the colors of life,colors of joy, colors of happiness,colors of friendship, colors of loveand all other colors you want to paint in your life.Happy Holi.

आयकर रिटर्न के मोर्चे पर कुछ महत्वपूर्ण बिंदु क्या हैं, जानिए

टैक्स प्लानिंग के बारे में महत्वपूर्ण बातें
आयकर रिटर्न दाखिल करना देश के हर नागरिक की जिम्मेदारी है, हालांकि रिटर्न दाखिल करने की जटिल प्रक्रिया के चलते पेशेवर लोग भी रिटर्न दाखिल करने से झिझकते हैं। हम अपने पाठकों की सुविधा के लिए आसानी से आयकर रिटर्न (आरओआई) दाखिल करने के तरीकों के बारे में बता रहे हैं। रिटर्न दाखिल करने के दौरान करदाता को निम्नलिखित नियमों का ध्यान रखना चाहिए।
आरओआई दाखिल करने की अंतिम तिथि वैसे सभी करदाताओं के लिए, जिन्होंने आयकर कानून के तहत अपने बही-खाता का ऑडिट कराया है, रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तारीख 30 सितंबर 2009 है। दूसरे सभी करदाताओं के लिए रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तारीख 31 जुलाई 2009 है। *यदि करदाता ऊपर बताई गई तारीख के बाद रिटर्न दाखिल करते हैं तो उन्हें प्रत्येक महीने एक फीसदी ब्याज की दर से जुर्माना देना होगा। हालांकि, यदि रिटर्न 31 मार्च 2010 के बाद दाखिल किया जाता है तो उन्हें इस जुर्माना के अलावा 5,000 रुपए का अतिरिक्त जुर्माना देना पड़ेगा।
आरओआई दाखिल करने का तरीका
रिटर्न उस एसेसिंग अफसर (एओ) के पास दाखिल किया जाना चाहिए जिसने पिछले निर्धारण वर्ष में करदाता के रिटर्न की जांच की है या जिसके पास रिकॉर्ड स्थानांतरित किए गए हैं। नए करदाता को उस एओ के पास रिटर्न दाखिल करना चाहिए, जिसके क्षेत्र के दायरे में करदाता का आवास आता हो या करदाता के कारोबार का स्थान आता हो।
ई-रिटर्न दाखिल करने का तरीका
करदाता जिसके पास पैन हो और जिसे 'वेतन' से आय होती हो, लेकिन जिसे 'व्यवसाय या पेशे से नफा-नुकसान' नहीं होता हो और जिसका एसेसमेंट दिए गए शहर में हो गया हो, वह चाहे तो इंटरनेट के जरिए आयकर रिटर्न दाखिल कर सकता है। हालांकि कंपनियों के लिए इलेक्ट्रॉनिक रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य है।
नाबालिग का आरओआई
नाबालिग को अलग से आय का रिटर्न दाखिल करने की जरूरत नहीं है। हालांकि, यह आय माता-पिता की आय में जोड़ दी जानी चाहिए, भले ही यह बैंक से हासिल ब्याज की मामूली रकम ही क्यों न हो।
टीडीएस आरओआई का विकल्प नहीं
यदि स्त्रोत पर कर कटौती की गई है और करदाता पर कोई अतिरिक्त कर बकाया नहीं है, तो भी कर्मचारी के लिए आयकर रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य है। कर्मचारी को कंपनी के द्वारा दिया गया फॉर्म 16 आयकर रिटर्न नहीं है।
बैंक ब्याज पर कर
आमतौर पर कर्मचारी बचत बैंक खाता पर हासिल ब्याज आय को अपनी आय में शामिल नहीं करते। हकीकत यह है कि आपके बचत खाते पर मिलने वाला पूरा ब्याज कर योग्य है- शिक्षा लोन हाउस प्रॉपर्टी टैक्स सेविंग माध्यम बीमा और मेडिक्लेम
आईटीआर फॉर्म संख्या इस्तेमाल के बारे में-
1.वैसे करदाता जिन्हें (ए) वेतन से आय होती है, (बी) ब्याज आय (कर योग्य/छूट), (सी) पारिवारिक पेंशन, (डी) कृषि गतिविधियों से आय दूसरे शब्दों कहा जा सकता है कि यह फार्म निम्नलिखित स्थितियों में इस्तेमाल के लिए नहीं है: (ए) वैसे करदाता जिनको ऊपर बताए गए स्त्रोतों के अलावा कोई आय (कर योग्य/छूट) होती है, (बी) पिछले वर्ष हुए नुकसान को यदि चालू वर्ष में दिखाया जाता है (सी) किसी दूसरे व्यक्ति की आय जोड़े जाने पर 2.व्यक्तिगत आयकरदाता/अविभाजित हिंदू परिवार (एचयूएफ) जिसे पेशा/कारोबार से या किसी पार्टनरशिप फर्म में हिस्सेदारी से किसी तरह की आय नहीं होती हो 3.व्यक्तिगत आयकरदाता/एचयूएफ जो किसी पार्टनरशिप फर्म में हिस्सेदार है और जो कोई अन्य व्यवसाय या पेशे में नहीं है 4.व्यक्तिगत आयकरदाता/एचयूएफ जो प्रोपरायटरी संस्था के जरिए कारोबार या पेशे में हो
आरओआई दाखिल करने के बाद ये दस्तावेज रखे जाने चाहिए
आयकर विभाग को आरओआई के साथ किसी अतिरिक्त दस्तावेज की जरूरत नहीं होती है। फिर भी, करदाता को निम्नलिखित दस्तावेज अपने पास रखने चाहिए, ताकि विभाग द्वारा मांगे जाने पर वह उन्हें पेश कर सके करयोग्य आय और देय कर/रिफंड की गणना से जुड़ा दस्तावेज फॉर्म संख्या 16/16ए (मूल प्रति) वर्ष के दौरान भुगतान किए गए सभी कर की रसीद निवेश और प्रॉपर्टी की बिक्री से जुड़े दस्तावेज की कॉपी बैंक स्टेटमेंट्स की कॉपी आय के रिटर्न में कटौती और छूट के दावा के लिए दिए गए प्रूफ के दस्तावेज की कॉपी

रिटायरमेंट के बाद रकम संभालें कैसे

विकसित देशों से उलट भारत में पेंशन और रिटारयरमेंट निवेश योजनाएं सबके लिए उपलब्ध नहीं हैं। आजीवन पेंशन और रिटायरमेंट के बाद की सुविधाएं केवल सरकारी कर्मचारियों और सरकारी स्वामित्व वाले कुछ उद्यमों के चुनिंदा कर्मचारियों को ही उपलब्ध हैं। सरकारी कंपनियों सहित उद्योग जगत के एक बड़े हिस्से में कर्मचारियों को आम तौर पर रिटायरमेंट के बाद एक बड़ी राशि मिलती है। इसमें ग्रैच्युटी और सालों तक जमा होते रहे प्रॉविडेंट फंड शामिल होते हैं। सामान्यत: लोग रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली इस भारी रकम का हिसाब-किताब कर ही निश्चिंत हो जाते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानकारी होती है कि रकम पाने से ज्यादा बड़ी चुनौती इसकी योजना करना है। यह संबंधित कर्मचारी के ऊपर है कि वह किस तरह इसका वित्तीय प्रबंधन करे ताकि न केवल उसकी जिंदगी का ढर्रा पहले सा बना रहे, बल्कि वह आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर भी हो। यह उद्देश्य पा सकना, सोचने में जितना आसान लगता है करने में उतना ही कठिन है। इसीलिए ईटीआईजी की टीम ने अपने उन पाठकों को इस बारे में कुछ सार्थक सलाह देने की सोची जिनके लिए रिटायरमेंट के दिन बहुत दूर नहीं हैं। रिटायरमेंट प्लानिंग का मूलभूत सिद्धांत ऐसे वित्तीय साधन की तलाश करना है, जिससे नियमित अंतराल पर नकदी मिलती रहे (ठीक उसी तरह, जैसे वेतन से होती है), जो मुद्रास्फीति से सुरक्षा दे सके और जो आपकी मूल पूंजी को भी बचा सके। साथ ही बेहतर होगा अगर रिटायरमेंट के बाद आप पर किसी तरह के कर्ज की देनदारी न हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी पर कार या पर्सनल लोन की देनदारी है तो आदर्श स्थिति यह है कि रिटायरमेंट से पहले वह उससे मुक्त हो जाए। और अगर नया घर खरीदने की योजना है, तो यह रिटायरमेंट के कुछ साल पहले ही हो जाना चाहिए या फिर रिटायरमेंट के ठीक बाद मिली मोटी रकम में छोटा-मोटा कर्ज मिलाकर इसे अंजाम दे देना चाहिए। अच्छी चिकित्सा काफी महंगी है और बड़ी उम्र में इसकी जरूरत सबसे ज्यादा होती है। कुछ सरकारी संस्थाओं को छोड़कर सामान्यत: रिटायर हो चुके कर्मचारियों को कोई संस्थान मेडिकल कवर उपलब्ध नहीं करवाता। इसलिए रिटायर होने वाले शख्स के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह मेडिकल बीमा पर कुछ रकम खर्च करे। सबसे बेहतरीन रणनीति रिटायरमेंट से कुछ सालों पूर्व एक मेडिकल बीमा पॉलिसी ले लेना है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सेवानिवृत्ति के बाद किसी के लिए भी जीवन बीमा लेने का कोई खास मतलब नहीं है क्योंकि रिटायरमेंट के बाद किसी व्यक्ति की आय लगभग नगण्य होती है (यह मानते हुए कि सेवानिवृत्ति के बाद वह फिर कोई नई नौकरी न कर ले), इसलिए उसकी मौत के बाद किसी तरह का पूंजीगत नुकसान नहीं होता है। योजना बनाते हुए दैनिक आजीविका के लिए जिन तीन बातों का ख्याल रखा जाना चाहिए, वे हैं लिक्विडिटी, नियमित आय और ग्रोथ। लिक्विडिटी के मोर्चे पर यहां मोटे तौर पर नियम यह है कि किसी के भी पास करीब 6 महीने का खर्च नकदी के तौर पर उपलब्ध होना चाहिए। इसके बाद एक ऐसे साधन की तलाश करनी चाहिए जहां से नियमित मासिक खर्चों का इंतजाम होता रहे। यहां निश्चित आय वाली योजनाओं की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसी तीन सबसे लोकप्रिय योजनाएं हैं डाकघर मासिक आय योजना, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना और म्यूचुअल फंड मासिक आय योजना। इनमें पहली योजना डाकघरों से ली जा सकती है और दूसरी योजना राष्ट्रीयकृत बैंक प्रदान करते हैं। तीसरी योजना विभिन्न म्यूचुअल फंड देते हैं। पहली दो योजनाएं कर के दायरे में आती हैं। इनमें रिटर्न तो निश्चित होता है लेकिन ग्रोथ का स्कोप बहुत ही कम होता है। आखिर वाली योजना पर कर नहीं लगता, इनमें रिटर्न भी सुनिश्चित नहीं होता, लेकिन ग्रोथ का आंशिक अवसर होता है क्योंकि इनका 10-20 फीसदी हिस्सा शेयरों में निवेश किया जाता है। इन तीन योजनाओं में से किसी खास की पसंद व्यक्ति विशेष की आय, जोखिम सहन कर सकने की क्षमता और प्रभावी कर दरों पर निर्भर करती है। या दूसरा उपाय यह है कि सीधे तौर पर रकम को पहली दो योजनाओं में से किसी एक और तीसरी योजना के बीच आधा-आधा बांट दिया जाए। कुछ अन्य योजनाएं हैं मासिक आय तो उपलब्ध कराती हैं, लेकिन बहुत लोकप्रिय नहीं हैं। ये एन्युटी योजनाएं हैं, जो बीमा कंपनियों और मकानों के रिवर्स मॉर्टगेज से जुड़ी हैं। अंत में, इन सभी निवेश योजनाओं का प्रीमियम चुकाने के बाद अगर किसी के पास कुछ रकम और बच जाती है, तो उसे शेयरों या सोना जैसे एसेट में लगाया जा सकता है। हमने इन सारे समीकरणों को सांकेतिक तौर पर दिखाने की कोशिश की है। ये तीनों परिदृश्य अलग-अलग क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी आय और खर्च के स्तर अलग-अलग हैं। किसी भी व्यक्ति को भविष्य के लिए जरूरी खर्च और मेडिकल खर्चों को पूरा करने के लिए जरूरी रकम के लिहाज से मासिक आय योजनाओं में आवश्यक निवेश की गणना कर लेनी चाहिए। मकान या कार जैसी दूसरी सभी जरूरतों की योजना उसके बाद बनानी चाहिए। हम अपने पाठकों को यह याद दिलाना चाहते हैं कि यह केवल एक दिशानिदेर्श है और वास्तविक योजना अलग-अलग व्यक्तियों की निजी परिस्थितियों के आधार पर ही बनाई जा सकती है।

पोर्टफोलिया में डेट प्रॉडक्ट्स को शामिल करें

बाजार में अनिश्चितता बढ़ने के साथ ही निवेशक अब अपने धन की सुरक्षा को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। कुछ समय पहले तक रिटर्न के पीछे दौड़ने वाले लोग भी अब अपनी पूंजी को सुरक्षित रखकर खुश हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई)ने हाल ही में रेपो रेट में आधा फीसदी की कटौती की है जिसके चलते अब डेट प्रोडक्ट्स में भी मंदी आने के आसार नजर आने लगे हैं। मौजूदा स्थिति में निवेशकों को कुछ डेट प्रोडक्ट्स से ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने का प्रयास करना चाहिए। डेट में किसी विकल्प को चुनते समय लघु और लंबी अवधि के बीच संतुलन बनाना जरूरी होता है क्योंकि इनकी अवधि के साथ जोखिम भी जुड़ा होता है। डेट में कम अवधि के निवेश के साथ जोखिम भी कम रहता है जबकि लंबी अवधि के निवेश में यह बढ़ सकता है। संपत्ति के अन्य वर्गों की तरह डेट में भी प्रोडक्ट का चुनाव निवेशक की जरूरतों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए अगर निवेशक अगले तीन महीनों के दौरान आने वाले किसी खर्च के लिए धन जमा करना चाहता है और जोखिम नहीं चाहता, तो वह कैश मैनेजमेंट प्लान या फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे जोखिम मुक्त विकल्पों पर निर्भर कर सकता है। फिक्स्ड डिपॉजिट में अवधि के अनुसार ब्याज मिलता है और इसमें आप कुछ दिनों के लिए भी निवेश कर सकते हैं। डेट में निवेश को लेकर रुचि हाल के समय में काफी बढ़ी है और इसमें निवेश के लिए आप अपनी जोखिम उठाने की क्षमता और अवधि के अनुसार प्रोडक्ट को चुन सकते हैं।
डेट में निवेश के कुछ विकल्प
फिक्स्ड डिपॉजिट(एफडी)
निवेश का यह विकल्प हमेशा से काफी पसंद किया जाता रहा है। शेयर बाजार में भारी गिरावट से नुकसान उठा चुके निवेशक अब फिर से इसमें धन लगाने को तरजीह दे रहे हैं। इसमें निवेश जोखिम मुक्त होता है लेकिन ब्याज पर कर लगाने से इसकी प्रभावी यील्ड कम हो जाती है। अगर निवेशक की पत्नी या पति रोजगार में नहीं है तो कर भार से बचने के लिए उनके नाम पर एफडी की जा सकती है। कुछ समय पहले तक एफडी पर ब्याज दरंे काफी आकर्षक थीं लेकिन आरबीआई के दरों में कटौती करने के बाद से इसकी ब्याज दरों मंे 1.5-2 फीसदी की गिरावट आ चुकी है और आने वाले समय में ये और नीचे जा सकती हैं। एफडी की पेशकश बैंकों के साथ ही बहुत सी कंपनियां भी करती हैं। इसमें लंबी अवधि के लिए निवेश किया जा सकता है क्योंकि निकट भविष्य में ब्याज दरों के और गिरने का अनुमान है।
इनकम फंड
ब्याज दरों में गिरावट के दौर के चलते इनकम फंड की लोकप्रियता बढ़ रही है। दरों में पहले ही काफी गिरावट आ चुकी है और मौजूदा आथिर्क स्थितियांे को देखते हुए इनमें और कटौती की उम्मीद की जा सकती है। कम ब्याज दरों का दौर जारी रहने के बहुत से संकेत मिल रहे हैं। मुदास्फीति की घटती दर इसका एक बड़ा संकेत है। ऐसा हो सकता है कि हम पहली बार शून्य मुदास्फीति के भी गवाह बनें। अर्थव्यवस्था में मंदी से भी ब्याज दरों को घटाने के लिए दबाव बढ़ेगा। इस समय सरकार भी आक्रामक तरीके से उधार लेने में जुटी है। इनकम फंड में निवेश करते समय निवेशकों को अपनी उम्मीदांे को हकीकत के करीब रखना चाहिए। इन फंड का प्रदर्शन पिछले वर्ष काफी अच्छा रहा था लेकिन इसके आधार पर निवेश करना ठीक नहीं होगा क्योंकि आने वाले समय में यह काफी घट सकता है।
लघु अवधि के विकल्प
डेट हमेशा से ही कम अवधि में निवेश का एक अच्छा विकल्प रहा है। इसमें निवेश के लिए लिक्विड प्लस स्कीम और शॉर्ट टर्म डिपॉजिट के साथ ही आप कम और मध्यम अवधि के फंड पर भी निगाह डाल सकते हैं।

बचत के लिए कैसे बनाएं खर्चों का बजट?

निवेश गुरू वॉरेन बफेट ने निवेशकों को बचत से जुड़ी एक महत्वपूर्ण सलाह दी थी। उनका कहना था कि निवेशक को खर्च के बारे में सोचने से पहले निवेश के लिए धन अलग कर देना चाहिए। बहुत से लोग इस पर कह सकते हैं कि उन्हें इसकी जानकारी है लेकिन ईएमआई और जीवनशैली के महंगे खर्च का बोझ उठा रही मौजूदा पीढ़ी शायद इससे अनजान है। हालांकि, अगर इस पीढ़ी के लोग चाहें तो आमदनी में से बचत का रास्ता निकाल सकते हैं। इसके लिए सबसे पहला कदम अपने परिवार का बजट तैयार करना होगा। ठीक उसी तरह जैसे कोई कंपनी या स्व-रोजगार में लगे लोग अपने व्यवसाय के लिए बजट बनाते हैं। इसके लिए व्यक्ति को अपने खर्चों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। खर्चों के प्रबंधन के लिए बहुत से रास्ते मौजूद हैं। आपको इन खर्चों का नियमित आधार पर रिकॉर्ड रखना होता है। आप रोजाना के खर्चों को भी लिख सकते हैं और चाहें तो साप्ताहिक आधार पर इनका रिकॉर्ड रखा जा सकता है। इससे न केवल आपको अपने खर्च पर नजर रखने में मदद मिलेगी बल्कि आप ऐसे खर्च की पहचान कर सकेंगे जो गैर-जरूरी हैं। इसके बाद निवेशकों को अपने लक्ष्यों और उन्हें पूरा करने के लिए संसाधनों के इंतजाम के बारे में सोचना होता है। इसके लिए आप लघु और लंबी अवधि की रणनीतियों के साथ आगे बढ़ सकते हैं। लंबी अवधि के लक्ष्यों में रिटायरमेंट की योजना, प्रॉपर्टी में निवेश या बच्चों की शिक्षा और उनका विवाह शामिल हो सकते हैं। इनके लिए भले ही आपको प्रत्येक माह बचत करने की जरूरत नहीं होगी लेकिन अगर आप इन लक्ष्यों के लिए हर महीने कुछ बचत करते हैं तो भविष्य में आप पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा। आप मासिक बजट में इनके लिए भी अलग से प्रावधान कर सकते हैं। इसके लिए कैसे आवंटन किया जाए? यह सवाल बहुत से लोगों को उलझा सकता है। कुछ लोगों के लिए आमदनी में से बचत की रकम निकालना एक बड़ी चुनौती हो सकती है। ऐसे लोग अपने प्रत्येक खर्च की एक सीमा तय कर सकते हैं। इससे वे अपनी निश्चित आमदनी में से कुछ धन बचा सकते हैं। उदाहरण के लिए मासिक बजट तैयार करते समय आमदनी में से 25-30 फीसदी अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अलग कर दें। यह देश का औसत बचत अनुपात भी है और इस लक्ष्य को हासिल करने में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी। मासिक आधार पर आमदनी के 70 फीसदी में से अपने बजट का प्रबंधन करने का प्रयास करना चाहिए और 3-5 फीसदी की अतिरिक्त बचत करना भी बेहतर रहेगा। ऐसी बचत से आप अपने उन खर्चों के लिए रकम का इंतजाम कर सकते हैं जो बहुत जरूरी नहीं हैं। इनमें किसी अच्छे रेस्तरां में जाना या फिर छुट्टियां बिताने के लिए शहर से बाहर निकलना शामिल हो सकते हैं। बचत का लक्ष्य तय करने के बाद, अगला कदम बचत को निवेश में लगाने का होगा। योजना के शुरुआती दौर में लंबी अवधि के लक्ष्यों के लिए 5-10 वर्ष की निवेश अवधि के साथ बचत का 75-80 फीसदी हिस्सा लगाया जा सकता है। बाकी के हिस्से को आप आपात जरूरतों से निपटने के लिए अलग रख सकते हैं। यह हिस्सा समय बीतने और आपकी आमदनी बढ़ने के साथ कम भी हो सकता है। जैसे-जैसे आपकी आमदनी में इजाफा होता है, उसके साथ ही बचत करने की क्षमता भी बढ़ने लगती है। आपको निवेश भी बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। अगर आप बिना बजट के निवेश का प्रयास करते हैं तो लक्ष्यों को हासिल करना आपके लिए मुश्किल हो सकता है। बजट के साथ आप अपने खर्चों का बेहतर प्रबंधन कर बचत और निवेश की योजना को हकीकत बना सकते हैं।
-श्रीकला भाष्यम

निवेश के लिए जानिए कुछ बुनियादी नियम

फर्ज कीजिए आप उन खुशकिस्मत लोगों में से एक हैं , जिन्हें मंदी से पहले या उसके दौरान बढ़िया तनख्वाह वाली नौकरी मिल गई। आप अपने माता - पिता के साथ रहते हैं , कपड़े , खान - पान और मनोरंजन पर उचित रूप से रकम खर्च करते हैं लेकिन इसके बावजूद हर महीने के अंत में आप कुछ पैसा बचाने में कामयाब रहते हैं। एक तरफ आप इस बात को लेकर परेशान हैं कि आपकी रकम बचत खाते में बेकार पड़ी हुई है और दूसरी ओर ऐसे दोस्त और रिश्तेदार हैं , जो निवेश के बारे में बातचीत करने पर आपको बेवकूफ ठहराने की कोशिश करते रहते हैं। इन सभी विचारों को कुछ वक्त के लिए दरकिनार कर दीजिए। क्या कोई ऐसा वाकया याद है , जब किसी ने आपको नामुमकिन सा दिखने वाले काम अंजाम तक पहुंचाने की चुनौती दी हो और आपको उसमें कामयाबी मिली हुई। आप इस बात से तो इत्तेफाक रखते होंगे कि विजेता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए उस काम में पारंगत होना जरूरी है। ऐसे बहुत से लोग होंगे , जो मौजूदा हालात में बाजार में निवेश न करने की हिदायत देंगे और आपके कोशिश करने पर हतोत्साहित करने का हरसंभव जतन करेंगे। हालांकि , ऐसे अनुभवी लोगों की भी कमी नहीं , जो मौजूदा स्थिति में निवेश से मुनाफा निकालने का रास्ता जानते हैं। अगर आपकी जेब इजाजत देती है तो वित्तीय सलाहकार की मदद लीजिए और अगर उस पर पैसा खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं तो इकनॉमिक टाइम्स आपको कुछ बुनियादी चीजों से रूबरू करा रहा है जिन पर गौर कर आप उठापटक के बाजार में भी कामयाबी तक पहुंचाने वाला पोर्टफोलियो तैयार कर सकते हैं।
सही पोर्टफोलियो
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि सर्वश्रेष्ठ पोर्टफोलियो तैयार करने का कोई तय फॉर्मूला नहीं है। निवेशकों के बीच अनिश्चितता प्रबल भावना होती है , ऐसे में उद्देश्य होता है जोखिम को कम करना और पोर्टफोलियो से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बटोरना। एंजल ब्रोकिंग में इनवेस्टमेंट एडवायजरी प्रमुख सिद्धार्थ भामरे ने कहा , ' श्रेष्ठ पोर्टफोलियो का मकसद पूंजी की बढ़त और उसकी सुरक्षा होनी चाहिए। ' रिलायंस मनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुदीप बंद्योपाध्याय भी मौजूदा हालात के खिलाफ चेता रहे हैं। उनका कहना है , ' पोर्टफोलियो में शामिल पूंजी पर रिटर्न से ज्यादा पूंजी वापस मिलना जरूरी है। ' हालांकि , बुनियादी फलसफा अब भी वही है। अलग - अलग एसेट श्रेणियों में अपना निवेश बांटिए क्योंकि ये अलग - अलग सेगमेंट वक्त बदलने पर अलग - अलग तरह की चाल दिखाते हैं। वित्तीय लक्ष्य या फिर शामिल उत्पादों को लेकर अगर पोर्टफोलियो किसी एक दिशा में ज्यादा झुका होता है तो यह बुरे वक्त का संकेत है। मसलन , 2007 के अंत में जब तेजड़िए पूरे शबाब पर थे तो कई लोगों ने इक्विटी में निवेश किया। लेकिन इक्विटी के बजाय सोने ने 2008 में बेहतरीन मुनाफा दिया।
कैसे करें आवंटन ?
किस उत्पाद में रकम का कितना हिस्सा लगाया जाए , यह आपकी उम्र , आमदनी की क्षमता , जोखिम सहने का माद्दा और जिम्मेदारियों पर निर्भर करता है। साथ ही कुछ ऐसे सवाल हैं जो आपको लगातार खुद से करने चाहिए। निवेश से जुड़े आपके लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्य क्या हैं , क्या आपका निवेश सुरक्षित और लिक्विड है , क्या यह गारंटीशुदा रिटर्न का वादा करता है। ये ऐसे ही कुछ सवाल हैं। जब आप यह तय कर लें कि आपको किस उत्पाद में निवेश करना है तो जानकारों की इन बातों पर गौर किया जा सकता है :
इक्विटी पर करें गौर
अगर आप इस बात से हैरान हैं कि बीते कुछ महीने के दौरान शेयरों की कीमत में भारी गिरावट आने के बावजूद इस सूची में इक्विटी को क्यों जगह दी जा रही है तो उसकी वजह आपके सामने है। भामरे ने कहा , ' सिद्धांत रूप से देखें तो इक्विटी में ज्यादा आवंटन किया जाना चाहिए क्योंकि आगामी कुछ तिमाहियों से जुड़ी नकारात्मक मैक्रो संभावनाओं को शामिल करने के बावजूद वैल्यूएशन काफी आकर्षक दिख रही है। ' लेकिन एक चेतावनी भी साथ है। अपना पैसा सीधा शेयरों में लगाने के बजाय जानकारों को लगता है कि म्यूचुअल फंड , पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस या निजी इक्विटी फंड या फिर इन तीनों के मिश्रण के माध्यम से बाजार में दाखिल होना सही रहेगा। बंद्योपाध्याय सुझाव देते हैं कि निवेशक को अपने पोर्टफोलियो का 25-30 फीसदी हिस्सा लार्ज कैप इक्विटी डायवर्सिफाइड फंड में लगाना चाहिए और सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी को तरजीह दी जा सकती है। उन्होंने कहा , ' इक्विटी बाजार अपने बॉटम के काफी करीब हैं , ऐसे में लंबी अवधि में पूंजी में बढ़त की संभावना मौजूद है तथा इसलिए डायवर्सिफाइड लार्ज कैप फंड के जरिए निवेश की सलाह दी जा रही है। '
डेट
कोटक सिक्योरिटीज में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट - पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज कुंज बंसल ने कहा , ' निवेशक डेट आधारित म्यूचुअल फंड के जरिए या फिर प्रतिष्ठित कंपनियां तथा एएए रैंकिंग वाली फर्मों के बॉन्ड में निवेश करने पर गौर कर सकते हैं। ' आपके सामने जो दूसरे विकल्प मौजूद हैं , उनमें एफडी या सरकारी प्रतिभूतियां या फिर इनकम फंड शामिल हैं। हालांकि डेट उत्पादों को पोर्टफोलियो में सुरक्षित दांव माना जाता है , लेकिन भामरे का कहना है कि अगर आपकी नौकरी में कम वर्ष बचे हैं तो इक्विटी में कम और डेट में ज्यादा निवेश से आपको बाजार की मौजूदा स्थिति में ज्यादा अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना नहीं हैं।
सोना और रियल एस्टेट
सोना और रियल एस्टेट , दोनों ही निवेश के बेहतरीन माध्यम हैं लेकिन निवेशकों को इन सेगमेंट में वित्तीय उत्पादों या डेरिवेटिव पर विचार करना चाहिए। गोल्ड ईटीएफ तुलनात्मक रूप से ज्यादा लिक्विड होते हैं और आभूषण , सिक्कों को रखने से जुड़े जोखिम से भी छूट दिलाते हैं। रियल एस्टेट फंड में निश्चित लॉक इन अवधि हो सकती है लेकिन उन पर भी गौर किया जा सकता है। बंद्योपाध्याय ने कहा , ' निवेशक को प्रतिष्ठित एसेट मैनेजमेंट कंपनी के लिक्विड या कैश फंड में 20-30 फीसदी हिस्सा निवेश करने पर भी गौर करना चाहिए क्योंकि डिविडेंड के विकल्प के साथ लिक्विड फंड में पैसा लगाने से मूल राशि की सुरक्षा के अलावा कॉल मार्केट से संबंधित कर मुक्त रिटर्न मुहैया कराता है। जल्द पैसा निकालने और उसे सही वक्त पर दोबारा निवेश करने का मौका मौजूद रहता है। '
दोबारा तैयार करें पोर्टफोलियो
शेयर बाजार के गोता लगाने से पहले जिन लोगों ने निवेश कर अपने हाथ जलाएं हैं , कुछ टिप्स उनके लिए भी हैं। बाजार से तुरंत भागना सही रास्ता नहीं है। जानकारों की राय में यह आपकी दूसरी बड़ी गलती होगी। बंसल के मुताबिक , अगर निवेशक अतिरिक्त पैसा दोबारा ला सकता है तो ऐसा करना चाहिए और उस राशि को अलग - अलग एसेट श्रेणियों में इस तरह बांटना चाहिए कि वे बढि़या रिटर्न दें। लेकिन निवेशकों को स्मॉल कैप और मिड कैप कंपनियों के बजाय लार्ज कैप और लिक्विड कंपनियों में पैसा लगाना चाहिए। इसके अलावा , सोने की कीमतें आगे भी बढ़ सकती हैं , इसलिए उन्हें सोने में निवेश के खिलाफ सतर्क रहना चाहिए।
-लीजा मैरी थॉमसन

Monday, March 2, 2009

पैसे इनवेस्ट करें ऐसे

पैसे इनवेस्ट करें ऐसे
इनवेस्टमेंट को टैक्स बचाने के तरीके के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस नजरिये से इन दिनों तमाम लोग इनवेस्टमेंट के बारे में सोच रहे हैं, लेकिन टैक्स की बचत इनवेस्टमेंट का केवल फौरी फायदा है। इसके अलावा भी इनवेस्टमेंट के तमाम फायदे हैं। सुरक्षित भविष्य और जिंदगी में समय-समय पर पेश आने वाली जरूरतों को पूरा करने की गारंटी होने के अलावा इनवेस्टमेंट रेगुलर इनकम का भी साधन बन जाता है। सवाल है कि इनवेस्टमेंट किया कैसे जाए? बाजार में कौन-कौन सी स्कीम मौजूद हैं? इनमें कौन-सी टैक्स सेविंग हैं और कौन सी नहीं? किसे चुना जाए और किसे नहीं?

पर, इनवेस्टमेंट के बारे में कोई भी अंतिम फैसला लेने से पहले अपनी जरूरतों और लक्ष्यों को तय करें। इनवेस्टमेंट को अवधि के आधार पर तीन भागों में बांट सकते हैं : शॉर्ट टर्म इनवेस्टमेंट (एक साल से कम अवधि के लिए), मीडियम टर्म (एक साल से ज्यादा अवधि के लिए) और लॉन्ग टर्म (पांच साल से ज्यादा वक्त के लिए)। अपनी जरूरतों और लक्ष्यों को देखते हुए इन कैटिगरी के आधार पर कोई फैसला लें। आगे जानिए इन्वेस्टमेंट च्वाइसेस के बारे में...

इनवेस्टमेंट- फाइव डिवीजन
इनवेस्टमेंट को मोटे तौर पर पांच हिस्सों में बांट सकते हैं। ये हैं : डेट, कैश, इक्विटी, गोल्ड और रीयल एस्टेट।

कितना और कहां करें इनवेस्ट

इनवेस्टमेंट करने से पहले देखें कि आप उम्र के किस पड़ाव पर हैं। इस आधार पर तमाम जरूरतों को देखते हुए तीन तरह के पोर्टफोलियो बना सकते हैं और उसके आधार पर इनवेस्ट कर सकते हैं।

एग्रेसिव पोर्टफोलियो :
कैश 10 फीसदी
डेट 60 फीसदी
इक्विटी 30 फीसदी
किसके लिए : अगर आपकी उम्र 35 साल से कम है, तो यह पोर्टफोलियो आपके लिए सही है। इस उम्र में आपके अंदर रिस्क लेने की क्षमता होती है। इसमें इक्विटी वाला भाग आपकी लॉन्ग टर्म प्लानिंग को पूरा करेगा और डेट वाला भाग मीडियम टर्म जरूरतों के लिए है।

मॉडरेट पोर्टफोलियो :
कैश : 10 फीसदी
डेट : 70 फीसदी
इक्विटी : 20 फीसदी
किसके लिए : 35 से 50 साल के लोगों के लिए है। यह वह वक्त है, जब आप बच्चों की शिक्षा और अन्य तमाम जिम्मेदारियों को निभा रहे होते हैं। बढ़ती मीडियम टर्म जरूरतों को देखते हुए इसमें डेट का हिस्सा बढ़ाया गया है, जबकि 20 फीसदी इक्विटी इनवेस्टमेंट लॉन्ग टर्म जरूरतों को पूरा करेगा।

कंजर्वेटिव पोर्टफोलियो :

डेट : 80 फीसदी
इक्विटी : 10 फीसदी
किसके लिए : 50 साल से ऊपर वालों के लिए है। रिटायरमेंट जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।


इनवेस्टमेंट चॉइस क्या हो- डेट यानी नो रिस्क


डेट (नो रिस्क) : इसमें डिबेंचर या बॉन्ड्स खरीदकर किसी फर्म या प्रॉजेक्ट में इनवेस्ट किया जाता है। डेट इनवेस्टमेंट में वे स्कीम्स आती हैं, जिनमें फिक्स्ड रिटर्न मिलता है।

एनएससी

क्या है : पूरा नाम नैशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट। इन्हें पोस्ट ऑफिस जारी करते हैं। लंबी अवधि वाली सेविंग स्कीम है।

रिटर्न : इस पर 8 फीसदी ब्याज मिलता है, जो छह महीने में जोड़ा जाता है। साल के दौरान मिला ब्याज दोबारा इनवेस्ट हुआ माना जाता है। एक हजार रुपये की एनएससी छह साल बाद 1601 रुपये की हो जाएगी।

न्यूनतम रकम : कम से कम पांच सौ रुपये।

अधिकतम सीमा : कुछ नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : छह साल।

फायदे : पूरी तरह सेफ है। छह साल के बाद मैच्योर हो जाते हैं, जबकि पीपीएफ 15 साल में मैच्योर होता है। बैंकों से लोन लेते वक्त इसे सिक्युरिटी के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। नॉमिनेशन उपलब्ध है। इसे एक व्यक्ति के नाम से दूसरे के नाम और एक पोस्ट ऑफिस से दूसरे में ट्रांसफर कर सकते हैं। अगर सर्टिफिकेट खो जाए या चोरी हो जाए तो डुप्लिकेट सर्टिफिकेट मिल जाता है।

नुकसान : पैसा छह साल तक फंस जाता है। छह साल से पहले पैसा नहीं निकाला जा सकता।

टैक्स छूट : इनकम टैक्स की धारा 80-सी के तहत एनएससी में इनवेस्ट की गई रकम पर टैक्स में छूट मिलती है यानी एक लाख की लिमिट के भीतर इसे शामिल किया जाता है। इससे कमाया गया ब्याज टैक्सेबल है, लेकिन कोई टीडीएस नहीं कटता। इसी सीरिज में अगला है किसान विकास पत्र ...

डेट - किसान विकास पत्र
क्या हैं : पोस्ट ऑफिसों की फिक्स्ड रिटर्न वाली इनवेस्टमेंट स्कीम।

रिटर्न : ब्याज की दर 8.40 फीसदी है यानी आठ साल और सात महीने में अमाउंट डबल हो जाती है।

न्यूनतम रकम : कम से कम 500 रुपये।

अधिकतम सीमा : कोई नहीं।

फायदे : ब्याज की दर बहुत अच्छी है। ढाई साल के बाद रकम निकाली जा सकती है। बैंक या दूसरे संस्थानों से लोन लेते वक्त इन पत्रों को सिक्युरिटी के तौर पर रखा जा सकता है। किसी भी पोस्ट ऑफिस में ट्रांसफर किया जा सकता है। खो जाने या चोरी होने पर डुप्लिकेट केवीपी इश्यू हो सकते हैं।

नुकसान : टैक्स के मामले में कोई फायदा नहीं होता।

टैक्स छूट : इससे मिलने वाले ब्याज को टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाता है। 80-सी के तहत इसमें जमा की गई रकम पर रिबेट नहीं मिलती। वेल्थ टैक्स नहीं लगता।

डेट - पोस्ट ऑफिस मंथली इनकम स्कीम

क्या है : एक बार इनवेस्टमेंट करने के बाद हर महीने आमदनी चाहने वालों के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। रिटायर्ड लोगों को इस स्कीम को लेने की सलाह दी जाती है।

रिटर्न : 8 फीसदी का मासिक ब्याज दिया जाता है।

न्यूनतम रकम : कम से कम 1000 रुपये।

अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 3 लाख रुपये सिंगल अकाउंट में और छह लाख जॉइंट अकाउंट में।

फायदे : पोस्ट ऑफिस की एकमात्र स्कीम है जिस पर मासिक आधार पर ब्याज मिलता है। रेगुलर इनकम होती रहती है। ब्याज की यह रकम अपने आप ही उसी पोस्ट ऑफिस में खोले गए आपके सेविंग अकाउंट में हर महीने ट्रांसफर होती रहती है।

नुकसान : आपके द्वारा किए गए इनवेस्टमेंट को बढ़ाने में यह स्कीम कोई फायदा नहीं पहुंचाती। टैक्स का कोई फायदा नहीं मिलता।

टैक्स छूट : 80-सी में कोई छूट नहीं मिलती। ब्याज की रकम पर टैक्स लगेगा।

क्या है : एक बार इनवेस्टमेंट करने के बाद हर महीने आमदनी चाहने वालों के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। रिटायर्ड लोगों को इस स्कीम को लेने की सलाह दी जाती है। रिटर्न : 8 फीसदी का मासिक ब्याज दिया जाता है। न्यूनतम रकम : कम से कम 1000 रुपये। अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 3 लाख रुपये सिंगल अकाउंट में और छह लाख जॉइंट अकाउंट में। फायदे : पोस्ट ऑफिस की एकमात्र स्कीम है जिस पर मासिक आधार पर ब्याज मिलता है। रेगुलर इनकम होती रहती है। ब्याज की यह रकम अपने आप ही उसी पोस्ट ऑफिस में खोले गए आपके सेविंग अकाउंट में हर महीने ट्रांसफर होती रहती है। नुकसान : आपके द्वारा किए गए इनवेस्टमेंट को बढ़ाने में यह स्कीम कोई फायदा नहीं पहुंचाती। टैक्स का कोई फायदा नहीं मिलता। टैक्स छूट : 80-सी में कोई छूट नहीं मिलती। ब्याज की रकम पर टैक्स लगेगा।
डेट -सीनियर सिटिजंस सेविंग स्कीम

क्या है : यह बुजुर्गों (60 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति) के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। इनवेस्ट की गई रकम पांच साल में मैच्योर होती है।

रिटर्न : ब्याज की दर 9 फीसदी है।

न्यूनतम रकम : कम से कम एक हजार रुपये।

अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये की रकम इसमें डाली जा सकती है।

अवधि/लॉक इन पीरियड : एक साल के बाद प्रीमैच्योर विड्रॉल की सुविधा उपलब्ध है।

टैक्स छूट : इस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगता है, लेकिन जमा की गई रकम पर 80-सी के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।

क्या है : यह बुजुर्गों (60 साल से ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति) के लिए पोस्ट ऑफिस की स्कीम है। इनवेस्ट की गई रकम पांच साल में मैच्योर होती है। रिटर्न : ब्याज की दर 9 फीसदी है। न्यूनतम रकम : कम से कम एक हजार रुपये। अधिकतम रकम : ज्यादा से ज्यादा 15 लाख रुपये की रकम इसमें डाली जा सकती है। अवधि/लॉक इन पीरियड : एक साल के बाद प्रीमैच्योर विड्रॉल की सुविधा उपलब्ध है। टैक्स छूट : इस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स लगता है, लेकिन जमा की गई रकम पर 80-सी के तहत इनकम टैक्स में छूट मिलती है।
डेट -पोस्ट ऑफिस टर्म डिपॉजिट
क्या है : जिस तरह बैंकों में एफडी की सुविधा दी जाती है, उसी तरह पोस्ट ऑफिस टाइम डिपॉजिट की सुविधा देते हैं। इनवेस्टमेंट का यह ऑप्शन उन लोगों के लिए है जो एक बार में एक निश्चित समय के लिए कुछ रकम जमा कराते हैं और मैच्योरिटी पर कुछ निश्चित अमाउंट हासिल करना चाहते हैं।

रिटर्न : ब्याज की दर 7.5 फीसदी।

न्यूनतम रकम : कम से कम 200 रुपये।

अधिकतम रकम : कोई सीमा नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : पोस्ट ऑफिस में टाइम डिपॉजिट एक, दो, तीन और पांच साल के लिए कराए जा सकते हैं।

टैक्स छूट : जमा की गई रकम पर टैक्स में छूट नहीं मिलती, लेकिन इससे मिलने वाला ब्याज पूरी तरह टैक्स फ्री होता है।

डेट –पीपीएफ
क्या है : पूरा नाम : पब्लिक प्रॉविडेंट फंड। एसबीआई, उसके सब्सिडियरी बैंकों, दूसरे सरकारी बैंकों या पोस्ट ऑफिस की लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट स्कीम है।

रिटर्न : इसमें 8 फीसदी सालाना का ब्याज मिलता है।

न्यूनतम रकम : एक साल में कम से कम 500 रुपये जमा करना जरूरी है। साल भर में अलग-अलग किस्तों में भी रकम जमा कराई जा सकती है, लेकिन किस्तों की संख्या 12 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

अधिकतम रकम : एक साल में अधिकतम 70 हजार रुपये की रकम जमा कराई जा सकती है।

अवधि/लॉक इन पीरियड : यह 15 साल की योजना है, लेकिन जरूरत पड़ने पर छह साल के बाद कुछ पैसा निकाल सकते हैं।

फायदे : लंबे समय के लिए इनवेस्ट करनेवालों के लिए पीपीएफ बेस्ट है। पीपीएफ को अदालत के फैसले के तहत कुर्क नहीं किया जा सकता। यह 15 साल के लिए होता है लेकिन जरूरत पड़ने पर छह साल बाद पैसा निकाला जा सकता है। मैच्योर होने पर बिना कुछ डिपॉजिट किए पीपीएफ अकाउंट को जारी रखा जा सकता है। ऐसी हालत में इस पर नॉर्मल रेट पर ब्याज मिलता रहता है। इसकी अवधि को पांच साल के ब्लॉक में बढ़ाया जा सकता है। नॉमिनेशन होता है। बच्चे भी खोल सकते हैं।

नुकसान : पैसे की जल्दी जरूरत हो तो इसकी 15 साल की अवधि अखरती है। छह साल से पहले पैसा नहीं निकाल सकते। छह साल बाद भी पूरा पैसा नहीं निकाल सकते। पीपीएफ में जॉइंट अकाउंट की सुविधा नहीं होती।

टैक्स छूट : पीपीएफ से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स नहीं लगता। इनकम टैक्स में 80-सी के तहत दी जाने वाली एक लाख रुपये की टैक्स छूट में इसमें जमा रकम को शामिल किया जाता है। डिपॉजिट्स पर वेल्थ टैक्स नहीं लगता।
बैंक एफडी
क्या है : पूरा नाम : फिक्स्ड डिपॉजिट। बैंकों द्वारा दिया जाने वाला लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट का एक अच्छा ऑप्शन है। एफडी कराने वालों को चाहिए कि एक बड़ी एफडी कराने के बजाय 5 या 10 छोटी एफडी कराएं। इससे फायदा यह होगा कि अगर आपको कभी एफडी तोड़नी पड़ी तो एक ही एफडी की रकम पर आपको ब्याज का नुकसान होगा।

रिटर्न : ब्याज की दर हर बैंक के हिसाब से बदलती रहती है और इस बात पर निर्भर करती है कि कितना पैसा कितने वक्त के लिए जमा किया जा रहा है। फिर भी मोटे तौर पर यह 4 से 11 फीसदी तक हो सकती है।

न्यूनतम रकम : कम से कम कितनी रकम की एफडी कराई जाए यह बैंक पर निर्भर करता है।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : 15 दिन से लेकर पांच साल या उससे भी ज्यादा अवधि के लिए एफडी कराई जा सकती है।

फायदे : सेविंग बैंक अकाउंट से ज्यादा ब्याज इसमें मिल जाता है। एफडी में जमा रकम का 90 फीसदी तक लोन भी लिया जा सकता है। कुछ बैंकों की एफडी को मैच्योरिटी से पहले तोड़ा भी जा सकता है लेकिन इसमें ब्याज का नुकसान होता है।

नुकसान : अचानक पैसे की जरूरत पड़ जाए तो एफडी से आप फौरन रकम नहीं निकाल सकते।

टैक्स बेनिफिट : अगर पांच साल या ज्यादा अवधि के लिए एफडी कराई है, तो 80 सी के तहत छूट मिल जाएगी। लेकिन इस पर जो ब्याज मिलता है, उस पर टैक्स देना पड़ता है।
जीओआई बॉन्ड
क्या है : पूरा नाम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया बॉन्ड। इनवेस्टमेंट का एक और अच्छा ऑप्शन। एसबीआई, असोसिएट बैंकों और दूसरे नैशनलाइज्ड बैंकों द्वारा जारी किए जाते हैं। जैसे : आरबीआई के आठ फीसदी सेविंग बॉन्ड।

रिटर्न : ब्याज 8 फीसदी सालाना मिलता है, जो छह महीने में जोड़ा जाता है।

न्यूनतम रकम : कम-से-कम 1,000 रुपये।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : मैच्योरिटी पीरियड छह साल का है।

फायदे : नॉमिनेशन की सुविधा उपलब्ध है। निवेश 100 फीसदी सेफ है।

नुकसान : टैक्स में बचत नहीं होती।

टैक्स छूट : इस पर मिले ब्याज पर टैक्स लगता है। वेल्थ टैक्स से भी एग्जेम्प्शन है
कैश इनवेस्टमेंट (नो रिस्क): बैंक सेविंग्स अकाउंट्स

कैश इनवेस्टमेंट (नो रिस्क) : ये कम अवधि की इनवेस्टमेंट स्कीम होती हैं। ये आपकी जेब में पड़े कैश की तरह हैं। इनमें लॉक-इन पीरियड नहीं होता। इन पर ब्याज की निश्चित रकम मिलती है। इसमें जब चाहे पैसा निकाला जा सकता है।

बैंक सेविंग्स अकाउंट

क्या है : छोटी-छोटी बचतों के लिए बैंकों द्वारा दी जाने वाली सुविधा।

रिटर्न : इस पर 2.5 से 4 फीसदी तक का ब्याज दिया जाता है, जो बैंक पर निर्भर करता है।

न्यूनतम रकम : किसी नैशनलाइज्ड बैंक में कम-से-कम 100 रुपये से अकाउंट खोला जा सकता है।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : कोई नहीं। जब चाहे पैसा निकाल सकते हैं, जब चाहे डाल सकते हैं।

फायदे : सेविंग बैंक अकाउंट में न तो कोई फिक्स्ड पीरियड होता है और न कोई फिक्स्ड रकम। पैसा पूरी तरह सेफ होता है।

नुकसान : बहुत कम रिटर्न मिलता है।

टैक्स छूट : सेविंग बैंक अकाउंट में जमा की गई रकम पर कोई टैक्स छूट नहीं मिलती। इससे होने वाली ब्याज की इनकम को भी टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाता है। इसी सीरिज में आगे पढ़िए पोस्ट ऑफिस आरडी के बारे में...
कैश इनवेस्टमेंट (नो रिस्क) : पोस्ट ऑफिस आरडी
क्या है : आरडी यानी रेकरिंग डिपॉजिट। पोस्ट ऑफिस आरडी उन इनवेस्टर्स के लिए है जो हर महीने कुछ फिक्स्ड अमाउंट जमा कराना चाहते हैं। कम आमदनी वालों के लिए यह स्कीम इनवेस्टमेंट का एक अच्छा ऑप्शन है।

रिटर्न : मैच्योरिटी पर 10 रु. की आरडी 729 रु. देगी।

न्यूनतम रकम : 10 रुपये।

अधिकतम रकम : कोई मैक्सिमम लिमिट नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : यह पांच साल के लिए होती है, लेकिन एक साल बाद पैसा निकालने की छूट है।

फायदे : ब्याज की दर स्थिर होती है यानी उतना रिटर्न मिलना ही है।

नुकसान : एक साल के बाद कुछ शर्तों के साथ एक विड्रॉल की छूट है, लेकिन इसमें पोस्ट ऑफिस कस्टमर से कुछ रकम चार्ज करता है। तीन साल के बाद आरडी को बंद किया जा सकता है लेकिन इस स्थिति में ब्याज सेविंग अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज के बराबर होगा।

टैक्स छूट : जमा रकम पर टैक्स में कोई छूट नहीं मिलती। इससे मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल इनकम में नहीं जोड़ा जाता।
इक्विटी (हाई रिस्क):इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड
इक्विटी (हाई रिस्क) : इक्विटी इनवेस्टमेंट में पैसा शेयर बाजार में लगाया जाता है। जैसे-जैसे कंपनी की तरक्की होती है, वैसे-वैसे इनवेस्टर को फायदा होता है। इसमें रिटर्न फिक्स्ड नहीं होता।

इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड

क्या है : एक से लक्ष्यों वाले कई इनवेस्टर्स पैसे का एक पूल बनाते हैं। जिस अनुपात में वे पैसा लगाते हैं, उस हिसाब से ही उन्हें म्यूचुअल फंड यूनिट्स मिल जाते हैं। इनवेस्टर्स से इकट्ठा हुआ यह पैसा फंड मैनेजर की मदद से शेयर्स, डिबेंचर्स और सिक्योरिटीज में लगा दिया जाता है। फंड मैनेजर सारे फायदे-नुकसान का लेखा-जोखा रखता है और उसे इनवेस्टर्स द्वारा लगाई गई रकम के अनुपात में उन्हें रिटर्न देता रहता है।

रिटर्न : शेयर बाजार पर निर्भर।

न्यूनतम रकम : निर्भर करता है। वैसे आमतौर पर पांच हजार रुपये।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : कुछ नहीं। कभी भी पैसा निकाल सकते हैं।

फायदे : सभी फंड्स सेबी में रजिस्टर्ड होते हैं, इसलिए सेफ होते हैं।

नुकसान : बहुत सारे ऑप्शन में से किसमें इनवेस्ट करें, यह तय करना आम निवेशक के लिए मुश्किल होता है।

टैक्स छूट : जमा रकम पर मिलती है

एक्सर्पट्स व्यू : इस वक्त इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड में इनवेस्ट न करना ही बेहतर है। अभी डेट बेस्ड म्यूचुअल फंड में पैसा लगाएं। तीन से छह महीने बाद वहां से पैसा निकालकर इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड में लगा सकते हैं। वैसे, इक्विटी बेस्ड म्यूचुअल फंड्स में पैसा कम से कम तीन साल के लिए लगाना चाहिए। इसके अलावा जिन इनवेस्टर्स के पास लगाने के लिए एकमुश्त रकम नहीं है और जो रिस्क भी कम लेना चाहते हैं, उन्हें सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान यानी सिप चुनना चाहिए। सिप आमतौर पर आरडी की तरह होता है, जिसमें एक तय रकम हर महीने म्यूचुअल फंड्स में इनवेस्ट की जाती है। कितनी अमाउंट डालनी है और कौन सी म्यूचुअल फंड स्कीम में लगानी है, यह इनवेस्टर तय करता है।
इक्विटी (हाई रिस्क) :यूलिप
क्या है : इसका पूरा नाम है : यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान। इसमें रिस्क कवर और इनवेस्टमेंट, दोनों होते हैं। प्रीमियम अमाउंट को स्टॉक मार्केट फंड्स में इनवेस्ट किया जाता है, जिससे रेगुलर रिटर्न मिलता है। वैसे, यूलिप ऑफर करने वाली कंपनी इनवेस्टर को यह ऑप्शन देती है कि वह डेट, बैलेंस्ड और इक्विटी फंड्स में से कुछ भी चुन सकते हैं। कुछ एक्सपर्ट यूलिप में इनवेस्ट करने की सलाह नहीं देते। वैसे अगर यूलिप में इनवेस्ट करना ही है तो स्कीम, कंपनी और फंड मैनेजर के ट्रैक रेकॉर्ड का अच्छी तरह एनालिसिस कर लें और किसी प्रफेशनल की मदद लें।

रिटर्न : तय नहीं।

न्यूनतम रकम : 1,000 रुपये।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : 10 और 15 साल के लिए उपलब्ध।

फायदे : यूलिप इंश्योरेंस कवर मुहैया कराता है, लेकिन याद रखें यह इंश्योरेंस कवर फ्री नहीं होता। इसके लिए आपकी इनवेस्टमेंट से ही रकम काटी जाती रहती है।

नुकसान : यूलिप में एक बार इनवेस्ट करने के बाद पहले तीन प्रीमियम आपको देने ही होते हैं, जबकि म्यूचुअल फंड में ऐसा नहीं है।

टैक्स छूट : जमा की गई रकम पर 80 सी के तहत टैक्स में छूट मिलती है। साथ ही इससे मिलने वाला रिटर्न भी टैक्स फ्री होता है।

एक्सर्पट्स व्यू : यूलिप की पांच अलग-अलग स्कीम्स में पैसा इनवेस्ट करें। इससे अगर एक में नुकसान होगा, तो दूसरी से उसकी भरपाई की गुंजाइश रहेगी।
इक्विटी (हाई रिस्क):ईएलएसएस
क्या है : पूरा नाम है : इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम। यह एक तरह का म्यूचुअल फंड ही है। यह उन लोगों के लिए है जो रिस्क झेलने की क्षमता रखते हैं।

रिटर्न कितना : निर्भर करता है। 30 से 40 फीसदी का रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है।

न्यूनतम रकम : 500 रुपये।

अधिकतम रकम : कोई नहीं।

अवधि/लॉक-इन पीरियड : तीन साल।

फायदे : सबसे बड़ा फायदा है इसका कम लॉक-इन पीरियड। एनएससी में पैसा छह साल के लिए फंसता है जबकि पीपीएफ में 15 साल के लिए, लेकिन इसमें तीन साल के लिए ही फंसता है। ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना होती है। डिविडेंड ऑप्शन चुनकर आप लॉक-इन पीरियड के दौरान भी कुछ रिटर्न पा सकते हैं। कुछ ईएलएसस स्कीम पसर्नल डेथ कवर भी देती हैं।

नुकसान : रिस्क फैक्टर बहुत ज्यादा है। मैच्योरिटी से पहले पैसा नहीं निकाल सकते।

टैक्स छूट : 80-सी के तहत मिलने वाली टैक्स छूट में इसमें जमा की गई रकम को शामिल किया जाता है।

एक्सर्पट्स व्यू : इस वक्त बाजार की हालत को देखते हुए पुरानी स्कीमों में इनवेस्ट न करें। कोई नई स्कीम आए तो सोच सकते हैं।
इक्विटी (हाई रिस्क)- अन्य इंवेस्टमेंट्स
गोल्ड


गोल्ड इनवेस्टमेंट का एक अच्छा ऑप्शन है, लेकिन आज के हालात में जबकि इसकी कीमत आसमान छू रही है, एक्सर्पट्स यह सलाह नहीं देते कि गोल्ड में पैसा इनवेस्ट किया जाए।

रीयल एस्टेट

आज के दौर में रीयल एस्टेट में इनवेस्ट करना एक बढि़या ऑप्शन है। एक तरफ होम लोन की ब्याज दरें कम हो रही हैं और दूसरी तरफ रीयल एस्टेट में कीमतों में भी ठहराव है। ऐसे में बेहतर रिटर्न के लिए रीयल एस्टेट के ऑप्शन के बारे में सोच सकते हैं।

एक्सर्पट्स पैनल -सीए अनिल चोपड़ा ,सीए सुभाष लखोटिया,सीए सत्येंद्र जैन