Friday, February 27, 2009

लंबी रेस के घोड़े दौड़ते हैं इक्विटी के ट्रैक पर

जनवरी 2008 तक शेयर बाजार में पैसा लगाने वाले ज्यादातर लोग मुनाफे में चल रहे थे। लेकिन मंदी ने जब दुनिया को अपने आगोश में लिया तो शेयर बाजार का भी दम निकल गया। बीते कुछ साल के दौरान बाजार में दर्ज की गई तेजी ने अगर छोटे निवेशकों को इक्विटी से जुड़ी चिंता दरकिनार करने के लिए प्रोत्साहित किया था तो उसके बाद शेयर मार्केट में आई भारी गिरावट ने उन्हें सोने और फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे पारंपरिक सुरक्षित विकल्पों की शरण में जाने के लिए मजबूर कर दिया है। बाजार के मौजूदा हालात की वजह से निवेशक इक्विटी से दूरी बनाए रखने में अपनी बेहतरी समझ रहे हैं। वे इस बात से खौफजदा हैं कि पहले ही नुकसान उठाने के बाद आगे पैसा लगाने से कहीं उन्हें और घाटा न हो जाए। हालांकि, छोटी अवधि का यह दृष्टिकोण उस वक्त हानिकारक साबित हो सकता है, जब आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हों। जैसे कि रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी के लिए रकम एकत्र करना। ऐसे उद्देश्यों तक पहुंचने के लिए निवेशक को कम से कम 15 से 20 साल की निवेश अवधि लेकर चलने की जरूरत पड़ती है। बाजार के जानकारों का मानना है कि जिन लोगों की निवेश की अवधि इतनी लंबी है, उन्हें इक्विटी से परे देखने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि पैसा जोड़ने के लिए शेयर बाजार सबसे बढ़िया जरिया है। लेकिन इसके लिए निवेश की रणनीति संतुलित और लंबी मियाद के लिए होनी चाहिए। आईडीएफसी म्यूचुअल फंड की ओर से मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, शीर्ष वरीयता प्राप्त डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड ने 15 साल की अवधि के दौरान प्रदर्शन के मामले में दूसरी एसेट श्रेणियों को काफी पीछे छोड़ दिया। जनवरी 1994 से जनवरी 2009 के बीच इन फंडों ने सोने के 6.09 फीसदी, फिक्स्ड डिपॉजिट के 8.64 फीसदी और रियल एस्टेट के 9.97 फीसदी की तुलना में 14.22 फीसदी रिटर्न दिया। आईडीएफसी म्यूचुअल फंड के प्रबंध निदेशक नवल बीर कुमार ने कहा, 'लंबी अवधि में इक्विटी ने हमेशा से दूसरे निवेश विकल्पों की तुलना में ज्यादा रिटर्न दिया है।' बिड़ला सनलाइफ म्यूचुअल फंड में सह-प्रमुख (इक्विटी) अजय अर्गल ने कहा, 'ऐतिहासिक आंकड़े बताते हैं कि 1979 से अगर किसी निवेशक ने किसी भी कारोबारी साल की शुरुआत में सेंसेक्स में निवेश किया और उसे कम से कम 12 साल तक बरकरार रहने दिया है तो उसने कभी पैसा नहीं गंवाया।' इसके अलावा इक्विटी में कर छूट का फायदा भी मिलता है और पारदर्शिता का स्तर काफी ऊंचा होता है क्योंकि वैल्यूएशन लगभग हर रोज बताई जाती है।
इक्विटी बनाम सावधि जमा
फिक्स्ड डिपॉजिट या सावधि जमा के मामले में रिटर्न और मूल पूंजी को लेकर कोई चिंता नहीं होती लेकिन इससे मिलने वाला रिटर्न, महंगाई दर को पीछे छोड़ने में कामयाब नहीं रहता। फाइनेंशियल प्लानर गौरव मशरूवाला ने कहा, 'तर्क के आधार पर देखें तो भी इक्विटी को एफडी से बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए। आखिरकार, आपकी तरफ से एफडी में लगाया जाने वाला पैसा बैंक उद्यमियों को कर्ज देते हैं, जो अपने मुनाफे में से लोन चुकाते हैं। कोई भी कंपनी मुनाफे से ज्यादा ऊंची दर पर ब्याज नहीं चुकाती जिसका यह मतलब हुआ कि अगर आप सीधे कारोबार में निवेश करते हैं (यानी किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं) तो आपको बेहतर मुनाफा मिलना तय है।'
इक्विटी बनाम सोना
जब बात सुरक्षित और निरंतर रिटर्न की आती है तो इक्विटी भी सोने की चमक से छिप नहीं सकता। लेकिन नकदी के मामले में इक्विटी, सोने से ज्यादा मजबूत दिखता है। बार और सिक्कों के बजाय ज्यादातर भारतीय गहनों के रूप में सोने में पैसा लगाने को तरजीह देते हैं, ऐसे में वे सोना रखने को लेकर भावनात्मक लगाव रखते हैं और इसलिए वे इससे अलग भी नहीं होना चाहते।
इक्विटी बनाम रियल एस्टेट
रियल एस्टेट, निवेशकों को सिर छिपाने और मूल्य में बढ़ोतरी के तौर पर दोहरा फायदा मुहैया कराता है। मशरूवाला ने कहा, 'हालांकि भारत में भौतिक रूप से प्रॉपर्टी खरीदना आसान नहीं है क्योंकि अफोर्डेबिलिटी एक बड़ा अवरोध है।' इसके अलावा तुलनात्मक रूप से रियल एस्टेट कम तरल एसेट श्रेणी है जबकि इक्विटी में खरीद और बिक्री से जुड़े सौदे करना काफी आसान होता है। अगर आप रिटायरमेंट के बाद की जरूरतों को पूरा करने की इक्विटी की क्षमता पर भरोसा रखते हैं, तो उसमें निवेश करने पर विचार कर सकते हैं। लेकिन आपको मन-मुताबिक फायदा हासिल करने के लिए इक्विटी में लंबा निवेश करने की जरूरत को भी पहचान लेना चाहिए।
-प्रीति कुलकर्णी

निवेश की जल्द शुरुआत बनेगी भविष्य की बड़ी बचत

मनीष कॉल सेंटर में मैनेजर हैं। वह पिछले तीन वर्षों से नौकरी में हैं और उन्होंने फ्लैट और कार खरीद ली है। वह दो पर्सनल लोन भी चुका रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से वह ज्यादा बचत नहीं कर पाए हैं। उन्हें हर महीने बिल चुकाने के साथ ही रोजमर्रा की जरूरतों के लिए भी खर्च करना होता है। मनीष के पास बचत के तौर पर न के बराबर धन मौजूद है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की रफ्तार कम होने, कर्ज के बढ़ने और वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते मनीष को अब नौकरी पर खतरे के बादल मंडराते दिख रहे हैं। ऐसी स्थिति में भी वित्तीय तौर पर सुरक्षित रहने के लिए नौकरी की शुरुआत के साथ ही निवेश का श्रीणेश करना भी जरूरी होता है। बचत खाते में कुछ धन रखना अच्छा रहता है। इसके साथ ही कुछ अन्य विकल्प भी मौजूद हैं जो सुरक्षित होने के साथ ही अच्छा रिटर्न भी देते हैं। इनमें म्यूचुअल फंड एसआईपी, सावधि जमा योजना (एफडी), शेयर, बैलेंस्ड फंड और कर बचाने वाले इंस्ट्रूमेंट शामिल हैं। जो लोग निवेश की जल्द शुरुआत करते हैं, उन्हें चक्रवृद्धि (कम्पाउंडिंग) की शक्ति का लाभ मिलता है। आप कई वर्षों तक छोटी रकम का निवेश कर भी अपनी संपत्ति में अच्छा इजाफा कर सकते हैं। निवेश की अवधि जितनी अधिक होगी, रिटर्न भी उतना ही ज्यादा मिलेगा। इसलिए समय पर निवेश की शुरुआत कर अनुशासन के साथ निवेश करना अच्छा रहता है। साधारण ब्याज के मामले में निवेशक को केवल मूल धन पर ही ब्याज मिलता है। चक्रवृद्धि रिटर्न में मूल धन पर मिलने वाले रिटर्न का दोबारा निवेश किया जाता है। इससे रिटर्न में अच्छा इजाफा होता है और यह रिटायरमेंट के बाद के वर्षो के लिए आर्थिक तौर पर मजबूती हासिल करने का एक बेहतर जरिया है। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि एक निश्चित वार्षिक ब्याज दर पर आपका धन कितने समय में दोगुना हो जाएगा तो इसके लिए 72 का नियम एक आसान तरीका है। यह कम दरों के मामले में काफी सटीक गणना करता है लेकिन अगर रिटर्न की दर अधिक हो तो यह कम प्रभावी होता है। मान लीजिए कि एक निवेशक अपने धन पर 12 फीसदी की दर से ब्याज कमाता है, तो कितने समय में उसका धन दोगुना हो जाएगा? इसके लिए आपको केवल 72 अंक को निवेशक को मिलने वाली ब्याज की दर से भाग देना है (इस मामले में 12 फीसदी)। अगर हम 72 को 12 से भाग देंगे तो छह बचेगा। इस तरह 12 फीसदी ब्याज दर पर निवेश को दोगुना होने में लगभग 6 वर्ष का समय लगेगा। अगर निवेशक को 9 फीसदी का ब्याज मिल रहा है तो 72 को 9 से भाग देने पर 8 मिलेगा। इस तरह उसका धन दोगुना होने में लगभग 8 वर्ष का समय लगेगा। अगर आप अपना धन निवेश के किसी ऐसे विकल्प में लगाते हैं जो रिटर्न का दोबारा निवेश करता है तो आपको लंबी अवधि में बहुत अच्छा रिटर्न मिल सकता है। जितनी जल्दी आप बचत और निवेश की शुरुआत करेंगे, उतने ही अधिक रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं। इस उदाहरण पर नजर डालें। मनीष आज से प्रतिमाह 5,000 रुपए किसी ऐसे इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं जो उन्हें 15 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए 12 फीसदी वार्षिक का रिटर्न देगा। इसके अलावा एक दूसरा उदाहरण लेते हैं जहां वह पांच वर्ष बाद निवेश की शुरुआत करते हैं। अगर मनीष की उम्र 30 वर्ष है और तो उनके पास मौजूद बचत की रकम 40 वर्ष का होने पर पहले उदाहरण में 11.50 लाख रुपए और दूसरे में केवल 4.08 लाख रुपए (तालिका में दिखाया गया है) होगी।
- कविता श्रीराम

Wednesday, February 25, 2009

सही पेंशन प्लान देता है सुखमय जिंदगी

पेंशन प्लान बेचते समय ऐसा कम ही होता है कि एजेंट आपको रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले लाभ के बारे में पूरी जानकारी दे। बीमा कंपनियों के लिए पेंशन योजनाएं रिटायरमेंट के लिए फंड तैयार करना होता है। हालांकि, बीमा नियामक की शर्तों के अनुसार, इस कोष का इस्तेमाल एन्युटी खरीदने के लिए किया जाना चाहिए। एन्युटी एक अनुबंध होता है जिसके तहत पॉलिसीधारक को नियमित भुगतान मिलता है। कोई भी कंपनी आपको यह नहीं बता सकती कि पेंशन प्लान लेने के 30 वर्ष बाद आपको कितना रिटर्न मिलेगा। इसके अलावा यह भी हो सकता है कि आपकी बीमा कंपनी के पास कोई पेंशन प्रोडक्ट इस समय मौजूद ही न हो। रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले लाभ स्पष्ट न होने की वजह से पेंशन योजना खरीदने का फैसला लेना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में बाजार में उपलब्ध बहुत सी योजनाओं की समीक्षा करने के बाद ही आपको कोई फैसला लेना चाहिए। पेंशन प्लान के विकल्प इस प्रकार हैं:
जीवन भर मिलने वाली पेंशन
इसमें प्लान खरीदने वाले को पहले से तय अंतराल पर जीवन भर एक निश्चित राशि का भुगतान किया जाता है। व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही पेंशन बंद हो जाती है। इस योजना में पेंशन की राशि सबसे अधिक होती है। इसे 'लाइफ एन्युटी' भी कहा जाता है और यह ऐसे लोगों के लिए ठीक रहती है जिन्हें अपनी मृत्यु के बाद कोई पारिवारिक जिम्मेदारी पूरी नहीं करनी होती।
निश्चित अवधि की गारंटी के साथ जीवन भर पेंशन
इसे गारंटीड पेंशन भी कहा जाता है। इसमें एक निश्चित अवधि तक पेंशन देना सुनिश्चित किया जाता है और उसके बाद व्यक्ति के जीवित रहने तक इसका भुगतान किया जाता है। इसमें गारंटीड अवधि जितनी कम होती है, पेंशन उतनी ही अधिक होती है। पांच वर्ष के गारंटीड विकल्प में मिलने वाली पेंशन 20 वर्ष के प्लान से अधिक होती है। कुछ बीमा कंपनियां तीन वर्ष की कम अवधि के साथ भी शुरुआत का विकल्प दे सकती हैं। यह ऐसे परिवार के लिए बेहतर है जिसे एक निश्चित अवधि के लिए आमदनी जरूरत है।
ज्वाइंट लाइफ एंड लास्ट सर्वाइवर एन्युटी
इस विकल्प में पेंशन का भुगतान प्लान खरीदने वाले व्यक्ति और उसके पति या पत्नी की मृत्यु तक किया जाता है। कुछ बीमा कंपनियों ने पेंशनधारक की मृत्यु के बाद उसके साथ ही पेंशन की रकम की सीमा 50 फीसदी तक की हुई है। यह प्लान उस व्यक्ति के लिए अच्छा रहता है जो अपने साथी के लिए आमदनी का नियमित जरिया चाहता है। इसमें पेंशन की रकम प्लान लेने वाले और उसके पति/पत्नी की उम्र को देखकर तय की जाती है।
पेंशन के साथ खरीद मूल्य की वापसी
यह जीवन भर मिलने वाली पेंशन योजना का एक विस्तार है। इसमें प्लान लेने वाले को मृत्यु तक पेंशन मिलती है और इसके बाद उसके द्वारा नामांकित व्यक्ति को वह कीमत चुका दी जाती है जो प्लान खरीदने के समय दी गई थी। हालांकि इस प्लान में जीवन भर मिलने वाले दूसरे पेंशन प्लान की तुलना में पेंशन की राशि कम होती है। लैडर 7 फाइनेंशियल एडवायजरीज के सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर, सुरेश सद्गोपन का कहना है, 'यह सबसे लोकप्रिय विकल्प है क्योंकि इसमें प्लान लेने वाले की मृत्यु के बाद उसके नामांकित व्यक्ति को खरीद का शुरुआती दाम चुकाया जाता है। यह उस स्थिति में काफी फायदेमंद हो जाता है, जब पेंशनधारक कम अवधि तक जीता है और पेंशन का पूरा लाभ नहीं ले पाता।'
निश्चित दर पर बढ़ने वाली जीवन भर पेंशन
यह भी जीवन भर मिलने वाली पेंशन योजना का विस्तार है। इसमें पेंशनधारक को मिलने वाली रकम एक निश्चित फीसदी में जीवन भर बढ़ती रहती है। उदाहरण के लिए यह प्रतिवर्ष 5 फीसदी की साधारण दर पर बढ़ सकती है। यह उन लोगों के लिए एक अच्छी योजना है जो जल्द रिटायर होने के साथ लंबी अवधि तक जीने की उम्मीद रखते हैं और महंगाई बढ़ने के साथ पेंशन की रकम में भी इजाफा चाहते हैं।
पेंशन की रकम तय करने का आधार
व्यक्ति को प्रति एक लाख रुपए के भुगतान पर रिटायरमेंट के बाद कितनी मासिक आय मिलेगी, यह दो बातों पर निर्भर करता है। पहला फंड पर बीमा कंपनी द्वारा हासिल किया गया रिटर्न, जो सरकारी बॉन्ड पर मिलने वाले रिटर्न से प्रभावित होता है। दूसरा आयु का अनुमान। आमतौर पर जीवन भर मिलने वाली पेंशन की रिटर्न की दर एक वर्ष की बैंक सावधि जमा योजना (एफडी) के बराबर होती है। लेकिन यहां यह बात याद रखनी चाहिए कि आप बैंक एफडी पर ब्याज दर को 3-5 वर्ष के लिए लॉक कर सकते हैं जबकि पेंशन की राशि पूरे जीवन के लिए निश्चित होती है।
रिटायरमेंट का फैसला
ऐसे ही विकल्प उन लोगों को भी उपलब्ध होते हैं जिन्हें अपनी कंपनी (नियोक्ता) की ओर से पेंशन की पेशकश की जाती है। जो लोग निर्धारित समय से पहले रिटायरमेंट लेना चाहते हैं, उन्हें अपने पेंशन लाभ पर जरूर नजर डालनी चाहिए। नियोक्ता की ओर से मिलने वाला योगदान बीमा कंपनी के पास जमा होता रहता है। साथ ही पेंशन की राशि आपके द्वारा तय किए गए विकल्प पर निर्भर करती है। रिटायरमेंट का फैसला लेने से पहले पेंशन की रकम पर जरूर ध्यान देना चाहिए। बहुत सी कंपनियां अपने कर्मचारियों से निवेदन मिलने पर पेंशन के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराती हैं। इससे सही फैसला लेने में मदद मिलती है।
कितने फायदेमंद हैं पेंशन प्लान?
कुछ फाइनेंशियल एडवाइजर्स का कहना है कि निवेश के अन्य विकल्पों की तुलना में पेंशन पॉलिसी अच्छे रिटर्न या कर लाभ की पेशकश नहीं करती। आपके पास रिटायरमेंट के लिए रकम जमा करने के अन्य विकल्प भी मौजूद हैं। इनमें पीपीएफ, इक्विटी और म्यूचुअल फंड शामिल हैं। बहुत से लोग पेंशन प्लान में पेंशन शब्द को देखकर आकर्षित हो जाते हैं। लेकिन आप जो पेंशन अर्जित करते हैं, उस पर कर चुकाना होता है। सद्गोपन का कहना है, 'आप संपत्ति के बहुत से वर्गों में से कुछ प्रोडक्ट की बास्केट चुनकर रिटायरमेंट के लिए एक अच्छी रकम जमा कर सकते हैं। रकम जमा करने के बाद आप इसे किसी बीमा कंपनी को भी सौंप सकते हैं। जो इसका प्रबंधन कर आपको मासिक आमदनी उपलब्ध करा सकती है।

Tuesday, February 17, 2009

ईएलएसएस में निवेश से टैक्स बचत और रिटर्न दोनों

आप इस उधेड़बुन में होंगे कि टैक्स बचाने के लिए कहां पैसा लगाएं। इसके लिए आखिरी तारीख 31 मार्च है। बाजार में कई ऐसे जरिए हैं, जो सुरक्षा के वादे के साथ टैक्स बचत का दावा कर रहे हैं। अगर आपने अभी तक टैक्स बचत के लिए निवेश नहीं किया है तो किसी जानकार को सैलरी स्टेटमेंट दिखाकर टैक्स योग्य आमदनी का पता लगा सकते हैं। ध्यान रहे कि आप आयकर कानून की धारा 80सी के तहत एक लाख रुपए तक की आमदनी पर टैक्स बचा सकते हैं। इस धारा के तहत कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ), पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (पीपीएफ), राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), पांच वर्ष तक के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी), यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) में निवेश कर टैक्स छूट हासिल की जा सकती है। फाइनेंशियल प्लानर गौरव मशरूवाला का कहना है, 'अगर आप इक्विटी में निवेश के साथ कर राहत भी चाहते हैं तो ईएलएसएस आपके लिए बेहतर जरिया हो सकता है।' यह स्कीम डायवर्सिफाइड इक्विटी फंड की तरह है, लेकिन इसमें तीन वर्ष की लॉक-इन अवधि होती है। कई जानकार धारा 80सी में शामिल बहुत से इंस्ट्रूमेंट की तुलना में बेहतर रिटर्न के लिए इक्विटी को तरजीह देते हैं। मनी केयर फाइनेंशियल प्लानिंग के प्रमुख जनखाना शाह के अनुसार, 'शेयर बाजार में इस समय कम कीमत में आकर्षक शेयर खरीदे जा सकते हैं। इन हालात में ईएलएसएस में निवेश करना ठीक रहेगा। इसमें तीन वर्ष के लिए निवेश लॉक रहेगा और इसके बाद ये स्कीम आपको अच्छा रिटर्न दे सकती हैं।' इसके साथ ही कर बचाने वाली पांच वर्ष की जमा योजना और एनएससी की तरह इस पर मैच्योरिटी पर मिलने पर ब्याज पर कर नहीं देना होता। ईएलएसएस में तीन वर्ष की लॉक इन अवधि के बाद मिलने वाला भुगतान कर मुक्त होता है। पीपीएफ भी इस लिहाज से अच्छा निवेश है। इसमें 8 फीसदी का रिटर्न मिलता है और मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम कर मुक्त होती है। इसमें 15 वर्ष की लॉक इन अवधि बड़ी बाधा है। यूलिप की बात की जाए तो आज के समय में निवेश के साथ ही बीमा की सुविधा को देखते हुए करदाता इसे पसंद करते हैं, लेकिन इसमें शुरुआती शुल्क और बाद के भुगतान की वजह से यह कुछ महंगी पड़ती है। दूसरी ओर ईएलएसएस में एजेंट को दी जाने वाली कमीशन कम होती है और निवेश के लिए अधिक राशि उपलब्ध रहती है। यूलिप लंबी अवधि का प्रोडक्ट है और इसमें निवेशक को 10-15 वर्ष के समय में ही अच्छा रिटर्न मिल पाता है। इसके उलट ईएलएसएस में आप तीन वर्ष के बाद अपनी यूनिट भुना सकते हैं। अन्य निवेश के मुकाबले ईएलएसएस फंड जहां फायदेमंद हैं, वहीं इनके साथ कुछ सीमाएं भी जुड़ी हैं। किसी भी अन्य इक्विटी आधारित प्रोडक्ट की तरह इनमें भी जोखिम शामिल रहता है। जोखिम न चाहने वाले निवेशकों के लिए इससे दूर रहने में ही समझदारी है। ईएलएसएस फंड को चुनने के मानक किसी इक्विटी डायवर्सिफाइड फंड के समान ही होते हैं। निवेशकों को फंड चुनने से पहले उसके ट्रैक रिकॉर्ड, फंड मैनेजर, फंड हाउस और जोखिम के बारे में जानकारी जुटानी चाहिए। ऐसा फंड चुनना बेहतर रहता है, जिसने बाजार के सभी दौर में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया हो। उस फंड से बचें, जिसका पिछला रिकॉर्ड ज्यादा अच्छा नहीं है लेकिन इसके बावजूद इसने हाल के महीनों में अच्छा रिटर्न दिया है। ईटी म्यूचुअल फंड ट्रैकर पर नजर डाली जाए तो यह पता चलता है कि एसबीआई मैग्नम टैक्स गेन स्कीम 1993 और सुदंरम टैक्स सेवर को पिछली चार तिमाहियों से लगातार प्लैटिनम या गोल्ड स्कीम की रेटिंग मिलती रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इन दोनों फंडों में बाजार में चुनौतीपूर्ण स्थितियों के बीच भी अपनी क्षमता को साबित किया है।

हेल्थ इंश्योरेंस जरूरी: जानिए इसकी बारीकियां

'जान है तो जहान है'- जिंदगी के फलसफे को शायद इससे बेहतर ढंग से बयान नहीं किया जा सकता। आपमें से शायद ही कोई इससे इनकार करे, लेकिन बात जब स्वास्थ्य बीमा की आती है तो इसे किसी न किसी वजह से हम टालते ही रहते हैं। हाल के समय में मेडिकल खर्च लगातार बढ़ रहा है। अचानक परिवार के किसी शख्स का इलाज आपकी बचत का बड़ा हिस्सा निगल सकता है। इसके बावजूद देश में बहुत कम लोगों के पास बीमा सुरक्षा है। आम लोगों को भले इसकी चिंता न हो लेकिन सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि देश के नागरिक अपने और परिवारजनों के लिए पर्याप्त मेडिकल कवर लें और इसे बढ़ावा देने के लिए वह स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदने पर टैक्स छूट देती है।
स्वास्थ्य बीमा
मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी के लिए दिया जाने वाला 15,000 रुपए तक का प्रीमियम आयकर अधिनियम की धारा 80डी के तहत कर मुक्त होता है। यदि कोई करदाता, उस पर निर्भर अभिभावकों के बीमा कवर के लिए प्रीमियम का भुगतान कर रहा है तो उसे 15,000 रुपए की अतिरिक्त कर छूट मिलती है। अगर माता-पिता वरिष्ठ नागरिक हैं तो यह सीमा बढ़कर 20,000 रुपए तक हो जाती है। इस तरह अपने और अपने समूचे परिवार (माता-पिता समेत) के लिए बीमा कवर खरीदकर कोई भी व्यक्ति अधिकतम 30 से 35 हजार रुपए पर टैक्स बचा जा सकता है।
मेडिकल खर्च
वेतनभोगी कर्मचारियों को अपनी कंपनी से अधिकतम 15,000 रुपए सालाना बतौर कर मुक्त मेडिकल रिम्बर्समेंट मिल सकता है। अगर करदाता शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग आश्रित के इलाज (नर्सिंग, ट्रेनिंग और रिहैबिलिटेशन) पर 50,000 रुपए तक खर्च करता है तो अधिनियम की धारा 80डीडी के तहत यह रकम कर योग्य आमदनी में से घटा दी जाएगी। हालांकि अगर आश्रित व्यक्ति को ज्यादा गंभीर दिक्कत है तो कर छूट की सीमा 75,000 रुपए सालाना तक बढ़ जाएगी। इस धारा के तहत उल्लिखित विकलांगता में मानसिक रोग भी शामिल है। कैंसर, एड्स, पार्किंसन, क्रॉनिक रेनल फेलियर, थैलेसीमिया आदि बीमारियों से जूझ रहे मरीज के इलाज पर खर्च होने वाली रकम पर कर छूट के लिए क्लेम किया जा सकता है। आयकर अधिनियम की धारा 80डीडीबी के तहत अधिकतम 40,000 रुपए पर छूट हासिल की जा सकती है। अगर आश्रित वरिष्ठ नागरिक है तो डिडक्शन की रकम बढ़कर सालाना 60,000 रुपए हो जाएगी।
जीवन बीमा
करदाता, उसके जीवनसाथी या बच्चों की जीवन बीमा पॉलिसी के प्रीमियम के तौर पर चुकाई जाने वाली राशि कुल कर योग्य आमदनी में से कर छूट के लिए उपलब्ध होती है। आप प्रीमियम की अधिकतम एक लाख रुपए की राशि को कर से बचा सकते हैं। हालांकि इस बात पर गौर करना महत्वपूर्ण है कि कर छूट तभी मिलती है जब प्रीमियम की रकम बीमा पॉलिसी की कुल रकम के 20 फीसदी से ज्यादा न हो। बीमित राशि वह रकम होती है जो पॉलिसी की मियाद खत्म होने के बाद पॉलिसीधारक को बीमा कंपनी की ओर से मिलती है। इस टर्म को आम तौर पर एंडॉमेंट और मनी बैक प्लान में इस्तेमाल किया जाता है।

बचत खाता खोलने से पहले जुटाएं जानकारी

मुंबई: बैंक की नजर में बचत खाता रखने वाले लोग लंबे वक्त के साथी होते हैं। उनमें से ज्यादातर तब तक बैंक से नाता नहीं तोड़ते, जब तक उन्हें मकान या नौकरी न बदलनी हो। इसके बावजूद बचत खाता खोलने से जुड़ा फैसला ज्यादा जानकारी जुटाए बिना किया जाता है। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि अधिकतर ग्राहक बचत खाते को कमोडिटी के तौर पर लेते हैं, जिसमें ब्याज दर तय होती है और लेन-देन में पैसा जमा कराना, निकालना और चेक जारी करना शामिल है। लेकिन अगर आप बचत खाता खोलते वक्त सतर्कता नहीं बरतते तो कई ग्राहकों को अंत में एक से ज्यादा बैंक एकाउंट खुलवाना पड़ता है क्योंकि मूल बैंक उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करता। बैंकिंग जरूरतों को पहचान कर उसके मुताबिक बैंक चुनने से आप आगे जाकर पैसा और वक्त, दोनों बचा सकते हैं। इससे जोखिम कम करने के लिए एक से ज्यादा खाते खुलवाने की जरूरत पहले ही खत्म हो जाती है। कोटक महिंद्रा बैंक के ग्रुप हेड (रीटेल लायबिलिटीज और ब्रांच बैंकिंग) के वी एस मानियान ने कहा, 'इससे यह सुनिश्चित होगा कि आप उन फायदों को खो न दें जो खाते में ज्यादा बड़ी रकम रखने पर मिलते हैं।'
सही बैंक का चुनाव
सही बैंक खाता चुनने की दिशा में पहला कदम सामान्य तौर पर सभी बैंकों के प्रोफाइल और विशेष रूप से किसी बैंक शाखा की समीक्षा करने से जुड़ा है। इस सिलसिले में कोई भी फैसला करते वक्त बैंक के टारगेट ग्रुप पर भी विचार करना जरूरी है। आपको यह जानने की आवश्यकता है कि बैंक का फोकस आम लोगों पर है या उनमें से खास पर या फिर वह समाज के रईस तबके पर है। मसलन, अगर बैंक का टारगेट समूह रईस ग्राहक हैं और आप मध्य आय वर्ग में शामिल हैं तो आप उस वित्तीय संस्थान के लिए वैल्यू कस्टमर नहीं होंगे जिसका नतीजा यह होगा कि आपको बैंक से संतुष्ट करने लायक सेवाएं नहीं मिलेंगी। उदाहरण के लिए बड़े आकार के निजी बैंक छोटे कारोबारियों की जरूरतों को पर्याप्त महत्व नहीं देते क्योंकि ऐसे बैंकों के लिए छोटे कारोबारी प्राथमिकता श्रेणी में शामिल नहीं होते। कई बार ऐसे मामलों में दस्तखत की जांच जैसी साधारण सेवा में भी काफी वक्त लगाया जाता है।
सहूलियत का पैमाना
एक बार अगर आपको यह भरोसा हो जाता है कि बैंक का प्रोफाइल आपके पैमाने पर दुरुस्त बैठता है तो उसके बाद आप सहूलियत के पहलू पर गौर करते हैं। एचडीएफसी बैंक में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट-रीटेल लायबलिटीज अनिंद्या मित्रा ने कहा, 'इस फैसले पर ब्रांच और एटीएम का नेटवर्क काफी अहम भूमिका अदा करता है। जिस बैंक पर आप विचार कर रहे हैं, अगर आपके घर के पास उसकी शाखा नहीं है तो इस बात पर विचार कीजिए कि उसका एटीएम आसपास जरूर हो।' अगर आप लॉकर की सुविधा लेने पर विचार कर रहे हैं तो बैंक शाखा की नजदीकी महत्वपूर्ण है। एक और माध्यम, जिसमें आप सभी, खास तौर से वरिष्ठ नागरिकों की दिलचस्पी हो सकती है, वह होम बैंकिंग सुविधा से जुड़ा है। आपको यह जानने की जरूरत है कि क्या बैंक आपके घर पर नकदी, चेक बुक और दस्तावेज पहुंचाने की सुविधा देगा। इसके अलावा बचत खाता खुलवाते वक्त यह जरूर जानने की कोशिश कीजिए कि क्या बिल का भुगतान, फंड ट्रांसफर करना और चेक बुक के लिए ऑर्डर देने जैसी सेवाएं सभी माध्यमों से आप तक पहुंचाई जाएंगी या नहीं।
टेक्नोलॉजी-फ्रेंडली
एचएसबीसी बैंक के अधिकारी ने कहा, 'अगर सेवा अंतर पैदा करती है तो प्रौद्योगिकी उसे आसान बनाने का काम करती है। खास तौर से प्रभावशाली वर्ग लगातार आगे बढ़ रहा है। इसलिए बचत खाता ऐसा होना चाहिए जो ग्राहकों को जहां चाहे, जब चाहे सुविधा मुहैया करा सके।' ज्यादातर बैंक इस बात का दावा करते हैं कि वे सभी मंचों से सभी सुविधाएं मुहैया कराएंगे, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वे सेवाएं भी उतनी बढि़या उपलब्ध कराएंगे। मानियान ने कहा, 'सभी बैंक इंटरनेट, फोन या मोबाइल प्लेटफॉर्म पर सेवाएं मुहैया नहीं कराते। अगर आप इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति हैं लेकिन नेट बैंकिंग के मामले में आपका बैंक आधुनिक है तो आपको इस वजह से काफी दिक्कतें होंगी।' इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। अगर आपका बैंक इंटरनेट पर नेट बैंकिंग पासवर्ड रिजनरेट करने की सुविधा नहीं देता तो आपके इस सिलसिले में आवेदन दाखिल कराने के लिए बैंक की शाखा तक जाना होगा जिसमें पैसा और वक्त, दोनों खर्च होगा। यही कहानी मोबाइल बैंकिंग के साथ है। अगर आप काफी ट्रैवल करते हैं और ज्यादातर लेन-देन के लिए अपने मोबाइल फोन पर निर्भर करते हैं तो आपको ऐसे बैंक की आवश्यकता है जो पूरी तरह से इनेबल मोबाइल प्लेटफॉर्म रखता हो।
उत्पाद की विशेषता की समीक्षा
अलग-अलग बैंकों के खातों से जुड़ी विशेषताओं की तुलना करना भी काफी अहम है। ज्यादातर विदेशी और निजी बैंक 5 से 10 हजार रुपए एसे कम की न्यूनतम राशि के बिना खाता खोलने की सुविधा नहीं देते जबकि पब्लिक सेक्टर के अधिकतम बैंकों में आप 500 रुपए की न्यूनतम रकम के साथ खाता खोल सकते हैं। आपको इस बारे में सवाल करना भी जरूरी है कि आपका खाता न्यूनतम दैनिक रकम या औसत तिमाही बैलेंस सिस्टम के हिसाब से चलता है। दैनिक आधार पर समीक्षा होती है तो किसी भी एक दिन जरूरी रकम खाते में न होने पर आपका बैंक नॉन-मेंटेनेंस शुल्क लगा सकता है। दूसरी ओर, दूसरा तंत्र होने पर आप ज्यादातर दिन तक पर्याप्त बैलेंस रखकर बैंक की तरफ से लगाए जाने वाले शुल्क से बच सकते हैं। मानियान ने कहा, 'अगर आपको किसी ऐसे पारिवारिक सदस्य को नियमित आधार पर पैसा भेजने की जरूरत पड़ती है जो किसी दूसरे शहर में रहता है तो साधारण खाते से काम नहीं चलेगा क्योंकि हो सकता है कि उसमें 'एट पार' चेक जारी न हो जिससे पैसा पहुंचाने में दिक्कत हो सकती है।' इसके अलावा यह पता लगाइए कि क्या खाता स्वीप इन स्वीप आउट सुविधा के साथ आता है क्योंकि इससे खाते में रकम पड़ी रहने देने पर होने वाले मामूली नुकसान से भी आप बच सकते हैं।
शुल्कों की जानकारी जरूरी
खाता खोलने पर ज्यादातर बैंक एकाउंट ओपनिंग किट भेजते हैं जिसमें नॉन-मेंटेनेंस चार्ज, चेक रिटर्न पेनल्टी, डेबिट कार्ड फीस जैसे शुल्कों का ब्योरा होता है। कई खाताधारकों को इस बात की जानकारी नहीं होती कि एक साल बीत जाने के बाद डेबिट कार्ड पर फीस लगती है। कुछ बैंक एसएमएस अलर्ट के लिए भी ग्राहकों से पैसा लेते हैं। अलग-अलग बैंकों के शुल्कों की तुलना करते हुए आपको यह गौर करना चाहिए कि वह सेवा कर लगने के बाद है या पहले। शुल्कों की गहन जांच से आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बाद में आपको चौंकना नहीं पड़ेगा।
तफ्तीश
बचत खाता खोलने से पहले बैंक के टारगेट ग्रुप पर विचार करना जरूरी है। आपको यह भी पता लगाना होगा कि बैंक सबसे ज्यादा ध्यान आम लोगों पर देता है या अपने रईस ग्राहकों पर। अगर आप लॉकर की सुविधा लेने पर विचार कर रहे हैं तो शाखा नजदीक होनी जरूरी है। वरिष्ठ नागरिकों को इस बात की जानकारी जरूर जुटानी चाहिए कि क्या बैंक नकदी, चेक बुक और दस्तावेज घर तक पहुंचाने की सहूलियत दे रहा है या नहीं।

Monday, February 16, 2009

मंजिल के मुताबिक चुनिए निवेश का रास्ता

शेयर बाजार के इतिहास में साल 2008 शायद सबसे बुरा रहा। पश्चिम बाजार जहां अपनी ही गलतियों की वजह से घुटनों पर आ गए, वहीं उनकी वजह से एशियाई बाजारों में तबाही का मंजर देखने को मिला। यहां इक्विटी बाजारों में भारी गिरावट, ऊंची मुद्रास्फीति दर, आसमान छूती ब्याज दरों और कमोडिटी की कीमतें लुढ़कने की वजह से निवेशकों के पास सिर छिपाने के लिए कोई जगह नहीं बची। एक वक्त आ गया था जब हाथ में नकदी रखना सबसे सुरक्षित विकल्प जान पड़ रहा था। इक्विटी बाजारों की तस्वीर अब भी साफ नहीं हुई है लेकिन महंगाई दर और ब्याज दर के मोचेर् पर राहत मिलती दिख रही है। वित्तीय पैकेज और मौद्रिक उपाय से जुड़े कदम सही दिशा में हैं। हालांकि ज्यादातर निवेशकों का इक्विटी बाजार से भरोसा उठ गया है और एसेट श्रेणियों में निवेश लौटने में अभी और वक्त लगने के आसार दिख रहे हैं। इसलिए अब सवाल यह उठता है कि औसत निवेशक होने के नाते आप बचत खाते में रखी अतिरिक्त रकम को कहां लगा सकते हैं? बचत और अतिरिक्त राशि को कहां लगाना है, इसका फैसला करने से पहले आपको निवेश के पीछे संतुलन कायम करने के बारे में विचार जरूर करना चाहिए। इस बात पर भी विचार करना जरूरी है कि क्या पैसे को मध्यम अवधि की जरूरत के लिए लगाना है या फिर लंबी मियाद के लिए। इसके अलावा छोटी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पैसा कहां लगाना चाहिए, इस सवाल का जवाब तलाशना भी जरूरी है। आप जोखिम सहने की क्षमता, एसेट आवंटन और रिटर्न के आधार पर पैसा इक्विटी, डेट या फिर सोने में लगा सकते हैं। अगर आपको पैसा छोटी अवधि की जरूरत को पूरा करने के लिए लगाना है तो फिक्स्ड डिपॉजिट सबसे बेहतर है। हालांकि, अगर कोई निवेशक थोड़ा ज्यादा जोखिम उठाने की हालत में है तो मौजूदा स्थिति में वह इनकम फंड पर गौर कर सकता है। ब्याज दरें फिलहाल निचले स्तरों पर हैं, ऐसे में मध्यम से लंबी अवधि की डेट प्रतिभूतियां भी निवेश का बढ़िया विकल्प मुहैया कराती हैं। ऐसा इनकम फंड या म्यूचुअल फंड के गिल्ट फंड में निवेश कर किया जा सकता है। एक तरफ जहां इनकम फंड सामान्य तौर पर मध्यम से लंबी अवधि के सरकारी पेपर (गिल्ट) और कॉरपोरेट डेट प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं, वहीं दूसरी ओर गिल्ट फंड केवल सरकारी पेपर में पैसा लगाते हैं। ब्याज दरों में गिरावट से ऊंची ब्याज दरों के साथ आने वाली मौजूदा प्रतिभूतियां आकर्षण का केंद्र बन गई हैं, जिनसे उनके दाम बढ़ गए हैं। 6-12 महीने की अवधि के लिए यह निवेश का बढ़िया जरिया हो सकता है।ब्याज दरें पहले से नीचे आ रही हैं और कोई भी इस बात का अंदाजा नहीं लगा सकता कि क्या उनमें और नरमी आएगी, इसलिए इनकम फंड गिल्ट फंड से बेहतर साबित हो सकते हैं क्योंकि उनमें कॉरपोरेट बॉन्ड और गिल्ट के बीच स्विच करने का विकल्प मिलता है। छोटी अवधि के लिए लिक्विड फंड में अतिरिक्त पैसा लगाना बढ़िया रणनीति है क्योंकि वे आपको तरलता और बाजार की ब्याज दरें मुहैया कराते हैं। मध्यम अवधि से लंबी मियाद के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कुछ हिस्सा एसआईपी के जरिए लगाना बढ़िया विचार है। एसआईपी निवेश का वह तरीका है, जिसमें नियमित अंतराल पर तय रकम म्यूचुअल फंड में डाला जाता है। इससे बाजार की चाल का अंदाजा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि बाजार में तेजी हो या मंदी, आपका निवेश जारी रहता है। छोटी रकम का निवेश एक वक्त बाद बड़ी राशि में बदल जाता है। म्यूचुअल फंड आपको हर तरह की योजना में एसआईपी की सुविधा देते हैं। इसके जरिए आप डायवर्सिफाइड इक्विटी, इंडेक्स, बैलेंस्ड या डेट फंड में पैसा लगा सकते हैं। निवेश की योजना बनाते वक्त आपको इस बात का निर्णय लेना होता है कि उस रकम को छोटी अवधि, मध्यम अवधि या फिर लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करना है। साथ ही तरलता, जोखिम सहने की क्षमता और संपत्ति आवंटन पर भी उतना ही गौर करना जरूरी है।
-ऋषि त्रिवेदी

Sunday, February 15, 2009

5 tax-planning tips for salaried people

5 tax-planning tips for salaried people


With the tax-planning season about to end, most individuals are rushing around to make investments to minimise their tax liability. It has been observed that individuals (often salaried ones) end up paying more taxes than they are obligated to.

While lack of sufficient time to conduct the tax-planning exercise is a reason, largely, this can be attributed to lack of awareness about different incentives, allowances and rebates under the Income Tax Act. Apart from the Section 80C deductions which are quite popular, there are various other sections which can help salaried individuals save taxes.

We believe there is a need for salaried individuals to devote adequate time and effort to the tax planning exercise and be aware of the various benefits that they can avail of. In this article, we present 5 tax-planning tips that can aid salaried individuals minimise their tax liability.

1. Utilise the entire Section 80C deduction
Under Section 80C, the maximum deduction available is Rs 100,000 pa. Ideally, salaried individuals whose gross total income is equal to or more than Rs 250,000 should utilise the entire Rs 100,000 limit.
Consider the case of an individual whose taxable income is Rs 600,000 and who only utilises half of the available Rs 100,000 limit. He would end up paying an additional tax of Rs 15,450 as opposed to an individual with the same taxable income, but has utilised the entire limit.
Also, at times, individuals make investments of over Rs 100,000 in Section 80C designated avenues, since they fail to understand that the benefits are capped. For example, despite making investments of Rs 70,000 in Public Provident Fund and Rs 40,000 in ELSS, the amount eligible is only Rs 100,000.
Following investments/contributions qualify for Section 80C deductions,
Public Provident Fund
National Saving Certificate
Accrued interest on National Saving Certificate
Life Insurance Premium
Tuition fees paid for children's education (maximum 2 children)
Principal component of home loan repayment
Equity Linked Savings Schemes (ELSS)
5-Year fixed deposits with banks and Post Office

2. Think beyond Section 80C
For salaried individuals whose gross total income exceeds Rs 250,000 pa, deductions under Section 80C may not be sufficient to reduce the overall tax liability. In such cases they can consider the following:
Home loan: Individuals intending to buy a house should consider opting for a home loan. Interest payments of upto Rs 150,000 pa are eligible for deduction under Section 24.
Medical insurance: An individual who pays medical insurance premium for self or spouse/dependent children is allowed a deduction of upto Rs 15,000 pa under section 80D.
An additional deduction of up to Rs 15,000 pa is allowed for premium payment made for parents. In case the parents are senior citizens, then the maximum deduction allowed is Rs 20,000 per year.
Donations: Subject to the stated limits, donations to specified funds/institutions are eligible for tax benefits under Section 80G.
Salaried individuals who plan to pursue higher education should avail of an education loan as the entire interest is eligible for deduction under Section 80E. The loan can be for self, spouse or child from an approved charitable institution or a notified financial institution.

3. Restructure the salary
Restructuring the salary and including certain components can go a long way in reducing the tax liability. Unlike eligible investments which lead to an additional cash outflow, restructuring the salary is a more 'efficient' means of claiming tax benefits. The following can form a part of one's salary structure:
· Food coupons like Sodexo and Ticket Restaurant; they are exempt from tax up to Rs 60,000 per year.
· Medical expenses which are reimbursed by the employer are exempt up to Rs 15,000 per year.
· Individuals living in a rented accommodation should have House Rent Allowance (HRA) as part of their salary.
· Transport allowance is exempt upto Rs 800 per month.
· Leave Travel Allowance (LTA) can be claimed twice in a block of four years for domestic travel.

4. Claim tax benefits on house rent paid
Salaried individuals can claim rent paid by them for residential accommodation, if HRA doesn't form part of their salary. This deduction is available under Section 80GG and is least of the following:
· 25% of the total income or,
· Rs 2,000 per month or,
· Excess of rent paid over 10% of total income
Please note that the above deduction will be denied if the taxpayer or his spouse or minor child owns a residential accommodation in the location where the taxpayer resides or performs his office duties.

5. Opt for a joint home loan
As discussed earlier, the principal repayment on a home loan is eligible for a deduction of up to Rs 100,000 pa and the interest paid is eligible for a deduction of up to Rs 150,000 per year.
In cases where the home loan is for a substantial sum, it is not uncommon for the interest and principal repayment to exceed the stated limit. To ensure that the tax benefit is optimally utilised, an individual can consider opting for a joint loan with his spouse or parent or sibling.
This will ensure that both the co-owners can claim tax deductions in the proportion of their holding in the loan. The co-owner falling in the higher tax bracket should hold a higher proportion of home loan to ensure that the tax benefits are maximised.

As can be seen in the table above, making use of the available tax deductions can go a long way in helping individuals accumulate wealth. Consider the case of an individual in the highest tax bracket with a gross total income of Rs 600,000.
If he chooses to ignore the tax sops available under Section 80C, his tax liability will amount to Rs 87,550. Conversely, if he chooses to makes eligible investments/contributions of Rs 100,000 under Section 80C, his tax liability will be Rs 56,650 i.e. a saving of Rs 30,900.

Saturday, February 14, 2009

एलआईसी ने ये बात तो छिपा ही ली






एलआईसी ने ये बात तो छिपा ही ली

जीवन बीमा निगम की जीवन आस्था योजना को मिली भारी प्रतिक्रिया को किस तरह लिया जाए ? क्या यह एक बेहतरीन उत्पाद तैयार करने के लिए एलआईसी को ग्राहकों द्वारा दिया गया 8000 करोड़ रुपए से ज्यादा का उपहार है ? या फिर कुछ चालाकी से और कम पारदर्शिता से बेची गई एक स्कीम का नतीजा ? हमारा जवाब दोनों में ही है। एलआईसी ने निश्चित तौर पर एक ऐसा उत्पाद बनाया जो अनिश्चित दौर के लिए सबसे उपयुक्त है और बाजार की नब्ज पकड़ता है- एक ऐसा उत्पाद जो निश्चित रिटर्न का वादा करता है। इसके बावजूद एलआईसी की भारी कामयाबी इस वजह से भी रही कि उसने इस योजना के लाभ के बारे में उतनी पारदर्शिता नहीं बरती है, जितनी उससे उम्मीद की जाती है।

इंश्योरेंस रेगुलेटर की नहीं गई नज़र

दुर्भाग्य ही कहेंगे कि बीमा रेगुलेटर इरडा ने भी ठीक अपनी नाक के नीचे हुई इस योजना की भारी-भरकम खरीद के प्रति अपनी आंखें बंद रखीं। सतह पर देखें तो जीवन आस्था एक सिंगल प्रीमियम अश्योरेंस योजना है जिसमें परिपक्वता या मौत पर लाभ की गारंटी दी गई है। एक ऐसे माहौल में जहां बैंकों ने फिक्स्ड डिपॉजिट पर ब्याज दरें घटा दी हों , ऐसा लगता है कि यह योजना दोनों ही जरूरतों को पूरी करती थी- एफडी के मुकाबले बेहतर करमुक्त रिटर्न और साथ में बीमा कवर। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इसे इतनी भारी प्रतिक्रिया क्यों मिली , हालांकि सतर्क तरीके से गणना की जाए तो सालाना रिटर्न अधिकतर मामलों में 6.75 फीसदी से 7.25 फीसदी के बीच बैठता है!

चूहा बिल्ली की दौडॉ खेल कर पैसे बनाना छोड़े
हमने हमेशा निवेशकों के तईं ज्यादा फाइनांशियल लिटरेसी और कंपनियों के स्तर पर अधिक ट्रांसपेरेंसी की वकालत की है। इसके बावजूद इसमें शक पैदा होता है कि ठीक-ठाक जानकारी रखने वाले निवेशक भी आखिर क्यों नहीं उस परदे के पीछे झांक सके, जिस पर एलआईसी ने लाभ की मुहर लगा रखी थी। मसलन , यदि किसी बीमा योजना पर देय प्रीमियम तय राशि के 20 परसेंट से ज्यादा होता है , तो बीमा की प्रक्रिया करारोपण के योग्य हो जाती है। जीवन आस्था के मामले में एकल प्रीमियम मेच्योरिटी राशि से कई मामलों में 20 परसेंट से ज्यादा बैठता है और इस तरह मेच्योरिटी राशि पर टैक्स लगना लाजिमी हो जाता है। एलआईसी ने यही बात छुपाए रखी। यह समय की दरकार है कि बाजार के खिलाड़ी निवेशकों के साथ चूहा-बिल्ली की दौड़ खेल कर पैसे बनाना छोड़ें। यदि ऐसा नहीं होता है , तो नियामक संस्थाओं को तत्काल दखल देना चाहिए और उन्हें ऐसा करने को बाध्य करना चाहिए।

Friday, February 6, 2009

दो महीनों में बाजार में आएगी तेजी

भारतीय इक्विटी में पैसा लगाने वाले निवेशकों को अगले छह से नौ महीने के दौरान कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव को लेकर खुद को तैयार करना चाहिए। क्रेडिट सुइस में हेड ऑफ ग्लोबल रिसर्च फॉर प्राइवेट बैंकिंग एंड एसेट मैनेजमेंट जाइल्स कीटिंग का ऐसा मानना है। इसके बावजूद जोखिम-मुनाफा अनुपात उन लोगों के पक्ष में दिख रहा है, जो उठापटक के बीच छोटी अवधि में दांव खेलने का साहस रखते हैं।

दीप्ता राजकुमार से साथ एक साक्षात्कार में जाइल्स ने कहा कि रक्षात्मक सेक्टर से अपना ध्यान हटाकर साइक्लिकल कारोबार पर लगाने का वक्त आ पहुंचा है, जो बीते कुछ वक्त से हल्का प्रदर्शन कर रहे थे। भारत सहित ज्यादातर उभरते हुए बाजारों के वैल्यूएशन में बीते एक साल में भारी कमी आई है लेकिन पोर्टफोलियो निवेशकों पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है।

आपको क्या लगता है, यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा?

फिलहाल हम दुनिया भर में वैल्यूएशन के बूते चलने वाले बाजारों में नहीं खड़े हैं। इसके उलट हम खुद को उन बाजारों में खड़ा पा रहे हैं जो जोखिम सहने की क्षमता के आधार पर आगे बढ़ते हैं। दुनिया भर में ऐसी कई संपत्तियां हैं, जो भारत और दूसरे उभरते हुए बाजारों को काफी मूल्य मुहैया कराती है। लेकिन फिलहाल, निवेशकों के पास न तो जोखिम सहने की क्षमता है और न ही इस मौके का फायदा उठाने के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन हैं।

वे हर चीज को लेकर सतर्क रुख दिखा रहे हैं। केवल वे उत्पाद अपवाद हैं, जिनमें कम जोखिम है। एक वक्त आएगा जब यह सिलसिला उलट जाएगा। मुझे लगता है कि भारत समेत वैश्विक बाजार अगले छह से नौ महीने के दौरान भारी उथल-पुथल दर्ज करेंगे। इस तरह के बाजारों से निपटना काफी मुश्किल होता है। कुछ वक्त बीतने पर आर्थिक स्थिति साफ होगी और कर्ज से जुड़े हालात में सुधार होगा। तब तक अत्यधिक जोखिम से बचने के रुख में कमी आएगी और फायदा हकीकत बन जाएगा।

भारत को लेकर आपका क्या मानना है और आप कहां अवसर देखते हैं?

मुझे लगता है कि भारतीय बाजारों में रोटेशन की रणनीति अपनाने की जरूरत है। फिलहाल हम दायरे के अंतिम छोर की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि कोई भी आगे गिरावट आने से इनकार नहीं कर सकता। कुल मिलाकर अगले दो महीने में अब गिरावट से ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज करेंगे। हालांकि निवेशकों को जल्द से जल्द बाजार चढ़ने का फायदा उठाना होगा क्योंकि बढ़िया मुनाफा स्थिति बदलने से जुड़ा होगा।

सेक्टरों के मामले में कई रक्षात्मक सेक्टरों को हमने मजबूती से बेहतरीन प्रदर्शन करते देखा है। अब जोखिम सहने की क्षमता कम होने के वक्त बचाव का रुख दिखाने के बजाए ज्यादा बीटा वाले शेयरों पर ध्यान लगाना चाहिए जैसे कि अंडरवैल्यू ऑटोमोबाइल और मेटल स्टॉक। लेकिन ऐसा कुशल निवेश हम छोटी अवधि की रैली के लिए अस्थायी होल्डिंग्स के तौर पर सुझा रहे हैं और हमें उम्मीद है कि ज्यादा वक्त तक जारी नहीं रहेगी। कंज्यूमर श्रेणी के शेयर सुस्ती में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, लेकिन ऐसी रैली में उनका प्रदर्शन कोई खास नहीं रहेगा।

इस वक्त बड़े निवेशकों (एचएनआई) का पैसा किस तरफ जा रहा है?

अब इसके काफी सबूत हमारे सामने हैं कि एचएनआई और रईस निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो की वैल्यू में भारी गिरावट झेली है। इनमें से कुछ कम जोखिम वाले प्रोडक्ट में पैसा लगा रहे हैं। वैश्विक कारोबार के मामले में यह देखा जा सकता है कि जनवरी की शुरुआत में ज्यादा जोखिम लेने का सिलसिला शुरू तो हुआ लेकिन तमाम उत्पादों के दायरे में यह सबसे कम जोखिम वाले थे।

मसलन, बड़े निवेशकों ने सरकारी बॉन्ड से निकलकर बढि़या गुणवत्ता रखने वाले और थोड़े से ज्यादा जोखिमपूर्ण कॉरपोरेट डेट का रुख करना शुरू कर दिया था। यह जोखिम का दायरा बढ़ाने की प्रक्रिया है। ऐसे कम ही निवेशक हैं जो जल्द बिकवाली करने में कामयाब रहे। जोखिम उठाने की उनकी क्षमता औसत से कुछ ज्यादा है और उन्होंने दुनिया भर में सुनहरे अवसरों की तलाश शुरू कर दी है। ऐसे अवसरों का उदाहरण चुनिंदा रियल एस्टेट प्रॉपर्टी है, जिनकी कीमतों में भारी गिरावट देखी गई है।

आप बड़े निवेशकों को क्या सुझाव देना चाहेंगे?

मैं उन्हें भारत को अपनी नजर में रखने का सुझाव दूंगा। लंबी अवधि में बढ़त की कहानी बरकरार है और हमें 2010 के लिए पांच से छह फीसदी शुद्ध बढ़ोतरी की उम्मीद है। वैल्यू कहीं नहीं गई है और जब तक भारतीय बाजार निचले स्तरों पर कारोबार कर रहे हैं, उन्हें निवेश बढ़ाने के लिए मौकों का फायदा उठाना चाहिए। हालांकि अगर वे जोखिम से बचना चाहते हैं तो कुछ और इंतजार कर सकते हैं।

Tuesday, February 3, 2009

SIP is the Way to Go


I have come across a statement in a financial daily which says - “If you are an astute investor, consider investing small sums on every 5 per cent or more declines in the broad market. Otherwise, use the SIP route.” Does this make sense? I am not crystal clear with the term broad market.- Jojo Jacob


It would be great if one is astute enough to consistently buy at dips and sell at highs. But it is very difficult to define a dip. Since January 2008, market has dipped and dipped further. Most professional and individual investors are unable to successfully time the market.

The way to make money from equities is to build a portfolio of good stocks and patiently hold on it. And by good stocks, we mean stocks of businesses with sound management and the potential to burgeon their earnings. But this requires an investor's time and inclination. The alternative is to buy a ready portfolio by way of a mutual fund and invest regularly. SIP ensures discipline and helps manage investment anxiety caused by dips. This is the next best way to profit from equities.

Broad market is generally referred to the direction of the leading indices.

नियम बदलेगी सेबी

मुम्बई।सोमवार का दिन सत्यम के लिए राहत भरी खबर लेकर आया। शेयर मार्केट नियामक सेबी ने सत्यम को खास तरह का मामला बताते हुए नियमों में बदलाव की घोषणा की। सेबी बोर्ड की मीटिंग के बाद भावे ने कहा कि हम दिशा-निर्देशों के तहत नियमों में बदलाव करेंगे ताकि ऎसे एक्जिविशन की कीमत साफ-सुथरे तरीके से तय हो सके। हालांकि भावे ने इस बारे में कोई समय सीमा देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सत्यम के लिए कोई अलग से नियम न बनाकर सेबी अपने नियमों में ही बदलाव करेगा।
एलएंडटी को मिली राहत
सेबी अगर ओपन ऑफर में किसी प्रकार की छूट देता है तो इसका सबसे बडा फायदा अग्रणी इंजीनियरिंग व कन्स्ट्रक्शन कंपनी लार्सन एण्ड टुब्रो को मिलेगा। उल्लेखनीय है कि कम्पनी ने सत्यम में अपनी हिस्सेदारी को बढाकर 12 प्रतिशत कर लिया है जो कि कम्पनी में सबसे बडी हिस्सेदारी है। इसके अलावा कम्पनी ने सत्यम को खरीदने की अपनी इच्छा पहले ही जाहिर कर दी है। एलएंडटी ने भी सेबी से नियमों में छूट देने की गुजारिश की थी।
पेचीदा है अघिग्रहण का फार्मूला
सेबी के कम्पनी अधिग्रहण नियमों के अनुसार अगर कोई निवेशक किसी कम्पनी में 15 फीसदी से अधिक शेयर हिस्सेदारी खरीदता है तो उसे प्राइसिंग फॉर्मूले के आधार पर अतिरिक्त 20 फीसदी इक्विटी जुटाने के लिए ओपन ऑफर लाना होता है। यह ओपन ऑफर 26 सप्ताह की औसत कीमत में से जो ज्यादा होना चाहिए। इसके अनुसार सत्यम खरीद में दिलचस्प कम्पनियों को इसके शेयरों की 26 सप्ताह की औसत कीमत माननी पडती जो 270 रूपए प्रति शेयर से अधिक होती। सत्यम को खरीदने में जुटी किसी भी कम्पनी के लिए यह एक झटका हो सकता था क्योंकि इस आधार पर हिस्सेदारी खरीदने के लिए भारी रकम चुकानी होती। सत्यम बोर्ड ने सेबी के समक्ष यह मुद्दा उठाया और जिन प्रस्तावों पर विचार हुआ, उनमें से यह दो सप्ताह की औसत कीमत से जुडा था जो जनवरी की किसी कट-ऑफ तारीख से जुडी होती।
फायदे का सौदा
अगर दो सप्ताह की शेयर कीमत को पैमाना माना जाए तो अधिग्रहण का खर्च काफी नीचे आ जाएगा क्योंकि सत्यम के शेयर की कीमत 60 रूपए से भी कम पर थी। जानकारों का मानना है कि 26 सप्ताह की औसत कीमत से जुडा फॉर्मूला सत्यम मामले में सही नहीं बैठता।हम इस प्रकार के अघिग्रहणों के लिए कीमत निर्घारित करने व सारी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए नियमों बदलाव करेंगे। यह बदलाव केवल सत्यम जैसे मामले के लिए विशेष्ा छूट देने वाला न होकर नियमों का बदलाव होगा ताकि इस प्रकार के प्रकरणों से निपटने के लिए प्रणाली विकसित की जा सके।
-सी बी भावे, अध्यक्ष सेबी

Sunday, February 1, 2009

स्वास्थ्य बीमा कवर हो सकता है 12% सस्ता

कोलकाता : अगर जनरल इंश्योरेंस काउंसिल अपनी कोशिश में कामयाब होती है तो हेल्थ इंश्योरेंस के खर्च में 12 फीसदी कमी आ सकती है। आप सोच रहे हैं कि ऐसा होगा कैसे? जवाब हाजिर है। परिषद ने वित्त मंत्रालय को भेजे प्री-बजट प्रस्ताव में हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर सर्विस टैक्स हटाने की मांग की है, जो करीब 12.5 फीसदी है। साथ ही उसने वित्त मंत्रालय से साधारण बीमा खरीदते वक्त 2500 रुपए से कम के लेन-देन को सेवा कर से छूट देने का आग्रह भी किया है। काउंसिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'साल 2007 में अधिसूचित की गई 50 रुपए की सीमा में आज तक कोई बदलाव नहीं किया गया है। सरकार बीमा की जरूरत का प्रसार कर रही है और कोशिश है इसकी पहुंच बढ़ाने की। इसी के मुताबिक ५० रुपए की सीमा को औसतन कम से कम 1000 रुपए तक बढ़ाया जाना चाहिए। प्रीमियम के रूप में 1000 रुपए से कम का भुगतान करने वाले लोग मुख्य रूप से समाज के निचले वर्ग से होते हैं जिनके लिए प्रीमियम का भुगतान करना भी एक चुनौती की तरह है।' उन्होंने कहा, 'इस कदम से बीमा कवर खरीदने का खर्च और कंपनी के लिए प्रशासनिक खर्च कम कर आबादी के ज्यादा बड़े हिस्से को इसके दायरे में लाया जा सकेगा जिससे बीमा उद्योग को मजबूती दी जा सकेगी और समाज को फायदा पहुंचेगा।' दिलचस्प है कि परिषद ने पिछले साल भी इसी तरह की छूट देने की मांग की थी जिस पर सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और 2008-09 के बजट में इस सिलसिले में कोई घोषणा नहीं की गई। इस बीच सेवा कर में कमी से ग्राहकों को काफी राहत मिलेगी। फिलहाल हेल्थ कवर के मामले में बीमा कंपनियां प्रीमियम पर 12.5 फीसदी कर लगाती हैं। जबकि दूसरी पॉलिसी के मामले में 50 रुपए से ज्यादा के प्रीमियम पर भी इसी दर से टैक्स लगता है।