Wednesday, October 29, 2008

मंदी में क्या है इनवेस्टमेंट का फर्स्ट एड किट?

जब कभी आपको या परिवार के किसी सदस्य कोमामूली चोट या खरोंच आती है तो
घर में उपलब्ध फर्स्ट एड किट काफी काम आती है। ठीक इसी तरह जब बाजार में भूचाल आया हो और अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम संकेत भी निराश करें तो हमें हर तरह के हालात से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए। दो महीने पहले तक आपके पास आपात स्थिति के लिए तैयारी करने की कोई वजह नहीं थी। लेकिन अब वक्त आ गया है कि आप कमर कस लें और मन को सुकून न देने वाली स्थितियों से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन के कुछ उपाय सीखें : हाथ में कैश कारोबारी दुनिया में रकम का एक हिस्सा हालात में अचानक आने वाले बदलाव से निपटने या विस्तार से जुड़ी संभावनाएं दिखने पर उसे इस्तेमाल करने के लिए अलग रखा जाता है। पार्क फाइनेंशियल एडवाइजर्स के निदेशक स्वप्निल पवार ने कहा , ' यह रकम छह महीने के खर्च के बराबर होनी चाहिए। इसमें घर की किस्त या किराया , खाद्य वस्तुएं , यूटिलिटी बिल , कर्ज का भुगतान और ऐसे नियमित व्यय शामिल हैं जिन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है। इससे आपको अस्थाई संकट से उबरने में मदद मिलेगी। ' इसके अलावा आपात स्थिति से निपटने के लिए आपको कोष तैयार करना होगा। पवार के मुताबिक कम से कम दो महीने के लिए अतिरिक्त नकदी का इंतजाम कर इसकी शुरुआत कर सकते हैं। (आगे पढ़ें : खर्च का रखें ख्याल)
खर्च के पैटर्न की समीक्षा यह बात खास तौर से त्यौहार के मौसम में लागू होती है। परंपरा के मुताबिक धनतेरस पर सोने की खरीददारी कर सकते हैं। लेकिन , अगर आपकी नौकरी पर तलवार लटक रही है तो ऐसे बड़े खर्च को नजरअंदाज करना ही बेहतर है। हालांकि यह काफी सरल मालूम देता है लेकिन सचाई यही है कि हमें खर्चों में कटौती करने की कला सीखनी पड़ती है। हालांकि ये खर्च हमारी जेब में मौजूद पैसे तक सीमित होंगे लेकिन उथल - पुथल के दौर में गैर - जरूरी खर्च को नजरअंदाज करना काफी जरूरी है। (आगे पढ़ें : शॉर्ट टर्म फिक्सड डिपोजिट)
ताकि कैश का इंतजाम हो आसान पैसे के हिसाब से आम तौर पर लिक्विड फंड या लिक्विड प्लस फंड बेहतर रहते हैं। लेकिन मौजूदा हालात में वित्तीय सलाहकार 90 दिन से शुरू होने वाले शॉर्ट टर्म फिक्स्ड डिपॉजिट की सिफारिश कर रहे हैं और उनका यह भी कहना है कि अगर आपको इस बीच पैसे की जरूरत नहीं पड़ती तो इसी डिपॉजिट को रोल ओवर भी किया जा सकता है। आप डिपॉजिट में स्वीप पर भी गौर कर सकते हैं जो एक खास रकम पर पहुंचने के बाद आपके पैसे को सेविंग डिपॉजिट से फिक्स्ड डिपॉजिट में तब्दील करने का काम करता है। एक फाइनांशियल प्लानर ने कहा , ' कुछ लिक्विड फंड ने पूंजी में गिरावट देखी है या फिर उन्हें नकदी के संकट की वजह से रिडेम्पशन का सामना करना पड़ा है। जब आप अपनी चाहत के मुताबिक नतीजे हासिल नहीं कर सकते तो लिक्विड फंड में पैसा लगाने का क्या फायदा है। ' (आगे पढ़ें : इंडिविजुअल मेडिक्लेम क्यों जरूरी)
व्यक्तिगत मेडिक्लेम अगर कंपनी कोई मेडिकल पॉलिसी देती है तो ज्यादातर लोग अक्सर व्यक्तिगत मेडिक्लेम को नजरअंदाज करते हैं। यूं तो यह अतिरिक्त खर्च मालूम देता है लेकिन मौजूदा हालात में व्यक्तिगत बैक - अप मेडिक्लेम होना वित्तीय सुरक्षा की दृष्टि से सही है। नियोक्ता के कवर के तहत कई तरह के खर्च शामिल नहीं किए जाते। मान लीजिए आप बीमार हैं और 2 से 3 महीने के लिए काम पर नहीं जा पाते तो आपको लीव विदआउट पे ( बिना तनख्वाह अवकाश ) पर जाने को कहा जा सकता है। इसलिए , दो कवर के तहत अपने खर्च को बांटना समझदारी है। इसके अलावा व्यक्तिगत कवर जिंदगी भर चलता है और वह प्रीमियम पर डिफॉल्ट करने पर खत्म नहीं होता। लैडर 7 फाइनांशियल एडवाइजरीज के साथ कार्यरत सर्टिफाइड फाइनांशियल प्लानर सुरेश सदगोपन ने कहा , ' मैं अपने क्लाइंट को कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा पर स्टैंडअलोन हेल्थ पॉलिसी रखने को तरजीह देने की सलाह देता हूं जो परिवार को भी कवर करे। नौकरी जाने या बदलने के मामले में ऐसे कवर की जरूरत और ज्यादा महसूस की जाती है। हो सकता है कि नई कंपनी मेडिक्लेम न ऑफर करे या पॉलिसी आधी - अधूरी हो। ' जानकारों का कहना है कि छोटे और मध्यम दर्जे के शहरों में रहने वाले लोगों को 2-3 लाख रुपए जबकि महानगरों के निवासियों को 4-5 लाख रुपए से कम के कवर पर विचार नहीं करना चाहिए। सदगोपन के मुताबिक अगर आप किसी एक ही संस्था के साथ 10 साल से ज्यादा वक्त तक काम कर रहे हैं तो आप कम रकम के कवर पर गौर कर सकते हैं।
- विद्यालक्ष्मी

फाइनेंशियल प्लानिंग करने में बरतें सावधानी!

अक्सर हम जिंदगी को उलझा देते हैं। यह हमारे निवेश के साथ भी हो सकता है। अपने पिता या दादा की तुलना में वित्तीय फैसलों के लिए हमें बहुत अधिक विकल्पों में से चुनाव करना होता है। इसके साथ ही बहुत सी जानकारियां भी जुटानी पड़ती हैं। इनमें क्रेडिट कार्ड पर बकाया भुगतान , कर्ज का भुगतान , बैंक खाते , शेयर बाजार में निवेश और हेल्थ इंश्योरेंस के साथ रिटायरमेंट की योजना का लेखा-जोखा भी शामिल हो सकता है। भारत में इस समय 950 से अधिक म्युचूअल फंड योजनाएं और बचत-रिटायरमेंट की योजनाओं के साथ ही निवेश के सैकड़ों अन्य विकल्प भी हैं। यही बात बैंक खातों और क्रेडिट कार्ड के साथ भी लागू होती है। इसके अलावा शेयर बाजार के बहुत से विकल्पों के अलावा कार लोन , पर्सनल , कंज्यूमर , हाउसिंग और व्यावसायिक लोन पर भी निगाह रखनी पड़ती है। बीमा भी जीवन का एक अहम हिस्सा है और आज के दौर में लगभग व्यक्ति से लेकर पालतू पशु तक के लिए बीमा योजना उपलब्ध है। समय बदलने के साथ ही लोगों की महत्वाकांक्षाओं में भी बढ़ोतरी हुई है। आज लोग परंपरागत पेंशन योजनाओं , एक बैंक खाते और बचत की सीमित योजनाओं से संतुष्ट नहीं होते। वे सैलरी और सेविंग खाते के अलावा डीमैट खाता और म्युचूअल फंड के साथ ही कई तरह की बीमा सुरक्षा भी चाहते हैं। इसके साथ ही बहुत से क्रेडिट कार्ड रखना भी उन्हें जरूरी लगता है। इसकी बड़ी वजह अर्थव्यवस्था का तेजी से बदलता हुआ स्वरूप है। यह सच है कि बाजार में उपलब्ध बहुत से प्रॉडक्ट भविष्य को सुरक्षित बनाने में मदद देते हैं , लेकिन कई बार इनसे व्यक्ति का पोर्टफोलियो इतना बड़ा और जटिल हो जाता है कि उसका प्रबंधन करना बहुत मुश्किल होता है। अपने वित्तीय भविष्य को मजबूत बनाने के लिए बहुत से लोग ऐसे प्रॉडक्ट जमा कर लेते हैं , जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती और इससे उनकी परेशानियां और बढ़ जाती हैं। ऐसा होने पर लोग भुगतान की निर्धारित तिथियां चूकने लगते हैं और उन्हें देरी से भुगतान पर भारी शुल्क चुकाना पड़ता है। उन पर कर्ज का बोझ भी लगातार भारी होता जाता है और गलतियों पर जुर्माना देने की तादाद भी बढ़ने लगती है। ऐसे में सोच-समझकर वित्तीय फैसले करना जरूरी है। आप जिस तरह से पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाइ करने पर मेहनत करते हैं , वित्तीय फैसले के साथ भी वैसा ही होना चाहिए। इंटरनेशनल मनी मैटर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ फाइनेशियल प्लानर लोवाई नवलखी का कहना है , ' डायवसर्फिकेशन निवेश का अहम पहलू है , लेकिन बहुत अधिक डायवर्सिफकेशन भी मददगार नहीं होता। रिसर्च से साबित होता है कि 90-95 फीसदी डायवर्सिफिकेशन 20-25 कंपनियों के शेयरों के साथ किया जा सकता है और इससे अधिक जाने पर कोई फायदा नहीं मिलता। ' जानकारों का कहना है कि जरूरत से अधिक डायर्वसिफिकेशन से भी बचना चाहिए क्योंकि इससे आपके मुनाफे पर असर पड़ता है।
जटिलता से बाहर आने और अपने वित्तीय जीवन को व्यवस्थित करने का सबसे आसान तरीका अपने मौजूदा और भविष्य के लक्ष्यों के आधार पर निवेश की एक साधारण रणनीति बनाना है। अगर आप चाहें तो प्रत्येक लक्ष्य के लिए निवेश की अलग योजना बना सकते हैं। इसके साथ ही आपको अपनी आमदनी और निवेश/प्रीमियम के भुगतान की क्षमता को भी ध्यान में रखना होगा। उदाहरण के तौर पर अगर आपके पास 10 बीमा पॉलिसियां हैं और उनमें से 6 कुछ समय के बाद लेप्स हो जाती हैं तो इतनी बीमा पॉलिसियां लेने की क्या जरूरत है ? इनवेस्ट शॉप इंडिया लिमिटेड के सीईओ , आशीष कपूर के अनुसार , ' वित्तीय योजना का एक महत्वपूर्ण भाग अपने लक्ष्य तय करना और समय-समय पर पोर्टफोलियो की समीक्षा करना है। ' अपने जोखिम का आकलन करने और पोर्टफोलियो की समीक्षा करने के बाद आपको ऐसी पॉलिसियों से छुटकारा पा लेना चाहिए , जिनकी आपको जरूरत नहीं है। आप चाहें तो जरूरत के मुताबिक , नई बीमा पॉलिसी भी ले सकते हैं। नवलखी ने बताया , ' खराब प्रदर्शन कर रहे निवेश को कम करना और संपत्ति में संतुलन बनाना जरूरी है। इससे पोर्टफोलियो संतुलित होता है। ' सटिर्फाइड फानेंशियल प्लानर और कैटालिस्ट फाइनेंशियल प्लानिंग के मैनेजिंग डायरेक्टर अतुल सुराना का कहना है , ' बचत और निवेश रोमांच और उत्साह से ज्यादा संयम और अनुशासन से जुड़ा होता है। लंबी अवधि में आपकी बचत आपके पास मौजूद निवेश के इंस्ट्रूमेंट्स से ज्यादा अहम होती है। ' अपने वित्तीय जीवन को पटरी पर लाने के लिए बहुत से अन्य तरीके भी मौजूद हैं। उदाहरण के लिए आप अपने बैंक खातों और क्रेडिट कार्डों की संख्या में कटौती कर सकते हैं। इसके अलावा आप लोन के भुगतान अन्य मासिक खर्चों की अदायगी ऑटोमैटिक पेमेंट के जरिए कर सकते हैं। इससे न केवल बिल भुगतान की आपकी प्रक्रिया आसान होगी बल्कि आपको देरी से भुगतान के लिए लगने वाले जुर्माने की चिंता से भी छुटकारा मिलेगा। अपने वित्तीय पोर्टफोलियो को आसान बनाने का सबसे बड़ा फायदा इसका बेहतर प्रबंधन है। कपूर के अनुसार , ' एक आसान पोर्टफोलियो की आसानी से निगरानी की जा सकती है। इसमें बदलाव करना भी मुश्किल नहीं होता। ' इसके साथ ही आपको अपने खचेर् कम करने और आमदनी बढ़ाने भी मदद मिलती है। वित्तीय जीवन में अनुशासन आने के साथ ही न केवल आपको राहत मिलेगी बल्कि आपकी समृद्धि की डगर पर भी आगे बढ़ने लगेंगे।
- संजीव सिन्हा

निवेश के लिए सुरक्षित ठिकानों की तलाश

दुनिया भर में छाई मंदी का असर शेयर बाजारों पर काफी पहले से दिखने लगा था। लेकिन गिरावट इतनी भीषण होगी, इसका अंदाजा अच्छे-अच्छे जानकारों को नहीं था। बाजार के इस बवंडर में निवेशकों का अरबों रुपया जमींदोज हो चुका है। इक्विटी बाजारों के इस भारी गिरावट ने निवेशकों को हैरत में डाल दिया और खासा अनुभव रखने वाले सक्रिय कारोबारी भी इस आग में अपनी उंगलियां जला बैठे। ग्लोबल स्तर पर अर्थव्यवस्था की गाड़ी मंद पड़ रही है और दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं का ग्राफ इन दिनों नीचे की ओर है, ऐसे में घरेलू बाजारों का ढहना हैरानी की बात नहीं होना चाहिए। घरेलू बाजारों की चाल आंतरिक कारणों के अलावा अमेरिका और एशिया के दूसरे हिस्सों में घटने वाली घटनाओं पर भी निर्भर करती है। ऐसे उथल-पुथल के दौर में अपनी जिंदगी भर कम कमाई बाजार के हवाले करने वाले निवेशक उम्मीद और प्रार्थना के अलावा कुछ और नहीं कर सकते। अब सवाल यह उठता है कि अगर आपके पास धन है तो आप उसे कहां निवेश करेंगे? इस सवाल का जवाब तलाशने वाले कुछ विकल्प पेश हैं:
1. छोटी अवधि के बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट 10 से 12 फीसदी के बीच आकर्षक ब्याज दर उपलब्ध करा रहे हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए 0.5 परसेंट और ज्यादा है।
2. पारंपरिक गिल्ट और डेट म्युचूअल फंड
3. सोना और गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंड। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि सोना इस वक्त सही विकल्प नहीं है। सामान्य व्यवहार से उलट इस बार सोने की कीमतें शेयर बाजारों के ढहने के साथ गिरी हैं।
4. बैंकों में रेकरिंग डिपॉजिट
5. गैर-बैंकिंग संस्थानों के साथ फिक्स्ड डिपॉजिट
6. किसान विकास पत्र और इंदिरा विकास पत्र
7. प्रॉविडेंट फंड में अपनी भागीदारी बढ़ाएं। इसे वॉलेंट्री पीएफ कहा जाता है और एंप्लॉयर उसके बराबर रकम नहीं देता।
8. पब्लिक प्रॉविडेंट फंड
9. छोटी अवधि के म्युचूअल फंड एफएमपी जिनकी मियाद साल भर के करीब हो। कर बाद मुनाफा 10 से 12 फीसदी बैठेगा। इक्विटी बाजारों के पिटाई खाने की वजह से यह निवेशकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
शेयर बाजारों के साथ जोखिम ने कई लोगों को अपना निशाना बनाया है। लोग अब कम जोखिम वाले और मध्यम अवधि में रिटर्न देने वाले उत्पाद चुन रहे हैं। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि बाजारों की मौजूदा मंदी ने वैल्यू शेयरों को खरीदने का सुनहरा मौका मुहैया कराया है। लेकिन सही शेयर चुनने के लिए आपको फंडामेंटल और टेक्निकल एनालिसिस की समझ होनी चाहिए। जोखिम से वाकिफ शेयर बाजार विशेषज्ञ ही ऐसा कर सकते हैं। दूसरों के लिए यह वक्त अपने पोर्टफोलियो पर गौर कर उसमें जरूरी संशोधन करने का है। लोगों ने शेयरों में निवेश को सीमित कर डेट में अपना निवेश बढ़ाना शुरू कर दिया है। अगर आप इसके बावजूद शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं तो लंबी अवधि का नजरिया रखिए और सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लानिंग की राह पकड़िए।

Jhunjhunwala sees 3 phases of mkts

Investor and Trader Rakesh Jhunjhunwala sees a three-phased way out of the current bear market. “First is going to be a phase of stabilisation and it will be linked in a large part not to local but international factors. Then we will go through a phase of consolidation. Then, we will go through a new market,” Jhunjhunwala said.

Jhunjhunwala also said the strengthening dollar was beyond comprehension. He said, “I don’t understand how the dollar is defying gravity. The only way for housing to ease in America is to consumption to ease up. The only way the American economy can stabilise is by growing exports and with this value of the dollar, what will happen to American exports?”

On the possible reasons for things to improve, Jhunjhunwala, said there were two positives that could result in markets moving up from here. “There are two factors that should dramatically improve the atmosphere for Indian equity. One, interest rates are headed nowhere but down. In my calculation — and I have studied the WPI index — one is going to have between 5.5-6% inflation by March and interest is one of the biggest factor in valuing assets,” Jhunjhunwala said. “So when interest is going to go down, that will give a kick to equities.”

“Secondly, one year ago, nobody was bothered about India’s monetary and fiscal position and the only joker in the pack was oil. With oil being down — and I am not seeing any recovery for oil — India’s monetary and fiscal position and foreign-exchange position next year will dramatically improve,” Jhunjhunwala added. These are two factors which could drive up valuations in India, he said.

Saturday, October 25, 2008

HAPPY DIWALI TO ALL


II The Mahalaxmi Mantra - Mahalakshmi Ashtak Strotra II

महालक्ष्म्यष्टकम्
Namastetu Mahaamaaye Shree peetthey Surpoojitey
Shankha chakra gadaa hastey
Mahaalaxmi Namostutey
Namastey Garooda roodhey
Kola asura bhayankari
Sarva paapa harey Devi
Mahaa Laxmi Namostutey
Sarvagyey Sarvey-Varadey
Sarva-dushta Bhayankaree
Sarva-dukha harey Devi
MahaLaxmi Namostutey.

Sidhee- Budhee pradey Devi,
Bhukti Mukti pradaayanee,
Mantra-Moortey sadaa Devi,
MahaLaxmi Namostutey.

Aadi-Anta rahitey Devi,
Aadi- Shakti Maheshwari,
Yogajey Yogasambhutey,
MahaaLaxmi namostutey.

Sthoola Sukshma Mahaa roudrey
MahaaShakti Mahodarey
Mahaa paapa harey Devi,
MahaaLaxmi Namostutey

Padma Aasan Sthitey Devi,
Para Brahma Svaroopini,
Parmeshi Jagan Maatar,
MahaLaxmi Namostutey.

Shwet Aambar dharey Devi,
Nana Alankaara Bhooshitey,
Jagat Sthitey Jagan Matar,
MahaaLaxmi Namostutey.
II Meaning of Mahalaxmi Mantra - Mahalakshmi Ashtak Strotra II
O Mahaamaya, abode of fortune who art worshipped by the Devas,
I salute Thee:
O MahaaLaxmi, wielder of conch, disc and mace,
obeiscance to Thee.

Who ridest the Garuda,
And art a terror to Asura Kola:
O Devi MahaaLaxmi remover of all miseries,
My obeisance to Thee.

O Devi MahaLaxmi who knowest all,
Giver of all boons,
A terror to all the wicked,
Remover of all sorrow,
Obeisance to Thee.

O Devi, Giver of Intelligence and Success,
And of worldly enjoyment and liberation,
Thou hast always the mystic symbols
As Thy form, O MahaLaxmi, obeisance to Thee.

O Devi, Maheshwari,
without a beginning or an end,
O Primeval Energy,
Born of Yoga,
O MahaLaxmi,
obeisance to Thee.

O MahaLaxmi who art both gross and subtle,
Most terrible, great Power, great prosperity,
And great Remover of all sins,
obeisance to Thee.

O Devi, seated on the Lotus,
who art the Supreme Brahman,
the great Lord and Mother of the Universe,
O MahaLaxmi, obeisance to Thee.

O Devi, robed in white garments,
and decked with various kinds of ornaments,
Thou art the Mother of the Universe,
O MahaLaxmi, Obeisance to Thee.
From: Jinendra Kumar Porwal & Family

HAPPY DIWALI

SHRI BOHRA GANESH JI, UDAIPUR
May the Divine Light of Diwali Spread into your Life Peace, Prosperity, Happiness and Good Health.Happy Diwali

From: Jinendra Kumar Porwal & Family

Friday, October 24, 2008

शेयर बाजार में तेज गिरावट के पीछे FII का खेल?

पिछले कुछ महीनों में कई प्रमुख कंपनियों के शेयरों में हर दिन तेज गिरावट होने की वजह से अब यह चर्चा शुरू हो गई है कि इसकी वजह सिर्फ 'अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमजोरी' और 'कंपनियों की आमदनी घटने की चिंता' ही नहीं हो सकती। दलाल स्ट्रीट के कई पुराने ब्रोकर्स का मानना है कि कई विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) नकदी और वायदा बाजार में अपना उल्लू सीधा करने के लिए दिलचस्पी ले रहे हैं। इन एफआईआई की वजह से नकदी बाजार में शेयरों की कीमतें घट जाती हैं और इसके बाद उन्हीं सस्ते शेयरों के फ्यूचर में लॉन्ग पोजीशन लेकर ये एफआईआई अच्छा मुनाफा हासिल कर लेते हैं। फिलहाल तो एफआईआई की यह रणनीति काफी कारगर रही है , क्योंकि बाजार लगातार नीचे की ओर जा रहा है और उसमें खरीद-फरोख्त बहुत कम है। ब्रोकर्स का कहना है कि मंदी के बाजार में ऊंचा मुनाफा हासिल करने के लिए बड़ी संख्या में पार्टिसिपेटरी नोट्स (पीएन) जारी करने वाले एफआईआई इस रास्ते को अपना रहे हैं। एक कारोबारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'इस जुगत से शेयरों की कीमतों में उतार-चढ़ाव हो रहा है और एफआईआई द्वारा विदेश में शेयरों को उधार लेने या देने (इसके बारे में सेबी जानकारी मांग सकता है) जैसे कार्यों की तुलना में इस पर नजर रख पाना भी कठिन है।' एफआईआई मुनाफा कैसे कमा रहे हैं, इसे एक उदाहरण से समझना होगा। मान लीजिए किसी एफआईआई के एक पीएन एकाउंट में विप्रो के 5 लाख शेयर हैं। इस साल की शुरुआत तक जब बाजार में तरलता थी तो विप्रो के इन 5 लाख शेयरों को आसानी से बिना घाटे के बेचा जा सकता था। आज हालत यह है कि बाजार में तरलता बिल्कुल नहीं है इसलिए विप्रो के इन शेयरों के लिए एक सत्र में खरीदार मिलना बहुत मुश्किल है। बहुत हुआ तो एफआईआई करीब 2.5 लाख शेयर बेच सकते हैं। मान लीजिए जब एफआईआई ने विप्रो के शेयरों की बिकवाली शुरू की तो उसकी औसत बिक्री कीमत 330 से 335 रुपए थी। लेकिन इतने बड़े पैमाने पर बिक्री से शेयरों की कीमत में 25 से 30 रुपए की कमी आ जाएगी। मान लिया कि विप्रो के शेयरों की कीमत घटकर 320 रुपए हो गई, जो इसके एक माह के वायदा बाजार कीमत से 1-2 रुपए ज्यादा या कम होगी। इसके बाद एफआईआई ने नकदी बाजार में विप्रो के जितने शेयर बेचे हैं उतने ही शेयरों की स्टॉक फ्यूचर में लॉन्ग पोजीशन ले लेता है। इसके बाद अगले दिन से एफआईआई नकदी बाजार में फिर से धीरे-धीरे शेयरों की खरीद कर अपनी पुरानी स्थिति में वापस जाना शुरू करता है। इस खरीद से विप्रो के शेयरों को मजबूती मिलनी शुरू होती है। आमतौर पर ऐसा होता है कि यदि किसी शेयर का वायदा रेट 102 रुपया हो और बाजार में उसकी कीमत 100 रुपए तो एफआईआई वायदा में बिकवाली कर और बाजार में खरीद कर हर शेयर पर 2 रुपया बना लेता है।

जानें सुरक्षित निवेश के रास्ते

वर्ष की शुरुआत तक सेंसेक्स और निफ्टी नए रिकॉर्ड बना रहे थे, लेकिन सब-प्राइम संकट की वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी और वैश्विक क्रेडिट संकट के चलते अब ये जमीन पर नजर आ रहे हैं। इक्विटी में निवेश करने वाले लोगों की स्थिति काफी खराब है और उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे इन हालात में क्या करें? दुनिया भर के निवेशकों के सामने इस समय यही सवाल खड़ा है कि आखिर वे अपना धन कहां लगाएं? आइए हम बताते हैं, निवेश के ऐसे पांच आदर्श विकल्प, जहां वे सुरक्षित निवेश कर सकते हैं।
कर लाभ वाले FD और FMP
' ओल्ड इज गोल्ड' की कहावत हम सबने सुनी है। वित्तीय अस्थिरता के मौजूदा दौर में निवेश का एक पुराना विकल्प सावधि जमा योजना (कर बचाने वाली) आपके लिए काफी अच्छा रहेगा। इनके साथ सबसे अच्छी बात यह है कि इनमें मुदास्फीति के खिलाफ आपके धन की सुरक्षा तो होती है, साथ ही आपको आयकर कानून की धारा 70सी के तहत कर लाभ भी मिलता है। इनमें जमा राशि क्लोज एंडेड होती है और सभी लाभ लेने के लिए कम से कम पांच वर्ष का निवेश करना होता है। इस समय कर लाभ वाली FD पर सालाना 11 फीसदी से अधिक के रिटर्न की पेशकश की जा रही है। वेल्थकेयर सिक्योरिटीज के निदेशक मुकेश गुप्ता का कहना है, 'अधिक रिटर्न हासिल करने के लिए हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की ऐसी सावधि जमा योजनाओं पर भी विचार किया जा सकता है, जिनकी रेटिंग ऊंची है। इनमें बैंक जमा से कुछ अधिक रिटर्न मिलता है। AAA रेटिंग वाली कंपनियों की जमा योजनाओं में ही धन लगाना चाहिए।' जानकारों का कहना है कि इस समय डाकघर की मासिक किस्त योजनाओं, NSC और अन्य योजनाओं में निवेश नहीं करना चाहिए क्योंकि इनमें ब्याज दरें अभी भी कम हैं। फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (FMP) पर भी विचार किया जा सकता है। जिन लोगों को FMP के बारे में जानकारी नहीं है, उनके लिए यह जानना जरूरी है कि बैंक जमा योजनाओं की तुलना में इनमें बेहतर कर लाभ मिलता है। एंजल ब्रोकिंग के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर, हितुंग्शु देबनाथ के अनुसार, 'इस समय FMP पर एक वर्ष की यील्ड 11 फीसदी के करीब है जबकि लिक्विड और लघु अवधि के फंडों की औसत एक वर्ष की यील्ड 9 फीसदी के आसपास है।' एएसके वेल्थ एडवाइजर्स के प्रमुख (वेल्थ मैनेजमेंट सॉल्यूशंस), मनीष कुमार का मानना है कि कम अवधि के FMP बेहतर हैं क्योंकि तीन महीने की FMP पर इस समय लगभग 12 फीसदी का रिटर्न मिल रहा है। उनका कहना है, 'जब ब्याज दरें गिरनी शुरू हों तो आप अधिक रिटर्न पाने के लिए इनकम फंडों का रुख कर सकते हैं।' बाजार की मौजूदा स्थिति में फाइनेंशियल प्लानर्स उन्हीं FMP में निवेश की सलाह दे रहे हैं जिनके पोर्टफोलियो में बैंक और ऊंची रेटिंग वाली कंपनियां शामिल हों। गुप्ता ने कहा, 'जहां तक संभव हो, आपको ऐसे FMP से बचना चाहिए जिसके पोर्टफोलियो में रियल एस्टेट और गैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां (NBFC) शामिल हों।'
सोना
सोने की चमक कभी भी फीकी नहीं पड़ सकती। जानकारों का मानना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मुदास्फीति हावी रहेगी और सोने में खरीदारी बनी रहने की उम्मीद है। इसके साथ ही मुदास्फीति के खिलाफ सोना एक अच्छी ढाल के तौर पर काम करता है और इसका इक्विटी बाजारों से न के बराबर संबंध है। कुमार ने बताया, 'सितंबर में जब सेंसेक्स में जहां मंदी जारी थी वहीं गोल्ड ईटीएफ लगभग 30-40 फीसदी ऊपर चल रहे थे।' गुप्ता का कहना है, 'गोल्ड में निवेश पर रिटर्न भले ही बहुत अधिक न हो, लेकिन अगर आर्थिक स्थितियां और खराब होती हैं तो यह एक बीमा के तौर पर काम करेगा।' जानकारों के अनुसार, अगर सोने को केवल निवेश के उद्देश्य के लिए खरीदा जा रहा है तो गोल्ड ईटीएफ एक अच्छा विकल्प है।
सरकारी प्रतिभूतियां
सूची में अगला नंबर सरकारी प्रतिभूतियों का है। इन्हें आसानी से भुनाया जा सकता है। ये प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों बाजारों में उपलब्ध हैं। इन्हें बैंकों या डीलरों से खरीदा जा सकता है। कुमार के अनुसार, 'इस समय सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश बेहतर है। ये जोखिम मुक्त रिटर्न तो देती ही हैं और घटती ब्याज दरों के दौर में भी इनमें निवेश फायदेमंद रहता है।'
म्यूचुअल फंड और SIP
कुछ महीने पहले तक निवेश के सूची में म्यूचुअल फंड और एसआईपी शीर्ष पर थे। बाजारों में इस वर्ष की शुरुआत से भले ही गिरावट का दौर जारी है लेकिन इनमें निवेश की अभी भी गुंजाइश बाकी है। देबनाथ का कहना है, 'तीन वर्ष से अधिक के लिए निवेश करने वाले लोग इक्विटी म्यूचुअल फंड या सीधे इक्विटी में धन लगा सकते हैं। मौजूदा स्थिति में इक्विटी म्यूचुअल फंड में एसआईपी एक अच्छा विकल्प है।' जानकारों का मानना है कि लंबी अवधि के निवेशकों के लिए लार्ज कैप शेयरों में निवेश भी एक सुरक्षित विकल्प है। कुमार ने कहा, 'बाजार जब संभलेंगे तो सबसे पहले लॉर्ज कैप शेयरों में ही तेजी देखी जाएगी।'
किराए पर संपत्ति से आमदनी
बाजार की स्थिति को देखते हुए संपत्ति को किराए पर देना भी निवेश का एक अच्छा जरिया है। रिहायशी संपत्तियों की तुलना में व्यावसायिक संपत्तियों का किराया अधिक होता है। इस समय व्यावसायिक संपत्तियों पर किराए की यील्ड 8-10 फीसदी के बीच है। गुप्ता के अनुसार, 'मॉल और कार्यालयों का लीज अनुबंध आमतौर पर तीन से नौ वर्ष के लिए होता है। किसी अच्छी जगह पर संपत्ति खरीदकर इसे किराए पर देना भी अच्छा रहेगा। '
सुरक्षित निवेश
कर बचाने वाली FD और FMP 10.5-11 फीसदी की रेंज में रिटर्न की पेशकश कर रही हैं। अगर केवल निवेश के उद्देश्य से सोना खरीदना हो तो गहने या किसी अन्य रूप में सोना खरीदने के बजाए ईटीएफ में धन लगाएं। सरकारी प्रतिभूतियों में सुरक्षा और तरलता का दोहरा लाभ मिलता है। शेयर बाजार में निवेश के लिए एसआईपी का रास्ता अपनाएं।

Thursday, October 23, 2008

The five-point insurance guide

Whether it is for protection, retirement savings or to bequeath some capital, a large section of the working population today owns an insurance policy. To make the best out of this investment, there are some factors that should be kept in mind while buying an life insurance policy.
Keep it simple
Several policies do not make sense because by splitting the cover across policies, a buyer loses ‘large sum assured discounts’. Also in the context of market-linked policies, multiple policies mean big money spent on charges. If you are only briefly exposed to certain risks you can go for specific covers. For example, an individual who has to travel extensively for work can consider buying a personal accident policy. Besides being cheap, the policy can be bought for short terms such as one year.
Nominations
Insurance is primarily aimed at meeting protection needs. The product must function when the insured is not around. This need is best served by the concept of nomination. Hence, the policyholder should ensure that the right person is registered with the insurance company as a nominee. All so often a policy is bought when an individual is single and single persons usually nominate either their parents or siblings. Post marriage, it becomes imperative to consider if there is a need to change the nomination.
Cover yourself
Large businesses often provide their employees with insurance covers. This is usually up to a maximum of three times the annual cost to company of the employee.Some companies also go as far as to offer an option to buy voluntary covers for their employees. In an age where job hopping is the norm, it becomes imperative that individuals don’t depend on their employers for protection needs. The insurance cover offered by the employer may not be enough to satisfy your individual insurance needs. The risk is higher when an individual quits a job and takes a break before joining another organisation. Health insurance is important in the golden years. Idea of buying it post retirement is good, for those who have health insurance from employer if and only if they remain in good health at their superannuation age.
Buying policies for children
In India, there are many who buy life insurance policies for their children. This is primarily done to provide for their education and marriage. However, many forget that the child does not earn for the family, and hence, it makes sense to buy insurance for the bread winner and keep the investments in his name. Parents can always liquidate their investments and provide for their children’s needs. A point to note is that the policies bought on the life of a child (minor) vests in the child’s name till he or she attains majority. In other words, the parents have no say in the proceeds of the policy.
Opt for loan insurance
If you are a borrower and the lender entity offers you an insurance cover on group insurance platform, consider it.Especially if you are 45 years and above because purchasing insurance at this stage in your life becomes tougher as multiple factors come into play, such as more number of medical tests and health guidelines.

Birla Sun Life Dream Plan - Beats Every Term Plan


The more I read about personal finance, the more convinced I become that the first plan one should buy is term plan. A term plan is a plan which is pure protection plan i.e. it gives monetary protection to your family members only when you are no more. If you survive the plan duration, you get nothing. Term plan are cheapest plans in the sense that you buy protection at very small premium. E.g. to buy a cover of Rs 30 Lakh, I needed to shell out Rs. 8500 per year. You can’t get such kind of protection at less than Rs. 10000 with any plan other than term plan. It becomes a "must have cover" especially if you are a young couple and you have family dependents. When I was bachelor, I used to think that when I am no more living, I don’t care about the financial health of the family after me. Once I became father, it got pretty clear to me that if something happens to me, there should be a decent sum that my family must get to keep going on with the life. Hence I started searching for the term plan that would be cheapest in terms of premium for a given amount of cover say 30 Lakh.SBI Life, Birla Sun Life, LIC are 3 players which offer the term plans for minimum premium. I almost decided to go with SBI Life when I got a call from Birla Sun Life and they asked for my 15 minutes. And they turned the table in their favour. Why? Because of their plan which is called "Birla Sun Life Dream Plan". This plan doesn’t fall under the "Term Plan" category but it gives you the same monetary protection at less than the rate other companies charge for their term plans. In addition, it gives back you the premiums at the end of the policy duration. Generally, I would recommend everyone that one must buy a decent amount (ideally the cover should be at least 10 times your annual income) insurance cover. Particularly, I would recommend this plan because it beats every other plan available in the market currently.

Wednesday, October 22, 2008

बीमा पॉलिसी लें तो ध्यान रखें

बीमा की जरूरत और जागरूकता बढ़ने के चलते इसके दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भी काफी बढ़ी है। सुरक्षा, रिटायरमेंट के लिए बचत या फिर पूंजी जमा करने के उद्देश्य के साथ देश की कामकाजी आबादी के ठीक-ठाक हिस्से के पास आज बीमा पॉलिसी मौजूद है। बेहतर बीमा पॉलिसी के लिए कुछ बातों का ख्याल रखना जरूरी है।
जरूरत के मुताबिक लें पॉलिसी
बहुत-सी बीमा पॉलिसी लेने में समझदारी नहीं है। इससे बीमा सुरक्षा कई पॉलिसी में बंट जाती है और पॉलिसी लेने वाले को नुकसान होता है। ज्यादा पॉलिसी लेने पर आपको अधिक शुल्क भी चुकाना पड़ता है। अगर आप कुछ खास जोखिम से कवर चाहते हैं तो उन्हीं के लिए पॉलिसी लेनी चाहिए। जैसे, अगर कोई व्यक्ति काम के सिलसिले में बहुत अधिक यात्रा करता है तो वह व्यक्तिगत दुर्घटना के लिए कवर ले सकता है। यह पॉलिसी एक साल की अवधि तक के लिए भी ली जा सकती है।
नॉमिनी का चुनाव
बीमा का पहला मकसद सुरक्षा होता है। परिवार के मुखिया की मौत होने पर पॉलिसी आश्रितों को सुरक्षा देती है। इसके लिए नॉमिनी का चुनाव अहम होता है। ऐसे में बीमा पॉलिसी लेते वक्त नॉमिनी तय करने से जुड़ी सभी औपचारिकताएं पूरी करनी चाहिए। इससे नॉमिनी को पॉलिसी की रकम मिलने में आसानी होती है। अक्सर व्यक्ति अविवाहित जीवन के दौरान खरीदी गई बीमा पॉलिसी में अपने माता-पिता या भाई-बहनों को नॉमिनी चुनता है। विवाह के बाद अगर नॉमिनी का नाम बदलना है तो इसमें देर नहीं करनी चाहिए।
खुद को सुरक्षित करें
बड़ी कंपनियां आमतौर पर अपने कर्मचारियों को बीमा सुरक्षा उपलब्ध कराती हैं। यह सुरक्षा कर्मचारी की वार्षिक कॉस्ट टू कंपनी की अधिकतम तीन गुना तक हो सकती है। कुछ कंपनियां कर्मचारियों के लिए बीमा पॉलिसी का विकल्प पेश करती हैं। आज के दौर में जब नौकरी बदलना आम हो गया है तो बीमा संबंधी सुरक्षा के लिए कंपनी पर पूरी तरह निर्भर करना ठीक नहीं है। ऐसा हो सकता है कि कंपनी आपको जो बीमा सुरक्षा दे रही है, वह आपकी व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त न हो। जोखिम उस समय और बढ़ जाता है जब कोई व्यक्ति एक नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी खोजता है। उम्र बढ़ने के साथ ही स्वास्थ्य बीमा (हेल्थ इंश्योरेंस) की जरूरत भी बढ़ जाती है। जिन लोगों को कंपनी से यह सुविधा मिलती है, वे चाहें तो रिटायरमेंट के बाद इसे खरीदने पर विचार कर सकते हैं। जिन व्यक्तियों को अपनी कंपनी से यह सुविधा हासिल नहीं है उन्हें अपने और परिवार के लिए इसे खरीदना बेहतर रहता है।
बच्चों के लिए बीमा पॉलिसी
भारत में बहुत से लोग अपने बच्चों के लिए बीमा पॉलिसी खरीदते हैं। आमतौर पर इसका उद्देश्य उनकी शिक्षा और विवाह पर आने वाले खर्च के लिए धन जुटाना होता है। अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि बच्चे परिवार के लिए आमदनी नहीं लाते। इसी वजह से परिवार के मुखिया को पहले अपने लिए बीमा लेने के बाद बच्चों के लिए पॉलिसी लेने के बारे में सोचना चाहिए। अभिभावक अपने निवेश को कभी भी भुनाकर बच्चों की जरूरतों के लिए धन जुटा सकते हैं।
कर्ज के साथ बीमा? न छोड़ें...
अगर आप कर्ज ले रहे हैं और कर्ज देने वाली संस्था आपको ग्रुप इंश्योरेंस के तहत बीमा सुरक्षा की पेशकश करती है तो इसे लेने में कोई हानि नहीं है। विशेष तौर पर अगर आप की आयु 45 वर्ष या इससे अधिक है तो आपके लिए यह और भी बेहतर है। जीवन के इस स्तर पर बीमा खरीदना मुश्किल हो जाता है क्योंकि आपको इसके लिए बहुत सी स्वास्थ्य जांच करवाने के साथ अधिक प्रीमियम भी देना पड़ता है।

Monday, October 20, 2008

निचले स्तर के पास शेयरों की खरीद का दिखाएं दम

शेयर बाजारों में बॉटम फिशिंग (अत्यंत निचले स्तरों पर शेयरों की खरीदारी) गहरे पानी में मछली के लिए जाल बिछाने जैसा है। मतलब साफ है। जब-जब जाल फेंका जाता है तो कितनी मछली पकड़ने की उम्मीद लगाई जानी चाहिए , इसका कोई अंदाजा नहीं होता। इसी तरह जब कभी आप शेयरों की दुनिया में वैल्यू इनवेस्टिंग करने निकलते हैं , आप आगे आने वाले नतीजों से पूरी तरह अनजान होते हैं। दोनों ही काम में बुद्धिमानी , अनुभव और अपने फैसलों को हकीकत के पैमाने पर जांचने की जरूरत होती है। अभी शेयर बाजारों में बवंडर मचा हुआ है और मार्केट लगातार गिर रहे हैं , ऐसे में भारतीय निवेशकों के सामने अहम सवाल खड़ा हो गया है कि क्या यह बॉटम फिशिंग का वक्त है ? क्या बाजार की मौजूदा स्थिति आकर्षक स्तरों पर बेहतरीन शेयर हासिल करने का अवसर दे रही है। बाजार में उठापटक के दौर में आपको खरीदारी की क्या रणनीति अपनानी चाहिए , जरा गौर कीजिए:
क्या बाजार छू चुका है सबसे निचला स्तर ?
अगर विश्लेषकों पर भरोसा किया जाए तो शेयर बाजार ने अभी गिरावट का सबसे निचला स्तर नहीं देखा है। आईसीआईसीआई डायरेक्ट के अनूप बागची के मुताबिक , काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि अब तक घोषित बेलआउट या राहत पैकेज आने वाले दिनों में क्या कमाल करते हैं। उन्होंने कहा , ' जिस गिरावट का सामना इन दिनों दुनिया के तमाम शेयर बाजार कर रहे हैं , वह अभूतपूर्व है। इस प्रक्रिया में बाजार में मोलभाव के बढ़िया अवसर भी पैदा हुए हैं। हालांकि अब भी पूरे विश्वास के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि भारतीय बाजारों ने बॉटम छू लिया है। ' बाजार के मंदी में फंसे होने के 2 पहलू होते हैं: पहला कीमतों में गिरावट और दूसरा मंदी की मियाद। विश्लेषकों का मानना है कि पहले मामले में भारतीय बाजार लगभग वहां पहुंच चुके हैं जबकि ज्यादा दिक्कतें दूसरे पहलू से होंगी। बागची ने कहा , ' यह वह वक्त है जब बाजार आपके संयम और दृढ़ता का इम्तिहान लेगा। छोटी अवधि में जहां वैल्यूएशन कम होता दिख रहा है , वहीं यह साफ नहीं हे कि बाजार के चढ़ने में कितना वक्त लग सकता है। '

क्या होनी चाहिए आपकी रणनीति ?
कोटक सिक्योरिटीज के प्राइवेट क्लाइंट गुप के वाइस प्रेजिडेंट दीपन शाह के मुताबिक , बाजार के बॉटम छूने का इंतजार करने के बजाए चुनिंदा सेक्टरों में मध्यम से लंबी मियाद के नजरिए के साथ धीरे-धीरे शेयर खरीदने के लिए यह सही वक्त है। उन्होंने कहा , ' इससे आपको आगे आने वाली गिरावट का फायदा उठाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा यह आपको बढ़ते बाजार में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने या रणनीति के हिसाब से मुनाफा वसूली करने में मदद दे सकता है। बाजार में घबराहट के दौर में खरीदारी करने और घबराकर खरीदारी न करने की सलाह हमेशा दी जाती है। ' हालांकि बागची का मानना है कि निवेशकों को बेहतरीन और दिग्गज कंपनियों के शेयरों में धीरे-धीरे पैसा डालना चाहिए। उन्होंने कहा , ' इस तरह इक्विटी/इक्विटी म्युचूअल फंड में 30-40 फीसदी आवंटित किया जा सकता है , जबकि 20-25 फीसदी नकदी के तौर पर हाथ में रखना चाहिए। शेष रकम फिक्स्ड डिपॉजिट और सर्राफा में लगाई जा सकती है। ' उन निवेशकों को सतर्कता बरतने की सलाह दी जा रही है , जो बाजार की चाल का अंदाजा लगाने की भूल करते हैं। आपको निचले स्तरों पर जाने से पहले शेयरों से बेचकर कुछ हद तक फायदा जरूर हो सकता है लेकिन बाजार की वापसी का लाभ लेने से आप चूक जाएंगे। अतीत में यह कई बार साबित हो चुका है कि संपत्ति आवंटन , डायवर्सिफिकेशन को नियमित रूप से संतुलित कर निवेशक मंदी के दौर में नुकसान खत्म या कम कर सकते हैं। इसके अलावा आपको शेयर की वैल्यूएशन के साथ इस पर भी गौर करना चाहिए कि कंपनी बुनियादी रूप से कितनी मजबूत है।
किन सेक्टरों पर खेला जाए दांव ?
विश्लेषकों का मानना है कि बाजार में हद से ज्यादा बिकवाली हो चुकी है , इसलिए अगर तकनीकी तेजी आती है तो पिटाई खाने वाले सभी शेयर छोटी अवधि में जल्द मुनाफा देंगे। बागची ने कहा , ' हालांकि यह सवाल काफी अहमियत रखता है कि यह तकनीकी तेजी कब तक कायम रहेगी। काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कंपनियों के वित्तीय नतीजों की घोषणा किस दिशा में जाती है क्योंकि अनुमानों से जरा भी इधर-उधर होने से शेयरों में भारी उठापटक देखने को मिल सकती है। ' मध्यम से लंबी अवधि के लिए जानकार उन सेक्टरों में निवेश की सलाह देते हैं जो घरेलू बाजारों पर ज्यादा गौर करते हैं और हाल में काफी मार खा चुके हैं। शाह ने कहा , ' महंगाई दर की तेज रफ्तार और ब्याज दरों में इजाफा चूकता दिख रहा है , ऐसे में निवेशक बैंकिंग , कैपिटल गुड्स , कंस्ट्रक्शन , मीडिया और लॉजिस्टिक जैसे सेक्टरों के चुनिंदा शेयरों पर गौर कर सकते हैं। '

Friday, October 17, 2008

निवेश से कीजिए सुकून का इंतजाम

प्रोफेसर मिलेवस्की और डॉ. चेन ने पोर्टफोलियो बनाते वक्त मानव पूंजी और वित्तीय पूंजी , दोनों पर गौर करने की वकालत की थी। दुर्भाग्य से आम तौर पर निवेशक और खासा अनुभव रखने वाले उनके पोर्टफोलियो मैनेजर भी इस पहलू को नजरअंदाज करते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि उनके क्लाइंट जरूरत से ज्यादा जोखिम उठा बैठते हैं और उन्हें अंत में इसका नतीजा भी भुगतना पड़ता है। निवेशक होने के नाते आपके पास 2 तरह की पूंजी होती है- मानव पूंजी और वित्तीय पूंजी। मानव पूंजी आप खुद हैं। क्योंकि आप काम करते हैं और अपने लिए आमदनी जुटाते हैं। एक कारोबारी अपने कौशल और कड़ी मेहनत से आमदनी कमाता है। एक वेतनभोगी एक महीने काम करने के बदले में तनख्वाह पाता है और एक प्रोफेशनल के साथ भी ऐसा ही है। मुनाफा , तनख्वाह या प्रोफेशनल आमदनी इसलिए आती है क्योंकि हम सभी मानव पूंजी हैं या आमदनी जुटाने वाली संपत्तियों की भूमिका में हैं। आपकी दूसरी पूंजी है शेयर , फिक्स्ड डिपॉजिट , म्युचूअल फंड , डाक घर बचत योजनाएं , रियल एस्टेट या दूसरी संपत्तियों में किया गया निवेश। ये संपत्तियां आपके लिए मुनाफा या फायदा कमाने का काम करती हैं। यह वैल्यू में बढ़त या ब्याज , डिविडेंड और किराए के तौर पर रिटर्न देने का काम करती हैं। ऐसे मामले में धन आपके लिए काम करता है। चाहे आप काम करते हों या न करते हों , लेकिन इस पूंजी पर रिटर्न मिलता रहता है। यहां तक कि निवेशक की मृत्यु होने के बावजूद भी उसका निवेश मुनाफा कमाना जारी रखता है। जब आप अपना करियर शुरू करते हैं और आपके पास विरासत में मिली कोई जायदाद नहीं होती तो उस स्थिति में आप केवल मानव पूंजी होते हैं। एक चतुर निवेशक वह होता है जो एक वक्त के बाद अपने आप को मानव पूंजी से वित्तीय या वास्तविक पूंजी में तब्दील करने में कामयाब रहता है। जब आप मानव पूंजी से आमदनी जुटाते हैं तो आप पैसे के लिए काम करते हैं। जब आप मानव पूंजी को वित्तीय पूंजी में बदलते हैं तो पैसा आपके लिए काम करना शुरू कर देता है। भले ही यह कहानी सुनने में आसान लगे लेकिन कई निवेशक मानव पूंजी को वित्तीय पूंजी में बदलने में काफी मुश्किलों का सामना करते हैं। इसके कई कारण हैं। पहला , जब वे अपनी पूंजी कारोबार में लगाते हैं तो समझते हैं कि उस पर उनका पूरा नियंत्रण है। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है। जब अर्थव्यवस्था में मंदी आती है तो कारोबार पर असर पड़ना तय है। इसलिए यह बात पूरी तरह सच नहीं है कि आप अपने कारोबार पर पूरा नियंत्रण रखते हैं।
वेतनभोगी लोगों के बीच अपनी मेहनत की कमाई को अपनी ही कंपनी या संस्थान में लगाने का चलन देखा गया है। कई वेतनभोगी लोग उसी कंपनी या उद्योग के शेयरों में निवेश करते हैं जहां वे काम करते हैं। टेक्नोलॉजी बूम के दौरान सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनी में काम करने वाले ज्यादातर लोगों ने आईटी कंपनियों के शेयरों में निवेश करने का फैसला किया था। कई के पास ईसॉप (स्टॉक ऑप्शन) होता है जिन्हें भुनाया भी जा सकता है। लेकिन कर्मचारी इस विचार के साथ उन्हें रखे रहते हैं कि वे उस संस्थान में काम कर रहे हैं , इसलिए उसके बारे में काफी कुछ जानते हैं। कारोबारी और प्रोफेशनल जो दूसरी सबसे बड़ी गलतफहमी रखते हैं वह यह कि ' वे अपने कारोबार का काम से अधिकतम रिटर्न जुटा रहे हैं। ' हो सकता है कि वे किसी दूसरे निवेश की तुलना में ज्यादा मुनाफा बना रहे हों लेकिन यह भी सच है कि वे काफी जोखिम वाले खेल में अटके हैं। इसमें जोखिम इसलिए ज्यादा होता है कि क्योंकि उनकी मानव पूंजी और वित्तीय पूंजी एक ही जगह होती है। अगर कल उनके कारोबार के साथ कोई हादसा होता है तो वे सब खो देंगे। दूसरा , कारोबारियों और प्रोफेशनल को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए - अगर आप बीमार या रिटायर होते हैं तो क्या आपका परिवार उसी तरह व्यापार को आगे बढ़ाने में कामयाब रहेगा जैसा आप खुद कर रहे थे ? क्या आपका परिवार बकाया राशि जुटाने में सफल होगा ? क्या आपका परिवार ठीक आपकी तरह क्लाइंट को संभाल सकेगा ? फर्ज कीजिए कि परिवार आपकी तरह कारोबार को सफलतापूर्वक चलाने की स्थिति में नहीं है तो क्या आपके पारिवारिक सदस्य कम से कम सही बाजार भाव पर लिक्विडेटिंग की प्रक्रिया ठीक तरह से पूरी कर सकते हैं ? कारोबार में पैसा लगाइए और उसे बढ़ाने की कोशिश कीजिए। लेकिन ऐसा इस छलावे के साथ मत कीजिए कि यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है और यह आपको अधिकतम मुनाफा दे रहा है। नियमित अंतराल पर वित्तीय पूंजी एकत्र कीजिए जो आपके लिए काम करे और आपको मानसिक सुकून दे।
- गौरव मशरूवाला

Thursday, October 16, 2008

How To Find Fundamental Good Stocks?

Find Fundamental Good Stocks
Fundamental analysis is the process of looking at a company’s basic or fundamental financial level. This type of analysis examines important terms of a companies to determine its financial health and gives you an idea of the value its stock. Many investors use fundamental analysis alone or in combination with other technical tools to evaluate stocks for investment purposes. The idea behind this is to determine the current worth and, more importantly, how the market values the stock in coming future.
The following points are based on important tools of fundamental analysis and what they tell you. Even if you don’t plan to do in-depth fundamental analysis yourself, it will help you to follow stocks more closely which will give you good returns in future/long term investments.
Earnings
It’s all about earnings. When you come to the bottom line, that’s what investors want to know. How much money are the companies making and how much is it going to make in the future.
Importance of Earnings -
Earnings are profits. Quarterly or yearly companies increasing earnings generally makes its stocks price to move up and in some cases a pay out of regular dividend. This is Bullish sign and indicates that the companies in growth phase.When the companies declare low earnings then the market may see bearishness in the stock which may affect the stock price in negative manner.

Every quarter, companies report its earnings. There are 4 quarters. Quarter 1 - (April to June and earnings will be declared in July)Quarter 2 - (July to Sept and earnings will be declared in Oct)Quarter 3 - (Oct to Dec and earnings will be declared in Jan)Quarter 4/final - Also called as financial year end - (Jan to Mar and earnings will be declared in April)Now by this time you may be come to know how earnings are important for a stock price to move up or down. But depending only on earnings one should not make investment or trading decision. To make decision more risk free you should look into more tools as mentioned below so that your investment decision becomes more solid and you should get excellent returns in future. Conclusion - Keep a close watch on quarterly earnings and trade accordingly.
Make use of following tools to find excellent growth stocks
Following are the most popular and important tools to find excellent growth stocks which focuses on earning, growth, and value of the company’s. To make you understand more easily we have explained in very simple steps. Following are 10 simple steps.
1) Earning per share - EPS
2) Price to Earnings Ratio - PE
3) Projected Earning Growth - PEG
4) Price to Sales Ratio - PS
5) Price to Book Ratio - PB
6) Dividend Yield
7) Return on Equity
8) Debit ratio
9) Company’s announcements
10) Profit after Tax - PAT
(Note - No need for you to do any calculation or to calculate any ratios, you will get all ratios easily available.- Note - Any single tool should not be used to make your investment or trading decision nor will they provide you any buy or sell recommendation. All tools should be used to find growth and value stocks. After making use of above all tools you will get excellent stocks which will give you excellent returns in mid term to long term. You will find all these ratios in any financial website.
Understanding Earning Per Share -EPS
EPS plays major role in investment decision. EPS is calculated by taking the net earnings of the companies and dividing it by the outstanding shares. (Nowadays you will get this ready made, no need for you to do calculation.)That is EPS = Net Earnings / Outstanding Shares For example - If Company A had earnings of RS 1000 crores and 100 shares outstanding, then its EPS becomes 10 (RS 1000 / 100 = 10). Second example - If Company B had earnings of RS 1000 crores and 500 shares outstanding, then its EPS becomes 2 (RS 1000 / 500 = 50). So which companies stock do you want to buy?It’s not advisable to make your investment decisions based on only single tool analysis.Conclusion - You should look for high EPS stock/company. The higher the better.Note - You should compare the EPS from one company to another, which are in the same industry/sector and not from one company from Auto sector and another company from IT sector. But it doesn’t tell you what the market thinks of it. For that information, we need to look at some more ratios as following.Before we move on, you should note that there are three types of EPS numbers: · Trailing EPS - Last year’s EPS which is considered as actual and for ongoing current year.· Current EPS - Which is still under projections and going to come on financial year end· Forward EPS - Which is again under projections and going to come on next financial year endEPS is the base for calculating PE ratio.
Understanding Price to Earnings Ratio - PE ratio
PE ratio is again one of the most important ratio on which most of the traders and investors keep watch. Important - The PE ratio tells you whether the stock’s price is high or low relative to its earnings. The high P/E suggests that investors are expecting higher earnings growth in the future compared to companies with a lower P/E. But, the P/E ratio doesn't tell us the whole story of the company. It's more useful to compare the P/E ratios of one company to other companies in the same sector/industry and not in other industry. The PE ratio is calculated by taking the share price and dividing it by the companies EPS.
That is PE = Stock Price / EPS
For exampleA company with a share price of RS 40 and an EPS of 8 would have a PE ratio of 5 (RS 40 / 8 = 5). Importance - The PE ratio gives you an idea of what the market is willing to pay for the companies earning. The higher the P/E the more the market is willing to pay for the companies earning. Some investors say that a high P/E ratio means the stock is over priced on the other side it also indicates the market has high hopes for such company’s future growth and due to which market is ready to pay high price. On the other side, a low P/E of high growth stocks may indicate that the market has ignored these stocks which are also known as value stocks. Many investors try finding low P/E ratios stocks of high value growth companies and make investments in such stocks which may prove real diamonds in future.
Which P/E ratio to choose?
If you believe that the companies has good long term prospects and good growth then one should not hesitate to invest in high P/E ratio stocks and if you are looking for value stocks which prove real diamonds in future then you can go with low PE stocks provided that companies has good growth and expansions plans.At all if you would like to do PE ratio comparison then it has to be done in same sectors/industry stocks and not like one stock from banking sector and other stock from pharmacy sector.So now you would have come to know how to choose stocks based on PE ratio.
Understanding the Projected Earning Growth - PEG
Because the market is usually more concerned about the future than the present, it is always looking for companies projected plans, financial ratios, and other future announcements. The use of PEG ratio will help you look at future earnings growth of the company.PEG is a widely used indicator of a stock's potential value.Similar to the P/E ratio, a lower PEG means that the stock is more undervalued.You calculate the PEG by taking the P/E and dividing it by the projected growth in earnings.
That is PEG = P/E / (projected growth in earnings)
For example, a stock with a P/E of 30 and projected earning growth for next year is 15% then that stock would have a PEG of 2 (30 / 15 = 2). In above example what does the “2” mean? Lower the PEG ratio the less you pay for each unit in future earning growth. So the conclusion is you can invest in high P/E stocks but the projected earning growth should be high so that companies can provide good returns. Looking at the opposite situation; a low P/E stock with low or no projected earnings growth is not going to give you returns in future. Because its PE is low means investors are not ready to pay high and its PEG is also low because companies do not have any good future growth or expansion plans.So investment in such stocks could prove less or no returns.
A few important things to remember about PEG: ·
It is about year-to-year earnings growth ·
It relies on projections, which may not always be accurate
Understanding Price to Sales Ratio
is it that companies having no earnings are bad investments? Not necessarily, because such companies may be new and trying to grow and expand but you should approach such companies with precaution.The Price to Sales (P/S) ratio looks at the current stock price relative to the total sales per share. You can calculate the P/S by dividing the market cap of the company by the total revenues of the company. You can also calculate the P/S by dividing the current stock price by the sales per share.
That is P/S = Market Cap / Revenues
or
P/S = Stock Price / Sales Price per Share
Conclusion - To find under valued stocks you can look for low P/S ratios.The lower the P/S ratio the better is the value of the company.
Understanding Price to Book Ratio - PB ratio
Basically PB ratio is mostly utilized by value investors to find real wealth when they are at their lower prices. So investing in stocks having low PB ratio is to identify potential candidates for future growth.A lower P/B ratio could mean that the stock is undervaluedBook value - It is the total value of the company’s assets that share holders would receive if a company closed down.Like the PE, the lower the PB, the better the value of the stock for future growth. Some of the investors become quite wealthy by holding stocks for the long term of such companies whose growth is based on their businesses instead of market and one day when every one notices this stock the value investor’s pockets are full of profit.
PB ratio is calculated as
PB ratio = Share Price / Book Value Per Share.
Understanding Dividend Yield
If you are a value investor or looking for dividend income then you should look for Dividend Yield figure of the stock.This measurement tells you what percentage return a companies pays out to shareholders in the form of dividends. Older, well-established companies tend to payout a higher percentage then do younger companies and their dividend history can be more consistent. You calculate the Dividend Yield by taking the annual dividend per share and divide by the stock’s price.
That is
Dividend Yield = annual dividend per share / stock's price per share
For example, if a company’s annual dividend is RS 1.50 and the stock trades at RS 25, the Dividend Yield is 6%. (RS 1.50 / RS 25 = 0.06).
Understanding Return on Equity - ROE
Return on Equity (ROE) is one measure of how efficiently a company uses its assets to produce earnings. The healthy companies may produce an ROE in the 13% to 15% range. To get better view Compare Company’s in the same industry/sector. ROE - It is calculated by dividing Net Income by Book Value.Note - While ROE is a useful measure, it does have some flaws that can give you a false picture, so never rely on it alone. For example, if a company carries a large debt and raises funds through borrowing rather than issuing stock it will reduce its book value. A lower book value means you’re dividing by a smaller number so the ROE is artificially higher. There are other situations such as stock buy backs that reduce book value, which will produce a higher ROE without improving profits. It may also be more meaningful to look at the ROE over a period of the past five years, rather than one year.
Debit Ratio
This is one the very important ratio as this tells you how much company relies on debit to finance its assets.The higher the ratio the more risk for company to manage. So look for company’s having low debit ratio. Generally look for ratio less then 1.If company has fewer debits then company can make more profit instead paying for its debits like interests rates, loans etc.
Company’s announcements
Always keep a close watch on stocks you are interested to buy or you already bought for any mergers, take over’s, acquisitions, stake sells, new product launch etc. This would make the major impact on company. It’s very important point.
Final and last - very important
Check out company’s PAT (profit after tax) of every quarterly if you are short term to mid term trader and if you are long term investor then check out its yearly PAT. It should be in consistent growth.

निवेश का फैसला लेने में रिसर्च की मदद लें

फायदेमंद शेयरों को चुनना और नुकसान देने वाले शेयरों से हर कोई बचना चाहता है , लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई भी ऐसा जादुई फॉर्मूला नहीं मिल पाया है , जो निवेश का सटीक निर्णय करने में मदद दे सके। आप रिसर्च का सहारा लेकर इस बारे में उचित फैसला ले सकते हैं।
कैसे शुरुआत करें
फंडामेंटल एनालिसिस में किसी कंपनी के पिछले प्रदर्शन के आंकड़ों के आधार पर भविष्य के प्रदर्शन का अनुमान लगाया जाता है। इसमें कंपनी से जुड़ी जानकारियों जैसे डिविडेंड यील्ड , आमदनी , बुक टू मार्केट रेश्यो , प्राइस अर्निंग रेश्यो , वर्किंग कैपिटल के साथ ही अर्थव्यवस्था के बड़े संकेतों जैसे आयात और निर्यात , मुद्रा सप्लाई , ब्याज दरें , महंगाई दर , विदेशी विनिमय दरें की भी समीक्षा की जाती है। टॉरस असेट मैनेजमेंट के फंड मैनेजर (इक्विटी) नितीश ओझा के अनुसार , फंडामेंटल एनालिसिस अच्छे शेयरों को चुनने और खराब शेयरों से बचने की कला है। उनका कहना है , ' इसमें यह जानने की कोशिश की जाती है कि एक लिस्टेड कंपनी कम और लंबी अवधि में कैसा प्रदर्शन करेगी। यह एक विज्ञान की तरह है। ' शेयर बाजार में निवेश के लिए एक और रिसर्च टूल का इस्तेमाल किया जाता है , जिसे तकनीकी समीक्षा या टेक्निकल एनालिसिस कहा जाता है। इसमें भविष्य में शेयर के दामों का अनुमान लगाने के लिए ऐतिहासिक दामों की मैथमेटिकल टाइम सीरिज और अन्य सांख्यिकीय मॉडलों का इस्तेमाल किया जाता है। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रमुख (रिसर्च) , एलेक्स मैथ्यू ने बताया , ' यह इस तर्क पर आधारित है कि इतिहास अपने को दोहराता है और दाम और मात्रा के बीच संबंध बाजार की चाल को बताता है। दाम की भविष्यवाणी मौजूदा कीमत के चलनों और तरीकों के साथ की जाती है। टेक्निकल एनालिसिस में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला टूल मूविंग एवरेंज कॉम्बिनेशन है। ' टेक्निकल एनालिसिस के अन्य टूल में स्टोकास्टिक , मूविंग एवरेज कन्वर्जेंस/डायवरजेंस (एमएसीडी) और रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (आरएसआई) शामिल हैं।
कौन सा टूल बेहतर
बहुत से लोग निवेश का फैसला करने के लिए फंडामेंटल एनालिसिस को बेहतर मानते हैं जबकि कुछ का भरोसा टेक्निकल एनालिसिस पर भी कायम है। ओझा का कहना है , ' मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि लंबी अवधि में दाम हमेशा फंडामेंटल वैल्यू पर लौटते हैं। हालांकि छोटी अवधि में इनमें काफी उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। ' मैथ्यू का मानना है कि फंडामेंटल और टेक्निकल का मिश्रण ही एक निवेशक को सही जवाब दे सकता है। उदाहरण के लिए अगर कोई निवेशक इक्विटी में धन लगाना चाहता है तो उसे बाजार की चाल और महंगाई दर , सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर , मुद्रा की चाल के साथ ही ग्लोबल बाजारों के प्रदर्शन को भी समझना चाहिए। इसके अलावा कंपनियों और उनके सेक्टर की अच्छी जानकारी होनी भी जरूरी है। मैथ्यू के अनुसार , ' इसके लिए रेश्यो एनालिसिस की मदद ली जा सकती है। फंडामेंटल एनालिसिस के जरिए शेयर और सेक्टर की जानकारी जुटाने के बाद टेक्निकल एनालिसिस की भी मदद ली जा सकती है। '
डर को दूर करें
जब बाजार में मंदी के दौर के साथ भारी अस्थिरता हो तो जानकारों की सलाह में निवेशकों को निफ्टी के वोलैटिलिटी इंडेक्स और सीबीओई वोलैटिलिटी इंडेक्स पर नजर रखनी चाहिए। इससे आपको बाजार की साफ तस्वीर का पता चल सकेगा। ऐसा कहा जाता है कि अगर वोलैटिलिटी 30 फीसदी से अधिक हो तो बाजार में शीघ्र ही बदलाव आ सकता है , अगर यह 40 फीसदी से पार जाए तो बाजार में अनिश्चितता बहुत अधिक होती है।
वोलैटिलिटी 50 फीसदी से अधिक होने पर बाजार को खतरनाक कहा जाता है। अगर यह २० फीसदी से कम है तो इसका मतलब है कि बाजार खरीदारी के लिए अच्छा है। अगर आप ऊपर बताई गई प्रक्रियाओं का अनुशासन के साथ पालन करेंगे तो आपके लिए कंपनी के भविष्य के प्रदर्शन और उसके अनुसार उसके शेयर के दाम की चाल जानने में आसानी होगी। इसके आधार पर आप निवेश का सही फैसला कर सकते हैं।
निवेश का फंडा
3, 9 और 18 दिन के सिंपल मूविंग एवरेज का मिश्रण लघु अवधि के चलनों की भविष्यवाणी करता है जबकि 200, 100, 50 और 10 दिन का मूविंग एवरेज लंबी अवधि के चलनों का संकेत देता है। जब लघु अवधि के मूविंग एवरेज की रेखा लंबी अवधि के मूविंग एवरेज की रेखा के निचले हिस्से में जाकर टूटती है तो यह खरीदारी का अच्छा समय कहा जाता है। जब लघु अवधि की मूविंग एवरेज रेखा लंबी अवधि की मूविंग एवरेज रेखा के ऊपरी हिस्से मंे जाकर टूटती है तो यह बिकवाली का संकेत होता है। सक्षम बाजार के सिद्धांत के अनुसार एक सक्षम बाजार में नई जानकारी के आने पर इसका आकलन किया जाता है और इस जानकारी या समाचार के अनुसार दामों और स्तरों में बदलाव आता है।

Wednesday, October 15, 2008

What is bank rate, CRR, SLR, CAR, PLR, SDR ?

Indian banks are required to hold a certain proportion of their deposits as cash. In reality they don’t hold these as cash with themselves, but with Reserve Bank of India (RBI), which is as good as holding cash. This ratio (what part of the total deposits is to be held as cash) is stipulated by the RBI and is known as the CRR, the cash reserve ratio. When a bank’s deposits increase by Rs100, and if the cash reserve ratio is 10, banks will hold Rs10 with the RBI and lend Rs 90. The higher this ratio, the lower is the amount that banks can lend out. This makes the CRR an instrument in the hands of a central bank through which it can control the amount by which banks lend. The RBI’s medium term policy is to take the CRR rate down to 3 per centThe hike in CRR from 4.5 to 5 per cent will increase the amount that banks have to hold with RBI. It will therefore reduce the amount that they can lend out. The move is expected to shift Rs 8,000 crore of lendable resources to RBI. In the past few months the money that banks have available for giving out as credit is greater than the amount they have been lending out. This has led to “an overhang of liquidity” in the system. The objective of the CRR hike is to “mop up” some of the “excess liquidity” in the systemThe hike in CRR is not likely to lead to an immediate increase in interest rates. There is excess liquidity in the system even after a higher amount is deposited with RBI as reserves. Unless the demand for credit picks up to the extent that the money is all lent out, banks will not have an incentive to raise interest rates. The inflation rate may continue to be high, the economy may also continue to witness growth which will keep the demand for credit high, and international trends are for rates to move up. This means that sooner or later interest rates will go up. The first rates to get impacted are yields on government bonds. We have already seen this happening. If the inflation rate keeps rising, RBI may raise the ‘repo rate’, the short term rate at which banks park excess funds with the RBI. This makes it less attractive for banks to lend. Further, RBI may raise the bank rate, the rate at which it lends to banks. At this point you may expect interest rates on home loans and fixed deposits to go up as well. Over a year rates could go up by as much as 3 per centI dont know about the SLR CAR PLR AND SDRBut I expect SLR is for a liquid ratio.
Liquid ratio = Liquid Asset/Current Liablities
Liquid Asset = Current Asset-Stock
Current Asset Ratio(CAR)
Current asset/ Current Liablities
Current asset is the asset which is easily liquified with in a span of maximum 1 year.Current liablities is the liablity which has to be payed in with in 1 year.
SLR: SLR is statutory liquid ratio, this is the % of deposits that need to be maintained as liquid thru' investing in RBI bonds. SLR includes CRR, for example CRR is 7% and SLR is 10%, the 3% should be can non-cash investments.
SDR: The SDR is an international reserve asset, created by the IMF in 1969 to supplement the existing official reserves of member countries
PLR: Prime lending rate is the rate that the bank will lend to its best customers. Floating rate loans will be quoted as some thing like PLR+_ 1%, when RBI changes SLR, CRR etc banks will announce chnage in PLR and other loans interest will be changed accordingly
CAR: Capital Adequacy ratio is the amount of capital that shareholders should put in for each 100 deposits with bank. for ex if CAR is 12.5% and a bank has a deposit base of 100, then Bank's share capital+reserves and surplus should be atleasts 12.5

Monday, October 13, 2008

विदेशी निवेशक तय करेंगे भारतीय बाजारों की दिशा

भारतीय शेयर बाजारों अब कोई भी न तकनीकी स्तरों की बात कर रहा है और न ही वैल्यूएशंस की। रिलायंस, एलएंडटी, भेल और इंफोसिस जैसी भारतीय अर्थव्यवस्था की स्तंभ मानी जाने वाली कंपनियों में जिस तरह की बिकवाली दिखी है, उसके बाद फंडामेंट एनालिस्ट भी न मूल्य आय अनुपात (पीई) का गणित लगाने की स्थिति में है और न ही बुक वैल्यू का। दिल्ली की मल्टीपल-एक्स कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ कवि कुमार का कहना है कि बाजार में घनघोर निराशा है और जब सरकारों के ही दिवालिया होने की कहानियां होने लगी हों, तो किसी फंडामेंटल की चर्चा बेकार हो जाती है। उन्होंने कहा, 'वैल्यूएशंस की बात ही बेईमानी है। मैं तब तक निवेश नहीं करूंगा जब तक बाजार से सारा दर्द नहीं निकल जाए और ऐसा होने में अभी कम से कम एक साल लगेंगे।' कुल मिला कर बाजार की नब्ज अब भी विदेशी बाजारों और विदेशी संस्थागत निवेशकों के हाथ में ही है। मुंबई के केआर चोकसी सिक्योरिटीज के एमडी देवेन चोकसी ने दिग्गज शेयरों में आ रहे भारी गिरावट के लिए एफआईआई की ओर से किए जा रहे मंदी के सौदों (शॉर्ट) को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि बाजार नियामक सेबी को इस बारे जल्दी ही कोई कदम उठाना चाहिए। बाजार से जो आंकड़े मिल रहे हैं, उससे साफ है कि दिग्गज शेयरों में मंदी के सौदे हो रहे हैं। इस संबंध में कुछ आंकड़े आंख खोलने वाले हो सकते हैं। 7 अक्टूबर के आंकड़ों के मुताबिक रिलायंस कैपिटल में केवल 7.4 फीसदी सौदे डिलिवरी में हुए, जबकि आरएनआरएल में केवल 9 फीसदी सौदे ही डिलिवरी में हुए। ऐडलैब्स, यूनिटेक, डीएलएफ, आईसीआईसीआई बैंक और एसबीआई में 20 फीसदी से भी कम सौदे डिलिवरी में हुए हैं, जबकि डिलिवरी में सबसे ज्यादा सौदे वाले एलएंडटी और टाटा मोटर्स के आंकड़े भी 40 फीसदी के ही करीब हैं। जब तक इस स्थिति पर नियामक अंकुश नहीं लगाएगा, एफआईआई इसी तरह बाजार को चलाते रहेंगे। कवि कुमार के मुताबिक अगले हफ्ते का बाजार भी पूरी तरह विदेशी बाजारों पर निर्भर है। अमेरिकी बाजार में मॉर्गन स्टेनली 25 फीसदी तक गिरा है। बातें हो रही हैं कि अब मॉर्गन स्टेनली की बारी है। अगर ऐसा हुआ तो अगला हफ्ता फिर भारी गिरावट वाला हो सकता है। उन्होंने कहा, 'मैं भले ही थोड़ा महंगा खरीदना चाहूंगा, लेकिन अभी केवल बिकवाली ही की जा सकती है। इतना जरूर है कि जब रिकवरी आएगी तो सबसे पहले भारत सुधरेगा। कमोडिटी के भाव में काफी नरमी आई है। लोहा, निकल अपने उच्चतम स्तर से एक-तिहाई तक गिर चुके हैं। तो यह कोई नहीं समझ रहा कि जो बिल्डर घर बना रहा है उसकी लागत भी तो ३० फीसदी कम हो गई है।' शुक्रवार को की गई सीआरआर में 100 बेसिस प्वाइंट की कटौती पर कुमार ने मायूसी जताते हुए कहा कि इसका कोई असर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका के 700 अरब डॉलर और ब्रिटेन के 350 अरब डॉलर से कुछ नहीं हो रहा तो आरबीआई के 12 अरब डॉलर दे देने से क्या हो जाएगा। लेकिन चोकसी ने इसे एक अच्छा मगर देर से उठाया गया कदम बताया, 'सीआरआर का फैसला बहुत अच्छा है। 60,000 करोड़ रुपए बाजार में आएंगे तो इसका असर जरूर होगा, लेकिन यह कदम प्रतिक्रिया में उठाया गया है। दरअसल रेगुलेटरों को चाहिए कि वे पहले ही संकट भांप कर कदम उठाएं। इस तरह की कटौती सितंबर में ही की गई होती तो और ज्यादा अच्छा होता।'

तूफान के दौर में भी SIP फायदेमंद

शेयर बाजारों की मौजूदा स्थिति में रोजाना शेयरों के दाम गिरावट के नए रेकॉर्ड बना रहे हैं और ऐसे में एक एनालिस्ट का काम काफी मुश्किल हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि बाजार को फिर से तेजी की राह पकड़ने के लिए सकारात्मक खबरों की जरूरत है लेकिन अभी कहीं से भी ऐसी कोई खबर आती नहीं दिख रही। निवेशकों के लिए इस समय अपने हाथ में नकदी रखना एक सुरक्षित विकल्प है। अगर उनके पास नकदी मौजूद होगी तो वे इसका इस्तेमाल बाजार में अच्छा समय आने पर निवेश के लिए कर सकेंगे। कुछ क्षेत्रों की ओर से आशा की किरण नजर आ रही है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंक तरलता की समस्या पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं और अगले कुछ दिनों में इसका हल सामने आ सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) में 50 बेसिस अंकों की कटौती के बाद 100 बेसिक अंकों की अतिरिक्त कटौती कर तरलता की स्थिति सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके अलावा दुनिया भर के केन्दीय बैकों की कोशिशों से भी आगामी सप्ताहों में स्थिति कुछ सुधरने के संकेत मिल रहे हैं और इसका बाजार पर सकारात्मक असर पड़ेगा। बाजार के लिए मुद्रास्फीति की दर कम होना, बैंक दरों में नरमी और उम्मीद से बेहतर नतीजे भी अच्छे समाचार हो सकते हैं। मुद्रास्फीति की दर अब चढ़ने के बजाए नीचे की ओर आ रही है। हालांकि अभी भी यह 12 फीसदी के आसपास है जो कि सामान्य से काफी अधिक है। मुद्रास्फीति का बढ़ना प्रत्येक अर्थव्यवस्था के लिए एक आंतरिक चुनौती होती है और इस पर नियंत्रण रखने के लिए उसे काफी उपाय करने पड़ते हैं। कच्चे तेल के दामों में कमी भी एक अच्छी खबर है। हालांकि निवेशकों को ब्याज दरों में कमी के लिए अभी लंबे समय तक इंतजार करना पड़ सकता है क्योंकि बैंकों ने निकट भविष्य में दरों में कटौती करने से इंकार कर दिया है। शेयरों के दाम में भारी गिरावट जहां निवेशकों का धन लगाने के लिए प्रेरित कर रही है, वहीं अस्थिरता अभी भी चिंता का कारण बनी हुई है और ऐसे में कम मात्रा में खरीदारी करना ही बेहतर होगा। अगर आप इक्विटी में सीधे निवेश करते हैं तो अगले 3 महीने के नजरिए से शेयरों का चयन करें। इस मामले में निवेश की अवधि शेयर बरकरार रखने के लिए नहीं बल्कि खरीदारी के लिए है। आप साप्ताहिक आधार पर भी निवेश पर विचार कर सकते हैं और अपने निवेश को कुछ सप्ताह तक जारी रख सकते हैं। म्युचूअल फंडों के मामले में विकल्प अधिक हैं। आप सिस्टमेटिक ट्रांसफर प्लान (एसटीपी) चुन सकते हैं, एकमुश्त निवेश के साथ भी एसटीपी में धन लगाया जा सकता है। इक्विटी के अलावा निवेशक डेट और सोने में भी धन लगाने के बारे में सोच सकते हैं। शेयर बाजार में भारी गिरावट के बावजूद सोने के दामों में काफी तेजी देखी जा रही है। डेट में यील्ड की दरें कुछ कम हुई हैं। 3 महीने के फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान पर रिटर्न 11 फीसदी के स्तर से अब नीचे आ गया है। इससे तरलता की स्थिति में सुधार आने के साथ ही निवेश की प्रक्रिया को गति मिल सकती है। बाजार में भले ही इस समय भारी अस्थिरता नजर आ रही है। लेकिन छोटे निवेशकों के लिए अभी भी ऐसे विकल्प मौजूद हैं जिनमें वह निवेश कर वाजिब रिटर्न हासिल कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें सतर्कता बरतने की जरूरत होगी और अगर वे चाहें तो निवेश की योजना के लिए किसी वित्तीय सलाहकार के पास भी जा सकते हैं।

Thursday, October 9, 2008

Reliance Health Insurance

RELIANCE HEALTH INSURANCE


Key Highlights
Rs. 2 lakh cover for a family of two at Rs. 2245 per annum
24 x 7 cashless facility and TPA support
No medical check-up up to age of 45 years
Income Tax benefit under Section 80 D
Features
Access to quality healthcare is a necessity today. The Reliance Healthwise Policy ensures you provide the best medical care to your family. We offer a health insurance policy that gives you the optimum value for money without compromising on the quality of medical attention.
Key AdvantagesAffordable Premiums
We offer premiums as low as Rs. 2245 p.a. for a sum insured of Rs. 2 lakhs, for a couple
The Family Floater benefit covers the entire family, ensuring that the cover is used optimally
Policies are available for people up to the age of 65 years.
Convenience all the way
No health checkups for people under the age of 45 years.
With our instant health-kit issuance, your health cover gets an instant start.
A 24-hour cashless facility is provided at more than 4,300 hospitals across India.
The Reliance Advantage
Pre-existing illnesses will commence after two years or four years (depending on the plan you choose) of continuous cover
We also provide you and your family with extended coverage for pre- and post-hospitalisation expenses.
What's more, we reward you with a no-claim bonus of 5% on every claim-free renewal. This can be accumulated up to a maximum of 50%. Tax-wise
With the Reliance HealthWise Policy, you can avail of tax benefits under Section 80D of the Income Tax Act.

Policy Coverage
The coverage offered by Health-wise Policy includes:
Hospitalisation Expenses ¨C The policy will cover expenses incurred for room and operation-theatre charges, doctors¡¯ fees, cost of nursing, medical tests, medicines, blood, etc.
Day-Care Treatment ¨C The policy will cover expenses incurred towards technologically advanced treatment that does not require hospitalisation for 24 hours.
Domiciliary Hospitalisation ¨C We also provide cover for treatment administered at home, subject to specified conditions.
Pre- and Post-Hospitalisation ¨C Reliance Healthwise covers medical expenses for treatment up to 60 days before (and up to 90 days after) the hospitalisation, depending upon the plan selected.
Critical Illness ¨C The policy provides for separate double sum insured for treatment of ten critical illnesses listed.
Donor Expenses ¨C In the event of a major organ transplant, this policy will cover hospitalisation expenses incurred on the donor.
Value Added Benefits
Reliance General Insurance strives to provide more than what is expected. Our value-added benefits include:
Nursing allowance for a maximum of five days.
Reimbursement of charges towards ambulance services
Allowance for expenses of a person accompanying the insured, for a maximum of five days
Reimbursement of cost of health check-up after four claim-free renewals.
Exclusions
In order to ensure that you do not face any unpleasant surprises when you make a claim, we would like you to know some of the major exclusions under the policy.
Any pre¨Cexisting illness for the first two years/ four years of the policy.
Specified illnesses for the 1st year.
Specified illnesses in the case of domiciliary hospitalisation.
Any treatment for the first 30 days from the time of inception of policy, unless due to an accident.
Treatment related to HIV / AIDS
Treatment due to abuse of alcohol or intoxicants.
Vaccination and inoculation.
Nuclear and war perils.
Naturopathy treatment.
EligibilityEligibility norms for this policy are:
Children above the age of three months and adults below the age of 65 years.
Children between three months and five years can be covered only if one or both parents are covered.
Maximum age to enter the Plan is 65 & 60 years for Standard and Silver Plan respectively.

Wednesday, October 8, 2008

Get rich, SIP by SIP

AS an investment advisor, you would think I spent most of my time equipping people with brilliant investment strategies.In reality, a huge chunk of my time goes in clarifying the basics, especially where equity is concerned. The eternal question people ask is, should I invest in equity? Let me answer that by getting some facts right.
Fact 1: Over the long term horizon, equity investments have given returns which far exceed those from debt-based instruments. They are probably the only investment option that can build large wealth.
Fact 2: In the short term, equities exhibit very sharp volatilities which many of us find difficult to stomach.
Fact 3: Equities carry lot of risk even to the extent of wiping out our entire corpus.
Fact 4: Investment in direct equity requires us to be in constant touch with the market and do a lot of research.
Fact 5: Buying good scrips requires fairly large investments.Doesn't sound too good, does it? But if you can overcome these problems, go for equity. You could also consider systematic investing in a mutual fund. It helps prevent the pitfalls of equity investment while you can enjoy high returns. This is all the more important today when the stock markets are booming.
1. Leave it to the expertWhen you invest in a mutual fund, you get the advantage of your fund being managed by professionals or experts. They carry out extensive research on the company, industry and the economy, thus ensuring informed investment. They also track the market regularly. Thus, for many of us who do not have the desired expertise and are too busy with our careers to devote sufficient time and effort to invest in equity, mutual funds offer an attractive alternative.
2. Spread the eggsEven with small amounts, you can enjoy the benefits of diversification. For an individual to achieve the desired diversification, it would take huge amounts which would not be possible for many of us. Diversification reduces the overall impact on the returns from a portfolio on account of a loss in a particular company or sector.
3. Choose transparency and regulationThe mutual fund industry is well regulated by the Securities and Exchange Board of India (SEBI) and the Association of Mutual Funds in India (AMFI). They have, over the years, introduced regulations which ensure smooth and transparent functioning of the mutual funds industry. This makes it safer and convenient for investors to invest through mutual funds.
4. Make market timing irrelevantOne of the biggest difficulties in equity investing is 'when' to invest, apart from the other big question, 'where' to invest. While investing in a mutual fund solves the issue of 'where' to invest, Systematic Investment Planning helps us overcome the problem of 'when'. SIP is disciplined investing irrespective of the state of the market. It thus makes the market timing totally irrelevant. Today, when the markets are high, it may not be prudent to commit large sums at one go. With the next two to three years looking good for the Indian economy, you can expect handsome returns through regular investing.
5. Don’t strain the budgetMutual Funds let you invest very small amounts, say, Rs 500 to Rs 1,000 in SIP, as against the larger one-time investment if you were to buy directly from the market. This makes investing easier as it does not strain our monthly finances. It, therefore, becomes an ideal investment option for a small-time investor who might otherwise not be able to enjoy the benefits of investing in the equity market.
6. Reduces average costSIP makes you invest a fixed amount regularly. So you buy more units when the markets are down and the Net Asset Value is low and vice-versa. This is called rupee-cost averaging. Generally, you would stay away from buying when the markets are down. You tend to invest when the markets are rising. SIP works as a good discipline -- it forces you to buy even when the markets are low which, actually, is the best time to buy.
7. Helps fulfill your dreamsThe investments we make are ultimately for some objectives, such as buying a house, children's education, marriage. Many of them require a huge one-time investment. It is quite tough to raise large amounts at a short notice, and you need to build the corpus over a longer period of time through small, but regular, investments.These small investments, over a period of time, result in large wealth and it helps fulfill your dream be it a house or a yacht. So get ready to pop the champagne. But, remember, drink one SIP at time!
- Sanjay Matai

Monday, October 6, 2008

मौजूदा दौर में एफएमपी में निवेश बेहतर

शेयर बाजार में कई महीनों से मंदी है। ऐसे में लोग ऐसे निवेश की तलाश में हैं , जो अच्छे रिटर्न के साथ-साथ सुरक्षित भी हों। फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) ऐसा ही जरिया है। इन हालात में फाइनेंशियल कंसल्टेंट्स भी एफएमपी में पैसा लगाने की सलाह दे रहे हैं। यह प्रॉडक्ट बड़े निवेशकों (एचएनआई) के बीच भी काफी लोकप्रिय है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले कुछ समय में दरों में कई बार बढ़ोतरी की है और ऐसे में इस डेट इंस्ट्रूमेंट में निवेश और भी आकर्षक हो गया है।
क्या है एफएमपी ?
एफएमपी क्लोज एंडेड आय योजनाएं होती हैं , जिन्हें म्युचूअल फंड जारी करते हैं। इनकी परिपक्वता (मैच्योरिटी) तिथि तय होती है और अवधि 1 महीने से लेकर 2 साल या इससे भी अधिक हो सकती है। मैच्योरिटी का वक्त खत्म होने के बाद निवेशक को ब्याज समेत राशि का भुगतान कर दिया जाता है। एफएमपी के तहत म्युचूअल फंड आमतौर पर डेट इंस्ट्रूमेंट और कंपनियों के कर्मशल पेपर और बैंक के डिपॉजिट सर्टिफिकेट में पैसा लगाते हैं।
कर चुकाने के बाद आकर्षक रिटर्न
एफएमपी के साथ एक अन्य आकर्षण इसका कर प्रभावी होना है। डिविडेंड विकल्प वाली लघु अवधि की एफएमपी योजना पर 14.16 फीसदी की दर से डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स देना पड़ता है। इसके अलावा इसे लघु अवधि के पूंजीगत लाभ के तौर पर माना जाता है। अगर एफएमपी की अवधि एक वर्ष से अधिक होती है तो निवेशक को बिना इंडेक्सेशन के 11.33 फीसदी की दर से लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ कर और इंडेक्सेशन के साथ 22.66 फीसदी की दर से कर देना होता है। 1 साल से अधिक की अवधि के लिए इंडेक्सेशन का दोहरा लाभ मिलता है। इसकी तुलना में सावधि जमा योजना (एफडी) में मिलने वाले रिटर्न को निवेशक की आय में जोड़ने के बाद कर लगाया जाता है। जो व्यक्ति आयकर के ऊंचे स्लैब में आता है , उसे सावधि जमा पर 33.99 फीसदी की दर से कर देना पड़ता है और इसी वजह से इसमें निवेश ज्यादा आकर्षक नहीं होता।
जोखिम भी मौजूद
सावधि जमा की तुलना में एफएमपी में जोखिम अधिक होता है। एफएमपी में कंपनियों के कर्मशल पेपर में निवेश किया जाता है जो असुरक्षित ऋण है। खराब समय में कुछ कंपनियों अपने वायदे से पीछे हट सकती हैं और इससे मूल राशि भी जोखिम में आ जाती है। एफएमपी में जोखिम का स्तर बहुत हद तक निवेश प्रबंधक की क्षमता पर निर्भर करता है।
एफएमपी में तरलता की कमी
एफएमपी उन निवेशकों के लिए बेहतर हैं जो योजना की पूरी अवधि के लिए अपने धन को अलग रख सकते हैं। अगर आप निर्धारित अवधि से पहले धन निकालते हैं तो उस पर भारी एग्जिट लोड चुकाना पड़ता है और निवेश का लाभ भी नहीं मिलता। इसी वजह से एफएमपी में तरलता का अभाव होता है। अगर संपूर्ण तौर पर देखा जाए तो एफएमपी निवेश का एक अच्छा विकल्प है जिसमें अच्छे रिटर्न तो मिलता ही है साथ ही जोखिम भी कम होता है। इसके अलावा कर बाध्यता के हिसाब से भी डेट में निवेश के अन्य विकल्पों की तुलना में बेहतर है।

Saturday, October 4, 2008

Birla Sun Life Dream Plan is one of the best plan in Insurance Industry

Just Click on the above image to view matter in visible size.
Contact now for Dream Plan : Jinendra Kumar Porwal 9829353219, 9351445025
Email: jinendraporwal@indiatimes.com

Thursday, October 2, 2008

गिरावट के दौर में किस तरह करें निवेश


बाजार की चाल का अंदाजा लगाना तारे गिनने जैसा है। 2008 की शुरुआत शेयर मार्केट के लिए बुरी खबर लेकर आया और बीते कुछ वक्त से अमेरिकी वित्तीय संस्थानों के घुटने टेकने से दुनिया भर में बवाल मचा हुआ है। निवेशक इस बात से हैरान हैं कि आने वाले वक्त में निवेश की रणनीति कैसे तैयार की जाए ? आईटी विशेषज्ञ अनूप गुप्ता का उदाहरण ही ले लीजिए , जो इस बात पर पसोपेश में फंसे हैं कि पूंजी बाजारों के लिए उनकी रणनीति क्या होनी चाहिए। 30 साल के गुप्ता ने यह जानने के लिए फाइनेंशियल कंसल्टेंसी में काम करने वाले अपने दोस्तों से बातचीत की कि बाजार किस तरफ बढ़ रहा है। हालांकि , हर प्रॉडक्ट में इतनी पेचीदगी होती है कि निवेशकों के लिए कई बार खुद फैसला करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए गुप्ता ने आखिरकार फाइनेंशियल प्लानर से बात करने का फैसला किया।
बदलता नजरिया
शेयर बाजार में भारी गिरावट से निवेशक डर जाते हैं। ऐसे में वह कई बार पोर्टफोलियो को पूरी तरह से बदलने के बारे में भी सोचने लगते हैं। हालांकि , जानकार ऐसे किसी कदम से बचने की सलाह देते हैं। जानकारों का कहना है कि बाजार की चाल को देखकर निवेश की रणनीति पूरी तरह से नहीं बदलनी चाहिए। उनके मुताबिक , इस तरह के बदलाव से आपको नुकसान हो सकता है। जानकार हमेशा लंबे वक्त के हिसाब से निवेश की रणनीति पर बने रहने की सलाह देते हैं। वेल्थकेयर सिक्योरिटीज के निदेशक मुकेश गुप्ता ने कहा , ' अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश करने वाले व्यक्ति हैं तो छोटी अवधि के उतार-चढ़ाव की फिक्र न करें। हालांकि आपको लंबी मियाद के वित्तीय लक्ष्यों के हिसाब से अपना दिमाग तैयार करना चाहिए। '
बाजार से बचना
यह मौजूदा विकल्पों में सबसे आसान है , लेकिन समझदारी नहीं। निवेशक कई बार इस विचार के साथ बाजार से दूरी बनाते हैं कि तेजी के दौर में वे दोबारा दलाल स्ट्रीट का रुख करेंगे। यह ऐसा ही हुआ जैसे , ' 30 फीसदी डिस्काउंट सेल खत्म होने के बाद मैं महंगे अपैरल स्टोर से खरीदारी करूंगा। '
क्वॉन्टम असेट मैनेजमेंट के सीईओ और सीओओ देवेंद्र नेवगी ने कहा , ' बाजार में गिरावट के दौरान हड़बड़ाहट के बजाए आपको एसआईपी के जरिए नियमित रूप से निवेश करते रहना चाहिए। भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार अभी भी काफी अच्छी बनी हुई है। ऐसे में शेयर बाजार भी जल्द ही रफ्तार पकड़ेगा। ' गुप्ता ने कहा , ' रणनीतिक संपत्ति आवंटन से भटकना आपके रिटर्न पर चोट कर सकता है और वास्तविक जोखिम में काफी इजाफा हो सकता है। '
नकदी का खेल
हाथ में नकदी रखना सुरक्षित हो सकता है , लेकिन बाजार में उथल-पुथल के दौर में भी इसे सही रणनीति करार नहीं दिया जा सकता। गुप्ता ने कहा , ' रुपया कॉस्ट एवरेजिंग एक रणनीति है , जिसमें बाजार में नियमित अंतराल पर तय राशि निवेश की जाती है। यह आपको शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान निवेश की रणनीति को लेकर उलझन से बचाता है। ' आपको यह बात दिमाग में रखने की जरूरत है कि बाजार में आज जो हालात नजर आ रहे हैं , उनके लिए घरेलू चिंताओं के अलावा बाहरी कारण भी जिम्मेदार हैं।
बदलिए संपत्ति आवंटन
अगर अब ऐतिहासिक चलन पर कड़ाई से पालन करते हैं तो उपरोक्त टिप्पणी आपके लिए निराधार है। विशेषज्ञों के मुताबिक बीते 10 साल से शेयर बाजार सालाना 15 फीसदी के करीब रिटर्न दे रहा है और फिक्स्ड इनकम उत्पादों की पहुंच इतनी नहीं दिखी है। ऐसे उत्पाद उसी सूरत में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं , जब ब्याज दरों में गिरावट आए। महत्वपूर्ण यह है कि नियमित अंतराल पर संपत्ति को डायवर्सिफाइड करने और पोर्टफोलियो में संतुलन बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। शेयर बाजार से बाहर निकलने के बजाए निवेशक को अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी आवंटन बढ़ाना चाहिए।

निवेश से दीजिए महंगाई दर को मात

मुंबई : रिटायरमेंट की योजना बनाते वक्त बचत को संरक्षित रखने के बारे भी सोचना चाहिए। यही नहीं, आपको यह भी ख्याल रखना होगा कि आप इस पैसे को उन चीजों में लगाएं, जिससे वह मुद्रास्फीति से ज्यादा रफ्तार से बढ़े। इससे रिटायरमेंट के बाद भी मौजूदा लाइफस्टाइल को बनाए रखने की चिंता दूर हो जाएगी। निवेश का मिश्रण : महंगाई दर की तेज रफ्तार की वजह से नकदी तेजी से अपनी वैल्यू खो रही है, इसलिए पैसे का मौजूदा मूल्य बरकरार रखने के लिए भी निवेश करने की जरूरत होती है। रिटायरमेंट के लिए इक्विटी की तुलना में डेट को ज्यादा तरजीह दी जाती है। यहां रिटर्न के साथ पैसे की सुरक्षा भी मकसद होता है। रिटायरमेंट निवेश के लिहाज से आरबीआई बॉन्ड और डाक घर बचत योजनाएं काफी पॉपुलर हैं। अगर आपने पोस्टल मासिक इनकम स्कीम की अधिकतम सीमा तक निवेश कर दिया है तो आप फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान और म्युचूअल फंड के शॉर्ट टर्म बॉन्ड फंड पर गौर कर सकते हैं। इसके अलावा बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट भी आकर्षक हो सकते हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर 1 साल की अवधि के लिए दोहरे अंकों में ब्याज दे रहे हैं। अगर आप इनकम टैक्स के सबसे ऊपरी स्लैब में आते हैं तो रिटर्न के हिसाब से डेट म्युचूअल फंड, बैंक सावधि जमा पर भारी पड़ते हैं। हालांकि दोनों में क्रेडिट जोखिम अलग-अलग हैं। आपके पैसे का एक छोटा हिस्सा (5-7 फीसदी) इक्विटी इंडेक्स फंड या लार्ज कैप/ब्लूचिप इक्विटी स्कीम में जा सकता है। उन सेक्टरों को नजरअंदाज करने में समझदारी है। आपको आकस्मिक फंड तैयार करने की जरूरत होती है और इसके लिए सर्वश्रेष्ठ रास्ता लिक्विड फंड मुहैया कराते हैं। गोल्ड ईटीएफ का दामन भी थामा जा सकता है। इक्विटी बाजारों में उथल-पुथल के दौर में अगर सोना मुनाफा न दे तो कम से कम पोर्टफोलियो को स्थिरता तो देता ही है। सुरक्षाफंड को सही जगह लाने के साथ ही वित्तीय नुकसान से बचने के लिए बीमा तंत्र पर भी विचार करना होता है। रिटायरमेंट के बाद ऐसे कम ही लोग होते हैं जिन्हें जीवन बीमा की जरूरत पड़ती है लेकिन स्वास्थ्य बीमा की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता। कई बढ़िया कंपनियां अपने कर्मचारियों का बीमा कराती हैं। सेवानिवृत्ति होने पर ये बीमा कवर खत्म हो जाते हैं। कामकाजी जिंदगी के बाद के दौर के लिए मेडिकल इंश्योरेंस जरूरी होता है। इसलिए अगर आपने अपने और जीवनसाथी के लिए मेडिक्लेम नहीं खरीदा तो अब देर मत कीजिए। प्रक्रियागत मुद्दे : उम्र बढ़ने के साथ आपका भागना-दौड़ना कम हो जाता है इसलिए भुगतान और रसीद का कामकाज संभालना मुश्किल हो जाता है। ज्यादातर बैंक अपने खाताधारकों को बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के यह सेवा मुहैया कराते हैं। वक्त पर भुगतान करने से सेवाएं और सप्लाई जारी रहती हैं। मासिक पोस्टल स्कीम पर मिलने वाला ब्याज आपके बैंक खाते में क्रेडिट कर दिया जाता है, जिससे आपको हर महीने डाकघर के बाहर लाइन लगने की जरूरत नहीं होती।

म्युचूअल फंड बेच पाएंगे बीमा कवर वाले प्लान

मुंबई : म्युचूअल फंड और दूसरे इनवेस्टमेंट प्रोडक्ट्स के साथ बीमा कवर की सुविधा मिलती रहेगी। ग्रुप इंश्योरेंस को लेकर म्युचूअल फंड और जीवन बीमा परिषद के बीच झगड़ा चल रहा था। वित्त मंत्रालय के दखल से यह विवाद सुलझ गया है। बीमा कंपनियों ने म्युचूअल फंड उत्पादों पर मिलने वाले ग्रुप इंश्योरेंस कवर पर पाबंदी लगाई हुई थी। मंत्रालय के दखल के बाद यह मामला सुलझ गया है। इस मामले में सेबी और इरडा के प्रतिनिधियों की वित्त सचिव के दफ्तर में बैठक हुई। इसमें फैसला लिया गया कि इरडा जीवन बीमा परिषद को इस बात की सलाह देगा कि वह म्युचूअल फंड उत्पादों पर ग्रुप इंश्योरेंस कवर नहीं देने का फैसला बदले। जीवन बीमा परिषद ने फैसला किया था कि वह इस साल 1 अक्टूबर से म्युचूअल फंड उत्पादों पर ग्रुप इंश्योरेंस कवर नहीं देगा। हालांकि, सेबी और इरडा के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में फैसला लिया गया कि सेबी म्युचूअल फंड कंपनियों को जीवन बीमा कवर वाले म्युचूअल फंड उत्पादों के विज्ञापन पर गाइडलाइंस जारी करेगा। सेबी और इरडा के चेयरमैन इस पूरे मामले पर नजर रखेंगे। दोनों इस पर अपनी प्रतिक्रिया सरकार को भी सौंपेंगे। म्युचूअल फंड कंपनियों ने जीवन बीमा इंडस्ट्री पर ग्रुप इंश्योरेंस कवर बेचने पर गोलबंदी का आरोप लगाया है। म्युचूअल फंड कंपनियों और जीवन बीमा कंपनियों के बीच चल रहे विवाद का यह दूसरा चरण है। शुरू में म्युचूअल फंड कंपनियों ने आरोप लगाया था कि बीमा कंपनियां यूलिप योजनाएं उतार कर अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन कर रही हैं। बीमा कंपनियों की यूलिप योजनाओं के जवाब में म्युचूअल फंड कंपनियों ने बीमा कवर वाले सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) बाजार में उतार दिए।

बचत के बिना बोझ बन सकती है जिंदगी

बिना पैसे के जिंदगी बोझ बन जाती है। आपकी जिंदगी आगे चलकर बोझ न बने , इसके लिए बचत जरूरी है। हालांकि , आप कारगर ढंग से तभी बचत कर पाएंगे , जब आपके पास सही फाइनेंशियल प्लानिंग हो। सही प्लानिंग के साथ बचत का अनुशासन भी जरूरी है। अक्सर साल खत्म होने पर आपको यह पता चलता है कि आपके निवेश ने उम्मीद के मुताबिक रिटर्न नहीं दिया है। तब आप गहरी सांस लेते हैं और अगले साल बेहतर रिटर्न की उम्मीद बांधते हैं। हालांकि , अगले साल भी नतीजा वही निकलता है। फाइनेंशियल प्लानिंग में आप शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म के लिए रणनीति बनाते हैं। इस प्लानिंग में यह बात शामिल होती है कि आप तय वक्त में कितनी रकम जमा करना चाहते हैं। फाइनेंशियल प्लानिंग में क्या-क्या होना चाहिए , आइए इस पर एक नजर डालते हैं:
1. संपत्ति जमा करना- नकद प्रवाह की योजना
2. जोखिम से सुरक्षा- बीमा की योजना और जोखिम प्रबंधन
3. संपत्ति का उत्तराधिकार- वसीयत और ट्रस्ट
4. रिटायरमेंट और कर योजना
फाइनेंशियल प्लानिंग लगभग वैसी ही होती है , जैसी आप यात्रा की योजना बनाते हैं। यात्रा के लिए सबसे पहले आपको मंजिल तय करनी होती है। अगर मंजिल न हो तो यह पता नहीं चलेगा कि आप को सफर कहां तक करना है। फाइनेंशियल प्लानिंग में सबसे पहले लक्ष्य तय किए जाते हैं। इनसे आपको योजना के नतीजों के बारे में फैसला करने में मदद मिलती है। व्यक्ति की जरूरतों और इच्छाओं के आधार पर लक्ष्य तय होते हैं। ये योजना और उस पर अमल को दिशा देते हैं। ऐसे लक्ष्य और भी प्रभावी होते हैं जो विशेष , मापे जा सकने वाले , हासिल किए जा सकने वाले , वास्तविक और समय में बंधे होते हैं।
बहुत से लोग यह नहीं समझ पाते कि देरी करने या वित्तीय योजना को वर्ष के अंत तक टालने से उन्हें या तो सीधा वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है या फिर वे अच्छे अवसरों का लाभ उठाने से चूक जाते हैं। भारत में ज्यादातर लोग फाइनेंशियल प्लानिंग को टैक्स बचाने की योजना के तौर पर लेते हैं। इसी वजह से वे केवल फरवरी या मार्च में ही वित्तीय सलाहकार के पास जाते हैं। हालांकि , टैक्स बचाने की योजना फाइनेंशियल प्लानिंग का केवल एक हिस्सा होती है। वित्तीय योजना का उद्देश्य लंबी अवधि के वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करना होता है। वहीं , टैक्स योजना में अधिक से अधिक कर बचाने पर ध्यान दिया जाता है , जिससे बचे हुए धन का निवेश किया जा सके। वित्तीय योजना की प्रक्रिया की शुरुआत अप्रैल में नए वित्त वर्ष के शुरू होने के साथ ही कर देनी चाहिए। फाइनेंशियल प्लानिंग को जल्दबाजी में नहीं बनाना चाहिए। इस प्लानिंग में कुछ ऐसे क्षेत्र हो सकते हैं , जिनकी तैयारी के लिए आपको वक्त की जरूरत होती है। वहीं , प्लानिंग का एक हिस्सा ऐसा भी हो सकता है , जिसके लिए आपको पैसे का इंतजाम करना पड़ सकता है। कुछ क्षेत्र ऐसे भी होते हैं , जिन पर आपका नियंत्रण न के बराबर होता है। जून में निवेशक निवेश के अवसरों की तलाश में रहते हैं। विशेषकर यह डेट में निवेश के लिए सही साबित होता है , जहां अप्रैल-मई के बाद गतिविधियां बढ़ने लगती हैं। जो लोग वेतनभोगी नहीं हैं , उन्हें इस अवधि में अग्रिम कर भुगतान पर ध्यान देने की जरूरत होती है। सितंबर से उन्हें प्रत्येक तिमाही में अपनी कमाई पर अग्रिम कर का भुगतान शुरू करना होता है। इसके लिए अलग से धनराशि रखना बेहतर रहता है। अक्टूबर से दिसंबर के बीच कर के मोर्चे पर अपनी स्थिति की समीक्षा करना जरूरी होता है। त्योहारों का समय या दिसंबर के अंत में कुछ विशेष सेक्टरों में बोनस बांटा जाता है और बोनस की राशि के आधार पर आय के स्तर में भी बदलाव आ सकता है। इसके चलते वित्तीय योजना में भी कुछ बदलाव करने पड़ सकते हैं।
सफल वित्तीय सलाह की चाबी निवेशकों के हाथों में ही होती है। निवेशकों को सही सलाह के लिए फीस देने को तैयार रहना चाहिए , ठीक वैसे ही जैसे वे डॉक्टर की फीस देते हैं। याद रखें कि इस दुनिया में मुफ्त कुछ भी नहीं मिलता और आपको प्रत्येक चीज की कीमत चुकानी पड़ती है और यही बात वित्तीय सलाह के मामले में भी लागू होती है।